उपसर्गाः
अधोदत्तानि पदानि अवलोकयत - (निम्नलिखित पदों को देखिए - )
(क)
पद |
उपसर्ग |
धातु |
प्रत्यय |
प्रणमति |
प्र |
नम् |
ति* |
नत्वा |
× |
नम् |
क्त्वा |
विहस्य |
वि |
हस् |
ल्यप् |
आगच्छन्ति |
आ |
गम् |
न्ति* |
अनुभवति |
अनु |
भू |
ति* |
(ख)
उपसर्गयुक्त पद |
उपसर्ग |
पद |
विख्यातः |
वि |
ख्यातः |
निष्पफलम् |
निः |
पफलम् |
पराजयः |
परा |
जयः |
प्रगतिः |
प्र |
गतिः |
दुर्जनः |
दुः |
जनः |
खण्ड (क) तथा (ख) में आए पदों का विश्लेषण करने पर स्पष्ट है कि उपसर्ग पद (संज्ञापद अथवा क्रियापद) के आदि और प्रत्यय पद के अन्त में लगते हैं। स्वतन्त्रा रूप से इनका कोई प्रयोग नहीं होता और न ही कोई अर्थ। ये पद के साथ जुड़कर बहुधा अर्थ में परिवर्तन ला देते हैं।
प्रायः प्रयोग में आने वाले वुफछ उपसर्ग -
प्र, परा, परि, प्रति, उप, अप, अव, निः, दुः, सु, वि, आ, अनु, सम् आदि।
*क्रियापद बनाने हेतु धतुओं में लगने वाले ‘ति, तः, अन्ति’ प्रत्यय होते हैं, ये ‘तिघ्’ प्रत्यय कहलाते हैं।
प्रत्ययाः
अधोदत्तानि वाक्यानि अवलोकयत–(नीचे दिए गए वाक्यों को देखिए–)
1. स: प्रात: पठितुम् विद्यालयम् गच्छति। पठ् + तुमुन् —पठितुम् (पढऩे के लिए—to study)
2. अहं प्रश्नं पठित्वा उत्तरं लिखामि। पठ् + क्त्वा —पठित्वा (पढ़कर—having read)
3. स: पाठम् पठितवान्। पठ् + क्तवत् —पठितवान् (पढ़ा—read)
4. तेन पाठ: पठित:। पठ् + क्त —पठित: (पढ़ा गया—has been read)
5. तेन पाठ: पठितव्य:। पठ् + तव्यत् —पठितव्य: (पढ़ा जाना चाहिए—ह्यद्धशह्वद्यस्र ड्ढद्ग ह्म्द्गड्डस्र)
संस्कृत भाषा में धातु में प्रत्यय जोड़कर अनेक शब्द बनाए जा सकते हैं। उपरिलिखित वाक्यों में स्थूलाक्षरों में आए शब्द पठ् धातु से बने हैं। इस प्रकार अन्य धातुओं से भी शब्दों का निर्माण होता है( किन्तु इस कक्षा में हम क्त्वा, तुमुन् तथा ल्यप् प्रत्यय पर ही ध्यान केन्द्रित करेंगे।
(In sanskrit, we can form many words from a single root by adding suffixes. In the sentences given above words in bold have been formed from the root पठ्. Similarly we can form words from other roots too. But we will focus only on क्त्वा, तुमुन् and ल्यप् suffixes in this class.)
तुमुन् प्रयोग:
1. किं त्वं विद्यालयम् गन्तुम् सज्ज: असि? गन्तुम् (गम् + तुमुन्) — जाने के लिए, to go
2. राम: रावणं हन्तुम् वाणम् अमुञ्चत्। हन्तुम् (हन् + तुमुन्) — मारने के लिए, to kill
3. अहं तीव्रं धावितुम् न शक्नोमि। धावितुम् (धाव्+ तुमुन्) — दौडऩे के लिए, to run
4. अहम् एकं प्रश्नं प्रष्टुम् इच्छामि। प्रष्टुम् (प्रच्छ् + तुमुन्) — पूछने के लिए, to ask
जब एक क्रिया के उद्देश्य से दूसरी क्रिया की जाती है पहली क्रिया को दर्शाने के लिए ‘तुमुन्’ प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है( यथा—‘स: पठितुम् विद्यालयम् गच्छति’-वाक्य में पढऩे के उद्देश्य से जाने की क्रिया की जा रही है।
स्मरणीयम्
(i) धातु में ‘तुमुन्’ जुडऩे पर केवल ‘तुम्’ शेष रह जाता है।
(ii) ‘तुमुन्’ जुडऩे पर कुछ धातुओं में धातु के साथ ‘इ’ जुड़ जाता है( यथा—पठितुम्, खादितुम्, धावितुम्, रक्षितुम्, कथयितुम् इत्यादि, किन्तु कुछ धातुओं में ‘इ’ नहीं लगता( यथा—गन्तुम्, हन्तुम् कर्तुम्, पातुम्, दातुम् इत्यादि।*
* यदि पढ़ते समय छात्र प्रयोग पर ध्यान दें, तो हितकर होगा।
क्त्वा-प्रयोग:
अधोदत्तं संवादं पठत–(नीचे दिए गए संवाद को पढि़ए–)
पिता — राहुल: कुत्र अस्ति? किं स: अधुना अपि क्रीडति?
माता — पश्यतु, स: क्रीडित्वा आगच्छति।
पिता — स: विद्यालय-कार्यं कदा करोति?
माता — स: प्रतिदिनं कार्यं कृत्वा क्रीडितुम् गच्छति।
पिता — पुत्र राहुल, मध्याह्ने भोजनं खादित्वा किं करोषि?
राहुल: — भोजनम् खादित्वा विश्रामं करोमि। तत्पश्चात् अभ्यास-कार्यं करोमि।
पिता — अधुना किं करिष्यसि?
राहुल: — दूरदर्शनेन धारावाहिकं दृष्ट्वा भोजनं खादिष्यामि।
उपरिलिखित संवाद में स्थूल अक्षरों में आए शब्द—क्रीडित्वा, कृत्वा, खादित्वा, दृष्ट्वा—क्त्वा प्रत्ययान्त हैं जो क्रमश: क्रीड्, कृ, खाद् और दृश् धातु में क्त्वा प्रत्यय जोड़कर बने हैं। ‘क्त्वा’ का प्रयोग पूर्वकालिक क्रिया को दर्शाने के लिए किया जाता है।
(In the sentences above the words in bold letters—क्रीडित्वा, कृत्वा, खादित्वा, दृष्ट्वा have been formed by adding क्त्वा प्रत्यय to the roots क्रीड्, कृ, खाद्, दृश् respectively. ‘क्त्वा’ is used to denote an action done prior to the other action that follows.
अवधेयम्—क्त्वा प्रत्यय का केवल ‘त्वा’ शेष रह जाता है( यथा—कृ + त्वा (क्त्वा) = कृत्वा।
(Only ‘त्वा’ remains of the suffix क्त्वा, when added to the root.)
ल्यप् प्रयोग:
जिस अर्थ में धातु में क्त्वा प्रत्यय जोड़ा जाता है, ल्यप् प्रत्यय का प्रयोग भी उसी अर्थ में होता है, किन्तु ‘ल्यप्’ प्रत्यय केवल उपसर्गपूर्वक धातुओं में जोड़ा जाता है।
[Suffix ल्यप् is added to the root in the same sense as the suffix क्त्वा. But the suffix ‘ल्यप्’ is added only to roots preceded by a prefix.]
यथा— हस् + क्त्वा = हसित्वा
वि + हस् + ल्यप् = विहस्य
1. स: विहस्य अवदत्।
2. विद्यालयात् आगत्य अहं भोजनं खादामि।
3. पुरस्कारम् आदाय विष्णुशर्मा प्रसन्न: अभवत्।
4. एतत् विचिन्त्य स: दु:खित: अभवत्।
5. पुत्रस्य परिणाम-पत्रं वीक्ष्य पिता विषादग्रस्त: आसीत्।
अब हम उपर्युक्त रेखांकित शब्दों के उपसर्ग, मूलशब्द और प्रत्यय देखते हैं–
1. विहस्य—(वि + हस् + ल्यप्), (थोड़ा) हँसकर, having laughed (a little)
2. आगत्य—(आ + गम् + ल्यप्), आकर, having come
3. आदाय— (आ + दा + ल्यप्), लेकर, having taken
4. विचिन्त्य—(वि + चिन्त् + ल्यप्), सोचकर, having thought
5. वीक्ष्य—(वि + ईक्ष् + ल्यप्), देखकर, having seen
अवधेयम्—धातु में जुडऩे पर ल्यप् प्रत्यय का केवल ‘य’ शेष रह जाता है( यथा—आ + दा + य (ल्यप्) = आदाय। (Only ‘य’ remains of the suffix ल्यप् when added to the root.)
वास्तव में क्त्वा, तुमुन्, ल्यप् प्रत्ययान्त शब्दों का प्रयोग दो सरल वाक्य को जोडऩे हेतु किया जाता है।
यथा—
1. बालक: खेलति। स: क्रीडाक्षेत्रं गच्छति।
बालक: खेलितुम् क्रीडाक्षेत्रं गच्छति। (तुमुन्)
2. बालक: खेलति। स: गृहम् आगच्छति।
बालक: खेलित्वा गृहम् आगच्छति। (क्त्वा)
3. बालक: प्रणमति। स: अध्यापकं वदति।
बालक: प्रणम्य अध्यापकं वदति। (ल्यप्)
स्मरणीयम्—क्त्वा, तुमुन् व ल्यप् प्रत्ययान्त शब्द अव्यय होते हैं। वाक्य-प्रयोग के समय लिङ्ग, वचन, विभक्ति अथवा क्रिया के काल के फलस्वरूप इनमें कोई रूपान्तर नहीं आता।
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1. उपसर्गाः के होते हैं? |
2. प्रत्ययाः क्या होते हैं? |
3. कक्षा 8 में अनुप्रयुक्त-व्याकरणम् क्या होता है? |
4. उपसर्ग और प्रत्यय में क्या अंतर होता है? |
5. उपसर्ग और प्रत्ययों के उदाहरण क्या हैं? |
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