Class 9 Exam  >  Class 9 Notes  >  संस्कृत कक्षा 9 (Sanskrit Class 9)  >  अनुवाद - लौहतुला | Chapter Explanation

अनुवाद - लौहतुला | Chapter Explanation | संस्कृत कक्षा 9 (Sanskrit Class 9) PDF Download

1. आसीत् कस्मिंश्चिद् अधिष्ठाने जीर्णधनो नाम वणिक्पुत्रः। स च विभवक्षयात् देशान्तर गन्तुमिच्छन् व्यचिन्तयत्

यत्र देशेऽथवा स्थाने भोगा भुक्ताः स्ववीर्यतः।
तस्मिन् विभवहीनो यो वसेत् स पुरुषाधमः॥

तस्य च गृहे लौहघटिता पूर्वपुरुषोपार्जिता तुला आसीत्। तां च कस्यचित् श्रेष्ठिनो गृहे निक्षेपभूतां कृत्वा देशान्तरं प्रस्थितः। ततः सुचिरं कालं देशान्तरं यथेच्छया भ्रान्त्वा पुनः स्वपुरम् आगत्य तं श्रेष्ठिनम् अवदत्-“भोः श्रेष्ठिन्! दीयतां मे सा निक्षेपतुला।” सोऽवदत्- “भोः! नास्ति सा, त्वदीया तुला मूषकैः भक्षिता” इति। जीर्णधनः अवदत्-“भोः श्रेष्ठिन्! नास्ति दोषस्ते, यदि मूषकै भक्षिता। ईदृशः एव अयं संसारः। न किञ्चिदत्र शाश्वतमस्ति। परमहं नद्यां स्नानार्थं गमिष्यामि। तत् त्वम् आत्मीयं एनं शिशुं धनदेवनामानं मया सह स्नानोपकरणहस्तं प्रेषय” इति।

शब्दार्था: –

आसीत् – था
अधिष्ठाने – स्थान पर
कस्मिंश्चिद् – किसी
विभव – धन
अक्षयात् – कमी से
देशान्तरं – दूसरे देश
स्ववीर्यतः – अपने पराक्रम से
अधमः – नीच
विभवहीनः – धनेश्वर्य से हीन
भुक्ताः – भोगे जाते हैं
प्रेषय – भेजो
शाश्वत – स्थिर
ततः – उसके बाद
पूर्वपुरुषः – पूर्वजों के द्वारा
उपार्जितः – खरीदी गई
श्रेष्ठिनः – सेठ के
निक्षेपभूता – धरोहर के रूप में
प्रस्थितः – चल दिया
भक्षिता – खा ली गई
वणिक्पुत्रः – बनिए का पुत्र

लौहघटिता – लोहे से बनी हुई
भ्रान्त्वा – घूमकर
स्वपुरम् – अपने देश में
मूषकैः – चूहों के द्वारा।

अर्थ-
किसी स्थान पर जीर्णधन नामक एक बनिए का पुत्र था। धन की कमी के कारण विदेश जाने की इच्छा से उसने सोचा जिस देश अथवा स्थान पर अपने पराक्रम से भोग भोगे जाते हैं वहाँ धन-ऐश्वर्य से हीन रहने वाला मनुष्य नीच पुरुष होता है। उसके घर पर उसके पूर्वजों द्वारा खरीदी गई लोहे से बनी हुई एक तराजू थी। उसे किसी सेठ के घर धरोहर के रूप में रखकर वह दूसरे देश को चला गया। तब लंबे समय तक इच्छानुसार दूसरे देश में घूमकर वापस अपने देश आकर उसने सेठ से कहा- “हे सेठ! धरोहर के रूप मे रखी मेरी वह तराजू दे दो।” उसने कहा- “अरे! वह तो नहीं है, तुम्हारी तराजू को चूहे खा गए।” जीर्णधन ने कहा- “हे सेठ! यदि उसको चूहे खा गए तो इसमें तुम्हारा दोष नहीं है। यह संसार ही ऐसा है। यहाँ कुछ भी स्थायी नहीं है। किंतु मैं नदी पर स्नान के लिए जा रहा हूँ। खैर, तुम धनदेव नामक अपने इस पुत्र को स्नान की वस्तुएँ हाथ में लेकर मेरे साथ भेज दो।”

पर्यायपदानि
पदानि – पर्यायपदानि
यथेच्छया – इच्छानुसारम्
अधमः – नीचः
स्ववीर्यतः – स्वपराक्रमेण
पूर्वपुरुषः – पूर्वजः
त्वदीया – तव
अधिष्ठाने – विदेशम्
देशान्तरम् – विदेशम्
उवाच – अवदत्
पुनः – भूयः

विलोमपदानि
पदानि – विलोमपदानि
शाश्वतम् – अशाश्वतम्
आसीत् – अस्ति
स्वपुरम् – देशान्तरम्
अधमः – उत्तमः

विशेषण-विशेष्य-चयनम्
विशेषणम् – विशेष्यः
कस्मिश्चित् – अधिष्ठाने
सुचिरम् – कालम्
पूर्व पुरुषोपार्जिता – लौहघटिता
सा – निक्षेपतुला

अव्ययानां वाक्येषु प्रयोगः
पदानि वाक्येषु प्रयोगः
च (और) – रामः लक्ष्मणः च गच्छतः।
यत्र (जहाँ) – यत्र धूमः तत्र अग्निः
ततः – ततः छात्रः अवदत्।
इति – जलं ददाति इति जलदः।
यदि – यदि परिश्रमं करिष्यसि सफलं भविष्यसि।
अत्र – अत्र एक: विद्यालयः अस्ति।

2. स श्रेष्ठी स्वपुत्रम् अवदत्-“वत्स! पितृव्योऽयं तव, स्नानार्थं यास्यति, तद् अनेन साकं गच्छ” इति। अथासौ श्रेष्ठिपुत्रः धनदेवः स्नानोपकरणमादाय प्रहृष्टमनाः तेन अभ्यागतेन सह प्रस्थितः। तथानुष्ठिते स वणिक् स्नात्वा तं शिशुं गिरिगुहायां प्रक्षिप्य, तद्वारं बृहत् शिलया आच्छाद्य सत्त्वरं गृहमागतः।
सः श्रेष्ठी पृष्टवान्-“भोः! अभ्यागत! कथ्यतां कुत्र मे शिशुः यः त्वया सह नदीं गतः”? इति। स अवदत्-“तव पुत्रः नदीतटात् श्येनेन हृतः” इति। श्रेष्ठी अवदत्- “मिथ्यावादिन्! किं क्वचित् श्येनो बालं हर्तुं शक्नोति? तत् समर्पय मे सुतम् अन्यथा राजकुले निवेदयिष्यामि।” इति। सोऽकथयत्-“भोः सत्यवादिन्! यथा श्येनो बालं न नयति, तथा मूषका अपि लौहघटितां तुला न भक्षयन्ति। तदर्पय मे तुलाम्, यदि दारकेण प्रयोजनम्।” इति।

शब्दार्था:

अवदत् – बोला
पितृव्यः – चाचा
यास्यति – जाएगा
सार्धम् – साथ
श्रेष्ठिपुत्रः – बनिए का पुत्र
प्रहृष्टमना: – प्रसन्न मान वाला
अभ्यागतेन – अतिथि
प्रस्थितः – अतिथि
स्नात्वा – नहा करके
गिरिगुहायां – पर्वत की गुफा में
प्रक्षिप्य – रखकर, बृहत्
शिलया – विशाल शिला से
आच्छाद्य – ढककर
सत्वरं – जल्दी
पृष्टः – पूछा
श्येन – बाज
क्वचित् – कोई
हृतः – ले जाया गया
मिथ्यावादिन् – झूठ बोलने वाले
सत्यवादिन् – सत्य बोलने वाले
समर्पय – लौटा दो, अन्यथा, नहीं तो।।

अर्थ-
उस सेठ ने अपने पुत्र से कहा-“पुत्र! ये तुम्हारे चाचा हैं, स्नान के लिए जा रहे हैं, तुम इनके साथ जाओ।” इस तरह वह बनिए का पुत्र धनदेव स्नान की वस्तुएँ लेकर प्रसन्न मन से उस अतिथि के साथ चला गया। तब वहाँ पुहँचकर और स्नान करके उस शिशु को पर्वत की गुफा में रखकर उसने गुफा के द्वार को एक बड़े पत्थर से ढक कर जल्दी से घर आ गया। और उस सेठ ने पूछा- हे अतिथि! बताओ कहाँ है मेरा पुत्र, तुम्हारे साथ नदी पर गया था।
वह बोला- “तुम्हारे बेटे को नदी के किनारे से बाज उठाकर ले गया है”। सेठ ने कहा- “हे झूठे! क्या कहीं बाज बालक को ले जा सकता है? तो मेरा पुत्र लौटा दो अन्यथा मैं राजकुल में शिकायत करूँगा।” उसने कहा- “हे सत्य बोलने वाले! जैसे बाज बालक को नहीं ले जा सकता, वैसे ही चूहे भी लोहे की बनी हुई तराजू नहीं खाते हैं। यदि पुत्र को पाना चाहते हो तो मेरी तराजू लौटा दो।”

पर्यायपदानि
पदानि – पर्यायपदानि
अवदत् – उवाच
यास्यति – गमिष्यति
प्रक्षिप्य – स्थित्वा
सत्वरं – शीध्र
प्रह्ष्टमनाः – प्रसन्न:मना
पृष्टः – अपृच्छत्
साकम् – सार्धम्
सतः – पत्रः

निम्नपदानां – विलोमपदानि मेलयत
पदानि – विलोमपदानि
गतः – आगतः
सुतः – सुता:

विशेषण-विशेष्य-चयनम्
विशेषणम् – विशेष्यः
श्रेष्ठी – सः
लौहघटिताम् – तुलाम्
प्रहृष्टमनाः असौ – श्रेष्ठिपुत्रः

3. एवं विवदमानौ तौ द्वावपि राजकुलं गतौ। तत्र श्रेष्ठी तारस्वरेण अवदत्- “भोः! वञ्चितोऽहम्! वञ्चितोऽहम्! अब्रह्मण्यम्! अनेन चौरेण मम शिशुः अपहृतः” इति। अथ धर्माधिकारिणः तम् अवदन्- “भोः! समर्म्यतां श्रेष्ठिसुतः”। सोऽवदत्- “किं करोमि? पश्यतो मे नदीतटात् श्येनेन शिशुः अपहृतः”। इति। तच्छ्रुत्वा ते अवदन्-भोः! भवता सत्यं नाभिहितम्-किं श्येनः शिशुं हर्तुं समर्थो भवति? सोऽवदत्-भोः भोः! श्रूयतां मद्वचः

तुलां लौहसहस्रस्य यत्र खादन्ति मूषकाः।
राजन्तत्र हरेच्छ्येनो बालकं, नात्र संशयः॥

ते अपृच्छन्- “कथमेतत्”।
ततः स श्रेष्ठी सभ्यानामग्रे आदितः सर्वं वृत्तान्तं न्यदयत्। ततः न्यायाधिकारिणः विहस्य तौ द्वावपि सम्बोध्य तुला-शिशुप्रदानेन तोषितवन्तः।

शब्दार्थाः

विवदमानौ – झगड़ा करते हुए
द्वावपि – दोनों भी
गतौ – दोनों चले गए
तारस्वरेण – ज़ोर से
अवदन् – बोला,
वञ्चितोऽहम् – घोर अन्याय, अनुचित
अपहृतः – चुरा लिया गया
धर्माधिकारिणः – न्यायाधिकारी
पश्यतः – मेरे देखते हुए
श्रुत्वा – सुनकर
अभिहितम् – कहा गया
हरेत् – ले जा सकता है
संशयः – संदेह
सभ्यानाम् – सभासदों के
अग्रे – सामने
आदितः – शुरू से ही
वृतान्तम् – घटना
विहस्य – हँसकर
संबोध्य – समझा – बुझाकर,
तोषितवन्त: – दोनों संतुष्ट किए गए

अर्थ –
इस प्रकार झगड़ते हुए वे दोनों राजकुल में चले गए। वहाँ सेठ ने जोर से कहा- “अरे! अनुचित हो गया! अनुचित! मेरे पुत्र को इस चोर ने चुरा लिया।” इसके बाद न्यायकर्ताओं ने उससे कहा- “अरे! सेठ का पुत्र लौटा दो।” उसने कहा- “मैं क्या करूँ? मेरे देखते-देखते बाज बालक को नदी के तट (किनारे) से ले गया।” यह सुनकर सब बोले- अरे! आपने सच नहीं कहा- क्या बाज बालक को ले जा सकता है? उसने कहा- अरे, अरे! मेरी बात सुनिए हे राजन्! जहाँ लोहे से बनी तराजू को चूहे खा जाते हैं, वहाँ बाज बालक को उठाकर ले जा सकता है, इसमें संदेह नहीं। उन्होंने कहा-“यह कैसे हो सकता है।” इसके बाद उस सेठ ने सभासदों के सामाने शुरू से ही सारी घटना कह दी। तब हँसकर उन्होंने दोनों को समझा बुझाकर तराजू तथा बालक का आदान-प्रदान करके उन दोनों को प्रसन्न किया।

विशेषण-विशेष्य चयनम्
विशेषणम् – विशेष्यः
विवदमानौ – तौ
सर्व – वृत्तान्तं

पदानि – पर्यायपदानि
विवदमानौ – कहलं कुर्वन्तौ
निवेदयामास – निवेदनमकरोत्
संबोध्य – बोधयित्वा
आदितः – प्रारम्भतः
संशयः – संदेहः

The document अनुवाद - लौहतुला | Chapter Explanation | संस्कृत कक्षा 9 (Sanskrit Class 9) is a part of the Class 9 Course संस्कृत कक्षा 9 (Sanskrit Class 9).
All you need of Class 9 at this link: Class 9
20 videos|46 docs|20 tests

FAQs on अनुवाद - लौहतुला - Chapter Explanation - संस्कृत कक्षा 9 (Sanskrit Class 9)

1. लौहतुला क्या है?
उत्तर: लौहतुला एक कहानी है जो रचनाकार रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा लिखी गई है। इसमें एक व्यापारी की कहानी है जो अपने लाभ की हंसमुखी करने के चक्कर में अपनी मूल्यवान अधिकारियों को भूल जाता है।
2. लौहतुला की कहानी कहाँ से प्रारंभ होती है?
उत्तर: लौहतुला की कहानी एक व्यापारी के द्वारा होती है जो एक अभियांत्रिकी कंपनी में कार्यरत है।
3. लौहतुला का मुख्य पाठ क्या है?
उत्तर: लौहतुला का मुख्य पाठ यह है कि मनुष्य को अपने लालच और लाभ के चक्कर में अपने मूल्यवान अधिकारियों को न भूलना चाहिए।
4. लौहतुला में कौन-कौन से प्रमुख पात्र हैं?
उत्तर: लौहतुला में प्रमुख पात्र व्यापारी, उसकी पत्नी, उसका मित्र, और अधिकारी हैं।
5. लौहतुला की कहानी किस प्रकार संगठित है?
उत्तर: लौहतुला की कहानी एक कथानक के रूप में संगठित है, जिसमें कथानक के माध्यम से विभिन्न पात्रों की कहानियाँ और घटनाएँ प्रस्तुत की जाती हैं।
Related Searches

MCQs

,

Sample Paper

,

Objective type Questions

,

study material

,

video lectures

,

Exam

,

अनुवाद - लौहतुला | Chapter Explanation | संस्कृत कक्षा 9 (Sanskrit Class 9)

,

Previous Year Questions with Solutions

,

Important questions

,

Free

,

practice quizzes

,

shortcuts and tricks

,

अनुवाद - लौहतुला | Chapter Explanation | संस्कृत कक्षा 9 (Sanskrit Class 9)

,

ppt

,

Extra Questions

,

past year papers

,

Semester Notes

,

Summary

,

Viva Questions

,

pdf

,

mock tests for examination

,

अनुवाद - लौहतुला | Chapter Explanation | संस्कृत कक्षा 9 (Sanskrit Class 9)

;