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औपचारिक पत्र / अनौपचारिक पत्र | WBCS Preparation: All Subjects - WBCS (West Bengal) PDF Download

पत्र लेखन, हिंदी में एक कला है, इसलिए पत्र लिखते समय हमें सहज, सरल और सामान्य बोलचाल की भाषा का उपयोग करना चाहिए, ताकि पत्र को प्राप्त करने वाला व्यक्ति पत्र में व्यक्त किए गए भावों को सही रूप से समझ सके। पत्र-लेखन के जरिए, हम अपने विचारों और भावनाओं को व्यक्त कर सकते हैं। यह एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा व्यक्ति अपनी बातें लिखकर दूसरों तक पहुँचा सकता है। वे बातें जो लोग मुख से कहने में हिचकिचाते हैं, वे बातें पत्रों के माध्यम से सरलता से समझाई जा सकती हैं या व्यक्त की जा सकती हैं।

पत्र की आवश्यकता क्यों है? 


जो लोग दूर रहते हैं, वे अपने संबंधियों या दोस्तों के स्वास्थ्य की जानकारी प्राप्त करने और अपनी तबियत का हाल बताने के लिए पत्र लिखते हैं। आजकल हमें बातचीत के लिए कई आधुनिक साधन उपलब्ध हैं, जैसे कि टेलीफोन, मोबाइल फ़ोन, ईमेल इत्यादि।
यह प्रश्न उठता है कि फिर भी पत्र लिखना सीखना क्यों आवश्यक है? पत्र लिखना मात्र महत्वपूर्ण ही नहीं, बल्कि यह अत्यंत आवश्यक भी है, क्योंकि फ़ोन या अन्य बातचीत के माध्यम से हुई बातचीत अस्थायी हो सकती है, जबकि लिखित दस्तावेज स्थायी रूप से जाना जा सकता है। उदाहरण स्वरूप, जब आप विद्यालय नहीं जा सकते, तो छुट्टी के लिए प्रार्थना पत्र लिखना आवश्यक हो सकता है।

पत्रों के प्रकार


मुख्य रूप से पत्रों को निम्नलिखित दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है –

  1. औपचारिक-पत्र
  2. अनौपचारिक-पत्र

औपचारिक पत्र

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औपचारिक पत्र वह पत्र हैं जो हम उन व्यक्तियों को लिखते हैं जिनसे हमारा कोई निजी संबंध नहीं होता। इसमें व्यापारिक पत्र, प्रमुख शिक्षक को पत्र, आवेदन पत्र, सरकारी विभागों को भेजे गए पत्र, संपादक को लिखे गए पत्र, आदि शामिल होते हैं। इस प्रकार के पत्रों की भाषा सामान्यत: साधक और शिष्ट होती है, जिसमें केवल कार्य या अपनी समस्या का विवरण होता है।

अनौपचारिक पत्र

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अनौपचारिक पत्र उन व्यक्तियों के लिए लिखा जाता है जिनसे हमें व्यक्तिगत संबंध होते हैं। इस प्रकार के पत्रों में, हम अपने परिवार के सदस्यों, जैसे कि माता-पिता, भाई-बहन, सागे-संबंधियों और दोस्तों को उनके हाल-चाल, निमंत्रण, और अन्य सूचनाएं पूछने के लिए लिखते हैं। इन पत्रों में भाषा में कुछ ढ़ील रखी जा सकती है और शब्दों की संख्या असीमित हो सकती है, क्योंकि इसमें विभिन्न बातें शामिल हो सकती हैं।

औपचारिक पत्र किसे कहते हैं?

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यह पत्र उन्हें लिखा जाता है जिनसे हमारा कोई निजी संबंध ना हो। औपचारिक पत्रों में केवल काम से सम्बंधित बातों पर ध्यान दिया जाता है। व्यवसाय से संबंधी, प्रधानाचार्य को लिखे प्रार्थना पत्र, आवेदन पत्र, सरकारी विभागों को लिखे गए पत्र, संपादक के नाम पत्र आदि औपचारिक-पत्र कहलाते हैं। औपचारिक पत्र लेखन में मुख्य रूप से संदेश, सूचना एवं तथ्यों को ही अधिक महत्व दिया जाता है। इसमें संक्षिप्तता अर्थात कम शब्दों ने केवल काम की बात करना, स्पष्टता अर्थात पत्र प्राप्त करने वालों को बात आसानी से समझ आये ऐसी भाषा का प्रयोग तथा स्वतः पूर्णता अर्थात पूरी बात एक ही पत्र में कहने की अपेक्षा (उम्मीद) की जाती है।

औपचारिक-पत्र के प्रकार


औपचारिक-पत्रों को तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-

  1. प्रार्थना-पत्र – जिन पत्रों में निवेदन अथवा प्रार्थना की जाती है, वे ‘प्रार्थना-पत्र’ कहलाते हैं। प्रार्थना पत्र में अवकाश, शिकायत, सुधार, आवेदन आदि के लिए लिखे गए पत्र आते हैं। ये पत्र स्कुल के प्रधानाचार्य से लेकर किसी सरकारी विभाग के अधिकारी को भी लिखे जा सकते हैं।
  2. कार्यालयी-पत्र – जो पत्र कार्यालयी काम-काज के लिए लिखे जाते हैं, वे ‘कार्यालयी-पत्र’ कहलाते हैं। ये सरकारी अफसरों या अधिकारियों, स्कूल और कॉलेज के प्रधानाध्यापकों और प्राचार्यों को लिखे जाते हैं। इन पत्रों में डाक अधीक्षक, समाचार पत्र के सम्पादक, परिवहन विभाग, थाना प्रभारी, स्कूल प्रधानाचार्य आदि को लिखे गए पत्र आते हैं।
  3. व्यवसायिक-पत्र – व्यवसाय में सामान खरीदने व बेचने अथवा रुपयों के लेन-देन के लिए जो पत्र लिखे जाते हैं, उन्हें ‘व्यवसायिक-पत्र’ कहते हैं। इन पत्रों में दुकानदार, प्रकाशक, व्यापारी, कंपनी आदि को लिखे गए पत्र आते हैं।

औपचारिक-पत्र लिखते समय ध्यान रखने योग्य बातें –

  • औपचारिक-पत्र नियमों में बंधे हुए होते हैं।
  • इस प्रकार के पत्रों में भाषा का प्रयोग ध्यानपूर्वक किया जाता है। इसमें अनावश्यक बातों (कुशल-मंगल समाचार आदि) का उल्लेख नहीं किया जाता।
  • पत्र का आरंभ व अंत प्रभावशाली होना चाहिए।
  • पत्र की भाषा-सरल, लेख-स्पष्ट व सुंदर होना चाहिए।
  • यदि आप कक्षा अथवा परीक्षा भवन से पत्र लिख रहे हैं, तो कक्षा अथवा परीक्षा भवन (अपने पता के स्थान पर) तथा क० ख० ग० (अपने नाम के स्थान पर) लिखना चाहिए।
  • पत्र पृष्ठ के बाई ओर से हाशिए (Margin Line) के साथ मिलाकर लिखें।
  • पत्र को एक पृष्ठ में ही लिखने का प्रयास करना चाहिए ताकि तारतम्यता/लयबद्धता बनी रहे।
  • प्रधानाचार्य को पत्र लिखते समय प्रेषक के स्थान पर अपना नाम, कक्षा व दिनांक लिखना चाहिए।

औपचारिक-पत्र  (प्रारूप) के निम्नलिखित सात अंग होते हैं –

  • ‘सेवा में’ लिख कर, पत्र प्रापक का पदनाम तथा पता लिख कर पत्र की शुरुआत करें।
  • विषय – जिसके बारे में पत्र लिखा जा रहा है, उसे केवल एक ही वाक्य में शब्द-संकेतों में लिखें।
  • संबोधन – जिसे पत्र लिखा जा रहा है- महोदय/महोदया, माननीय आदि शिष्टाचारपूर्ण शब्दों का प्रयोग करें।
  • विषय-वस्तु– इसे दो अनुच्छेदों में लिखना चाहिए-
    पहला अनुच्छेद – “सविनय निवेदन यह है कि” से वाक्य आरंभ करना चाहिए, फिर अपनी समस्या के बारे में लिखें।
    दूसरा अनुच्छेद – “आपसे विनम्र निवेदन है कि” लिख कर आप उनसे क्या अपेक्षा (उम्मीद) रखते हैं, उसे लिखें।
  • हस्ताक्षर व नाम– धन्यवाद या कष्ट के लिए क्षमा जैसे शब्दों का प्रयोग करना चाहिए और अंत में भवदीय, भवदीया, प्रार्थी लिखकर अपने हस्ताक्षर करें तथा उसके नीचे अपना नाम लिखें।
  • प्रेषक का पता– शहर का मुहल्ला/इलाका, शहर, पिनकोड आदि।
  • दिनांक।

औपचारिक-पत्र की प्रशस्ति (आरम्भ में लिखे जाने वाले आदरपूर्वक शब्द), अभिवादन व समाप्ति में किन शब्दों का प्रयोग करना चाहिए-

  • प्रशस्ति (आरम्भ में लिखे जाने वाले आदरपूर्वक शब्द) – श्रीमान, श्रीयुत, मान्यवर, महोदय आदि।
  • अभिवादन – औपचारिक-पत्रों में अभिवादन नहीं लिखा जाता।
  • समाप्ति – आपका आज्ञाकारी शिष्य/आज्ञाकारिणी शिष्या, भवदीय/भवदीया, निवेदक/निवेदिका, शुभचिंतक, प्रार्थी आदि।
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