Police SI Exams Exam  >  Police SI Exams Notes  >  General Awareness/सामान्य जागरूकता  >  Short Notes: Rise of the Sikh Empire / History of the Sikhs (सिख साम्राज्य का उदय / सिखों का इतिहास)

Short Notes: Rise of the Sikh Empire / History of the Sikhs (सिख साम्राज्य का उदय / सिखों का इतिहास) | General Awareness/सामान्य जागरूकता - Police SI Exams PDF Download

सिख साम्राज्य का उदय / सिखों का इतिहास

सिखों के दसवें व अंतिम गुरू गोविंद सिंह(1675-1699) ने खालसा पंथ की स्थापना की और गुरू प्रथा को समाप्त कर पांचवे गुरु अर्जुन देव द्वारा स्थापित “गुरू ग्रंथ साहिब” को ही अगला गुरू बताया। गुरू गोविंद सिंह की हत्या गुल खां नामक पठान ने 07 अक्तूबर 1708 को की थी। मृत्यु से पूर्व इनके द्वारा बंदा सिंह बहादुर को एक हुकमनामा के साथ पंजाब भेजा। इस हुकमनामा में लिखा था कि आज से आपका (सिखों) नेता बंदा सिंह बहादुर होगा।

बंदा सिंह बहादुर

  • बंदा सिंह बहादुर को सिखों का राजनैतिक गुरू भी कहा जाता है।
  • बंदा सिंह बहादुर का जन्म कश्मीर में 27 अक्तूबर 1670 ई० में पूंछ जिले के राजोरी गाँव में हुआ था।
  • बंदा सिंह बहादुर का वास्तविक नाम लक्ष्मण देव था।
  • लक्ष्मण देव को बचपन से ही कुश्ती और शिकार आदि का शौक था।
  • 15 वर्ष की आयु में एक गर्भवती हिरन का उनके हाथों शिकार हो जाने से वह बहुत शोक में पड़ गये और इस घटना से अपना घर-बार छोड़ कर बैरागी हो गये।
  • वह जानकी दास नामक एक बैरागी के शिष्य बने। अपना नाम बदल कर माधोदास कर लिया।
  • कुछ समय पश्चात वह नांदेड क्षेत्र को चले गए जहाँ गोदावरी के तट पर उन्होंने एक आश्रम की स्थापना की।
  • 03 सितंबर 1708 को नांदेड में सिखों के दसवें गुरू गोविंद सिंह जी इस आश्रम में पधारे और उन्हें सिख बनाकर उनका नाम बंदा सिंह बहादुर रख दिया।
  • गुरूगोविंद सिंह जी की मृत्यु के बाद उनकी इच्छानुरूप बंदा सिंह बहादुर पंजाब गए और सिखों के अगले नेता बने।
  • बंदा सिंह बहादुर और उनकी फौज ने सबसे पहले सोनीपत और फिर कैथल पर हमला किया।
  • 12 मई 1710 को छोटे साहिबजादों (गुरू गोविंद सिंह के दोनों छोटे बेटे बाबा जोरावर सिंह व फतेह सिंह) को शहीद करने वाले वजीर खां की हत्या कर दी और सरहिंद पर कब्जा कर लिया।
  • बंदा सिंह बहादुर का उद्देश्य पंजाब में सिख राज्य स्थापित करना था। इन्होंने लोहगढ़ को अपनी राजधानी बनाया।
  • इन्होंने गुरूनानक और गुरू गोविंद सिंह के नाम के सिक्के भी चलवाये।
  • मुगल बादशाह फारूख सियर की फौज ने अब्दुल समद खां के नेतृत्व में इन्हें गुरूदासपुर जिले के धारीवाल क्षेत्र के निकट गुरूदास नंगल गाँव में कई महीनों तक घेरे रखा।
  • खाने-पीने की सामग्री के आभाव के कारण उन्होंने 07 दिसंबर 1715 को आत्मसमर्पण कर दिया।
  • फरवरी 1716 को 794 सिखों के साथ बांदा सिंह बहादुर को दिल्ली लाया गया।
  • जहां 5 मार्च से 13 मार्च तक रोज 100 सिखों को फांसी दी गयी।
  • 16 जून 1716 को फरूखसियर के आदेश पर बंदा सिंह तथा उनके मुख्य सैन्य अधिकारी के शरीर के टुकडे-टुकडे कर दिए गए।
  • मरने से पूर्व बंदा सिंह बहादुर द्वारा किए गए कार्य –
    • कृषकों को बड़े जमींदारों की दासता से मुक्ति दिलाई।
    • इनके राज में मुसलमानों को पूर्ण धार्मिक स्वतंत्रता थी।
    • इनकी स्वंय की सेना में 5000 मुस्लिम सैनिक थे।

बंदा सिंह बहादुर के पश्चात और राजा रणजीत सिंह से पूर्व

  • बंदा सिंह बहादुर के पश्चात अच्छे नेतृत्व की कमी के कारण सिख कई छोटे-छोटे टुकड़ों में बट गए।
  • 1748 में नवाब कर्तुर सिंह की पहल से सभी सिख टुकडियों का दल खालसा में विलय हुआ।
  • इस दल खालसा का नेतृत्व जस्सा सिंह आहलुवालिया को सौंपा गया।
  • बाद में इसे 12 दलों में विभाजित कर हर दल को मिसल(अरबी शब्द, अर्थ “बराबर”) कहा गया।
  • सभी मिसल में से सबसे प्रमुख था सुकरचकिया। इसके मुखिया महारसिंह थे। महाराजा रणजीत सिंह का जन्म वर्ष 13 नवंबर 1780 में गुजरांवाला (वर्तमान पाकिस्तान) में इन्ही महासिंह के घर में हुआ था।

महाराजा रणजीत सिंह

  • 1798-1799 में रणजीत सिंह लाहौर के शासक बने 12-अप्रैल 1801 को रणजीत सिंह ने महाराजा की उपाधि धारण की।
  • गुरूनानक देव जी के वंशज ने इनकी ताज पोशी की।
  • इन्होंने लाहौर को अपनी राजधानी बनाया और 1802 में अमृतसर की ओर रूख किया।
  • महाराजा रणजीत सिंह ने अफगानों के खिलाफ कई लड़ाई लड़ी और उन्हें पश्चिम पंजाब की ओर खदेड़ दिया।
  • महाराजा रणजीत सिंह का राज्य सूबों में बटा हुआ था । जिसमें से प्रमुख सूबे थे-
    • पेशावर
    • कश्मीर
    • मुल्तान
    • लाहौर
  • अंग्रेज सिखों के बड़ते राज्य से भयभीत थे तथा जिस कारण सिखों से संधि कर अपने क्षेत्रों को सुरक्षित करना चाहते थे। अमृतसर की संधि 25 अप्रैल 1809 को रणजीत सिंह और अंग्रेजी ईस्ट इण्डिया कंपनी के बीच हुई थी।
    • उस समय गवर्नर जनरल लार्ड मिन्टो था परन्तु संधि चार्ल्स मेटकाफ के नेतृत्व में हुई थी तथा संधि पर हस्ताक्षर भी चार्ल्स मेटकाफ के द्वारा ही किए गए ।
    • इस संधि से सतलज के पूर्व का भाग अंग्रेजों के हाथों में आया तथा सतलज रणजीत सिंह के राज्य की पूर्वी सीमा बन गई।
  • महाराजा रणजीत सिंह के दो प्रमुख मंत्री फ़कीर अजीजुद्दीन(विदेश मंत्री) एवं दीनानाथ(वित्त मंत्री) थे।
  • शाहशूजा जोकि एक अफगानी अमीर था, दोस्त मुहम्मद से हारकर कश्मीर में पनाह लेकर रह रहा था को कश्मीर के सूबेदार आत्ममुहम्मद ने शेरगढ़ के किले में बंदी बना रखा था।
  • कोहिनूर हीरा, महाराजा रणजीत सिंह को इसी शाहशूजा को रिहा कराने के ऐवज में शाहशूजा की पत्नी वफा बेगम द्वारा दिया गया था।
  • 27 जून 1839 में महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु हो गयी।
  • रणजीत सिंह के उत्तराधिकारियों में तीन पुत्र मुख्य थे-
    • महाराजा खड़ग सिंह (1839-1840)
    • महाराजा शेर सिंह (1841-1843)
    • महाराजा दिलीप सिंह (1843-1849)

महाराजा दिलीप सिंह

  • महाराजा दिलीप सिंह का जन्म 1838 ई0 में हुआ था।
  • 1843 ई0 में बहुत कम उम्र होने के कारण महाराजा दिलीप सिंह की माता जींद कौर को उनका संरक्षक बनाकर राज्य सौंपा गया।
  • अंग्रेजी सरकार इस स्थिति का फायदा उठाना चाहती थी। इसके साथ ही महारानी जींद कौर ने ताकतवर सिख सेना के बल पर अंग्रेजों को कमजोर आकने की गलती कर बैठी और सिख साम्राज्य का विस्तार करने का हुक्म दे दिया।
  • जींद कौर के इस फैसले से अंग्रेजों को मौका मिल गया और 1845 में प्रथम आंग्ल-सिख युद्ध प्रारम्भ हो गया।
  • दिलीप सिंह के समय पर ही दोनों आंग्ल-सिख युद्ध हुए थे।
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