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राष्ट्रकूट वंश

राष्ट्रकूट वंश (753-973 ई०): प्राप्त अभिलेख के अनुसार राष्ट्रकूट वंश का मूल निवास स्थान लाटूर जिले का बीदर माना गया है। किन्तु बाद में एलिचपुर (वर्तमान बरार) में इस वंश की स्थापना हुयीं। राष्ट्रकूट वंश का अपना स्वतंत्र शासन स्थापित करने से पूर्व राष्ट्रकूट बादामी के चालुक्यों के सामंत थे।

  • एलोरा एवं एलिफेंटा (महाराष्ट्र) गुफा मंदिर का निर्माण राष्ट्रकूटों के काल में ही हुआ।
    • एलोरा एंव एलिफेंटा में कुल 34 गुफाएं हैं।
    • 1-12 तक बौद्ध धर्म से सम्बन्धित। 10 वीं गुफा विश्वकर्मा गुफा, बौद्ध धर्म में सबसे प्रसिद्ध है।
    • 13-29 तक हिन्दु धर्म से सम्बन्धित। 15 वीं गुफा में विष्णु के नरसिंह रूप को दिखाया गया है ।
    • 30-34 तक जैन धर्म से सम्बन्धित।
  • राष्ट्रकूट शैव, वैष्णव के साथ-साथ जैन धर्म के भी अनुयायी थे।
  • इन्होंने मुसलमान व्यापारियों को अपने राज्य में व्यापार व धर्म प्रचार करने की अनुमति दी थी।

Short Notes: Rashtrakuta Dynasty (राष्ट्रकूट वंश) | General Awareness/सामान्य जागरूकता - Police SI Exams

राष्ट्रकूट राजवंश (753-973 ई०)


दन्तिदुर्ग (735-756 ई०)

  • दन्तिदुर्ग ने 752 ई० में चालुक्य वंश के शासक कीर्तिवर्मन को पराजित करके स्वतंत्र राष्ट्रकूट राज्य की स्थापना की।
  • स्वतंत्र राज्य स्थापित करने के बाद अपने नव गठित राज्य की राजधानी मान्यखेत(वर्तमान मालखेड़, शोलापुर) में बनायी।
  • इसके द्वारा उज्जयिनी में हिरणगर्भ यज्ञ करवाया था, इसे महादान यज्ञ के नाम से भी जाना जाता है।

कृष्ण प्रथम (756-774 ई०)

  • दन्तिवर्मन के बाद उसका चाचा कृष्ण प्रथम वर्ष 756 ई० में राजा बना।
  • कृष्ण प्रथम ने शासन हाथ में आते ही वातापी के चालुक्यों का पूर्ण रूप से दमन कर दिया।
  • इसने वेंगी के चालुक्य(पूर्वी चालुक्य) तथा मैसूर के गंग शासकों को भी अपनी आधीनता स्वीकारने को बाध्य किया।
  • एलोरा में कैलाश मंदिर का निर्माण इसी के द्वारा कराया गया था।

गोविन्द द्वितीय (774-780 ई०)

  • गोविन्द द्वितीय कृष्ण प्रथम का पुत्र था।
  • कृष्ण प्रथम ने गोविन्द द्वितीय को वेंगी पर आक्रमण करने भेजा था जहाँ का राजा विष्णुवर्धन चतुर्थ था। इस युद्ध में विष्णुवर्धन चतुर्थ की हार हुई और उसने राष्ट्रकूटों की अधीनता स्वीकार कर ली।
  • गोविन्द द्वितीय एक अयोग्य शासक था और वह भोग विलास में लिप्त रहता था जिसका लाभ उठाकर उसके भाई ध्रुव ने गोविन्द द्वितीय को राजगद्दी से हटा दिया और खुद सिंहासन पर कब्ज़ा जमा लिया।

ध्रुव धारावर्ष (780-793 ई०)

  • ध्रुव धारावर्ष 780 ई० में अपने भाई गोविन्द द्वितीय को राजगद्दी से हटा कर शासक बना।
  • इसने उत्तरापथ की तरफ विजय अभियान चलाया।
  • उत्तर के अपने के सफल अभियानों के उपरान्त ध्रुव ने गंगा-यमुना के प्रतीक चिन्ह को अपना राजचिन्ह बनाया।
  • ध्रुव ही वह पहला शासक था जिसने कन्नौज पर अधिकार करने हेतु त्रिपक्षीय संघर्ष में भाग लिया और प्रतिहार नरेश वत्सराज को झांसी के निकट एंव पाल नरेश धर्मपाल को गंगा-यमुना दोआब के पास पराजित किया।
  • ध्रुव को धरावर्ष के नाम से भी जाना जाता है।

गोविन्द तृतीय (793-814 ई०)

  • गोविन्द तृतीय अपने पिता ध्रुव की मृत्यु के उपरान्त शासक बना।
  • संजन ताम्रपत्र के अनुसार इसने अपने पिता की भांति उत्तरापथ पर विजय अभियान शुरू किया तथा हिमालय तक अपने अभियान को बढ़ाया।
  • उत्तरापथ के अपने अभियान के दौरान इसने मालवा, कौशल एवं कलिंग राजवंश के शासकों को भी पराजित किया ।
  • दक्षिण भारत में पल्लव, पाण्डय एंव गंग शासकों को भी हराया एवं उनके द्वारा आपस में संधि कर बनाये गए संघों को भी ध्वस्त किया ।
  • अपने पिता द्वारा शुरू किए गए त्रिकोणीय संघर्ष में भी इसे भाग लिया तथा पाल शासक धर्मपाल तथा प्रतिहार शासक नागभट्ट को पराजित किया ।

अमोघवर्ष प्रथम (814-878 ई०)

  • अमोघवर्ष प्रथम गोविन्द तृतीय का पुत्र था।
  • अमोघवर्ष को राष्ट्रकूट वंश का सबसे महान शासक माना जाता है।
  • अमोघवर्ष जैनधर्म का अनुयायी था। इसके गुरू का नाम “गुरू जैन आचार्य जिनसेन” था।
  • अपने राज्य के शुरुआती दौर में यह कम आयु होने के कारण कर्क के संरक्षण में गद्दी पर बैठा।
  • अमोघवर्ष के राज्यकाल तक राष्ट्रकूट वंश का पर्याप्त विस्तार हो चुका था तथा राज्य में स्थायित्व आ चुका था।
  • अमोघवर्ष स्वंय एक महान विद्वान था। इसने कन्नड़ भाषा में एक काव्य ग्रंथ ‘कवि राज मार्ग’ की रचना की।
  • कला और साहित्य के अपने प्रेम के कारण इसकी तुलना गुप्त वंश के शासक चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य से की जाती है।
  • इतिहासकारों द्वारा अमोघवर्ष प्रथम की शांतिप्रियता एवं उदारवादी धार्मिक दृष्टिकोण के कारण इसकी तुलना सम्राट अशोक से भी की जाती है।
  • अदिपुराण के रचयिता जिनसेन, अमोघवृत्ति के रचयिता सक्तायना तथा गणितसार संग्रह के रचयिता महावीराचार्य इसी के दरबार में थे।
  • तुंगभद्रा नदी में जल समाधी लेकर इसने अपने जीवन का अंत किया था।

कृष्ण द्वितीय (878-914 ई०)

  • कृष्ण द्वितीय राष्ट्रकूट शासक अमोघवर्ष प्रथम का पुत्र था।
  • कृष्ण द्वितीय एक कमज़ोर शासक था।
  • कृष्ण द्वितीय लगभग पूर्ण शासन काल चालुक्यों के साथ संघर्ष में व्यतीत हुआ।

इन्द्र तृतीय (914-929 ई०)

  • इन्द्र तृतीय, कृष्ण द्वितीय का पौत्र था।
  • इन्द्र तृतीय, कृष्ण द्वितीय के बाद राष्ट्रकूट राज्य का स्वामी बना था।
  • इन्द्र तृतीय ने भी त्रिकोणीय संघर्ष में भाग लिया तथा प्रतिहार शासक महीपाल को पराजित कर 915 ई०) में कन्नौज को लूट लिया।
  • इन्द्र तृतीय के शासनकाल में अरब (बगदाद) यात्री अलमसूदी भारत आया था। अलमसूदी ने तत्कालीन राष्ट्रकूट शासक (इन्द्र तृतीय) को भारत का सर्वश्रेष्ठ शासक बताया।

अमोघवर्ष द्वितीय (929-930 ई०)

  • अमोघवर्ष द्वितीय राष्ट्रकूट शासक अमोघवर्ष प्रथम का पौत्र था।
  • अमोघवर्ष द्वितीय ने केवल एक वर्ष तक राज किया।
  • अमोघवर्ष द्वितीय का भाई गोविन्द चतुर्थ था, गोविन्द चतुर्थ ने अमोघवर्ष द्वितीय को गद्दी से हटा दिया और स्वयं राजा बन गया।

गोविन्द चतुर्थ (930-936 ई०)

  • गोविन्द चतुर्थ एक निर्बल शासक था वह इन्द्र तृतीय के द्वारा सशक्त किये गए राष्ट्रकूट राज्य को संभालने में विफल रहा।
  • वेंगि के चालुक्यों की शक्ति इस समय काफी बढ़ चुकी थी और उनके आक्रमणों के कारण राष्ट्रकूट राज्य की शक्ति बहुत क्षीण हो गई।

अमोघवर्ष तृतीय (936-939 ई०)

  • अमोघवर्ष तृतीय, गोविन्द चतुर्थ के बाद राष्ट्रकूट वंश का राजा बना।
  • अमोघवर्ष तृतीय राष्ट्रकूट शासक अमोघवर्ष द्वितीय के पौत्र का दूसरा पुत्र था।

कृष्ण तृतीय (939-967 ई०)

  • कृष्ण तृतीय, इन्द्र तृतीय के बाद अगला शासक बना। इसने “अकाल वर्ष” की उपाधी धारण की और सत्ता हाथ में आते ही इसने कांची व तंजौर पर विजय अभियान चलाकर उन्हें जीत लिया।
  • कृष्ण तृतीय राष्ट्रकूट वंश के सबसे प्रतापी राजाओं में से एक था।
  • कांची और तंजौर के सफल अभियान के बाद उसने “तंजयमकोंड़” की उपाधी धारण की।
  • कृष्ण तृतीय ने चोल वंश के नरेश परान्तक प्रथम को परास्त कर उनके उत्तरी भाग पर अधिकार कर लिया। रामेश्वरम में एक मंदिर व विजय स्तम्भ स्थापित करवाया।
  • “शान्ति पुराण” के रचयिता ‘पोन्न’, कृष्ण तृतीय के दरबार में ही थे।
  • कृष्ण तृतीय की मृत्यु के बाद उसके उत्तराधिकारियों में राज्यसत्ता को लेकर विवाद प्रारम्भ हो गए।

खोट्टिग अमोघवर्ष चतुर्थ (967-972 ई०)

  • खोट्टिग अमोघवर्ष राष्ट्रकूट शासक कृष्ण तृतीय का छोटा भाई था, जो उसके मरने के बाद राजसिंहासन पर आरूढ़ हुआ।
  • कृष्ण तृतीय और खोट्टिग अमोघवर्ष दोनों ही अमोघवर्ष तृतीय के पुत्र थे पर सम्भवतः इन दोनों की माताएं भिन्न थीं।

कर्क द्वितीय (972-973 ई०)

  • कर्क द्वितीय, खोट्टिग अमोघवर्ष के बाद राष्ट्रकूट वंश का शासक बना जोकि सिर्फ 18 महीने ही सत्तारूढ़ रह सका।
  • कर्क द्वितीय राष्ट्रकूट वंश का अंतिम शासक था।
  • चालुक्य राजा तैलप द्वितीय ने 973 ई० में कर्क द्वितीय को पराजित कर कल्याणी के चालुक्य वंश की नींव रखी।

Note: कर्क द्वितीय राष्ट्रकूट वंश का अंतिम शासक था। परन्तु जब प्रतियोगी परीक्षा में पूछा जाता है कि “राष्ट्रकूट वंश का अंतिम महान शासक कौन था ?” तो “उत्तर कृष्ण तृतीय” होगा। क्योंकि कृष्ण तृतीय राष्ट्रकूट वंश का अंतिम महान शासक था और कर्क द्वितीय एक कमजोर शासक था जिसके काल में राष्ट्रकूट वंश समाप्त हो गया और कल्याणी के चालुक्य वंश की नींव पड़ी। 

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