समास किसे कहते हैं?
दो या दो से अधिक पदों का अपने विभक्ति-चिह्नों को छोड़कर एक हो जाना समास कहलाता है। सामासिक शब्दों में दो पद होते हैं। पहले पद को पूर्वपद, दूसरे पद को उत्तरपद और समास प्रक्रिया से बने पूर्ण पद को समस्तपद कहते हैं।
निम्नलिखित वाक्यों पर ध्यान दें:उपर्युक्त वाक्यों से स्पष्ट होता है कि यहाँ दो या दो से अधिक पद बिना कारक-चिह्नों के ही आपस में जुड़ गए हैं। समस्त-पद समास रचना में दो या दो से अधिक पद होते हैं। पहले पद को “पूर्व पद” कहते हैं और दूसरे पद को “उत्तर पद” कहते हैं। इन दोनों पदों के मेल से एक नया शब्द बनता है जिसे “समस्त पद” कहते हैं।
समास-विग्रह
जब समस्त-पद के सभी पद अलग किए जाते हैं विग्रह कहलाता है।
जैसे: “माता-पिता”, समस्त पद का विग्रह है, माता और पिता।
संधि और समास में अंतर
कुछ लोग संधि और समास को एक ही मान लेते हैं, लेकिन यह गलत है। संधि और समास में निम्नलिखित अंतर हैं:
- संधि का अर्थ है- मेल, जबकि समास का अर्थ है- संक्षेप।
- संधि में वर्गों का मेल होता है जबकि समास में शब्दों (पदों) का।
- संधि में वर्ण-परिवर्तन होता है जबकि समास में ऐसा नहीं होता है।
- संधि का विच्छेद किया जाता है, जबकि समास का विग्रह होता है।
- समास में शब्दों के बीच के विभक्ति चिह्नों का लोप हो जाता है।
समास के भेद
- अव्ययीभाव समास
- तत्पुरुष समास
- कर्मधारय समास
- द्विगु समास
- बहुव्रीहि समास
- वंद्व समास
अव्ययीभाव समास
जिस समस्त पद का पहला पद अव्यय हो और जो क्रियाविशेषण के रूप में प्रयुक्त हो, उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। जिस समास में पहला पद अव्यय हो, उसे 'अव्ययीभाव समास' कहते हैं। इसका पहला पद प्रधान होता है। इस समास में दोनों पदों को मिलाकर जो नवीन शब्द बनता है, वह भी अव्यय होता है। समस्तपद 'क्रियाविशेषण' होता है। एक ही शब्द की आवृत्ति के कारण जो समस्तपद बनता है, वह भी अव्यय होता है।
जैसे: यथाशक्ति, प्रतिदिन, आजन्म आदि। अव्ययीभाव समास से बने शब्द अव्यय होते हैं।
तत्पुरुष समास
जिस समस्तपद में अंतिम पद की प्रधानता हो, उसे तत्पुरुष समास कहते हैं। तत्पुरुष समास में उत्तरपद प्रधान होता है तथा पूर्वपद गौण होता है। विग्रह करते समय दोनों पदों के बीच में कर्ता और संबोधन को छोड़कर अन्य किसी भी कारक का विभक्ति चिह्न आता है। प्रायः उत्तरपद विशेष्य और पूर्वपद विशेषण होता है।
जैसे: देवपुत्र। देवता का पुत्र। यहाँ अंतिम पद प्रधान है। तत्पुरुष समास में समस्त पदों के लिंग और वचन अंतिम पद के अनुसार ही होते हैं।
तत्पुरुष समास के भेद
कारकों की विभक्तियों के आधार पर तत्पुरुष समास के छह भेद किए गए हैं।
1. कर्म तत्पुरुष (को-विभक्ति का लोप): जहाँ पूर्वपद में कर्मकारक की विभक्ति का लोप हो, वहाँ कर्म तत्पुरुष होता है।
2. करण तत्पुरुष (से, के द्वारा विभक्ति का लोप): जहाँ पूर्व पक्ष में करण कारक की विभक्ति का लोप हो, वहाँ 'करण तत्पुरुष' होता है।
3. संप्रदान तत्पुरुष (को, के लिए विभक्ति का लोप): जहाँ समास के पूर्व पक्ष में संप्रदान की विभक्ति अर्थात् 'के लिए' का लोप होता है, वहाँ संप्रदान तत्पुरुष समास होता है।
4. अपादान तत्पुरुष (से, विभक्ति का लोप): जहाँ समास के पूर्व पक्ष में अपादान की विभक्ति अर्थात् ‘से' का भाव हो, वहाँ अपादान तत्पुरुष समास होता है।
5. संबंध तत्पुरुष (का, के, की विभक्ति का लोप): जहाँ समास के पूर्व पक्ष में संबंध तत्पुरुष की विभक्ति अर्थात् का, के, की का लोप हो, वहाँ संबंध तत्पुरुष समास होता है।
6. अधिकरण तत्पुरुष (में, पर-विभक्ति का लोप): जहाँ अधिकरण कारक की विभक्ति अर्थात् 'में', 'पर' का लोप होता है, वहाँ 'अधिकरण तत्पुरुष' समास होता है।
तत्पुरुष समास के उपभेद
तत्पुरुष समास के दो प्रमुख उपभेद हैं: कर्मधारय समास तथा द्विगु समास
कर्मधारय समास
कर्मधारय समास वहाँ होता है जहाँ दूसरा पद प्रधान हो तथा दोनों पदों में विशेषण-विशेष्य या उपमेय-उपमान का संबंध हो। कर्मधारय समास में पहला पद विशेषण तथा दूसरा पद विशेष्य होता है अथवा एक पद उपमान और दूसरा पद उपमेय होता है। इसका उत्तरपद प्रधान होता है। विग्रह करते समय दोनों पदों के बीच में 'के समान', 'है जो', 'रूपी' शब्दों में से किसी एक का प्रयोग होता है।
जैसे:द्विगु समास
द्विगु समास वहाँ होता है जहाँ समस्त पद का पहला पद संख्यावाचक विशेषण हो। जहाँ समस्तपद के पूर्वपक्ष में संख्यावाचक विशेषण होता है, वहाँ द्विगु समास होता है। विग्रह करते समय इस समास में समूह अथवा समाहार शब्द का प्रयोग होता है।
जैसे:बहुव्रीहि समास
बहुव्रीहि समास में कोई पद प्रधान नहीं होता है। इनके पद मिलकर कोई अन्य पद की प्रधानता को दर्शाते हैं। जहाँ पहला पद और दूसरा पद मिलकर किसी तीसरे पद की ओर संकेत करते हैं, वहाँ बहुव्रीहि समास होता है। दोनों पदों में से कोई भी पद प्रधान नहीं होता। तीसरा पद प्रधान होता है तथा दिए गए दोनों पदों का विशेष्य होता है। कर्मधारय व द्विगु समास में एक विशेषण होता है और दूसरा विशेष्य, जबकि बहुव्रीहि समास में दोनों पद विशेषण होते हैं तथा कोई तीसरा पद विशेष्य होता है।
द्वंद-समास
जिस समस्त पद के दोनों पद प्रधान हों वहाँ द्वंद्व समास होता है। जिस समस्तपद में दोनों पद समान हों, वहाँ द्वंद्व समास होता है। इसमें दोनों पदों को मिलाते समय मध्य-स्थित योजक लुप्त हो जाता है। विग्रह करते समय दोनों पदों के बीच में 'और', 'तथा', 'या', 'अथवा' शब्दों में से किसी एक का प्रयोग होता है।
जैसे:
बहुव्रीहि तथा कर्मधारय समास में अंतर
समस्तपद का एक पद दूसरे पद का विशेषण हो या दोनों में उपमेय- उपमान संबंध हो, तो कर्मधारय समास होता है। लेकिन, यदि दोनों पदों के मेल से कोई अन्य अर्थ प्रकट हो, तो बहुव्रीहि समास होता है।
जैसे:द्विगु और बहुव्रीहि समास में अंतर
यदि समस्तपद का पहला पद संख्यावाची हो तो द्विगु समास होता है, परंतु यदि दोनों पदों के मेल से कोई अन्य अर्थ प्रकट हो, तो बहुब्रीहि समास होता है।
जैसे:
Question for Chapter Notes: समास
Try yourself:निम्न में समास के सही भेदों को चिहनित कीजिए
चल-अचल
Question for Chapter Notes: समास
Try yourself:विशेषण और विशेष्य साथ-साथ होते हैं
Question for Chapter Notes: समास
Try yourself:निम्न में समास के सही भेदों को चिहनित कीजिए
श्याममेघ