Table of contents | |
आपके विचार से | |
पर्दाफाश | |
कारण बताइए | |
दो लेखक और बस यात्रा | |
सार्थक शीर्षक | |
सपनों का भारत | |
भाषा की बात |
प्रश्न 2: समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं और टेलीविज़न पर आपने ऐसी अनेक घटनाएँ देखी-सुनी होंगी जिनमें लोगों ने बिना किसी लालच के दूसरों की सहायता की हो या ईमानदारी से काम किया हो। ऐसे समाचार तथा लेख एकत्रित करें और कम-से-कम दो घटनाओं पर अपनी टिप्पणी लिखें।
उत्तर: कुछ दिन पहले एक प्रतिष्ठित हिंदी समाचार पत्र में मैंने एक सच्ची घटना का कहानी रूपांतरण पढ़ा। उसका मुख्य पात्र माधव था। एक बार माधव बाज़ार जा रहा था कि रास्ते में उसे नोटों से भरा एक पर्स मिला। रुपये देखकर उसकी आँखें चमक उठीं। किंतु सहसा उसके अंतर्मन से ध्वनि निकली कि यह पर्स तुम्हारा नहीं, किसी और का है। उसका मन झंकृत हो उठा। उसने सोचा कि यह बटुआ जिस किसी का है, उसे कितनी कठिनाई हो रही होगी। अत: उसने उस पर्स को उसके वास्तविक स्वामी तक पहुँचाने की ठानी। पर्स को टटोलने पर उसमें पर्स के स्वामी का पता मिला। माधव ने निश्चित पते पर पहुँचकर दरवाज़े की घंटी बजाई। नौकर ने दरवाज़ा खोला और माधव से आने का कारण पूछा। माधव ने पते पर लिखे नाम वाले व्यक्ति से मिलने की इच्छा प्रकट की। माधव ने पर्स के स्वामी से पर्स के बारे में यथासंभव जानकारी प्राप्त कर उन्हें वह नोटों से भरा पर्स लौटा दिया। पर्स के मालिक ने इनाम के रूप में माधव को 500 रुपये देने चाहे, लेकिन माधव ने विनम्रता के साथ मना कर दिया। माधव का इस प्रकार रुपये न लेना उसकी ईमानदारी और दूसरों की सहायता करने की प्रवृत्ति को उजागर करता है।
प्रश्न 3: लेखक ने अपने जीवन की दो घटनाओं में रेलवे के टिकट बाबू और बस कंडक्टर की अच्छाई और ईमानदारी की बात बताई है। आप भी अपने किसी परिचित के साथ हुई किसी घटना के बारे में बताइए जिसमें किसी ने बिना किसी स्वार्थ के भलाई, ईमानदारी और अच्छाई के कार्य किए हों।
उत्तर: एक बार मेरा मित्र दिल्ली गया। उसके पास पाँच हज़ार रुपये थे, जिन्हें वह अपनी माँ के इलाज के लिए लेकर जा रहा था। बस में उसका पर्स गुम हो गया। अस्पताल पहुँचने पर उसने जब अपनी जेब टटोली, तो उसमें पर्स नहीं था। उसके चेहरे की हवाइयाँ उड़ने लगीं। इतने में एक व्यक्ति वहाँ पहुँचा और उसने मेरे मित्र को उसका पर्स देते हुए कहा कि यह उसे बस में पड़ा मिला था। मेरे मित्र के यह पूछने पर कि उसे यहाँ का पता किसने दिया, तो उसने बताया कि पर्स में अस्पताल का नाम तथा डॉक्टर द्वारा लिखी दवाइयों की पर्ची को पढ़कर वह वहाँ तक पहुँचा है। मेरा मित्र उस अनजान व्यक्ति की ईमानदारी को आज भी याद करता है
निम्नलिखित के संभावित परिणाम क्या-क्या हो सकते हैं? आपस में चर्चा कीजिए,—जैसे—''ईमानदारी को मूर्खता का पर्याय समझा जाने लगा है।'' परिणाम—भ्रष्टाचार बढ़ेगा।
प्रश्न 1: ''सच्चाई केवल भीरु और बेबस लोगों के हिस्से पड़ी है।''
उत्तर: लेखक कहता है कि इस छल-कपट की दुनिया में आज ईमानदारी का कोई स्थान नहीं रहा है। ईमानदार व्यक्ति को मूर्ख समझा जाने लगा है। छल-कपट करने वाले समझते हैं कि वही व्यक्ति सच्चाई को पकड़े बैठे हैं, जो डरपोक और आश्रयहीन हैं तथा जिनकी ऊँची पहुँच नहीं है।
परिणाम—झूठ का बोलबाला बढ़ेगा और सच्चे लोग पीछे रह जाएँगे।
प्रश्न 2: ''झूठ और फरेब का रोज़गार करनेवाले फल-फूल रहे हैं।''
उत्तर: ''झूठ और फरेब का रोज़गार करने वाले फल-फूल रहे हैं'', जिसके परिणाम स्वरूप झूठे एवं धोखेबाज़ मनुष्य जीवन में उन्नति कर रहे हैं। वे सुख-ऐश्वर्य प्राप्त कर आनंदित हो रहे हैं, जबकि ईमानदारी से मेहनत करके जीविका चलाने वाले भोले-भाले श्रमजीवी पिस रहे हैं। उनका जीवन अंधकार की गर्द में खोने लगा है। बेईमानों की दुनिया में ईमानदारी उनके लिए गले की फाँस बन गई है। अब ईमानदारी को मूर्खता का पर्याय समझा जाने लगा है। सच्चाई तो अब केवल भीरु और असहाय लोगों के पास ही पड़ी हुई है। ऐसी स्थिति में जीवन के महान मूल्यों के बारे में लोगों की आस्था हिलने लगी है।
परिणाम—दुनिया से ईमानदारी मिटती चली जाएगी।
प्रश्न 3: ''हर आदमी दोषी अधिक दिख रहा है, गुणी कम।''
उत्तर: आज प्रत्येक आदमी एक-दूसरे पर आरोप लगा रहा है। व्यक्ति के गुणों को भुला दिया गया है और उसके दोषों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाता है। इसी कारण आज हर आदमी में गुण कम और दोष अधिक दिखाई देते हैं। इसका जीता-जागता उदाहरण हमें कहानी में बस ड्राइवर और कंडक्टर के रूप में देखने को मिलता है। मनुष्य अपनी मानसिकता का विपरीत लाभ लेते हुए गुणों की उपेक्षा कर दोषों को अधिक देखने लगता है। इसी कारण मानव दोषी अधिक और गुणी कम दिखाई पड़ता है।
परिणाम—हम दोषों का उल्लेख ज़्यादा करते हैं और गुणों की अनदेखी कर देते हैं।
प्रश्न: आपने इस लेख में एक बस की यात्रा के बारे में पढ़ा। इससे पहले भी आप एक बस यात्रा के बारे में पढ़ चुके हैं। यदि दोनों बस-यात्राओं के लेखक आपस में मिलते, तो एक-दूसरे को कौन-कौन सी बातें बताते? अपनी कल्पना से उनकी बातचीत लिखिए।
उत्तर:
पहला लेखक—कहिए, कैसे हैं? इतने दिनों तक कहाँ रहे?
दूसरा लेखक—मैं ठीक हूँ। बस, कुछ दिनों के लिए बाहर चला गया था।
पहला लेखक—गया तो मैं भी था, पर ......।
दूसरा लेखक—पर क्या हुआ?
पहला लेखक—एक खटारा बस की सवारी ने सारा मज़ा किरकिरा कर दिया।
दूसरा लेखक—कैसे?
पहला लेखक—उसका कभी पेट्रोल लीक हो गया, तो कभी टायर फट गया। दो घंटे की यात्रा में पाँच घंटे लग गए।
दूसरा लेखक—मैं भी जिस बस में गया था, वह भी रास्ते में खराब हो गई थी। दूसरी बस आई, तो घर पहुँचे।
दोनों लेखक (एक साथ)—चलो अच्छा है, सही सलामत आ तो गए।
प्रश्न 1: लेखक ने लेख का शीर्षक 'क्या निराश हुआ जाए' क्यों रखा होगा? क्या आप इससे भी बेहतर शीर्षक सुझा सकते हैं?
उत्तर: लेखक ने इस लेख का शीर्षक 'क्या निराश हुआ जाए' उचित रखा है क्योंकि यह उस सत्य को उजागर करता है जो हम अपने आसपास घटते देखते रहते हैं। अगर हम एक-दो बार धोखा खाने पर यही सोचते रहें कि इस संसार में ईमानदार लोगों की कमी हो गयी है तो यह सही नहीं होगा। आज भी ऐसे कई लोग हैं जिन्होंने अपनी ईमानदारी को बरकरार रखा है। लेखक ने इसी आधार पर लेख का शीर्षक 'क्या निराश हुआ जाए' रखा है। यही कारण है कि लेखक कहता है "ठगा में भी गया हूँ, धोखा मैनें भी खाया है। परन्तु, ऐसी घटनाएँ भी मिल जाती हैं जब लोगों ने अकारण ही सहायता भी की है, जिससे मैं अपने को ढाँढस देता हूँ।"
यदि लेख का शीर्षक ''उजाले की ओर'' होता तो शायद लेखक की बात को और बल मिलता।
प्रश्न 2: यदि 'क्या निराश हुआ जाए' के बाद कोई विराम चिह्नों लगाने के लिए कहा जाए तो आप दिए गए चिह्नों में से कौन-सा चिह्न लगाएँगे? अपने चुनाव का कारण भी बताइए। — , । . !? . ; - , .... ।
उत्तर: यदि 'क्या निराश हुआ जाए' के बाद विराम चिह्न लगाने के लिए कहा जाए, तो मैं '?' का चिह्न लगाऊँगा। 'क्या निराश हुआ जाए' में एक प्रश्न उठता है, कि जीवन में सहसा ऐसा क्या हो गया है जिससे जीवन में निराश होना पड़े अथवा यह भी कह सकते हैं कि ऐसा वातावरण बन गया हो और कोई पूछ रहा हो कि क्या इस समय हमें निराश होना चाहिए। अत: '?' (प्रश्नवाचक) विराम चिह्न यहाँ उपयुक्त जान पड़ता है।
प्रश्न: ''आदर्शों की बातें करना तो बहुत आसान है, पर उन पर चलना बहुत कठिन है।'' क्या आप इस बात से सहमत हैं? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर: "आदर्शों की बातें करना तो बहुत आसान है पर उन पर चलना बहुत कठिन है।” - हम इस कथन से सहमत है क्योंकि व्यक्ति जब आदर्शों के मार्ग पर चलता है तब उसे कई परेशानियों और चुनौतियों का सामना करना पड़ता है | सामाजिक विरोधी तत्वों का डटकर सामना करना पड़ता है |
प्रश्न 1: आपके विचार से हमारे महान विद्वानों ने किस तरह के भारत के सपने देखे थे? लिखिए।
उत्तर: हमारे महापुरुषों के सपनों के भारत की संस्कृति महान थी। उनके सपनों का भारत सभ्य लोगों का ऐसा समाज था, जिसमें किसी प्रकार का छल, कपट, भ्रष्टाचार और लूटपाट नहीं थी। उन्होंने ऐसे भारत का सपना देखा था, जिसमें सभी मिल-जुलकर रहें। सभी ईमानदारी और सच्चाई से अपना जीवनयापन करें। उनका सपना था कि भारत में आर्य और द्रविड़, हिंदू और मुसलमान, यूरोपीय और भारतीय समाज के आदर्शों का मिलन होगा। हमारे महापुरुष भारत के रूप में एक महान एवं आदर्श देश का सपना देखते थे।
प्रश्न 2: आपके सपनों का भारत कैसा होना चाहिए? लिखिए।
उत्तर: मैं चाहता हूँ कि मेरा देश संसार का सर्वश्रेष्ठ देश बन जाए। देश का भविष्य देश के बच्चे होते हैं, इसलिए मेरे सपनों के भारत में शिक्षा सबके लिए सुलभ तथा रोज़गार प्रदान करने वाली होगी। कृषि-प्रधान देश होने के कारण कृषि उत्पादन में वृद्धि मेरा सपना है। मेरे सपनों के भारत में उद्योग और व्यापार देश की अर्थव्यवस्था को मज़बूत करेंगे। देश पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित होगा। 'जियो और जीने दो' की भावना का सर्वत्र प्रसार होगा। सभी मिल-जुल कर रहेंगे। मेरे सपनों के भारत में चारों ओर खुशहाली, समृद्धि, आपसी प्रेम, भाईचारे और सहयोग का राज होगा। मानव का धर्म मानव की सेवा करना होगा। भारत फिर से विश्व के आध्यात्मिक गुरु की छवि प्राप्त कर विश्व का कल्याण करेगा।
प्रश्न 1: दो शब्दों के मिलने से समास बनता है। समास का एक प्रकार है-द्वंद्व समास। इसमें दोनों शब्द प्रधान होते हैं।जब दोनों भाग प्रधान होंगे तो एक-दूसरे में द्वंद्व (स्पर्धा, होड़) की संभावना होती है। कोई किसी से पीछे रहना नहीं चाहता, जैसे - चरम और परम = चरम-परम, भीरु और बेबस = भीरू-बेबस। दिन और रात = दिन-रात।
'और' के साथ आए शब्दों के जोड़े को 'और' हटाकर (-) योजक चिह्न भी लगाया जाता है। कभी-कभी एक साथ भी लिखा जाता है। द्वंद्व समास के बारह उदाहरण ढूँढ़कर लिखिए।
प्रश्न 2: पाठ से तीनों प्रकार की संज्ञाओं के उदाहरण खोजकर लिखिए।
उत्तर:
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1. "क्या निराश हुआ जाए" पाठ का मुख्य संदेश क्या है? |
2. इस पाठ में लेखक ने किन-किन समस्याओं का उल्लेख किया है? |
3. पाठ में सकारात्मक सोच के महत्व को कैसे दर्शाया गया है? |
4. पाठ में दिए गए उदाहरणों का क्या महत्व है? |
5. इस पाठ से हमें क्या सीखने को मिलता है? |
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