निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1. ”यहाँ बुद्धि का परदा डालकर पहले ईश्वर और आत्मा का स्थान अपने लिए लेना फिर धर्म, ईमान, ईश्वर और आत्मा के नाम पर अपनी स्वार्थ-सिद्धि के लिए लोगों को लड़ाना, भिड़ाना।“ ‘धर्म की आड़’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः भारत में धर्म के कुछ ठेकेदार साधारण लोगों की बुद्धि को भ्रमित कर देते है वे कुछ सोच-समझ नहीं पाते। देश में धर्म की धूम है। धर्म के नाम पर उत्पात किए जाते हैं, जिद की जाती है, भोले-भाले लोगों को बेवकूफ बनाया जाता है। अपना आसन ऊँचा करने के लिए धूर्त लोग धर्म की आड़ लेते हैं। मूर्खों की बुद्धि पर परदा डालकर धर्म और ईमान के नाम पर स्वार्थसिद्ध करते हैं। जान देने और जान लेने को तैयार रहते हैं। इस प्रकार वे साधारण लोगों का दुरुपयोग कर शोषण करते है।
प्रश्न 2. लेखक गणेश शंकर विद्यार्थी के अनुसार धन ने नहीं, धर्म ने हमारे देश में बुद्धि पर परदा डालकर लड़ाया-भिड़ाया है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः धर्म की आड़ में पाठ के लेखक गणेश शंकर विद्यार्थी जी ने यह बताया है कि ईश्वर ऐसे आस्तिक लोगों को पसन्द नहीं करता जो कि धर्म के नाम पर पशु बन जाते हैं, अमानुषिक व्यवहार करते हैं। आवश्यक है कि मनुष्य दया तथा धर्म में विश्वास करे, प्रत्येक का सुख-दुःख समझे मनुष्य, मनुष्य के काम आए। सच्ची इंसानियत ही मनुष्यत्व में ईश्वरत्व को स्थापित करती है। सिर्फ ईश्वर को मानने से ही ईश्वरत्व स्थापित नहीं होता है।
प्रश्न 3. साधारण मूर्ख व्यक्तियों की क्या दशा है और धूर्त उनकी इस दशा का क्या-क्या लाभ उठाते हैं ?उत्तरः भारत में धर्म के ठेकेदार साधारण लोगों की बुद्धि को भ्रमित कर देते हैं। वे कुछ सोच-समझ नहीं पाते। इसके बाद इन ठेकेदारों का खेल शुरू होता है। वे स्वयं को ईश्वर के रूप में प्रस्तुत करते हैं। लोगों को धर्म, ईमान, ईश्वर और आत्मा के नाम पर लड़ाते हैं और अपने स्वार्थ की सिद्धि करते हैं। इस प्रकार वे साधारण लोगों का दुरुपयोग कर शोषण करते हैं।
प्रश्न 4. ”अब तो, आपका पूजा-पाठ न देखा जाएगा, आपकी भलमनसाहत की कसौटी केवल आपका आचरण होगी।“ आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः आने वाले समय में केवल पूजा-पाठ के बलबूते पर समाज में महत्त्व नहीं मिल सकेगा। आपकी भलमनसाहत ही आपके अच्छे होने की कसौटी होगी। आपके आचरण को जाँचा-परखा जाएगा। भविष्य में वही धर्म टिकेगा, जिसमें भलमनसाहत होगी। जो व्यक्ति पूजा-पाठ का दिखावा कर शोषण करेगा, उसका अस्तित्व नहीं रहेगा। आदमी का आचरण ही उसकी कसौटी होगी। जो उस पर खरा उतरेगा, उसे ही धार्मिक माना जायेगा। स्वार्थ पर आधारित धर्म का कोई स्थान नहीं होगा।
प्रश्न 5. सबके कल्याण हेतु अपने आचरण को सुधारना क्यों आवश्यक है ? ‘धर्म की आड़’ पाठ के आधार पर बताएँ।
अथवा
सबके कल्याण के हेतु अपने आचरण को सुधारना क्यों आवश्यक है?
उत्तरः जब तक हम स्वयं का आचरण ठीक नहीं रखेंगे, दूसरे लोगों को उसकी प्रेरणा नहीं दे सकते। समाज में उदाहरण बनने के लिए सबके कल्याण हेतु अपने आचरण को सुधारना आवश्यक है। सदाचार और शुद्धाचरण को अपनाना चाहिए। पूजा-पाठ की अपेक्षा हमारा आचरण अधिक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि शुद्धाचरण ही भलमनसाहत की कसौटी है और यदि ऐसा नहीं तो नमाज़, पूजा सब व्यर्थ है। मानव मात्र की भलाई तभी हो सकती है, जब हम निजी स्वार्थ छोड़कर पूरे समाज की भलाई के बारे में सोचें।
प्रश्न 6.”तुम्हारे मानने से ही मेरा ईश्वरत्व कायम नहीं रहेगा, दया करके, मनुष्यत्व को मानो, पशु बनना छोड़ो और आदमी बनो।“ का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः ईश्वर का यह सन्देश है कि दूसरों पर दया करो, मनुष्यों का सम्मान करो। पशुता की भावना का त्याग करो और अच्छे आदमी बनकर दिखाओ। जब तुम ऐसा आचरण करोगे तभी ईश्वरत्व कायम रह सकेगा। लेखक ने ऐसा इसलिए कहा है, क्योंकि केवल मानने से ही संसार में ईश्वरत्व कायम नहीं होगा। इसके लिए तो यह परम आवश्यक है कि मनुष्य दया तथा धर्म में विश्वास करें, प्रत्येक का दुःख-सुख समझें, मनुष्य, मनुष्य के काम आए, यही मनुष्यता है। अर्थात् सच्ची इंसानियत ही मनुष्य को ईश्वरत्व की प्राप्ति कराती हैं।
1. धर्म की आड़ के बारे में बताएं? |
2. भारतीय धर्म क्या है? |
3. हिन्दू धर्म में विभिन्न देवताओं की पूजा क्यों की जाती है? |
4. जैन धर्म के महत्वपूर्ण सिद्धांत क्या हैं? |
5. सिख धर्म में पंथ का महत्व क्या है? |
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