प्रश्न 1: प्रेमी के गीत को सुनकर प्रेमिका क्या सोचती है?
उत्तर: प्रेमी के गीत को सुनकर प्रेमिका यह सोचती है कि हे भगवान! मैं इस गीत की एक कड़ी क्यों नहीं हूं।
प्रश्न 2: ‘हुई न क्यों मैं कड़ी गीत की
बिधना’, यों मन में गुनती है। इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए?
उत्तर: जब प्रेमी शाम के समय प्यार से आल्हा गाता है तो उसकी प्रेमिका उसका गाना सुनने के लिए अपने घर से भागने को मजबूर हो जाती है और वह नीम के पेड़ के पीछे खड़ी होकर उसका गाना सुनती है गाना सुनते सुनते वह अपने मन में यह गुनगुनाती है कि हे भगवान मैं इस गीत की एक कड़ी क्यों नहीं हुई।
प्रश्न 3: गीत अगीत पाठ का केंद्रीय भाव अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर: गीता अगीत पाठ में लेखक एक गुलाब और एक प्रेमिका के मन की विवशता का वर्णन करते हुए बता रहे हैं कि जब नदी झरझर की आवाज करते हुए जाती है तो उसके तट पर उपस्थित एक गुलाब यह सोचता है कि काश मुझे भी भगवान अगर बोलने की क्षमता देते तो मैं भी अपने पतझड़ के सपनों को दुनिया के सामने प्रस्तुत करता ठीक उसी प्रकार जब प्रेमी आल्हा गाता है तो उसकी प्रेमिका घर से भाग कर चली आती है और नीम के पेड़ के पीछे छुपके उसका स्वर सुनती हुई भगवान से कहती है कि हे! भगवान काश मैं इस स्वर की एक कड़ी क्यों न हूं।
प्रश्न 4: नदी को बहते देखकर तट पर स्थित गुलाब क्या सोचता है?
उत्तर: नदी को बहते देखकर तट पर स्थित गुलाब यह सोचता है कि अगर भगवान ने मुझे भी स्वर दिए होते तो मैं भी पूरी दुनिया को पतझर के सपने सुनाता।
प्रश्न 5: जब शुक गाता है, तो शुकी के हृदय पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर: जब शुक गाता है तो गीत के स्वर पत्तियों से छनकर शुकी के हृदय को छू जाते हैं और वह गीत के स्वर शुकि के प्रेम से मिल जाते हैं।
प्रश्न 6: “देते स्वर यदि मुझे विधाता,
अपने पतझर के सपनों का
मैं भी जग को गीत सुनाता।” इस पंक्ति का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: कवि बता रहे हैं कि नदी झर-झर की आवाज करके बहते हुई जा रही है तभी उसके तट पर खिला एक गुलाब मन ही मन कहता है कि हे ईश्वर यदि आपने मुझे नदी की तरह बोलने का वरदान दिया होता तो मैं भी इस दुनिया को अपने पतझड़ के सपनों के बारे में सुनाता।
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