1. पंक्तियों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर के लिए सही विकल्प का चयन कीजिए –
फैली खेतों में दूर तलक
मखमल की कोमल हरियाली,
लिपटी जिससे रवि की किरणें
चाँदी की सी उजली जाली।
तिनकों के हरे हरे तन पर
हिल हरित रुधिर है रहा झलक,
श्याम भू तल पर झुका हुआ
नभ का चिर निर्मल नील फलक!
प्रश्न 1:खेतों में दूर तक फैली हरियाली कैसी दिखाई देती है ?
उत्तर: खेतों में दूर तक फैली हरियाली मखमल के समान कोमल दिखाई देती है।
प्रश्न 2: फसलों के हरे-भरे तिनकों में क्या झलकता प्रतीत होता है ?
उत्तर: फसलों के हरे-भरे तिनकों में उनकी हरी रक्त- रूपी शक्ति झलकती दिखाई देती है। इससे पौधे के स्वस्थ रूप की झलक मिलती है।
प्रश्न 3: साफ़-स्वच्छ नीला आकाश किस पर झुका हुआ है ?
उत्तर: साफ़-स्वच्छ नीला आकाश हरी-भरी फसलों से भरी धरती पर झुका हुआ है।
प्रश्न 4:अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर: प्रकृति चित्रण से संबंधित इस अवतरण में कवि ने गाँव की शोभा का वर्णन करते हुए हरे-भरे खेतों का सजीव चित्रण किया है। नीले आकाश और हरी फसलों के द्वारा अद्भुत रंग योजना की सृष्टि की गई है। स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है। उपमा, अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश और रूपक अलंकारों का सहज-स्वाभाविक प्रयोग सराहनीय है। स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है। तत्सम शब्दावली का सुंदर प्रयोग है।
2. पंक्तियों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर के लिए सही विकल्प का चयन कीजिए –
रोमांचित सी लगती वसुधा
आई जौ गेहूँ में बाली,
अरहर सनई की सोने की
किंकिणियाँ हैं शोभाशाली !
उड़ती भीनी तैलाक्त गंध
फूली सरसों पीली-पीली,
लो, हरित धरा से झाँक रही
नीलम की कलि, तीसी नीली !
प्रश्न 1: कवि के अनुसार पृथ्वी क्या देखकर रोमांचित है ?
उत्तर: कवि के अनुसार गेहूँ और जौ की बालियों को देखकर पृथ्वी रोमांचित है।
प्रश्न 2:सोने जैसी करधनियाँ किनकी हैं ?
उत्तर: सोने की करधनियाँ अरहर और सनई के पौधों की हैं।
प्रश्न 3:नीली कलियों की शोभा कवि को कहाँ दिखाई दी थी ?
उत्तर: कवि को अलसी के पौधों की नीली कलियों की शोभा हरी-भरी धरती पर दिखाई दी थी।
प्रश्न 4:अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर: कवि ने वसंत ऋतु के समय खेतों की हरियाली के साथ-साथ विभिन्न पौधों पर तरह-तरह की रंग – योजना का सजीव चित्रण किया है। ‘लो’ शब्द ने नाटकीयता और हैरानी के भाव को प्रकट करने में सफलता प्राप्त की है। गतिशील बिंब योजना है। दृश्य बिंब ने कवि के कथन को चित्रात्मकता का गुण प्रदान किया है। उपमा, पुनरुक्ति प्रकाश, अनुप्रास और मानवीकरण अलंकारों का सहज सुंदर चित्रण किया गया है। स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है। तत्सम शब्दाब्ली की अधिकता है।
3. पंक्तियों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर के लिए सही विकल्प का चयन कीजिए –
रंग-रंग के फूलों में रिलमिल
हँस रही सखियाँ मटर खड़ी,
मखमली पेटियों सी लटक
छीमियाँ, छिपाए बीज लड़ी!
फिरती हैं रंग रंग की तितली
रंग रंग के फूलों पर सुंदर
फूले गिरते हों फूल स्वयं
उड़ उड़ वृंतों से वृंतों पर !
प्रश्न 1: कवि ने मटरों की सुंदरता का वर्णन कैसे किया है ?
उत्तर: कवि ने मटरों को रंग-बिरंगे फूलों से लदी बेलों पर लटकते हुए प्रकट किया है, जो अति सुंदर हैं। मटरों की फलियाँ मखमली पेटियों के समान कोमल हैं।
प्रश्न 2: प्रकृति ने मखमली पेटियों में क्या छिपाया है ?
उत्तर: प्रकृति ने मखमली पेटियों में मटर के बीजों की लड़ियों को छिपाया है।
प्रश्न 3: ‘फूलों पर फूल गिरते हुए’ किसके लिए कहा गया है ?
उत्तर: रंग-बिरंगी तितलियाँ मटर की बेलों पर लगे रंग-बिरंगे फूलों पर मँडरा रही हैं। कवि ने कल्पना करते हुए कहा है कि मानों रंग-बिरंगे फूल ही रंग-बिरंगे फूलों पर गिर रहे हों।
प्रश्न 4: पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर: कवि ने मटर के खेतों में प्रकृति की अनूठी छटा का सुंदर चित्रण किया है। उपमा, पुनरुक्ति प्रकाश, मानवीकरण और अनुप्रास अलंकारों का सहज-स्वाभाविक चित्रण किया गया है। स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है। गतिशील बिंब योजना अति स्वाभाविक रूप से की गई है। अभिधा शब्द – शक्ति और प्रसाद युग विद्यमान है। शांत रस है। चाक्षुक बिंब ने दृश्य को सुंदर ढंग से प्रकट किया है।
4. पंक्तियों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर के लिए सही विकल्प का चयन कीजिए –
अब रजत स्वर्ण मंजरियों से
लद गई आम्र तरु की डाली,
झर रहे ढाक, पीपल के दल,
हो उठी कोकिला मतवाली!
महके कटहल, मुकुलित जामुन,
जंगल में झरबेरी झूली,
फूले आड़ू, नींबू, दाड़िम,
आलू, गोभी, बैंगन, मूली !
प्रश्न 1: कवि ने आम के पेड़ों की शोभा कैसे प्रकट की है ?
उत्तर: आम के पेड़ सरदी जाते ही चाँदी और सोने जैसे रंग के बौर से लद गए हैं। कोयल उन पर मस्ती में भरकर कूकने लगी है।
प्रश्न 2: किन-किन पेड़ों के पत्ते झड़ने लगे थे ?
उत्तर: ढाक और पीपल के पत्ते झड़ने लगे थे, ताकि उनकी जगह नए और सुंदर पत्ते ले सकें।
प्रश्न 3: जंगल में प्रकृति के रंग को किसने प्रकट किया था ?
उत्तर: जंगल में प्रकृति के रंग को झरबेरी ने प्रकट किया था।
प्रश्न 4: पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर: कवि ने प्रकृति में होने वाले परिवर्तन का सुंदर सजीव वर्णन किया है। तत्सम शब्दावली का अधिकता से प्रयोग किया गया है, पर वे सभी शब्द अति सरल और सामान्य बोलचाल की भाषा में प्रयुक्त किए जाते हैं। अनुप्रास, मानवीकरण और स्वाभावोक्ति अलंकारों का सहज प्रयोग सराहनीय है। अभिधा शब्द – शक्ति, प्रसाद गुण और शांत रस है। गणन शैली का प्रयोग है। लयात्मकता की सृष्टि स्वरमैत्री के कारण हुई है।
5. पंक्तियों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर के लिए सही विकल्प का चयन कीजिए –
पीले मीठे अमरूदों में
अब लाल लाल चित्तियाँ पड़ीं,
पक गए सुनहले मधुर बेर,
अँवली से तरु की डाल जड़ी !
लहलह पालक, महमह धानिया,
लौकी औं सेम फलीं, फैलीं
मखमली टमाटर हुए लाल,
मिरचों की बड़ी हरी थैली !
प्रश्न 1: पके हुए अमरूद कैसे दिखाई देते हैं ?
उत्तर: पके हुए अमरूद पीले रंग के हो गए हैं, जिन पर लाल-लाल चित्तियाँ हैं। वे बहुत मीठे हैं।
प्रश्न 2: बेर और आँवले कैसे हो गए हैं ?
उत्तर: बेर और आँवले शोभा दे रहे हैं। बेर पककर सुनहले हो गए हैं और आँवलों से पेड़ों की डालियाँ पूरी तरह जड़ी जा चुकी हैं।
प्रश्न 3: खेतों में सब्ज़ियों पर कैसी-कैसी बहार है ?
उत्तर: खेतों में पालक लहलहा रही है; धनिया महक रहा है; लौकी और सेम की बेलें दूर तक फैली हुई हैं। लाल-लाल मखमली टमाटरों और हरी-भरी मिर्चों पर तो मानो बहार आई हुई है।
प्रश्न 4: अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर: कवि ने खेतों में उगने वाली सब्ज़ियों और फलों की शोभा का सुंदर और सहज वर्णन किया है। पुनरुक्ति प्रकाश और अनुप्रास का स्वाभाविक प्रयोग सराहनीय है। ‘लहलह’, ‘महमह’ में लयात्मकता है। स्वरमैत्री ने गेयता का गुण प्रदान किया है। अभिधा शब्द – शक्ति, प्रसाद गुण, चित्रात्मकता और दृश्य बिंब सहज सुंदर हैं।
6. पंक्तियों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर के लिए सही विकल्प का चयन कीजिए –
बालू के साँपों से अंकित
गंगा की सतरंगी रेती
सुंदर लगती सरपत छाई
तट पर तरबूजों की खेती;
अँगुली भी कंघी से बगुले
कलँगी सँवारते हैं कोई,
तिरते जल में सुरखाब, पुलिन पर
मगरौठी रहती सोई!
प्रश्न 1: कवि द्वारा गंगा किनारे का अंकित चित्र स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: गंगा किनारे रंग-बिरंगी रेत दूर-दूर तक फैली हुई है, जिस पर लहरों के बहाव से साँप जैसे चिह्न अंकित हैं। घास-पात और तिनके न जाने कहाँ-कहाँ से बहकर वहाँ इकट्ठे हो गए हैं, जो सुंदर लगते हैं। तट पर तरबूजों की खेती की गई है।।
प्रश्न 2: बगुले गंगा किनारे क्या कर रहे हैं ?
उत्तर: बगुले गंगा के तट पर अपने पंजे रूपी कँघी से अपनी कलगी सँवार रहे हैं।
प्रश्न 3: मगरौठी क्या कर रही है ?
उत्तर: मगरौठी नदी के तट पर आराम से सो रही है।
प्रश्न 4: अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर: कवि ने गंगा तट पर प्राकृतिक दृश्य का अति सुंदर और स्वाभाविक चित्रण किया है। रेत पर साँप – सी लहरियाँ, तरबूजों की खेती और पक्षियों की क्रियाएँ अति सहज रूप से प्रस्तुत हुई हैं। अनुप्रास और स्वाभावोक्ति अलंकारों का सहज प्रयोग सराहनीय है। सामान्य बोलचाल के शब्दों की अधिकता है। अभिधात्मकता और प्रसादात्मकता ने कवि के कथन को सरलता – सरसता प्रदान की है। चित्रात्मकता का गुण और चाक्षुक बिंब विद्यमान है।
7. पंक्तियों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर के लिए सही विकल्प का चयन कीजिए –
हँसमुख हरियाली हिम-आतप
सुख से अलसाए-से सोए,
भीगी अँधियाली में निशि की
तारक स्वप्नों में से खोए
मरकत डिब्बे सा खुला ग्राम-
जिस पर नीलम नभ आच्छादन-
निरुपम हिमांत में स्निग्ध शांत
निज शोभा से हरता जन मन !
प्रश्न 1: कवि ने हरियाली को सुख से अलसाई क्यों कहा है?
उत्तर: वसंत आगमन पर सरदियों की ठिठुरन कम हो जाती है। धूप में थोड़ी तेज़ी बढ़ने लगती है। दिन-रात सरदी से ठिठुरती खेतों की हरियाली भी मानो गरमी पाकर अलसाने लगी थी। इसलिए कवि ने हरियाली को सुख से अलसाई – सी माना है।
प्रश्न 2: ‘भीगी अँधियाली’ क्या है ?
उत्तर: ओस का पड़ना सरदियों का आवश्यक और स्वाभाविक गुण है। रात के अँधकार में ओस चुपचाप पेड़-पौधों तथा सारी प्रकृति को नहला देती है, इसलिए कवि ने उसे भीगी अँधियाली कहा है।
प्रश्न 3: कवि ने गाँव को ‘मरकत डिब्बे – सा’ क्यों माना है ?
उत्तर: सारा गाँव हरी-भरी वनस्पतियों से भरा हुआ है। हरियाली तो उसके कण-कण में सिमटी हुई है, इसलिए कवि ने उसे ‘मरकत का डिब्बे – सा’ माना है।
प्रश्न 4: अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर: कवि ने गाँव के कण-कण की शोभा का आधार प्रकृति को माना है। वसंत के आगमन पर प्रकृति का कण-कण खिल उठता है, महक जाता है; कवि ने तत्सम शब्दावली का अधिकता से प्रयोग किया है। उपमा, मानवीकरण, अनुप्रास तथा पदमैत्री का सहज-स्वाभाविक प्रयोग किया गया है। प्रसादगुण और अभिधा शब्द-शक्ति का प्रयोग सराहनीय है। स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है।