निबन्धात्मक प्रश्न
(प्रत्येक 5 अंक)
प्रश्न 1. सर्वत्र सनातन गहरा कीचड़ कहाँ-कहाँ दिखाई देता है और उसकी क्या विशेषताएँ है ? ‘कीचड़ का काव्य’ पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तरः नदी के मुख के आगे जहाँ तक दृष्टि जाती है सर्वत्र सनातन कीचड़-ही-कीचड़ दिखाई देता है। इस कीचड़ में तो पहाड़ के पहाड़ लुप्त हो जाते हैं। नदी किनारे कीचड़ जब सूखता है तब उस पर विभिन्न पालतू जानवरों के पद चिह्न दिखाई देते हैं जो अत्यंत सुंदर दिखते हैं। हमें कीचड़ की गंदगी पर ध्यान न देकर उसकी उपयोगिता पर ध्यान देना चाहिए। मानव को कीचड़ का तिरस्कार न करके उसमें निहित सौन्दर्य को देखना चाहिए।
प्रश्न 2. सूखे कीचड़ पर प्रकृति और पशु किस प्रकार चित्रकारी करते हैं, वर्णन कीजिए।
उत्तरः कीचड़ सूखकर टुकड़ों में बँट जाती है। अधिक गर्मी के कारण उन टुकड़ों में दरारें पड़ जाती हैं। तब वह नदी के किनारे फैले हुए ऐसे प्रतीत होते हैं मानो दूर-दूर तक खोपरे सूखने के लिए पड़े हों। कीचड़ के अधिक सूखने पर उस पर पशु चलते हैं तथा किल्लोल करते हैं, तब उनके पैरों के निशानों की अद्भुत शोभा अंकित हो जाती है। यों लगता है मानो उन पर अभी-अभी भैंसों के कुल का महाभारत लड़ा गया हो।
प्रश्न 3. कीचड़ के प्रति किसी को सहानुभूति क्यों नहीं होती ?
उत्तरः कीचड़ के प्रति किसी की सहानुभूति इसलिए नहीं होती क्योंकि लोग केवल ऊपरी शोभा देखते हैं । वे तटस्थतापूर्वक सोच-विचार नहीं करते। लोगों को कीचड़ से घृणा होती है। उन्हें लगता है कि कीचड़ से शरीर गन्दा होता है, कपड़े मैले होते हैं। किसी को भी अपने शरीर पर कीचड़ उड़ाना अच्छा नहीं लगता। यही कारण है कि किसी को भी कीचड़ के प्रति सहानुभूति नहीं होती।
प्रश्न 4. कीचड़ के प्रति कवियों की धारणा से आप कहाँ तक सहमत हैं ? तर्कसंगत उत्तर दीजिए।उत्तरः कवियों ने हमेशा पंकज को महत्त्व दिया और ‘पंक’ शब्द को घृणा की दृष्टि से देखा है। ‘मल’ शब्द को मलिन माना परन्तु कमल शब्द पर कितने ही काव्य रच डाले। कवियों के अनुसार हम कोयले को इतना मूल्य नहीं देते जितना कि हीरे को। मोती को कंठ में बाँधकर घूमते हैं परन्तु जहाँ से यह उत्पन्न हुआ है उसे तो गले से नहीं बाँधते। लोग मूल से नफरत करते हैं और उससे उत्पन्न वस्तु से प्यार करते हैं। कीचड़ के प्रति भी उनका यही रवैया है। जो अन्न कीचड़ में पैदा होता है उस अन्न की तो कद्र करते हैं। पर कीचड़ का तिरस्कार करते हैं जो कि गलत है।
प्रश्न 5. कवियों की धारणा क्या है और लेखक ने उसे वृत्ति शून्य क्यों कहा है ? ‘कीचड़ का काव्य’ पाठ के आधार पर लिखिए।
अथवा
कवियों की धारणा को लेखक ने वृत्तिशून्य क्यों कहा है?
उत्तरः लेखक ने कवियों की धारणा को वृत्ति शून्य ठीक ही कहा है। वे बाहरी सौन्दर्य पर ध्यान देते हैं, किन्तु आन्तरिक सौन्दर्य और उपयोगिता को बिलकुल नहीं देखते। ये कवि कीचड़ में उगने वाले कमल को तो बहुत सम्मान देते हैं किन्तु कीचड़ का तिरस्कार करते हैं वे केवल अपने काम की, सौन्दर्य की और प्रत्यक्ष महत्त्व की बात का आदर करते हैं किन्तु उन्हें उत्पन्न करने वाले कारणों का सम्मान नहीं करते।
प्रश्न 6. सूखे हुए कीचड़ का सौन्दर्य किन स्थानों पर और किस प्रकार दिखाई देता है ? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
सूखे हुए कीचड़ का सौन्दर्य किन स्थानों पर दिखाई देता है?
उत्तरः सूखे हुए कीचड़ का सौन्दर्य नदी के किनारे पर दिखाई देता है। कीचड़ का पृष्ठ भाग सूखने पर उस पर बगुले और अन्य छोटे-बड़े पक्षी विहार करने लगते हैं। उनका यह विहार बहुत सुन्दर प्रतीत होता है। कुछ अधिक सूखने पर उस पर गायें, बैल, भैंसें, पड्डे, भेड़ें, बकरियाँ भी चहलकदमी करने लगती हैं। भैसों के पाड़े तो सींग-से-सींग भिड़ाकर भयंकर युद्ध करते हैं। तब कीचड़ जगह-जगह से उखड़ जाती है। इस समय का सौन्दर्य देखते ही बनता है।
प्रश्न 7. ‘तिरस्कृत व उपेक्षित कीचड़ में सौन्दर्य भी है और वह उपयोगी भी है’ तर्वळ सहित सिद्ध कीजिए।
उत्तरः कवि केवल बाहरी सौंदर्य पर विशेष ध्यान देते हैं। आन्तरिक सौंदर्य को अधिक महत्त्व नहीं देते। ‘पंकज’ और ‘कमल’ शब्द सुनकर उनका चित्त खिल उठता है किन्तु ‘पंक’ और ‘मल’ का नाम सुनते ही जायका बिगड़ जाता है। कीचड़ से उत्पन्न वस्तु (अन्न) का तो सम्मान करते हैं परन्तु कीचड़ का तिरस्कार करते हैं।
प्रश्न 8. ”नदी के किनारे अंकित पद चिन्हो और सींगों के चिन्हो से मानो महिषकुल के भारतीय युद्ध का पूरा इतिहास ही इस कर्दम लेख में लिखा हो भास होता है।“ ‘कीचड़ का काव्य’ पाठ के आधार पर आशय स्पष्ट कीजिए।,
उत्तर: नदी के किनारे दूर-दूर तक फैले कीचड़ में छोटे पक्षियों के पद चिह्न अंकित हो जाते हैं। यही कीचड़ जब ज्यादा सूखकर जमीन ठोस हो जाए, तब गाय, बैल, पाड़े, भैंस, भेड़, बकरे आदि के पद चिह्न उस पर अंकित होते हैं। यह शोभा देखने लायक होती है। जब दो मदमस्त पाड़े (भैंस के नर बच्चे) अपने सींगों से कीचड़ को रौंदते हैं और उन्हीं लथपथ सींगों से लड़ते हैं तो उनके लड़ने से कीचड़ में जगह-जगह पर बने अनगिनत पद चिह्नों से ऐसा लगता है कि मानो महिषकुल में अब तक के सभी भारतीय युद्ध का पूरा इतिहास इस कीचड़ में लिखा हुआ है।
भेड़ें, बकरियाँ भी चहलकदमी करने लगती हैं। भैसों के पाड़े तो सींग-से-सींग भिड़ाकर भयंकर युद्ध करते हैं। तब कीचड़ जगह-जगह से उखड़ जाती है। इस समय का सौन्दर्य देखते ही बनता है।
प्रश्न 7. ‘तिरस्कृत व उपेक्षित कीचड़ में सौन्दर्य भी है और वह उपयोगी भी है’ तर्क सहित सिद्ध कीजिए।
उत्तर: कवि केवल बाहरी सौंदर्य पर विशेष ध्यान देते हैं। आन्तरिक सौंदर्य को अधिक महत्त्व नहीं देते। ‘पंकज’ और ‘कमल’ शब्द सुनकर उनका चित्त खिल उठता है किन्तु ‘पंक’ और ‘मल’ का नाम सुनते ही जायका बिगड़ जाता है। कीचड़ से उत्पन्न वस्तु (अन्न) का तो सम्मान करते हैं परन्तु कीचड़ का तिरस्कार करते हैं।
प्रश्न 8. ”नदी के किनारे अंकित पद चिह्न और सींगों के चिन्हों से मानो महिषकुल के भारतीय यु( का पूरा इतिहास ही इस कर्दम लेख में लिखा हो भास होता है।“ ‘कीचड़ का काव्य’ पाठ के आधार पर आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः नदी के किनारे दूर-दूर तक फैले कीचड़ में छोटे पक्षियों के पद चिह्न अंकित हो जाते हैं। यही कीचड़ जब ज्यादा सूखकर जमीन ठोस हो जाए, तब गाय, बैल, पाड़े, भैंस, भेड़, बकरे आदि के पद चिह्न उस पर अंकित होते हैं। यह शोभा देखने लायक होती है। जब दो मदमस्त पाड़े (भैंस के नर बच्चे) अपने सींगों से कीचड़ को रौंदते हैं और उन्हीं लथपथ स°गों से लड़ते हैं तो उनके लड़ने से कीचड़ में जगह-जगह पर बने अनगिनत पद चिह्नों से ऐसा लगता है कि मानो महिषवुळल में अब तक के सभी भारतीय युद्ध का पूरा इतिहास इस कीचड़ में लिखा हुआ है।
1. कीचड़ का काव्य क्या होता है? |
2. कीचड़ का काव्य किस भाषा में लिखा जा सकता है? |
3. कीचड़ का काव्य के लिए कौन-कौन से उदाहरण दिए जा सकते हैं? |
4. कीचड़ का काव्य की प्रमुखता क्या है? |
5. कीचड़ का काव्य क्या हमारे समाज के लिए महत्वपूर्ण है? |
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