कहानी-लेखन में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए
इन सब बातों का ध्यान रखने पर कहानी की सजीवता एवं रोचकता बनी रहेगी।
नीचे छठी कक्षा के लिए उपयुक्त कहानी लेखन के कुछ उदाहरण दिए जा रहे हैं।
एक बार की बात है, एक भूखा लोमड़ी था जो खाने के लिए कुछ ढूंढ रहा था, वह बहुत भूखा था। वह खाना ढूंढने में बहुत कोशिश की लेकिन उसे भोजन नहीं मिला।
अंत में लोमड़ी जंगल पर गया और वहां भोजन की तलाश की, अचानक उसे एक छेद वाले बड़ा पेड़ नजर पड़ी, उस छेद में एक पैकेज था। भूखा लोमड़ी ने सोचा कि इसमें भजन हो सकता है।लोमड़ी बहुत खुश होकर छेद में कूद गया, जब उन्होंने पैकेज खोला, तो उन्होंने उसमें रोटी मांस और फलों के टुकड़े देखें। लोमड़ी बहुत खुश होकर खाना खाने लगी।
जंगल में पेड़ों को कटने से पहले एक लकड़हारा ने भजन को उस छेद में रख दिया था, लकड़हारा इसे अपने दोपहर के भजन के लिए रखा था।खाना खाने के बाद लोमड़ी को प्यास लगी, और उसने पास के झरने का पानी पीने का फैसला किया। हालांकि, उसने कितनी भी कोशिश की लेकिन वह छेद से बाहर नहीं निकल पाया।
लोमड़ी इतना खाना खा लिया था कि वह छेद में फिट होने के लिए बहुत बड़ी हो गई थी। लोमड़ी बहुत दुखी और परेशान थे,
उन्होंने खुद कहा, ‘काश मैंने छेद में कूदने से पहले थोड़ा सोचा होता।’
शिक्षा : यह पहले इसके बारे में सोचे बिना कुछ करने का परिणाम है।
एक बहुत पुराना वृक्ष था, जो नदी के किनारे स्थित था। वह इतना विशाल था कि उसकी शाखाएँ नदी के ऊपर छाई थीं। उस वृक्ष पर एक मधुमक्खी रहती थी जिसने वृक्ष पर ही अपना निवास स्थान बना रखा था। उसका जीवन बड़े आनंद से व्यतीत हो रहा था। एक दिन वह वृक्ष से गिर पड़ी तथा पानी में बहती हुई जा रही थी। उसने किनारे पर आने के लिए बहुत प्रयास किया परंतु वह किनारे पर नहीं आ पा रही थी। पानी का बहाव बहुत तेज था इसलिए वह उसमें बहती जा रही थी।
कुछ दूरी पर एक कबूतर भी उसी वृक्ष पर रहता था। उसने देखा कि मधुमक्खी पानी में बहती जा रही है। तब उसे एक उपाय सूझा। उसने वृक्ष से एक पत्ता तोड़कर नदी में गिरा दिया जिसकी सहायता से मधुमक्खी सुरक्षित स्थान पर पहुँच गई।
मधुमक्खी ने कबूतर को उसकी जान बचाने के लिए धन्यवाद दिया और इस प्रकार उन दोनों में दोस्ती हो गई। एक दिन एक शिकारी जंगल में शिकार की खोज में भटक रहा था। उसने उस कबूतर को देखा और उसे मारने के लिए निशाना लगाया। मधुमक्खी ने उस शिकारी को कबूतर का निशाना लगाते देखा तो उसे काट लिया। जिससे शिकारी का निशाना चूक गया और कबूतर की जान बच गई।
इस प्रकार मधुमक्खी ने दोस्ती निभाते हुए अपने दोस्त की जान बचाई। कबूतर ने मधुमक्खी का धन्यवाद किया और फिर दोनों दोस्त मजे से रहने लगे।
शिक्षा: हमें सबकी सहायता करने का प्रयत्न करना चाहिए। संकट के समय मित्र की सहायता अवश्य करनी चाहिए।
बात बहुत पुरानी है। शिवि नाम का एक दयालु राजा था। वह बड़ा न्यायप्रिय था। उसकी दानवीरता की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली थी। उसके दयालुतापूर्ण कार्यों से राज्य की प्रजा उससे बड़ी प्रसन्न रहती थी। उसका यश तीनों लोकों में फैलने लगा कि देवता भी उससे ईर्ष्या करने लगे। देवताओं ने इस विषय पर चर्चा करने के लिए एक सभा बुलाई। सभा में राजा शिवि की बढ़ती लोकप्रियता पर सभी देवता बड़े चिंतित थे। उन्होंने निर्णय लिया कि राजा शिवि की परीक्षा ली जाए। इस काम के लिए इंद्र देव तथा अग्नि देव को नियुक्त किया गया। इंद्र देव ने बाज का रूप तथा अग्नि देव ने कबूतर का रूप धारण कर लिया।
अब दोनों देवता बचने और पकड़ने का खेल खेलते हुए शिवि के दरबार में आ घुसे। योजनानुसार कबूतर राजा शिवि की गोद में आ बैठा। राजा शिवि गोद में आए कबूतर को प्यार से हाथ फेरने लगे। तभी बाज ने राजा से कहा- हे राजन! यह कबूतर मेरा शिकार है। आप इसे छोड़ दें ताकि मैं अपनी भूख शांत कर सकूँ। राजा शिवि बोला- यह कबूतर मेरी शरण में आया है। इसकी रक्षा करना मेरा धर्म है। इसके बदले में आप कोई और माँस ले लें। बाज बोला- मैं ताजा माँस खाता हूँ। आप कोई माँस देंगे तो भी वह आपकी प्रजा का ही माँस होगा क्या अपनी प्रजा को मारना अधर्म नहीं होगा? राजा शिवि बोले- मैं आपको कबूतर के भार जितना माँस अपने शरीर से काटकर दे दूंगा। उससे तुम अपनी भूख शांत कर लो। बाज शिवि के शरीर का माँस लेने के लिए मान गया। तराजू मँगवाया गया। एक पलड़े में कबूतर को बिठाया गया और दूसरे पलड़े में राजा शिवि अपने शरीर का माँस काटकर रखने लगे।
राजा जैसे-जैसे अपना माँस रखते जाते वैसे-वैसे कबूतर का भार बढ़ता जाता। अंत में राजा शिवि को तराजू में बैठना पड़ा। जैसे ही दानवीर शिवि तराजू में बैठे, देवता राजा शिवि की जय-जयकार करने लगे। बाज भी अपने वास्तविक रूप में आ गए। वे राजा पर फूलों की वर्षा करने लगे।
शिक्षा: शरण में आए दीन-दुखियों की रक्षा करनी चाहिए।
प्राचीन समय की बात है कि जंगल में एक पेड़ पर कौए का जोड़ा रहता था। दोनों कौए अपने बच्चों के साथ आनंदपूर्वक रह रहे थे। उसी पेड़ की बिल में एक काला साँप भी रहता था। एक दिन जब दोनों कौए दाना चुगने कहीं गए। कौए जब अपने घोंसले में वापिस आए तो अपने बच्चों को न पाकर बहुत दु:खी हुए। उन्होंने अपने बच्चों के पंख साँप की बिल में देखे। कौआ सर्प के पास गया और बोला- हे सर्प देवता, हम आपके पड़ोसी हैं। पड़ोसियों पर तो दया रखनी चाहिए थी। साँप ने जब कौए की बात को सुना तो गुस्से के मारे फन उठाकर फुफकारने लगा। कौए ने सोचा कि इस समय यहाँ रुकना ठीक नहीं। वह तुरंत उठकर अपने घोंसले में जा बैठा।
दोनों कौओं ने सोचा कि या तो हम यहाँ से चले जाएँ या इस सर्प को जान से मार दें। सर्प का हमारे साथ रहना ठीक नहीं। वे सर्प को समाप्त करने के लिए सोचने लगे। कुछ समय के पश्चात् उन्हें एक उपाय सूझा। एक कौआ पेड़ से उड़ा और पास के तालाब पर गया। वहाँ एक राजकुमार स्नान कर रहा था। उसने सोने की जंजीर कपड़ों के ऊपर रखी थी। कौए ने उस जंजीर को उठा लिया और उड़ चला। राजकुमार के अंगरक्षकों ने कौए का पीछा किया। कौए ने जल्दी से उस जंजीर को साँप की बिल के ऊपर रख दिया। अंगरक्षक वृक्ष पर चढ़कर जंजीर उठाने लगे। वहाँ पर बैठे हुए साँप को देखकर उन्होंने तलवार से उसको मार दिया। इस प्रकार चतुर कौए ने अपनी बुद्धि के बल से अपने से अधिक शक्तिशाली शत्रु को समाप्त कर दिया और अब वे दोनों आराम से रहने लगे।
शिक्षा: बुद्धि बल से बड़ी समस्याओं को भी सुलझाया जा सकता है।
एक बार की बात है कि एक स्काउट था। वह बहुत निर्धन तथा अनाथ था। स्कूल की ओर से उसे एक बालचर कैंप में भाग लेने के लिए जाना पड़ा। स्काउट का वह कैंप एक पहाड़ी पर रेल की पटरी के पास लगा हुआ था। वर्षा ऋतु होने के कारण उस दिन सारी रात मूसलाधार वर्षा होती रही। इस वर्षा के पानी ने एक स्थान पर पटरी को उखाड़ दिया था। प्रातः होते ही वह स्काउट रेल की पटरी के किनारे-किनारे कुछ दूरी तक घूमने के लिए निकल पड़ा। सहसा वह उस स्थान पर पहुँचा जहाँ रेल की पटरी उखड़ी पड़ी थी। वह हैरान और परेशान हो गया। उसे लगा कि रेलगाड़ी भी आने वाली है। उसने पटरी में कान लगाकर सुना। गाड़ी के आने की आवाज आ रही थी। उसके मन में आया कि रेल की दुर्घटना को कैसे बचाया जाए। स्काउट ने सुना था कि यदि कोई लाल कपड़ा हिलाया जाए तो रेल के ड्राइवर को शंका हो सकती है और हो सकता है वह गाड़ी रोक दे।
उसने उस दिन गले में लाल रूमाल बाँध रखा था। उसने उस रूमाल को खोल लिया और झंडी की तरह हिलाता हुआ उस ओर दौड़ पड़ा जिस ओर से रेल आ रही थी। वह स्काउट कभी सीटी बजाता कभी चिल्लाता हुआ दौड़ रहा था। लगभग एक किलोमीटर दौड़ने के पश्चात् रेलगाड़ी के ड्राइवर ने उसे देख लिया। उसके हाथ में लाल रूमाल था जिसे वह जोर-जोर से हिला रहा था। सीटी को बजते सुनकर ड्राइवर ने गाड़ी को ब्रेक लगा दी। कुछ दूरी पर गाड़ी आकर रुक गई।
स्काउट ने रेल चालक को सारी बात कह सुनाई कि कुछ ही दूरी पर रेल की पटरी अपने स्थान से उखड़ी पड़ी है। यह सुनकर सब यात्री स्तब्ध रह गए। उन्होंने वहाँ जाकर देखा तो स्काउट की बात को सच पाया। रेल में बैठे हुए सभी यात्री बुद्धिमान स्काउट की भूरि-भूरि प्रशंसा करने लगे कि किस प्रकार आज इसने हम सबको बचा लिया है। बड़ों ने उसे आशीर्वाद दिया। उन यात्रियों में एक वृद्ध यात्री भी था। उसकी कोई संतान नहीं थी। उसने इसे अपना बेटा बना लिया। इस प्रकार उस अनाथ को जहाँ पिता का प्यार मिल गया वहाँ उसकी निर्धनता भी जाती रही। वह एक अमीर बाप का अमीर बेटा बन गया।
शिक्षा: भलाई का बदला भलाई से ही मिलता है।
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