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सार
'चाँद से थोड़ी-सी गप्पें' कविता 'शमशेर बहादुर सिंह' द्वारा लिखित है। इस कविता को कवि ने एक दस-ग्यारह साल एक लड़की के मन का वर्णन किया है। वह जिज्ञासु प्रवत्ति की होने का कारण चाँद से कई सवाल पूछना चाहती है और उनके बारे में अधिक जानना चाहती है। वह चाँद से पूछती है कि क्यों वे तिरछे नजर आते हैं। वह सारे आकाश को चाँद का वस्त्र समझती है जिसपर कई सितारे जड़े हैं। चाँद का घटना-बढ़ना को वह एक बिमारी समझती है।
गोल हैं खूब मगर ... गोल-मटोल,
व्याख्या: इस काव्यांश में बच्ची चाँद को देखकर कहती है कि वह बहुत गोल हैं पर तिरछे नजर आते हैं। वह आकाश को उनके वस्त्र बताती है साथ ही आकाश में छाये तारों को उनके वस्त्र के सितारे जो चमक रहे हैं। चाँद का सारा शरीर वस्त्र से ढँका है। केवल चाँद का गोरा-चिट्टा गोल मुँह ही दिखाई देता है।
अपनी पोशाक को फैलाए हुए चारों सिम्त। .... आता है।
व्याख्या: लड़की चाँद से कहती है कि उनकी पोशाक चारों दिशाओं में फैली हुई है। लड़की कहती है वे उसे कमअक्ल नहीं समझे, उसे पता है कि चाँद को बिमारी है। जब वे घटते हैं तो वे लगातार घटते चले जाते हैं और बढ़ते हैं तो बढ़कर पूरे गोल-मटोल हो जाते हैं। चाँद की यह बिमारी उनसे ठीक नहीं हो रही है।
कठिन शब्दों के अर्थ
• सिम्त - दिशाएँ
• नीरा - पूरा
• दम - साँस
• मरज - बीमारी
• बिलकुल गोल - पूरी तरह गोलाकार
• सुलभ - आसानी से प्राप्त किया जाने वाला
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