अनुमान और कल्पना
प्रश्न 1. अनुमान कीजिए यदि आपका कोई अभिन्न मित्र द्गह्न> 1ापसे बहुत वर्षों बाद मिलने आए तो आप को कैसा अनुभव होगा?
उत्तर - यदि मेरा कोई अभिन्न मित्र बहुत दिनों बादमुझसे मिलने आए तो मैं आत्मीयतापूर्वक उससे मिलूँगा। मुझे उससे मिलकर खुशी होगी। वह जब तक मेरे पास रहेगा, में उसका खूब आदर-सत्कार करूँगा|यदि उसे मेरी मदद की ज्जरूरत होगी तो मैं उसकी हरसंभव मदद करूँगा तथा उसे प्रेमपूर्वक विदा करके भविष्य में आते रहने के लिए कहूँगा।
प्रश्न 2.
कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीति।
विपति कसौटी जे कसे, तेई साँचे मीत।
इस दोहे में रहीम ने सच्चे मित्र की पहचान बताई है। इस दोहे से ट्टसुदामा चरित* की समानता किस प्रकार दिखती है? लिखिए।
उत्तर - इस दोहे के माध्यम से कवि रहीम कहते हैं कि जब तक किसी भी व्यक्ति के पास संपत्ति होती है, धन-दौलत रहती है, तब तक अनेक लोग अनेक तरीके से उसके अपने बनते रहते हैं; जैसे- मैं तुम्हारे द्वद्य दूर के रिश्तेदार का रिश्तेदार हूँ या तुम्हारे परिवार से मेरा संबंध तो बहुत पुराना है आदि-आदि। ऐसे लोग सच्चे मित्र नहीं होते हैं विपत्ति आने पर अर्थात धन न रहने पर जो व्यक्ति हमारा साथ देते हैं वही हमारे सच्चे मित्र हैं।
इस दोहे की तुलना यदि हम ‘सुदामा चरित’ से करते हैं तो इन दोनों में काफी समानता मिलती है।कृष्ण सुदामा के साथ सच्ची मित्राता निभाते हैं। कृष्ण अपने विपन्न मित्र को देखकर हर्षित हो जाते हैं। वे उनका खूब आदर-सत्कार करते हैं तथा विदाई के समय प्रत्यक्ष रूप से तो कुछ नहीं देते है किंतु परोक्ष रूप से तो इतना दे देते हैं कि उन्हें भी अपने समान बना देते हैं। इस प्रकार ‘सुदामा चरित’ में भी विपत्ति के समय मित्र की सहायता करने का संदेश दिया गया है। इसमें निहित मूल भाव उक्त दोहे जैसा ही है कि मुसीबत के समय जो सच्ची भावना से सहायता करे, वही हमारा सच्चा मित्र होता है।
भाषा की बात
प्रश्न 1.‘पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल सो पग धोए्र’’
ऊपर लिखी गई पंक्ति को ध्यान से पढि़ए। इसमें बात को बहुत अधिक बढ़ा-चढ़ाकर चित्रित किया गया है। जब किसी बात को इतना बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया जाता है तो वहाँ पर अतिशयोक्ति अलंकार होता है। आप भी कविता में से अतिशयोक्ति अलंकार का एक उदाहरण छाँटिए।
उत्तर - अतिशयोक्ति अलंकार के उदाहरण (कविता में से)-
(क) ऐसे बेहाल बिवाइन सों, पग कंटक जाल लगे पुनि जोए।
(ख) वैसोई राज-समाज बने, गज, बाजि घने मन संभ्रम छायो।
(ग) कै वह टूटी-सी छानी हती, कहँ कंचन के अब धाम सुहावत।
कुछ करने को -
1. इस कविता को एकांकी में बदलिए और उसका अभिनय कीजिए।
उत्तर - ‘सुदामा चरित’ नामक कविता का एकांकी में रूपांतरण
[द्वारकापुरी, धन-धान्य, वैभव, समृद्धि एवं खुशहाली से भरी नगरी, वहाँ बने आलीशान एवं भव्य राज-प्रासाद। चारों ओर प्रसन्नता एवं शांतिमय वातावरण। इन्हीं प्रासादों के बीच स्थित द्वारकाधीश श्री कृष्ण का भवन । भवन के बाहर खड़े द्वारपाल। ऐसे में दीन-हीन सुदामा श्री कृष्ण के भवन के सामने पहुँचते हैं। उनके सिर पर न पगड़ी है और न शरीर पर कुर्ता। धोती जगह-जगह से फटी तथा धूल-धूसरित पैर लिए वे द्वारपाल के पास जाते हैं।]
सुदामा — (द्वारपाल से) अरे भाई द्वारपाल, क्या तुम बता सकते हो कि द्वारका के राजा श्री कृष्ण का राजभवन यहाँ कौन-सा है?
द्वारपाल — क्या नाम है तुम्हारा? कहाँ से आए हो?
सुदामा — सुदामा। बहुत दूर गाँव से आया हूँ। पर तुमने उनका भवन तो बताया नहीं।
रपाल — द्वारकाधीश प्रभु श्री कृष्ण का भवन तो यही है।
सुदामा — अपने प्रभु श्री कृष्ण से कह दो कि उनसे मिलने सुदामा आया है।
द्वारपाल — तुम यहीं ठहरो। मैं अंदर जाकर सूचना देता हूँ। और हाँ, अंदर मत आना, मेरे आने तक।
[द्वारपाल कृष्ण के पास चला जाता है।]
द्वारपाल — महाराज की जय हो! प्रभु, आपसे मिलने कोई आया है।
श्री कृष्ण — कहाँ है वह व्यक्ति? कैसा है तथा क्या नाम है उसका?
द्वारपाल — प्रभु, वह दरवाज्जे के बाहर खड़ा है। उसके सिर पर न पगड़ी है और न शरीर पर कुर्ता। पैरों में जूते नहीं हैं? वह दुर्बल ब्राह्मण अपना नाम सुदामा बता रहा है।
[सुदामा नाम सुनते ही कृष्ण राजसिंहासन छोडक़र आते हैं और सुदामा को महल के अंदर ले जाते हैं। उन्हें सहासन पर बैठाकर उनके पैर धोने के लिए पानी मँगवाते हैं और सुदामा के पैर धोने का उपक्रम करते है ]
श्री कृष्ण — मित्र सुदामा! आज तक तुम इतनी गरीबी में जी रहे थे तो पहले यहाँ क्यों नहीं आए?
[सुदामा संकोचवश कोई जवाब नहीं देते वे अपनी पत्नी द्वारा भेजे गए चावलों की पोटली को काँख के नीचे छिपाने का प्रयास करते हैं, जिसे कृष्ण देख लेते हैं।]
श्री कृष्ण — मित्र, तुम मुझसे कुछ छिपाने की कोशिश कर रहे हो। [कृष्ण वह पोटली छीन लेते हैं।] अरे! तुम भाभी के भेजे चावल छिपा रहे थे। मित्र, चोरी में तो तुम पहले से ही बड़े कुशल हो।
[ऐसा कहकर श्री कृष्ण उसमें से कुछ चावल खा लेते हैं। सुदामा उनके यहाँ कुछ दिन बिताकर अपने गाँव वापस आने के लिए विदा होते हैं। श्री कृष्ण उन्हें प्रत्यक्ष में कुछ नहीं देते, जिससे सुदामा श्री कृष्ण पर खीझते हुए वापस आते हैं।]
सुदामा — (स्वयं से बात करते) कृष्ण तो दिखावे के लिए कितना आदर-सत्कार करता रहा, पर आते समय कुछ भी नहीं दिया। यह भी नहीं सोचा कि ब्राह्मण को खाली हाथ विदा नहीं करते। अरे, यह वही कृष्ण है, जो जरा-सी दही के लिए हाथ फैलाए फिरता था। यह मुझे क्या देगा। अब अपनी पत्नी से चलकर कहूँगा कि कृष्ण ने खूब सारा धन दिया है, सँभालकर रख लो। मैं तो इसीलिए आना ही नहीं चाहता था।
[यही सोचते-सोचते सुदामा अपने गाँव पहुँच जाते हैं।]
सुदामा — अरे! यहाँ तो सारे भवन तथा सब कुछ द्वारका जैसा ही है। कहीं मैं रास्ता भूलकर वापस पुन: द्वारका तो नहीं आ गया या भ्रमित तो नहीं हो गया हूँ।
सुदामा — (गाँव के एक व्यक्ति से) भाई , यहीं सुदामा नामक गरीब ब्राह्मण की झोपडी हुआ करती थी, वह कहाँ है?
ग्रामीण — अरे, तुम सुदामा के राजमहल के सामने ही तो खड़े हो। उनकी झोपडी की जगह यह राजमहल बन गया है। (इशारा करते हुए) वह देखो, अंदर। उनकी पत्नी रानियों के परिधान में खड़ी है।
सुदामा — (अपनी पत्नी को पहचानते हैं और अंदर जाते हैं) अपने मित्र की महिमा से मैं कितना अनजान था। अब सब समझ गया।
2. ‘मित्रता’ संबंधी दोहों का संकलन कीजिए।
उत्तर - मित्रता संबंधी दोहे:
(क) आपतिकाल परखिए चाद्भी। धीरज धरम मित्र अरु नारी॥
जे न मित्र दुख होइ दुखारी। तिनहि बिलोकत पातक भारी॥ [तुलसीदास]
(ख) कह रहीम सम्पत्ति सगे, बनत बहुत बहु रीत।
विपत्ति कसौटी जे कसे, तेईं साँचे मीत॥ [रहीम]
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1. सुदामा चरित में अनुमान की क्या भूमिका है? |
2. सुदामा चरित में कल्पना की क्या महत्वता है? |
3. सुदामा चरित का शीर्षक हिंदी कक्षा 8 के छात्रों के लिए क्यों महत्वपूर्ण है? |
4. सुदामा चरित के अनुसार, अनुमान क्यों महत्वपूर्ण है? |
5. सुदामा चरित में कल्पना और अनुमान का क्या संबंध है? |
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