जिस शब्द से किसी कार्य के करने या होने का बोध हो, उसे क्रिया कहते हैं |
जैसे:
क्रिया के मूलरूप को धातु कहते हैं |
जैसे:
धातु के साथ “ना” जोड़ने से क्रिया का सामान्य रूप बनता है |
जैसे:
जिस क्रिया के साथ कर्म होता है उसे सकर्मक क्रिया कहते है |
जैसे:
अर्थात् कर्म सहित क्रिया
सकर्मक क्रिया की पहचान ( Sakarmak Kriya ki Pehchan)
क्रिया के साथ, क्या, या किसको, किसे, किससे शब्द लगाकर प्रश्न करने पर यदि उत्तर की प्राप्ति हो जाती है, तो क्रिया सकर्मक होती है |
जैसे:
जिस क्रिया के साथ कर्म नहीं होता है तथा क्रिया का प्रभाव सिर्फ़ कर्ता पर पड़ता है उसे अकर्मक क्रिया कहते हैं |
अर्थात् कर्म रहित क्रिया
अकर्मक क्रिया की पहचान ( Akarmak Kriya ki Pehchan)
क्रिया के साथ, क्या, किसे, किसको, शब्द लगाकर प्रश्न करते हैं, यदि उत्तर की प्राप्ति नहीं होती तो क्रिया अकर्मक होती हैं, यदि उत्तर में “कर्ता” की प्राप्ति होती है, तो भी क्रिया अकर्मक होती है |
जैसे:
जब वाक्य में केवल एक क्रिया का प्रयोग होता है, तो वह सामान्य क्रिया कहलाती है|
जैसे:
जब दो या दो से अधिक क्रियाएँ मिलकर किसी पूर्ण क्रिया को बनाती हैं, तब वे संयुक्त क्रियाएँ कहलाती हैं;
जैसे:
संज्ञा, सर्वनाम और विशेषण शब्दों से बनने वाली क्रियाओं को नामधातु क्रिया कहते हैं |
जैसे:
जहाँ कर्ता कार्य को स्वयं न करके, किसी दूसरे से करवाता है, वहाँ प्रेरणार्थक क्रिया होती है |
जैसे:
प्रेरणार्थक क्रिया
(i) प्रथम प्रेरणार्थक क्रिया
जैसे:
इस क्रिया के साथ “आना” प्रत्यय जोड़ दिया जाता है |
(ii) द्वितीय प्रेरणार्थक
जैसे:
इसमें धातु शब्दों के अंत में “वाना” प्रत्यय लगाकर द्वितीय प्रेरणार्थक क्रिया के शब्दों का निर्माण किया जाता है |
किसी भी वाक्य में मुख्य क्रिया से पहले वाली क्रिया पूर्वकालिक क्रिया कहलाती है |
जैसे:
शब्दों के अंत में प्रत्यय या शब्दांश जोड़कर बनाई गई क्रियाओं को कृदंत क्रिया कहते हैं
जैसे:
जिस क्रिया का प्रयोग आज्ञा, अनुमति और प्रार्थना आदि के लिए किया जाता है वह आज्ञार्थक क्रिया कहलाती है
जैसे:
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