1. स्थायी भाव (Sthai bhav)
ऐसे भाव जो हृदय में संस्कार रूप में स्थित होते हैं, जो चिरकाल तक रहने वाले अर्थात स्थिर और प्रबल होते हैं तथा अवसर पाते ही जाग्रत हो जाते हैं, उन्हें स्थायी भाव कहते हैं।
2. विभाव (Vibhav)
विभाव का शाब्दिक अर्थ है – ‘कारण’
विभाव के भेद
(i) आलंबन विभाव - जिस व्यक्ति या वस्तु के कारण मन में कोई स्थायी भाव जाग्रत हो जाए तो वह व्यक्ति या वस्तु उस भाव का आलंबन विभाव कहलाए।
आलंबन विभाव के भेद
(a) आश्रय - जिसके मन में भाव जाग्रत होता है उसे आश्रय कहते है।
(b) आलम्बन - जिसके प्रति मन में भाव जाग्रत होते हैं, उसे आलम्बन कहते हैं।
(ii) उद्दीपन विभाव -आलम्बन की वे क्रियाए जिनके कारण आश्रय के मन में रस का जन्म होता है, उद्दीपन क्रियाएँ होती है।
इसमें प्रकृति की क्रियाए भी आती है।
3. अनुभाव (Anubhav)
अनुभाव का शाब्दिक अर्थ है अनुभव करना
जैसे – साँप को देखकर बचाव के लिए ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाना।
इसप्रकार से हम देखते है कि उसकी बाह्य चेष्टाओं से अन्य व्यक्तियों को यह प्रकट हो जाता है कि उसके मन में ‘भय’ का भाव जागा है।
अनुभाव के भेद (Anubhav ke bhed in Hindi)
(i) काथिक - आश्रय द्वारा इच्छापूर्वक की जाने वाली शारीरिक क्रियाओं को काथिक अनुभव कहते हैं।
जैसे – उछलना, कूदना, इशारा करना आदि।
(ii) वाचिक - वाचिक अनुभाव के अन्तर्गत वाणी के द्वारा की गयी क्रियाएँ आती हैं।
(iii) सात्विक – जिन शारीरिक विकारों पर आश्रय का कोई वश नहीं होता, बल्कि वे स्थायी भाव के उत्पन्न होने पर स्वयं ही उत्पन्न हो जाते हैं वे सात्विक अनुभाव कहलाते हैं।
सात्विक भाव 8 प्रकार के होते हैं-
(iv) आहार्य - आहार्य का शाब्दिक अर्थ है- ‘कृत्रिम वेशभूषा’
4. संचारी भाव/व्यभिचारी भाव (Sanchari bhav)
आश्रय के मन में उत्पन्न होने वालेअस्थिर मनोविकारों को संचारी भाव या व्यभिचारी भाव कहते हैं।
संचारी भाव की मुख्य रूप से संख्या 33 है।
उदाहरण - नायिका द्वारा बार-बार हार को उतारना तथा पहनना।
प्रश्न: इस वाक्य में कौनसा भाव है।
संचारी भाव (चपलता)
क्योंकि इसमें शारीरिक क्रियाए हो रही हैं।
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