Table of contents | |
परिचय | |
रहीम के दोहे सार | |
शब्दावली | |
निष्कर्ष |
रहीम के दोहे हमें जीवन के विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं की ओर ध्यान आकर्षित करते हैं।
1. रहीमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तलवारि।।
अर्थ: रहीम कहते हैं कि बड़े व्यक्ति या चीज़ को देखकर छोटे को नहीं छोड़ना चाहिए। क्योंकि जहाँ सूई काम आती है, वहाँ तलवार कुछ नहीं कर सकती। यानी छोटी चीज़ें भी अपने स्थान पर बहुत महत्वपूर्ण होती हैं।
व्याख्या: इस दोहे में रहीम यह समझाते हैं कि हर व्यक्ति और वस्तु का अपना महत्व है, चाहे वह छोटा हो या बड़ा। हमें किसी को छोटा समझकर नजरअंदाज नहीं करना चाहिए, क्योंकि कभी-कभी छोटी चीजें भी बड़े काम कर जाती हैं।
2. तरुवर फल नहिं खात हैं सरवर पियहिं न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान।।
अर्थ: रहीम कहते हैं कि पेड़ अपने फल खुद नहीं खाते और नदियाँ अपने पानी को नहीं पीतीं। रहीम कहते हैं कि सज्जन व्यक्ति भी अपनी संपत्ति का उपयोग दूसरों के कल्याण के लिए करते हैं।
व्याख्या: इस दोहे में रहीम यह संदेश देते हैं कि सच्चे और अच्छे लोग वही हैं जो अपनी संपत्ति और संसाधनों का उपयोग समाज और दूसरों के भले के लिए करते हैं, जैसे पेड़ और नदियाँ दूसरों के लाभ के लिए होती हैं।
3. रहीमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो छिटकाय।
टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय॥
अर्थ: रहीम कहते हैं कि प्रेम का धागा इतना नाजुक होता है कि इसे झटका देकर मत तोड़ो। क्योंकि एक बार टूटने के बाद यह दुबारा नहीं जुड़ता, और यदि जुड़ भी जाए तो उसमें गाँठ पड़ जाती है।
व्याख्या: इस दोहे में रहीम समझाते हैं कि रिश्ते और प्रेम बहुत नाजुक होते हैं। अगर इन्हें तोड़ दिया जाए तो वह दोबारा उसी रूप में नहीं आते। अगर जुड़ते भी हैं तो उनमें दूरी और कड़वाहट की गाँठ पड़ जाती है।
4. रहीमन पानी राखिये, बिनु पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून॥
अर्थ: रहीम कहते हैं कि जीवन में पानी (जल) को संभाल कर रखना चाहिए, क्योंकि बिना पानी के सब कुछ सूना हो जाता है। यदि पानी चला गया तो न मोती का अस्तित्व रहेगा, न मनुष्य का और न चूने का।
व्याख्या: इस दोहे में पानी को जीवन का प्रतीक माना गया है। जैसे पानी के बिना जीवन संभव नहीं, वैसे ही हमें अपने जीवन में नैतिकता, आत्म-सम्मान और रिश्तों का ख्याल रखना चाहिए। अगर ये एक बार खो गए तो फिर उन्हें वापस पाना बहुत मुश्किल हो जाता है।
5. रहीमन बिपदाहू भली, जो थोरे दिन होय।
हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय॥
अर्थ: रहीम कहते हैं कि थोड़े समय की विपत्ति (कठिनाई) अच्छी होती है क्योंकि उससे हमें अपने मित्र और शत्रु की पहचान हो जाती है।
व्याख्या: इस दोहे में रहीम समझाते हैं कि कभी-कभी कठिन समय भी अच्छा होता है, क्योंकि इसी दौरान हमें यह समझ में आता है कि कौन हमारा सच्चा मित्र है और कौन नहीं। कठिनाइयाँ हमारे जीवन में अनुभव और समझदारी लाती हैं।
6. रहीमन जिह्वा बावरी, कहि गइ सरग पताल।
आपु तो कहि भीतर रही, जूती खात कपाल॥
अर्थ: रहीम कहते हैं कि जीभ (वाणी) ऐसी बावरी होती है जो बिना सोचे-समझे कुछ भी बोल देती है, जिससे वह स्वर्ग और पाताल का सफर कर जाती है। परंतु बाद में, जब नुकसान होता है, तो खुद अंदर छुप जाती है और उसका दंड व्यक्ति को भुगतना पड़ता है।
व्याख्या: इस दोहे में रहीम यह समझाते हैं कि बिना सोचे-समझे बोले गए शब्द बहुत हानि पहुँचाते हैं। इसलिए हमें अपनी वाणी पर नियंत्रण रखना चाहिए, क्योंकि इसके गलत उपयोग से हमें ही नुकसान होता है।
7. कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीत।
बिपति कसौटी जे कसे, ते ही साँचे मीत॥
अर्थ: रहीम कहते हैं कि संपत्ति (संपन्नता) में तो कई लोग मित्र बन जाते हैं, लेकिन जो मित्र विपत्ति की कसौटी पर खरा उतरे, वही सच्चा मित्र होता है।
व्याख्या: इस दोहे में रहीम समझाते हैं कि सच्चे मित्र की पहचान सुख के समय नहीं, बल्कि कठिनाइयों के समय होती है। जो मित्र हमारे साथ बुरे वक्त में खड़ा रहे, वही सच्चा मित्र है।
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1. रहीम के दोहे क्या होते हैं और इनमें क्या विशेषता होती है ? |
2. 'रहीम के दोहे' का क्या महत्व है ? |
3. क्या रहीम के दोहे केवल कविता तक सीमित हैं, या इनमें कुछ और भी है ? |
4. क्या हम आज के जीवन में रहीम के दोहों का उपयोग कर सकते हैं ? |
5. रहीम के दोहे किस प्रकार की भावनाएँ व्यक्त करते हैं ? |
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