विभीषण चाहते थे कि राम कुछ दिन नई लंका में रुककर विश्राम करें लेकिन राम चौदह वर्ष पूरे होने पर अयोध्या पहुँचना चाहते थे क्योंकि उनके न पहुँचने पर भरत ने प्राण दे देने की प्रतिज्ञा की हुई थी। विभीषण ने एक प्रस्ताव रखा कि वह भी अयोध्या में राज्याभिषेक देखना चाहते हैं। राम ने उनका आग्रह स्वीकार किया। वे पुष्पक विमान पर सवार होकर चले। किष्किन्धा में सुग्रीव की रानियाँ भी विमान में सवार हुईं। राम सीता को मार्ग में पड़ने वाले प्रमुख स्थानों के बारे में बता रहे थे| उनका विमान गंगा-यमुना के संगम पर स्थित ऋषि भारद्वाज के आश्रम के पास उतरा। उनके आश्रम में सबने रात बिताई|
अयोध्या जाने से पूर्व राम ने हनुमान को अयोध्या भेजा। वे हनुमान द्वारा अयोध्या का हाल जानना चाहते थे। वे भरत का मन जानना चाहते थे कि कहीं इन चौदह वर्षों में भरत को सत्ता का मोह तो नहीं हो गया? हनुमान वायु वेग़ से उड़कर अयोध्या की ओर चले। उन्होंने मार्ग में निषादराज गुह से मिलकर अयोध्या का हाल पता किया। हनुमान नन्दीग्राम पहुँचकर भरत को राम के आने की सूचना दी। भरत सूचना पाकर प्रसन्न हुए। हनुमान भरत से विदा लेकर राम के पास लौट आए।
अयोध्या में उत्सव की तैयारियाँ होने लगीं। राम का विमान नन्दीग्राम में उतरा। उन्होंने भरत को गले लगाया और माताओं को प्रणाम किया। भरत राम की खड़ाऊँ उठा लाए और राम को पहनाईं। राम-लक्ष्मण और सीता ने नंदीग्राम में ही तपस्वी वस्त्र उतार कर राजसी वस्त्र पहन लिए और अयोध्या नगरी में प्रवेश किया|
राजमहल पहुँचने पर मुनि वशिष्ठ ने कहा कि सुबह राम का राज्याभिषेक होगा| पूरा नगर सजाया गया था| शत्रुघ्न ने राज्याभिषेक की सब तैयारियाँ पहले से ही कर दी थीं। रात के समय समस्त नगर में दीपोत्सव मनाया गया।
अगले दिन मुनि वशिष्ठ ने राम का राजतिलक किया। राम और सीता सोने के रत्नजड़ित सिंहासन पर बैठे तथा लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न उनके पास खड़े थे। हनुमान नीचे बैठ गए। माताओं ने आरती उतारी। सबको उपहार दिए गए। सीता ने अपने गले का हार हनुमान को दिया। धीरे-धीरे सभी अतिथि विदा हो गए तथा ऋषि-मुनि अपने-अपने आश्रमों में चले गए। हनुमान राम की सेवा में ही रहे। राम ने लंबे समय तक राज्य किया। उनके राज्य में किसी को कष्ट नहीं हुआ|
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