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क्रिया | Course for UPPSC Preparation - UPPSC (UP) PDF Download

क्रिया की परिभाषा


जिस शब्द अथवा शब्द-समूह के द्वारा किसी कार्य के होने अथवा किये जाने का बोध हो उसे क्रिया कहते हैं। जैसे-

  • सीता ‘नाच रही है’।
  • बच्चा दूध ‘पी रहा है’।
  • सुरेश कॉलेज ‘जा रहा है’।
  • शिवा जी बहुत ‘वीर’ थे।

इनमें ‘नाच रही है’, ‘पी रहा है’, ‘जा रहा है’ शब्दों से कार्य-व्यापार का बोध हो रहा हैं। इन सभी शब्दों से किसी कार्य के करने अथवा होने का बोध हो रहा है। अतः ये क्रियाएँ हैं।

  • क्रिया सार्थक शब्दों के आठ भेदों में एक भेद है।
  • व्याकरण में क्रिया एक विकारी शब्द है।

क्रिया के भी कई रूप होते हैं, जो प्रत्यय और सहायक क्रियाओं द्वारा बदले जाते हैं। क्रिया के रूप से उसके विषय संज्ञा या सर्वनाम के लिंग और वचन का भी पता चल जात है। क्रिया वह विकारी शब्द है, जिससे किसी पदार्थ या प्राणी के विषय में कुछ विधान किया जाता है। अथवा जिस विकारी शब्द के प्रयोग से हम किसी वस्तु के विषय में कुछ विधान करते हैं, उसे क्रिया कहते हैं।
जैसे-

  • घोड़ा जाता है।
  • पुस्तक मेज पर पड़ी है।
  • मोहन खाना खाता है।
  • राम स्कूल जाता है।

उपर्युक्त वाक्यों में जाता है, पड़ी है और खाता है क्रियाएँ हैं।

धातु  – हिन्दी व्याकरण


क्रिया का मूल रूप धातु कहलाता है।
क्रिया के साधारण रूपों के अंत में ना लगा रहता है जैसे-आना, जाना, पाना, खोना, खेलना, कूदना आदि। साधारण रूपों के अंत का ना निकाल देने से जो बाकी बचे उसे क्रिया की धातु कहते हैं। आना, जाना, पाना, खोना, खेलना, कूदना क्रियाओं में आ, जा, पा, खो, खेल, कूद धातुएँ हैं। शब्दकोश में क्रिया का जो रूप मिलता है उसमें धातु के साथ ना जुड़ा रहता है। ना हटा देने से धातु शेष रह जाती है।जैसे –

  • लिख, पढ़, जा, खा, गा, रो, आदि। इन्हीं धातुओं से लिखता, पढ़ता, आदि क्रियाएँ बनती हैं।

धातु के भेद 


धातु के दो भेद होते है –

  • मूल धातु ,
  • यौगिक धातु ।

मूल धातु : यह स्वतंत्र होती है तथा किसी अन्य शब्द पर निर्भर नहीं होती है।
मूल धातु के उदाहरण : जा, खा, पी, रह, आदि ।
यौगिक धातु:  यौगिक धातु मूल धातु मे प्रत्यय लगाकर, कई धातुओ को संयुक्त करके, अथवा संज्ञा और विशेषण मे प्रत्यय लगाकर बनाई जाती है ।
यौगिक धातु के उदाहरण :

  • उठाना, उठवाना, दिलाना, दिलवाना, कराना, करवाना
  • रोना-धोना, चलना-फिरना, खा-लेना, उठ-बैठना, उठ-जाना, खेलना-कूदना, आदि।
  • बतियाना, गरमाना चिकनाना।

यौगिक धातुए तीन प्रकार की होती है

  • प्रेरणार्थक क्रिया
  • यौगिक क्रिया
  • नाम धातु

प्रेरणार्थक क्रिया :
प्रेरणार्थक क्रियाए अकर्मक एवं सकर्मक दोनों क्रियाओ से बनती है । आना / लाना  जोड़ने से  प्रथम प्रेरणार्थक एवं वाना जोड़ने से   द्वातीय प्रेरणार्थक रूप   बनते  है।
प्रेरणार्थक क्रिया के उदहारण-
मूल धातु   –    प्रेरणार्थक धातु 

  • उठ – ना     –   उठाना, उठवाना
  • दे – ना        –  दिलाना, दिलवाना
  • कर-ना       –  कराना, करवाना
  • सो-ना       –   सुलाना, सुलवाना
  • खा-ना       –   खिलाना, खिलवाना

यौगिक क्रिया
दो या दो से अधिक धातुओं के संयोग से यौगिक क्रिया बनती है।
यौगिक क्रिया के उदहारण
रोना-धोना, चलना-फिरना, खा-लेना, उठ-बैठना, उठ-जाना, खेलना-कूदना, आदि।
नाम धातु :
संज्ञा या विशेषण से बनने वाली धातु को नाम धातु क्रिया कहते है।  जैसे – गरियाना, लतियाना, बतियाना, गरमाना, चिकनाना, ठण्डाना।
नाम धातु के उदहारण 

  • गाली से गरियाना।
  • लात से लतियाना।
  • चिकना से चिकनाना।
  • ठंड से ठण्डाना।

क्रिया के भेद
कर्म के अनुसार या रचना की दृष्टि से क्रिया के दो भेद हैं
रचना की दृष्टि से क्रिया के भेद:

  • अकर्मक क्रिया।
  • सकर्मक क्रिया।

अन्य – द्विकर्मक क्रिया

  • अकर्मक क्रिया:
    जिन क्रियाओं का असर कर्ता पर ही पड़ता है वे अकर्मक क्रिया कहलाती हैं। ऐसी अकर्मक क्रियाओं को कर्म की आवश्यकता नहीं होती।अकर्मक क्रियाओं के उदाहरण :
    राकेश रोता है।
    साँप रेंगता है।
    बस चलती है।
    कुछ अकर्मक क्रियाएँ :
    लजाना, होना, बढ़ना, सोना, खेलना, अकड़ना, डरना, बैठना, हँसना, उगना, जीना, दौड़ना, रोना, ठहरना, चमकना, डोलना, मरना, घटना, जागना, उछलना, कूदना
  • सकर्मक क्रिया

    जिन क्रियाओं का असर कर्ता पर नहीं कर्म पर पड़ता है, वह सकर्मक क्रिया कहलाती हैं। इन क्रियाओं में कर्म का होना आवश्यक होता हैं.
    सकर्मक क्रिया के उदाहरण –
    मैं लेख लिखता हूँ।
    सुरेश मिठाई खाता है।
    मीरा फल लाती है।
    भँवरा फूलों का रस पीता है।

  • द्विकर्मक क्रिया
    जिन क्रियाओं के दो कर्म होते हैं, उन्हें द्विकर्मक क्रिया कहते हैं।
    द्विकर्मक क्रिया के उदाहरण-
    मैंने राम को पुस्तक दी।
    श्याम ने राधा को रुपये दिए।
    ऊपर के वाक्यों में ‘देना’ क्रिया के दो कर्म हैं। अतः देना द्विकर्मक क्रिया हैं।

प्रयोग के आधार पर क्रिया के भेद


अकर्मक क्रिया: जिस क्रिया से सूचित होने वाला व्यापार कर्ता करे और उसका फल भी कर्ता पर ही पड़े, उसे अकर्मक क्रिया कहते हैं।
जैसे- राम खाता है।
वाक्य में खाने का व्यापार राम से है और खाने का फल भी राम पर ही पड़ता है, इसलिए ‘खाता है’ अकर्मक क्रिया है।
अन्य उदाहरणः

  • गीता गाती है।
  • बच्चा खेलता है।
  • श्याम हंसता है।
  • कीड़ा बिलबिलाता है।
  • कुत्ता भोंकता है।

अपूर्ण सकर्मक क्रिया: जिस क्रिया के पूर्ण अर्थ का बोध कराने के लिए कर्ता के अतिरिक्त अन्य संज्ञा या विशेषण की आवश्यकता पड़ती है, उसे अपूर्ण सकर्मक क्रिया कहते हैं। अपूर्ण सकर्मक क्रिया का अर्थ पूर्ण करने के लिए संज्ञा या विशेषण को जोड़ा जाता है, उसे पूर्ति कहते हैं।
जैसे- गाँधी कहलाये।
– से अभीष्ट अर्थ की प्राप्ति नहीं होती। अर्थ समझने के लिए यदि पूछा जाय कि गाँधी क्या कहलाये? तो उत्तर होगा- गाँधी महात्मा कहलाये।
इस प्रकार कहलाये अपूर्ण अकर्मक क्रिया का अर्थ महात्मा शब्द द्वारा स्पष्ट होता है। इस वाक्य में कहलाये अपूर्ण अकर्मक क्रिया और महात्मा शब्द पूर्ति है।
अन्य उदाहरणः

  • मेरा भाई शिक्षक हो गया।
  • सोना पीला होता है।
  • साधु चोर निकला।
  • वह मनुष्य बुद्धिमान है।
  • जन्म ही जाति तय करता है।

उपर्युक्त वाक्यों में हो गया, होता है, निकला और है अपूर्ण अकर्मक क्रियाएँ हैं और शिक्षक, पीला, चोर और बुद्धिमान पूर्ति है।

सकर्मक क्रिया:
जिस क्रिया से सूचित होने वाले व्यापार का फल कर्ता पर न पड़कर कर्म पर पड़े, उसे सकर्मक क्रिया कहते हैं।
जैसे- श्याम पुस्तक पढ़ता है।
वाक्य में पढ़ता है क्रिया का व्यापार श्याम करता है, किन्तु इस व्यापार का फल पुस्तक पर पड़ता है, इसलिए पढ़ता है सकर्मक क्रिया है और पुस्तक कर्म शब्द कर्म है।
अन्य उदाहरणः

  • राम बाण मारता है।
  • राधा मूर्ति बनाती है।
  • नेता भाषण देता है।
  • कुत्ता हड्डी चबाता है।
  • लड़के क्रिकेट खेलते हैं।

उपर्युक्त वाक्यों में ‘मारता है’, ‘बनाती है’, ‘देता है’ और ‘चबाता है’ सकर्मक क्रियाएँ हैं और बाण, मूर्ति, भाषण और हड्डी शब्द कर्म हैं।
अपूर्ण अकर्मक क्रिया:
जिस अकर्मक क्रिया का पूरा आशय स्पष्ट करने के लिए वाक्य में कर्म के साथ अन्य संज्ञा या विशेषण का पूर्ति के रूप में प्रयोग होता है, उसे अपूर्ण अकर्मक क्रिया कहते हैं।
जैसे- राजा ने गंगाधर को मंत्री बनाया।
वाक्य में बनाया अकर्मक क्रिया का कर्म गंगाधर है, किन्तु इतने मात्र से इस कर्म का आशय स्पष्ट नहीं होता। उसका आशय़ स्पष्ट करने के लिए उसके साथ मंत्री संज्ञा भी प्रयुक्त होती है। इस वाक्य में बनाया अपूर्ण अकर्मक क्रिया है, गंगाधर कर्म है और मंत्री शब्द कर्म-पूर्ति है।
उदाहरणः

  • अध्यापक ने संतोष को वर्ग-प्रतिनिधि चुना।
  • हम अपने मित्र को चतुर समझते हैं।
  • हम प्रत्येक भारतीय को अपना मानते हैं।
  • हम मानव सेवा को पुण्य मानते हैं।

उपर्युक्त वाक्यों में चुना, समझते हैं और मानते हैं अपूर्ण सकर्मक क्रियाएँ हैं। संतोष को, मित्र को और भारतीय को कर्म हैं और वर्ग-प्रतिनिधि, चतुर और अपना कर्म-पूर्ति है।

द्विकर्मक क्रिया:
जिस सकर्मक क्रिया का अर्थ स्पष्ट करने के लिए वाक्य में दो कर्म प्रयुक्त होते हैं, उसे द्विकर्मक क्रिया कहते हैं। जैसे-शिक्षक ने विद्यार्थी को पुस्तक दी।– इस वाक्य में दी क्रिया के व्यापार का फल दो कर्मों- पुस्तक और विद्यार्थी पर पड़ता है, इसलिए दी वाक्य में द्विकर्मक क्रिया है। पुस्तक मुख्य कर्म और विद्यार्थी गौण कर्म है। द्विकर्मक क्रिया के साथ प्रयुक्त होने वाले दोनों कर्म में से मुख्य कर्म किसी पदार्थ का तो गौण कर्म किसी प्राणी का बोध कराता है।
उदाहरणः

  • राजा ने ब्राह्मण को दान दिया।
  • राम लक्ष्मण को गणित सिखाता है।
  • मालिक नौकर को पैसे देता है।
  • पुलिस चोरों को पकड़ती है।

उपर्युक्त वाक्यों में दिया, सिखाता है और देता है द्विक्रमक क्रिया है। दान, गणित और पैसे मुख्य कर्म हैं तो ब्राह्मण को, लक्ष्मण को और नौकर को गौण कर्म।

रचना की दृष्टि से क्रिया के भेद :

रचना की दृष्टि से क्रिया दो प्रकार की होती है-

  • रूढ़
  • यौगिक

रूढ़ क्रियाः
जिस क्रिया की रचना धातु से होती है, उसे रूढ़ कहते हैं।
जैसे, लिखना, पढ़ना, खाना, पीना आदि।

यौगिक क्रियाः
जिस क्रिया की रचना एक से अधिक तत्वों से होती है, उसे यौगिक क्रिया कहते हैं।
जैसे- लिखवाना, आते जाते रहना, पढ़वाना, बताना, बड़बड़ाना आदि।

यौगिक क्रिया के भेदः

  • प्रेरणार्थक क्रिया।
  • संयुक्त क्रिया।
  • नामधातु क्रिया।
  • अनुकरणात्मक क्रिया।
  • प्रेरणार्थक क्रिया
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