‘उप’ का अर्थ है-समीप या निकट और ‘सर्ग’ का-सृष्टि करना।
“उपसर्ग वह शब्दांश या अव्यय है, जो किसी शब्द के आरंभ में जुड़कर उसके अर्थ में (मूल शब्द के अर्थ में) विशेषता ला दे या उसका अर्थ ही बदल दे।”
जैसे:
उपसर्ग की तीन गतियाँ या विशेषताएँ होती हैं:
1. शब्द के अर्थ में नई विशेषता लाना।
जैसे:
2. शब्द के अर्थ को उलट देना।
जैसे:
3. शब्द के अर्थ में, कोई खास परिवर्तन न करके मूलार्थ के इर्द-गिर्द अर्थ प्रदान करना।
जैसे:
उपसर्ग शब्द-निर्माण में बड़ा ही सहायक होता है। एक ही मूल शब्द विभिन्न उपसर्गों के योग से विभिन्न अर्थ प्रकट करता है।
जैसे:
हिन्दी भाषा में तीन प्रकार के उपसर्गों का प्रयोग होता है।
ये उपसर्ग जहाँ कहीं भी किसी संज्ञा या विशेषण से जुड़ते हैं, वहाँ कोई-न-कोई समास अवश्य रहता है। यह सोचना भ्रम है कि उपसर्ग का योग समास से स्वतंत्र रूप में नये शब्द के निर्माण का साधन है। हाँ, समास के कारण भी कतिपय जगहों पर शब्द-निर्माण होता है।
प्रमुख उपसर्ग, अर्थ एवं उनसे बने शब्द
अर्थ – नवीन शब्द
संस्कृत के उपसर्ग
अर्थ – नवीन शब्द
अर्थ – नवीन शब्द
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