निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए –
1. विषुवत रेखा का वासी जो,
जीता है नित हाँफ-हाँफ कर
रखता है अनुराग अलौकिक
वह भी अपनी मातृभूमि पर
ध्रुववासी, जो हिम में तम में
जी लेता है काँप-काँपकर
वह भी अपनी मातृभूमि पर,
कर देता है प्राण निछावर
तुम तो हे प्रिय बंधु! स्वर्ग सी,
सुखद सकल विभवों की आकर,
धरा शिरोमणि मातृभूमि में,
धन्य हुए जीवन पाकर
तुम जिसका जल-अन्न ग्रहण कर,
बड़े हुए लेकर जिसका रज,
तन रहते कैसे तज दोगे,
उसको, हे वीरों के वंशज॥
जब तक साथ एक भी दमं हो,
हो अवशिष्ट एक भी धड़कन,
रखो आत्म-गौरव से ऊँची.
पलकें, ऊँचा सिर, ऊँचा मन। (-रामनरेश त्रिपाठी)
प्रश्नः 1. काव्यांश का मूलभाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः काव्यांश का मूलभाव है-भारतभूमि का गुणगान एवं मातृभूमि से लगाव रखते हुए स्वाभिमान से जीना।
प्रश्नः 2. ‘वीरों के वंशज’ किसे कहा गया है?
उत्तरः ‘वीरों के वंशज’ भारतीयों को कहा गया है।
प्रश्नः 3. ‘तुम तो हे प्रिय बंधु! स्वर्ग-सी’ में कौन-सा अलंकार है?
उत्तरः तुम तो हे प्रिय बंधु! स्वर्ग-सी में उपमा अलंकार है।
प्रश्नः 4. काव्यांश के आधार पर भारतभूमि की विशेषता लिखिए।
उत्तरः भारतभूमि स्वर्ग के समान सुंदर तथा सभी सुखों का भंडार है। यह धरा की शिरोमणि है। इस पर जन्म लेने वालों का जीवन धन्य हो जाता है।
प्रश्नः 5. ‘विषुवत रेखा का वासी’ और ध्रुववासी अपनी मातृभूमि के प्रति किस तरह लगाव प्रकट करते हैं ?
उत्तरः विषुवत रेखा पर रहने वाले वहाँ पड़ने वाली भयंकर गरमी के कारण हाँफ-हाँफकर जीते हैं और ध्रुववासी बरफ़ में काँप-काँप कर जीते हैं, पर वे भी मातृभूमि पर हँसते हुए जान दे देते हैं और मातृभूमि से लगाव प्रकट करते हैं।
2. चाहे जिस देश प्रांत पुर का हो
जन-जन का चेहरा एक!
एशिया की, यूरोप की, अमरीका की
गलियों की धूप एक।
कष्ट-दुख संताप की,
चेहरों पर पड़ी हुई झुर्रियों की रूप एक!
जोश में यों ताकत से बँधी हुई
मुट्ठियों का एक लक्ष्य!
पृथ्वी के गोल चारों ओर के धरातल पर
है जनता का दल एक, एक पक्ष।
जलता हुआ लाल कि भयानक सितारा एक,
उद्दीपित उसका विकराल-सा इशारा एक।
गंगा में, इरावती में, मिनाम में
अपार अकुलाती हुई,
नील नदी, आमेजन, मिसौरी में वेदना से गाती हुई,
बहती-बहाती हुई जिंदगी की धारा एक;
प्यार का इशारा एक, क्रोध का दुधारा एक।
पृथ्वी का प्रसार
अपनी सेनाओं से किए हुए गिरफ़्तार,
गहरी काली छायाएँ पसारकर,
खड़े हुए शत्रु का काले से पहाड़ पर
काला-काला दुर्ग एक,
जन शोषक शत्रु एक।
प्रश्नः 1. ‘जन-जन का चेहरा एक’ के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तरः कवि यह कहना चाहता है कि शोषण से मुक्ति पाने के लिए संघर्ष करने वाला हर व्यक्ति एक जैसा है, वह चाहे जिस देश का हो।
प्रश्नः 2. ‘मुठियों का एक लक्ष्य’ में कवि ने किस लक्ष्य की ओर संकेत किया है?
उत्तरः ‘मुट्ठियों का लक्ष्य एक’ में कवि ने शोषण से मुक्त होने के लक्ष्य की ओर संकेत किया है।
प्रश्नः 3. ‘अपार अकुलाती हुई’ में कौन-सा अलंकार है?
उत्तरः ‘अपार अकुलाती हुई’ में अनुप्रास अलंकार है।
प्रश्नः 4. ‘गलियों का धूप एक’ का आशय स्पष्ट करते हुए बताइए कि इस धूप ने लोगों पर क्या असर डाला है?
उत्तरः ‘गलियों की धूप एक’ का आशय है-लोगों के कष्ट, दुख पीड़ा एक जैसी है, जिसका आक्रोश उनके चेहरों पर देखा जा सकता है। इस कारण वे शोषण से मुक्त होने के लिए उठ खड़े हुए हैं।
प्रश्नः 5. कवि को नदियों में क्या बहता दिखाई दे रहा है और क्यों?
उत्तरः कवि को नदियों में लोगों का दुख संताप और पीड़ा बहती हुई दिखाई दे रही है, क्योंकि गंगा-इरावती, नील, अमेजन अर्थात् पूरी दुनिया में शोषितों को कहीं भी देखा जा सकता है।
3. जब बहुत सुबह चिड़िया उठकर,
कुछ गीत खुशी के गाती हैं।
कलियाँ दरवाज़े खोल-खोल,
जब झुरमुट से मुसकाती हैं।
खुशबू की लहरें जब घर से,
बाहर आ दौड़ लगाती हैं,
हे जग के सिरजनहार प्रभो!
तब याद तुम्हारी आती है!!
जब छम-छम बूंदें गिरती हैं,
बिजली चम-चम कर जाती है।
मैदानों में, वन-बागों में,
जब हरियाली लहराती है।
जब ठंडी-ठंडी हवा कहीं से,
मस्ती ढोकर लाती है।
हे जग के सिरजनहार प्रभो!
तब याद तुम्हारी आती है!!
प्रश्नः 1. काव्यांश का मूलभाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः काव्यांश का मूलभाव है- वातावरण की सुंदरता देखकर प्रसन्न होना और इस सुंदरता के लिए प्रभु को याद करना।
प्रश्नः 2. सवेरे-सवेरे खुशी के गीत कौन गाती हैं ?
उत्तरः सवेरे-सवेरे चिड़ियाँ खुशी के गीत गाती हैं।
प्रश्नः 3. ‘कलियाँ दरवाज़े खोल-खोल, जब झुरमुट से मुसकाती हैं, में निहित अलंकार का नाम लिखिए।
उत्तरः ‘कलियाँ दरवाज़े खोल-खोलकर, जब झुरमुट से मुसकाती हैं’ में मानवीकरण अलंकार है।
प्रश्नः 4. प्रातः काल को मनोरम बनाने में हवा का योगदान स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः प्रात:काल हवा खुशबू की लहर लेकर एक घर से दूसरे घर की ओर दौड़ती है और वन-बागों से ठंडक और मस्ती ठोकर लाती है, जिससे प्रात:काल मनोरम बन जाता है।
प्रश्नः 5. ठंडी हवा चलने से पहले वातावरण में हुए परिवर्तनों का उल्लेख कीजिए।
उत्तरः ठंडी हवा चलने से पहले आसमान से छम-छम बूंदें गिरती हैं, बिजली चम-चम चमकती है, मैदान, वन-बाग में हरियाली लहराने लगती है।
4. क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल हो।
उसको क्या, जो दंतहीन
विषहीन विनीत सरल हो।
तीन दिवस तक पंथ भागते
रघुपति सिंधु किनारे।
बैठे पढ़ते रहे छंद
अनुनय के प्यारे-प्यारे।
उत्तर में जब एक नाद भी
उठा नहीं सागर से
उठी अधीर धधक पौरुष की
आग राम के शर से।
सिंधु देह धर ‘त्राहि-त्राहि’
करता आ गिरा शरण में।
सच पूछो तो शर में ही
बसती है दीप्ति विनय की
संधि-वचन संपूज्य उसी का
जिसमें शक्ति विजय की .
प्रश्नः 1. क्षमा करना किस भुजंग को शोभा देता है ?
उत्तरः क्षमा करना उस भुजंग को शोभा देता है जो विषधर होता है।
प्रश्नः 2. ‘विषहीन विनीत सरल हो’ में निहित अलंकार का नाम बताइए।
उत्तरः ‘विषहीन, विनीत सरल हो’ में अनुप्रास अलंकार है।
प्रश्नः 3. किसके संधि वचन संपूज्य होते हैं ?
उत्तरः जिनमें विजय पाने की क्षमता हो, उनके संधि-वचन पूजने योग्य होते हैं।
प्रश्नः 4. समुद्र की मर्यादा बनाए रखने हेतु राम ने क्या किया? इसका समुद्र पर क्या असर हुआ?
उत्तरः समुद्र की मर्यादा बनाए रखने हेतु –
- राम समुद्र से रास्ता देने का अनुरोध करते रहे।
- तीन दिन तक धैर्यपूर्वक समुद्र के उत्तर की प्रतीक्षा करते रहे।
प्रश्नः 5. राम के शर से पौरुष की ला कब धधक उठी? इसका क्या परिणाम रहा?
उत्तरः राम के शर से पौरुष की ज्वाला उस समय धधक उठी, जब तीन दिनों तक अनुरोध करने के बाद भी समुद्र ने कोई जवाब नहीं दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि राम ने बाण मारा और समुद्र ‘बचाओ-बचाओ’ कहता हुआ राम के चरणों में आ गिरा
5. सुरपति के हम ही हैं अनुचर जगतप्राण के भी सहचर,
मेघदूत की सजल कल्पना चातक के चिर जीवनधर;
मुग्ध शिखी के नृत्य मनोहर सुभग स्वाति के मुक्ताकर;
विहग वर्ग के गर्भ विधायक, कृषक बालिका के जलधर!
जलाशयों में कमल-दलों-सा हमें खिलाता नित दिनकर,
पर बालक-सा वायु सकल दल बिखरा देता चुन सत्वर;
लघु लहरों के चल पलनों में हमें झुलाता जब सागर,
वही चील-सा झपट, बाँह गह, हमको ले जाता ऊपर!
भूमि गर्भ में छिप विहंग से, फैला कोमल रोमिल पंख,
हम असंख्य अस्फुट बीजों में, सेते साँस, छुड़ा जड़ पंक,
विपुल कल्पना-से त्रिभुवन की, विविध रूप धर, भर नभ अंक,
हम फिर क्रीड़ा कौतुक करने, छा अनंत उर में निःशंक।
कभी चौकड़ी भरते मृग-से भू पर चरण नहीं धरते,
मत्त मतगंज कभी झूमते, सजग शशक नभ को चरते,
कभी कीश-से अनिल डाल में, नीरवता से मुँह भरते,
वृहद् गृद्ध-से विहग छंदों को बिखराते नभ में तैरते।
कभी अचानक, भूतों का-सा प्रकटा विकट महा आकार,
कड़क-कड़क, जब हँसते हम सब थर्रा उठता है संसार,
फिर परियों के बच्चों से हम सुभग सीप के पंख पसार,
समुद्र तैरते शुचि ज्योत्सना में, पकड़ इंदु के कर सुकुमार।
प्रश्नः 1. काव्यांश का मूलभाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः काव्यांश का मूलभाव बादलों के रूप सौंदर्य और क्रिया-कलाप हैं।
प्रश्नः 2. ‘वही चील-सा झपट, बाँह गह, हमको ले जाता ऊपर’ में कौन-सा अलंकार है?
उत्तरः उक्त पंक्ति में उपमा अलंकार है।
प्रश्नः 3. बादल किनके नौकर और किसके जीवनधर हैं ?
उत्तरः बादल, देवताओं के नौकर और पपीहा नामक पक्षी के जीवनधर हैं।
प्रश्नः 4. सूरज और सागर बादल के साथ क्या-क्या कार्य व्यवहार करते हैं ?
उत्तरः सूरज बादलों को जलाशयों में खिले कमल दल की भाँति खिलाता है और सागर उसे छोटी-छोटी लहरों के पालने पर झुलाकर आनंदित करता है।
प्रश्नः 5. बादलों का भूत-सा आकार कब और कैसे डराता है ?
उत्तरः बादलों का भूत-सा आकार तब डराता है, जब वे महाकार में आसमान में छा जाते हैं और कड़क कर हँसते हैं तो सारा जग भयभीत हो जाता है।
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