काल का अर्थ है – समय। क्रिया के जिस रूप से उसके होने के समय का बोध हो उसे काल कहते हैं।
काल के तीन भेद होते हैं।
क्रिया के जिस रूप से उसके बीते हुए समय का बोध हो, वह भूतकाल कहलाता है;
जैसे:
भूतकाल के छह भेद होते हैं।
(i) सामान्य भूतकाल: क्रिया के जिस रूप से काम के सामान्य रूप से बीते समय में पूरा होने का बोध हो, उसे सामान्य भूतकाल कहते हैं।
जैसे:
(ii) आसन्न भूतकाल: क्रिया के जिस रूप से उसके अभी-अभी पूरा होने का पता चले, उसे आसन्न भूतकाल कहते हैं। जैसे:
आसन्न का अर्थ ‘निकट’ होता है। आसन्न भूतकाल की क्रिया में हूँ, हैं, है, हो लगता है।
(iii) पूर्ण भूतकाल: क्रिया के जिस रूप से उसके बहुत पहले पूर्ण हो जाने का पता चलता है, उसे पूर्ण भूतकाल कहते हैं।
जैसे:
(iv) अपूर्ण भूतकाल: क्रिया के जिस रूप से उसके भूतकाल में समाप्त होने का पता न चले।
जैसे:
(v) संदिग्ध भूतकाल: भूतकाल की क्रिया के जिस रूप से उसके भूतकाल में पूरा होने में संदेह हो, उसे संदिग्ध भूतकाल कहते हैं।
जैसे:
(vi) हेतु-हेतुमद भूतकाल: जहाँ भूतकाल की एक क्रिया दूसरे पर आश्रित हो, वहाँ हेतुहेतुमद् भूतकाल होता है।
जैसे:
वर्तमानकाल अर्थात वह समय जो चल रहा है। क्रिया के जिस रूप से उसके वर्तमान समय में होने का पती । चले, उसे वर्तमान काल कहते हैं; जैसे-पिता जी समाचार सुन रहे हैं। छात्र पढ़ रहे हैं।
वर्तमान काल के तीन उपभेद हैं
(i) सामान्य वर्तमान काल: जो क्रिया वर्तमान में सामान्य रूप से होती है। वह सामान्य वर्तमान काल की क्रिया कहलाती है।
जैसे:
(ii) अपूर्ण वर्तमान काल: क्रिया के जिस रूप से जाना जाए कि काम अभी चल रहा है, उसे अपूर्ण वर्तमानकाल कहते हैं;
जैसे:
(iii) संदिग्ध वर्तमान काल: क्रिया के जिस रूप से उसके वर्तमान काल में होने में संदेह का बोध हो, वह संदिग्ध वर्तमान काल कहलाता है;
जैसे:
क्रिया के जिस रूप से उसके भविष्य में सामान्य ढंग से होने का पता चलता है, उसे सामान्य भविष्यत् काल कहते हैं;
जैसे:
भविष्यत् काल के दो भेद होते हैं
(i) सामान्य भविष्यत् काल: जहाँ साधारण रूप से क्रिया के भविष्यत् काल में होने या न होने का बोध हो। वह सामान्य भविष्यत् काल कहलाता है;
जैसे:
(ii) संभाव्य भविष्यत् काल: क्रिया के जिस रूप से उसके भविष्य में होने की संभावना का पता चलता है, उसे संभाव्य भविष्यत काल कहते हैं;
जैसे:
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