भरत के अयोध्या लौटने के बाद राम ने चित्रकूट के मायावी राक्षसों का सफाया कर दिया। अयोध्या के लोग वहाँ आते रहते थे। इसलिए राम ने वहाँ से दूर जाने का निश्चय किया| उन्होंने वहाँ से दंडक वन जाने का निर्णय किया।अत्रि मुनि से विदा लेकर उन्होंने चित्रकूट छोड़ दिया। दंडक वन एक घना जंगल था| यहाँ के तपस्वियों को राक्षस तंग करते रहते थे। मुनियों ने राम से मायावी राक्षसों से रक्षा करने के लिए कहा। वे दस वर्ष तक दंडक वन में रहे।
क्षरभंग मुनि के आश्रम में उन्होंने ऋषियों के कंकालों का ढेर देखा जिन्हें राक्षसों ने मार दिया था। सुतीक्ष्ण मुनि ने भी राम को राक्षसों के अत्याचारों की कथाएँ सुनाईं और अगस्त्य ऋषि से मिलने की सलाह दी। पंचवटी जाते हुए राम की भेंट जटायु से हुई। वह राजा दशरथ के थे और उन्होंने उनलोगों को मदद करने का वचन दिया|
पंचवटी में लक्ष्मण ने सुंदर कुटिया बनाई। राम-लक्ष्मण ऋषियों के आश्रमों पर आक्रमण करने वाले राक्षसों का संहार भी करते रहे। अब वहाँ तपस्वियों के लिए शांतिपूर्ण वातावरण था।
एक दिन लंका के राजा रावण की बहन शूर्पणखा वहाँ एक सुन्दर स्त्री का रूप धारण कर आयी और राम से बोली कि वह उनसे विवाह करना चाहती है। राम ने जब उससे कहा कि मेरा तो विवाह हो चुका है, तब वह लक्ष्मण के पास गई । लक्ष्मण ने उसे राम के पास भेज दिया। इस प्रकार दोनों के बीच वह भागती रही। अन्त में वह क्रोधित होकर सीता पर झपटी| लक्ष्मण ने तत्काल शूर्पणखा के नाक-कान काट लिए। खून से लथपथ शूर्पणखा रोती हुई अपने भाई खर और दूषण के पास पहुंची|
शूर्पणखा की दुर्दशा देखकर और उसकी इस दशा का कारण जानकर खर-दूषण क्रोध से भर गए। खर-दूषण ने पहले तो चौदह राक्षसों को राम से बदला लेने के लिए भेजा परंतु उनके मारे जाने पर स्वयं सेना लेकर राम से युद्ध करने पहुंचे और मारे गए। कुछ राक्षस जान बचाकर भाग गए। इनमें से अकंपन नामक राक्षस ने रावण को सारी घटना बताकर सीता का अपहरण करने की सलाह दी।
रावण सीता-हरण के लिए चला तो रास्ते में उसे मारीच मिला। मारीच ने रावण को ऐसा न करने की सलाह दी। रावण मारीच की बात मानकर चुपचाप लंका लौट गया। शूर्पणखा रोते हुए रावण के पास पहुँची और उसे अपना दुखड़ा सुनाया और राम-लक्ष्मण की वीरता की प्रशंसा करते हुए सीता की सुंदरता के बारे में बताया। उसने कहा कि वह तो सीता को उसके लिए लाना चाहती थी पर लक्ष्मण ने उसके नाक-कान काट दिए। उसने रावण को उनसे बदला लेने के लिए उकसाया।
इस बार रावण मारीच को लेकर पंचवटी गया। वहाँ जाकर मारीच मायावी सोने के हिरण रूप धारण कर राम, लक्ष्मण और सीता की कुटिया के पास घूमने लगा। रावण एक तपस्वी का वेश बनाकर एक पेड़ के पीछे छिप गया। सीता ने उस सोने के हिरण पर मुग्ध होकर राम को उसे पकड़ लाने के लिए कहा। राम-लक्ष्मण को वन में सोने के हिरण के होने पर संदेह था परंतु सीता के लिए राम सोने का हिरण लेने चले गए| उन्होंने लक्ष्मण को सीता की रक्षा करने का आदेश दिया|
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