अव्यय—अव्यय का शाब्दिक अर्थ है—जिसका कुछ भी व्यय न हो। अर्थात ये शब्द हमेशा एक से रहते हैं। इनमें कभी कोई विकार उत्पन्न नहीं होता।
वे शब्द जिन पर ख्नलग, वचन, पुरुष, काल आदि व्याकरणिक कोटियों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता, उन्हें अव्यय या अविकारी शब्द कहते हैं; जैसे—धीरे, तेज्ज, कब, ऊपर, उधर, नीचे, बाहर आदि।
अव्यय के भेद : अव्यय या अविकारी शब्दों के निम्नलिखित भेद हैं :
1. क्रियाविशेषण 2. संबंधबोधक 3. समुच्चयबोधक 4. विस्मयादिबोधक 5. निपात।
1. क्रियाविशेषण—जो अविकारी शब्द क्रिया की विशेषता बताते हैं, उन्हें क्रियाविशेषण कहा जाता है; जैसे—
धीरे-धीरे, तेजी से, कब, पहले, ध्यानपूर्वक, फटकर, पर्याप्त आदि।
क्रिया की विशेषता चार प्रकार से बताई जाती है। इस प्रकार क्रियाविशेषण के चार भेद हैंi
1- रीतिवाचक, 2- स्थानवाचक, 3- कालवाचक, 4- परिमाणवाचक।
1- रीतिवाचक क्रियाविशेषण—जिन क्रियाविशेषणों से क्रिया के होने की विधि या रीति का पता चलता है, उन्हें रीतिवाचक क्रियाविशेषण कहते हैं। इनकी पहचान के लिए क्रिया शब्द के पहले ‘कैसे’, ‘किस प्रकार’ लगाकर प्रश्न पूछने पर प्राप्त उत्तर रीतिवाचक क्रियाविशेषण होता है; जैसे—
बच्चा धीरे-धीरे चल रहा था। | गाड़ी तेजी से भागी जा रही थी। |
चोर को देखते ही पुलिस सरपट दौड़ पड़ी। | छात्र कक्षा में अध्यापक की बातें ध्यानपूर्वक सुन रहे थे। |
इनके अलावा भली-भाँति, प्राय:, अवश्य, चुपचाप, धड़ाधड़ आदि भी रीतिवाचक क्रियाविशेषण के उदाहरण हैं।
2- स्थानवाचक क्रियाविशेषण—जो क्रियाविशेषण क्रिया के घटित होने के स्थान के विषय में ज्ञान कराते हैं, उन्हें स्थानवाचक क्रियाविशेषण कहते हैं। इनकी पहचान के लिए क्रिया शब्द के पहले ‘कहाँ’ लगाकर प्रश्न करना चाहिए; जैसे -
मधुकर, इधर बैठो। | भीतर बहुत गर्मी है। |
यहाँ आस-पास इतना बड़ा पार्क नहीं है। | अच्छे बच्चे कक्षा छोड़कर इधर-उधर नहीं घूमते। |
इनके अलावा यहाँ, वहाँ, नीचे, ऊपर, अंदर, कहाँ, जहाँ, सामने, आगे, पीछे आदिभी स्थानवाचक क्रिया-विशेषण हैं।
3- कालवाचक क्रियाविशेषण—जो क्रियाविशेषण क्रिया के घटित होने के समय के बारे में जानकारी देते हैं, वे कालवाचक क्रियाविशेषण कहलाते हैं। इनकी पहचान के लिए क्रिया शब्द के पहले ‘कब’ लगाकर प्रश्न करना चाहिए; जैसे—
आप आगरा कल जाएँगे? | सुमन, तुम अभी मत जाओ। |
हमें सदा ईमानदार बने रहना चाहिए। | सुप्रिया प्रतिदिन स्कूल जाती है। |
आजकल महँगाई बढ़ती ही जा रही है। |
इसके अलावा आज, प्रात:, सायं, अब, कभी, कल, हमेशा, लगातार, सदैव, दिनभर, नित्य, हर बार, बहुधा प्रतिदिन, आदि भी कालवाचक क्रियाविशेषण हैं।
4- परिमाणवाचक क्रियाविशेषण—जो क्रियाविशेषण क्रिया के परिमाण या मात्रा के बारे में जानकारी देते हैं, उन्हें परिमाणवाचक क्रियाविशेषण कहते हैं। इनकी पहचान के लिए क्रिया शब्द के पहले ‘कितना/कितनी’ लगाकर प्रश्न पूछने से जो उत्तर प्राप्त होता है, वह परिमाणवाचक क्रियाविशेषण होता है; जैसे—
उससे बिछुड़कर मैं बहुत दुखी हुआ। | इस साल कम वर्षा हुई। |
बंगाल में चावल अधिक खाया जाता है। | कमज्जोरी के कारण मरीज्ज थोड़ी दूर ही चल सका। |
हमें भोजन को खूब चबा - चबाकर खाना चाहिए। |
इसके अलावा पर्याप्त, तनिक, ज्ज्यादा भी परिमाणवाचक क्रियाविशेषण के उदाहरण हैं।
2. संबंधबोधक अव्यय—जो अव्यय संज्ञा या सर्वनाम के बाद प्रयुक्त होकर वाक्य के अन्य संज्ञा - सर्वनाम शब्दों के साथ संबंध का बोध कराते हैं, उन्हें संबंधबोधक अव्यय कहते हैं। इनके पहले कोई न कोई परसर्ग अपेक्षित होता है; जैसे—के पास, से दूर, के कारण, के लिए, की ओर, की जगह, के अनुसार आदि; जैसे—
विद्यालय के सामने बगीचा है। | यहाँ से पूरब की ओर तालाब है। |
उस समय मैं कार्यालय से दूर पहुँच चुका था। | इसी जंगल के पीछे नदी बहती है। |
इनके अलावा—के बदले, की जगह, से लेकर, के साथ, के विपरीत, के अनुसार, के अनुरूप, के बारे में, के अलावा, के पहले आदि भी संबंधबोधक अव्यय हैं।
3. समुच्चयबोधक अव्यय—जो अव्यय दो पदों, पदबंधों, उपवाक्यों को जोडऩे का कार्य करते हैं, उन्हें समुच्चयबोधक अव्यय कहते हैं; जैसे—कि, अथवा, और, परंतु, किंतु, इसलिए आदि।
समुच्चयबोधक अव्यय के दो भेद हैं—
(i) समानाधिकरण समुच्चयबोधक—जो अव्यय दो शब्दों, पदों, पदबंधें या उपवाक्यों को जोडऩे का कार्य करते हैं, उन्हें उन्हें समानाधिकरण समुच्चयबोध्क कहते हैं : जैसे—
मनोज और धीरज दोनों इसी विद्यालय में पढ़ते हैं। | रोहित पढ़ता है परंतु पास नहीं हो पाता। |
सुमन या तो चाय पिलाओ या कॉफ़ी। | वर्षा नहीं हुई इसलिए अच्छी फसल नहीं हुई। |
(ii) व्यधिकरण समुच्चयबोधक—जो अव्यय किसी वाक्य के एक या एकाधिक उपवाक्यों को जोडऩे का कार्य करते हैं, उन्हें व्यधिकरण समुच्चयबोधक कहते हैं; जैसे—
गोविंद कार्यालय नहीं आया क्योंकि उसके सिर में दर्द था।
वह रात-दिन परिश्रम करता है, जिससे जीवन में सफल हो सके।
मैं घर से जल्दी जा रहा हूँ ताकि समय पर विद्यालय पहुँच सकूँ।
उसने बहुत परिश्रम किया फिर भी पास न हो सका।
4. विस्मयादिबोधक अव्यय—जो अव्यय विस्मय (आश्चर्य), हर्ष, घृणा, दुख, पीड़ा, लज्जा, भय, तिरस्कार, धिक्कार आदि भावों को प्रकट करते हैं, उन्हें विस्मयादिबोधक अव्यय कहते हैं; जैसे—
वाह! कितना सुंदर चित्र बनाया है। | (हर्ष) |
अरे! तुम इतनी जल्दी आ गई। | (विस्मय) |
हाय! मैं मरा। | (पीड़ा) |
शाबाश! तुमने मैच जीतकर विद्यालय का नाम रोशन किया है। | (प्रशंसा) |
छि:! ऐसी बातें करते हुए शर्म आनी चाहिए। | (घृणा) |
सावधान! सामने खतरा है। | (चेतावनी) |
ठीक! ऐसा ही कर लो। | (स्वीकृति) |
कुछ विस्मयादिबोधक शब्दों की सूची
(i) आश्चर्य — अरे!, अहो!, हैं!, क्या!
(ii) हर्ष — क्या खूब!, बहुत अच्छा!, अति सुंदर!
(iii) प्रशंसा — शाबाश!, सुंदर!
(iv) संवेदना — हाय!, राम-राम!
(v) शोक/पीड़ा — आह! हाय राम! उफ! ओह माँ!
(vii) तिरस्कार — छि:! धिक्कार!
(vi) चेतावनी — ध्यान से! हटो! बचो!
(viii) संबोधन — हे! अरे! अजी!
5. निपात—जो अव्यय किसी शब्द या पद के बाद लगकर उसके अर्थ में विशेष प्रकार का बल ला देते हैं, उन्हें निपात कहते हैं। इन्हें ‘अवधारक शब्द’ भी कहा जाता है।
कुछ प्रमुख निपात
1. ही—वह आप ही हैं, जो इस काम को कर सकते हैं।
2. भी—कल मैं भी आपके साथ चलूँगा।
3. तक—गाँधी जी को बच्चे तक जानते हैं।
4. तो—तुमने तो हद कर दी है।
5. मात्र—धन कमा लेने मात्र से जीवन सफल नहीं हो जाता।
6. सिर्फ-मुझे सिर्फ रोटी चाहिए।
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1. अव्यय क्या होते हैं? |
2. अव्यय के कितने प्रकार होते हैं? |
3. क्रिया विशेषण से क्या मुख्य भेद होते हैं? |
4. विस्मयादिबोधक अव्यय क्या होते हैं? |
5. अनिवार्य अव्यय क्या होते हैं? |
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