प्रश्न 1: 'हमने अपनी माँ को कभी भारतीय माँ जैसा नहीं पाया।' इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: लेखिका की माँ भारतीय परम्परा में माँ की परम्परा निर्वहन करने वाली स्त्री नहीं थी, क्योंकि वह न तो अपने बच्चों को लाड़ करती थी, न उनके लिए खाना पकाती थी, और न अच्छी पत्नी और बहू होने की सीख देती थी। वह कुछ बीमार रहती थी और कुछ साहित्य-चर्चा एवं संगीत-चर्चा में रुचि रखने के कारण वह एक परम्परागत माँ का कर्तव्य संतान के प्रति नहीं निभा पाती थी। वह बिस्तर पर लेटे-लेटे किताब पढ़ने में अपना समय व्यतीत करती थी। उसे परिवार के किसी भी सदस्य से न तो कोई शिकायत थी और न वह किसी का अनादर करती थी। इस कारण लेखिका ने कहा कि "हमने अपनी माँ को कभी भारतीय माँ जैसा नहीं पाया।"
प्रश्न 2: लेखिका की नानी ने मरने से पहले प्यारेलाल शर्मा के समक्ष जो प्रस्ताव किया, उससे उनके किन गुणों का पता चलता है?
उत्तर: लेखिका की नानी ने अपनी मृत्यु नजदीक मानकर अपनी पन्द्रह वर्षीया पुत्री के विवाह के लिए प्यारेलाल शर्मा के समक्ष जो प्रस्ताव किया, उससे पता चलता है कि वे मरने से पहले परदनशीं होते हुए भी मुंहजोर हो गई थीं। अपने पति के रहन-सहन को वे अंग्रेजों जैसा मानती थीं। अतः वह किसी अंग्रेज समर्थक साहब से अपनी पुत्री का विवाह नहीं चाहती थीं। वह देश की आजादी का महत्त्व समझती थीं और आजादी के सिपाहियों का जीवन अनुकरणीय मानती थीं। वह ममतामयी माँ थीं, उनमें दूरदर्शिता थी और पति का विरोध करने की शालीनता भी थी। वह साहबों के फरमाबरदारों को गुलाम जैसा मानती थीं। इस तरह लेखिका की नानी ममतामयी, स्वतन्त्र व्यक्तित्व वाली, विवेकशील, दूरदर्शी एवं सच्ची देशभक्त थीं।
प्रश्न 3: लेखिका ने अपनी परदादी में जो गुण बताये उनमें से दो का उल्लेख कीजिए।
उत्तर: लेखिका ने अपनी परदादी जो गुण बताये, उनमें से दो गुण इस प्रकार हैं
(i) ईश्वर में आस्था-लेखिका की परदादी की ईश्वर में पूरी आस्था थी। वह मन्दिर में जाकर पतोहू की पहली सन्तान लड़की होने की मन्नत माँग आयी थी।
(ii) दानशीलता-परदादी ने यह व्रत ले रखा था कि उनके पास कभी दो से ज्यादा धोतियाँ हो जायेंगी तो वे तीसरी दान कर देंगी। इस तरह वे दानशील एवं अपरिग्रही थीं।
प्रश्न 4: 'परदादी को कतार से बाहर चलने का शौक था।' पाठ के आधार पर सतर्क उत्तर दीजिए।
उत्तर: लेखिका की परदादी का स्वभाव अपने ही ढंग का था। वह पारम्परिक परम्पराओं से हटकर चलने वाली थी। इसलिए उसने व्रत ले रखा था कि जब भी उसके पास दो साड़ियों से ज्यादा हो जाएंगी तब वह तीसरी साड़ी दान कर देगी। इस प्रकार वह स्वभाव से अपरिग्रही थी। इसी प्रकार परम्परा मन्नत न माँगने की विरोधी थी। उसने पुत्र-प्राप्ति की अपेक्षा पतोहू की पहली संतान लड़की होने की ईश्वर से मन्नत ही नहीं मांगी थी बल्कि उसका सरेआम ऐलान भी कर दिया था। इस प्रकार लेखिका की परदादी लीक से हटकर चलने वाली नारी थी।
प्रश्न 5: चोर माँजी की किस बात से प्रभावित हुआ और उसने क्या किया? पठित पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर: लेखिका ने बताया कि घर के सब मर्द विवाह में गये थे और सभी औरतें रतजगा कर रही थीं। उस समय माँजी एक कमरे में सो रही थीं। चोर अन्दर घुसा, तो खटका सुनकर माँजी ने चोर से कहा कि वह कुएँ से पानी लाकर उसे पिलावे। जब चोर ने कहा कि वह चोर है, क्या उसके हाथ का पानी पी लोगी? तब माँजी ने सहमति दी और पानी पीकर कहा कि "एक लोटा पानी पीकर हम माँ-बेटे हुए। अब बेटा, चाहे तू चोरी कर, चाहे खेती।" माँजी ने उसे छोड़ दिया। तब चोर माँजी की उदारता, सज्जनता, आत्मीयता एवं क्षमा-भावना से प्रभावित हुआ और उनकी सदभावना देखकर उसके मन में अपने प्रति ग्लानि और माँजी के प्रति श्रद्धा जाग गयी। तब से उसने खेती का धन्धा प्रारम्भ कर दिया और सालों-साल उसी में लगा रहा।
17 videos|159 docs|33 tests
|
17 videos|159 docs|33 tests
|
|
Explore Courses for Class 9 exam
|