कक्षा 8 हिंदी पाठ "बस की यात्रा" हरिशंकर परसाई जी द्वारा लिखा गया एक प्रसिद्ध व्यंग है ,जिसमें उन्होंने यातायात की दुर्व्यस्था पर करारा व्यंग किया है। आइये इस डॉक्यूमेंट में इस पाठ से सम्भंदित कुछ Important Questions देखें।
उत्तर: बस बहुत ही पुरानी व खस्ता हालत में थी। उसे देखकर लग रहा था कि वह अपने आप चल भी नहीं पाएगी। इसलिए लेखक ने उसे वयोवृद्ध कहा। उनका मानना था कि अगर हम इस पर सफर करेंगे, तो इसे कष्ट होगा।
प्रश्न 2: आशय स्पष्ट कीजिए – ‘आदमी को कूच करने के लिए एक निमित्त चाहिए।’
उत्तर: इस कथन का आशय यह है कि मनुष्य को इस संसार को त्यागने अर्थात मरने के लिए एक साधन की आवश्यकता होती है। यहाँ वह साधन बस है जिसमें कि लेखक और उसके मित्र यात्रा कर रहे हैं।
प्रश्न 3: बस से यात्रा करते समय लेखक पेड़ों को अपना दुश्मन क्यों समझ रहा था?
उत्तर: बस से यात्रा करते समय लेखक पेड़ों को अपना दुश्मन इसलिए समझ रहा था क्योंकि बस की हालत बहुत खराब थी जिससे वह डरा हुआ था । सड़क के किनारे जब भी कोई पेड़ आता , तो वह डर जाता था। उसे ऐसा लगता कि शायद बस पेड़ से टकरा सकती है।
प्रश्न 4: निम्नलिखित शब्दों के अर्थ बताइए – प्रयाण, पसारे, उत्सर्ग, फिस्स, ग्लानि, निमित्त ।
उत्तर: प्रयाण का अर्थ – प्रस्थान
पसारे का अर्थ – फैलाए
उत्सर्ग का अर्थ – बलिदान
फिस्स का अर्थ – एक प्रकार की ध्वनि
ग्लानि का अर्थ – खेद
निमित्त का अर्थ – कारण
प्रश्न 5: प्रकृति के लुभावने दृश्यों को लेखक क्यों न देख सका?
उत्तर: लेखक को बस के किसी हिस्से पर भरोसा न रहा। सड़क के दोनों ओर प्रकृति के लुभावने दृश्य थे, परंतु लेखक को लग रहा था कि बस किसी भी पेड़ से टकरा सकती है। ऐसे में वह प्रकृति के लुभावने दृश्यों को भला कैसे देख पाता?
प्रश्न 1: लेखक का यह कहना कि यह बस गाँधीजी के असहयोग और सविनय अवज्ञा आन्दोलनों के वक्त अवश्य जवान रही होगी? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: जब लेखक ने बस को चलते देखा कि बस का कोई भी हिस्सा पूर्णरूप से ठीक नहीं है और किसी भी हिस्से का आपसी सहयोग नहीं है, तो उसे गाँधीजी के असहयोग आन्दोलन अर्थात् भारतीयों का अंग्रेजों का साथ न देना याद आ गया। बस का ठीक प्रकार से न चलना अर्थात् भारतीयों का विरोध करना है, लेखक को ‘सविनय अवज्ञा आन्दोलन’ की याद दिलाता है, जिसमें गाँधीजी ने नमक पर टैक्स लगने पर दाण्डी यात्रा करके, समुद्री नमक बनाकर अंग्रेजों के कानून को तोड़ा था। इसलिए लेखक ने कहा कि यह बस गाँधीजी के असहयोग और सविनय अवज्ञा आन्दोलन के वक्त जवान रही होगी अर्थात् अपने- आप को स्वतंत्र करवाने के सभी दावपेंच जानती है।
प्रश्न 2: कम्पनी के हिस्सेदार को क्या सचमुच में क्रान्तिकारी आन्दोलन का नेता होना चाहिए या उन पर व्यंग्य किया गया है?
उत्तर: कम्पनी का हिस्सेदार जिस प्रकार से घिसे-पिटे टायरों की मदद से बस चलवा रहा था उससे लगता था कि उसे सिर्फ पैसा कमाने से मतलब था। उसे जान की परवाह तनिक भी न थी। जिस प्रकार क्रान्तिकारी आन्दोलन के नेता पर भी अपने उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए जुनून सवार रहता है, उसी तरह कम्पनी के हिस्सेदार का उद्देश्य पैसा कमाना तथा किसी भी तरह बस चलवाना था, इसलिए यह उन पर व्यंग्य किया है।
प्रश्न 3: लेखक ने बस की चाल, उसकी दशा तथा गांधी जी के आंदोलन को किस प्रकार एक समान बताया है? यह कितना उचित है?
उत्तर: बस ड्राइवर और कंपनी के हिस्सेदार बस को चलाने की कोशिश करते तो उसका कोई ने कोई भाग (पुर्जा) खराब हो जाता। एक पुर्जा ठीक किया जाता तो दूसरा खराब हो जाता अर्थात् उसके पुर्जे आपस में सहयोग नहीं कर रहे थे। इसी तरह गांधी जी के असहयोग एवं सविनय अवज्ञा आंदोलन के समय नमक कानून तोड़कर भारतीय भी अंग्रेज़ी सरकार के प्रति अपना असहयोग प्रकट कर रहे थे, इसलिए ये एक समान लग रहे थे और पूरी तरह उचित भी है।
प्रश्न 4: लेखक को बस में माँ द्वारा बच्चे को शीशी से दूध पिलाने की बात क्यों याद आ रही थी?
उत्तर: अचानक चलती बस रुकने पर लेखक को मालूम हुआ कि पेट्रोल की टंकी में छेद हो गया है। ड्राइवर ने टंकी का पेट्रोल बाल्टी में निकालकर अपनी बगल में रख लिया और नली से इंजन में पेट्रोल भेजने लगा। यह देखकर लेखक को लगा कि अब बस कंपनी के हिस्सेदार बस का इंजन निकालकर अपनी गोद में रख लेंगे और उसे नली से पेट्रोल पिलाएँगे। यह दृश्य उसी तरह दिखेगा जैसे माँ बच्चे को शीशी से दूध पिलाती है।
प्रश्न 1: ‘बस की यात्रा’ पाठ के आधार पर उपभोक्ता संरक्षण के विषय में आप क्या कह सकते हैं ?
उत्तर: हमारे देश में ‘उपभोक्ता संरक्षण कानून’ बनकर लागू हो चुका है, लेकिन हमारे देश के लोग भोले-भाले भी हैं। उनमें अपने उपभोक्ता-अधिकारों के प्रति जागरुकता नहीं आई है। लोगों के बीच ‘जागो ग्राहक जागो’ का एक नारा तो है, परंतु यह प्रयास अभी अधूरा है। पाठ ‘बस की यात्रा’ के माध्यम से लेखक ने व्यंग्य तो किया ही है, उपभोक्ता अधिकारों के प्रति जागरूकता फैलाने की कोशिश भी की है, क्योंकि लोग ठगी का शिकार होते रहते हैं। खाद्य-पदार्थों में चोरबाजी, मिलावट भी होती है, लेकिन बहुत कम लोग इनके प्रति कानूनी कार्यवाही करते हैं। इसका फायदा दुकानदार, मिलावटखोर आदि उठाते रहते हैं और आम जनता को लूटते रहते हैं। इसलिए लोगों को उपभोक्ता-अधिकारों के प्रति जागरुक करना अत्यंत आवश्यक हो गया है।
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1. क्या बस की यात्रा के दौरान सुरक्षित रहने के लिए कौन-कौन सी सावधानियाँ अपनानी चाहिए? |
2. क्या बस की यात्रा में यात्रियों के लिए पानी और खाने की सुविधा होती है? |
3. क्या बस की यात्रा में बच्चों के लिए अलग सीटें होती हैं? |
4. क्या बस की यात्रा में यात्रियों को अपने सामान का ध्यान रखने की सलाह दी जाती है? |
5. क्या बस की यात्रा के दौरान यात्रियों को मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने की अनुमति होती है? |
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