देश की राजनीतिक स्वतंत्रता का पूरा आनंद और सुख हम तभी उठा सकते हैं जब हम आर्थिक दृष्टि से भी स्वतंत्र और स्वावलंबी हों और इस आर्थिक स्वतंत्रता को प्राप्त करने के लिए जिस बात की सबसे अधिक आवश्यकता है, वह यह है कि अपने देशवासियों के लिए पर्याप्त और पौष्टिक भोजन हम अपने ही देश में उत्पन्न करें। बिना अन्न की समस्या हल किए हमारी समस्त उन्नति की योजनाएँ और हमारे सब सुनहरे स्वप्न निष्फल ही रहेंगे।
ऊपर लिखे हुए गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
प्रश्न 1. उपर्युक्त गद्यांश में लेखक ने किस समस्या पर प्रकाश डाला है?
उत्तर: लेखक ने खाद्य-समस्या पर प्रकाश डाला है। इसमें कहा गया है कि जब तक हमारे देश की आर्थिक अवस्था नहीं सुधरती और हम अन्न के मामले में आत्मनिर्भर नहीं होते तब तक सुनहरे भविष्य की आशाएँ पूरी नहीं हो सकतीं।
प्रश्न 2. गद्यांश का सार संक्षेपण कीजिए।
उत्तर: सार-राजनीतिक स्वतंत्रता का आनंद बिना आर्थिक स्वतंत्रता और स्वावलंबन के प्राप्त नहीं हो सकता। देश में अन्न की समस्या का समाधान किए बिना स्वप्न साकार नहीं होंगे।
शिक्षा मनुष्य को मस्तिष्क और शरीर का उचित प्रयोग सिखाती है, वह शिक्षा जो मनुष्य को पाठ्यपुस्तकों के ज्ञान के अतिरिक्त गंभीर चिंतन न दे सके व्यर्थ है। यदि हमारी शिक्षा हमें सुसंस्कृत, सच्चरित्र एवं अच्छे नागरिक नहीं बना सकती, तो उससे क्या लाभ? सहृदय सच्चा किंतु अनपढ़ मजदूर उस स्नातक से अच्छा है जो निर्दय और चरित्रहीन है। संसार के समस्त वैभव और सुख-साधन भी मनुष्य को तब तक सुखी नहीं बना सकते, जब तक मनुष्यों को आत्मिक ज्ञान न हो।
ऊपर लिखे हुए गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
प्रश्न 1. शिक्षा का क्या उद्देश्य है?
उत्तर: शिक्षा का उद्देश्य मनुष्य को चरित्रवान और अच्छा नागरिक बनाना है।
प्रश्न 2. किस प्रकार की शिक्षा व्यर्थ है?
उत्तर: जो शिक्षा मनुष्य को गंभीर चिंतन न दे सके, वह व्यर्थ है।
प्रश्न 3. उपर्युक्त गद्यांश का उपर्युक्त शीर्षक दो।
उत्तर: शीर्षक- “सच्ची शिक्षा”
विद्यार्थियों में अनेक बुराइयाँ कुसंगति के कारण पैदा होती हैं, पहले विद्यार्थी पढ़ाई में रुचि लेता था, किंतु अब वह फिल्म देखने में मस्त है। यह सब कुसंगति का प्रभाव है, आरंभ में उसे कोई विद्यार्थी फिल्म दिखा देता है, फिर उसे आदत पड़ जाती है। यही हाल धूम्रपान करने वालों और शराब पीने वालों का है। आरंभ में कुछ लोग शौकिया तौर पर सिगरेट या शराब पीते हैं, बाद में वे आदी बन जाते हैं। इस प्रकार कुसंगति उन्हें बुराइयों में फंसा देती है, इस कुसंगति से मर्यादा और सात्विक वृत्तियों का नाश हो जाता है।
ऊपर लिखे हुए गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
प्रश्न 1. विद्यार्थियों में बुराइयों का क्या कारण है?
उत्तर: विद्यार्थियों में बुराइयों का कारण कुसंगति है।
प्रश्न 2. कुसंगति से किन गुणों का नाश होता है?
उत्तर: कुसंगति से मर्यादा और सात्विक वृत्तियों का नाश होता है।
प्रश्न 3. ‘धूम्रपान’ और ‘सात्विक’ शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर: धूम्रपान = तंबाकू का सेवन करना। सात्विक = अच्छी वृत्ति वाला।
प्रश्न 4. इस गद्यांश का सार-संक्षेपण कीजिए।
उत्तर: सार-संक्षेपण – कुसंगति के कारण विद्यार्थियों में अनेक बुराइयाँ पैदा होती हैं, पहले शौकिया तौर पर शराब और सिगरेट का सेवन करने के बाद, आदी बन जाते हैं। इससे मर्यादा और सात्विक वृत्तियों का नाश होता है।
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