जहाँ अर्थ के कारण स्मरणीयता हो और शब्दों के बदल देने पर भी रमणीयता बनी रहे, वहाँ अर्थालंकार होता है।
1. अनुप्रास अलंकार: किसी वर्ण की बार-बार आवृत्ति होने से जो चमत्कार या सौंदर्य उत्पन्न होता है तो वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है।
जैसे: मोर मुकुट मकराकृत कुंडल (“म” वर्ण की आवृत्ति) मोर, मुकुट, मकराकृत, कुंडल (“म” वर्ण की आवृत्ति) चमक गई चपला चम-चम (“च” वर्ण की आवृत्ति) तट तमाल तरुवर बहु छाए (“त” वर्ण की आवृत्ति)
2. यमक अलंकार: जहाँ एक ही शब्द एक से अधिक बार आए और हर बार उसका अर्थ अलग-अलग निकले, वहाँ यमक अलंकार होता है।
जैसे:
3. श्लेष: श्लेष का अर्थ है- चिपकना जब किसी एक शब्द का प्रयोग तो एक बार ही हो, परंतु उसके अर्थ एक से अधिक हों, तो वहाँ श्लेष अलंकार होता है।
जैसे: पानी गए न उबरे मोती मानुस चून, यहाँ पानी शब्द तीन अर्थों में प्रयोग किया गया है- मोती, मानुस, चून । चमक (मोती के लिए) आदर (मनुष्य के लिए) पानी (चूने के लिए) ।
4. उपमा अलंकार: किसी वस्तु की किसी प्रसिद्ध वस्तु से तुलना को उपमा अलंकार कहते हैं;
जैसे: मुख चाँद जैसा सुंदर है। यहाँ “मुख” और “चाँद” दो वस्तुओं की तुलना की गई है।
अन्य उदाहरण: लाल किरण-सी चोंच खोल (“चोंच” की तुलना लाल किरण से की गई है।)
5. रूपक अलंकार: जहाँ उपमेय को उपमान का ही रूप दे दिया जाए, वहाँ रूपक अलंकार होता है। इसमें एक वस्तु दूसरी पर ऐसे रखी जाती है कि भेद ही नहीं मालूम पड़ता।
जैसे:
6.अतिशयोक्ति अलंकार: हाँ किसी वस्तु का वर्णन इतना बढ़ा-चढ़ाकर किया जाए कि सीमा का उल्लंघन ही हो जाए, वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है।
जैसे:
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