Table of contents | |
भाव-पल्लवन का अर्थ | |
भाव-पल्लवन और व्याख्या | |
भाव-पल्लवन और भावार्थ | |
भाव पल्लवन, संक्षेपण और निबंध |
किसी भाव का विस्तार करना। इसमें किसी उक्ति, वाक्य, सूक्ति, कहावत, लोकोक्ति आदि के अर्थ को विस्तार से प्रस्तुत किया जाता है। विस्तार की आवश्यकता तभी होती है, जब मूल भाव संक्षिप्त, सघन या जटिल हो। भाषा के प्रयोग में कई बार ऐसी स्थितियाँ आती हैं, जब हमें किसी उक्ति में निहित भावों को स्पष्ट करना पड़ता है। इसी को भाव-पल्लवन कहते हैं।
हम अपनी भाषा में अक्सर विभिन्न सूत्र वाक्य, सूक्तियाँ, कहावतें और लोकोक्तियाँ इस्तेमाल करते हैं, जो एक निश्चित भाव या विचार को व्यक्त करती हैं। इनका सही अर्थ समझने के लिए इनका विस्तार से विवेचन करना आवश्यक होता है, ताकि हम उस कहावत या सूक्ति में छिपे गहरे अर्थ को स्पष्ट कर सकें। इन कहावतों और लोकोक्तियों में समाज का अनुभव और दृष्टिकोण समाहित होता है, जो पूरे समाज के विचारों का सार प्रस्तुत करते हैं। कई विद्वान, विचारक या संत-महात्मा भी ऐसे छोटे-से सूत्र वाक्य प्रस्तुत करते हैं, जिनमें बड़ी गहरी बातें होती हैं। इनका सही समझ प्राप्त करने के लिए हमें सोचने और उनका विस्तार करने की आवश्यकता होती है, जिसे हम भाव-पल्लवन कहते हैं। इस प्रकार, भाषा में निपुणता पाने के लिए हमें भाव पल्लवन का अभ्यास करना चाहिए, ताकि हम इन अभिव्यक्तियों के माध्यम से अपनी बात स्पष्ट और प्रभावशाली तरीके से दूसरों तक पहुँचा सकें। इसे विस्तार या भाव-विस्तारण भी कहा जाता है।
नीचे दिए गए अंशों में जो वाक्य दिए गए हैं, वे छोटे होते हुए भी गहरे संदेश का परिचायक हैं, और इन्हें 'सूत्रवाक्य' कहा जाता है। इन सूत्रवाक्यों का सही अर्थ समझने के लिए इनका विश्लेषण करना जरूरी होता है, ताकि हम उनके छिपे हुए संदेश को पूरी तरह से समझ सकें।
जैसे, "स्वाधीनता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है" इस वाक्य का भाव-पल्लवन करने से पहले यह जानना जरूरी है कि इसे किसने, कहां, और किस संदर्भ में कहा था। इसका अर्थ यह भी समझना होगा कि स्वाधीनता का क्या महत्त्व है और यह किसी की दया पर निर्भर नहीं, बल्कि प्रत्येक मनुष्य का अधिकार है। इसी तरह, "हिंसा बुरी चीज़ है, पर दासता उससे भी बुरी है" या "जहाँ सुमति तहँ संपति नाना" जैसी सूक्तियों का मंतव्य पूरी तरह से समझना चाहिए।
भाव-पल्लवन करते समय यह ध्यान रखना जरूरी है कि हमें इन सूक्तियों और कहावतों का पूरी तरह से ज्ञान हो, क्योंकि इनमें बहुत सारे भाव और विचार समाहित होते हैं। यह कहावतें एक गागर में सागर की तरह होती हैं—वह देखने में छोटी लग सकती हैं, लेकिन उनके भीतर गहरे और बड़े विचारों का प्रवाह होता है। भाव-पल्लवन में हम इन विचारों को विस्तार से समझाते हैं, ताकि दूसरों को इनका असली रूप, और उन विचारों में छिपे भावों को समझाया जा सके। इसे हम इस प्रकार कह सकते हैं कि भाव-पल्लवन में किसी भी गंभीर सूक्ति या कहावत की व्याख्या इस तरह की जाती है कि उसका पूरा संदेश स्पष्ट हो जाए।
भाव-पल्लवन और व्याख्या में मुख्य अंतर यह है कि भाव-पल्लवन में किसी उक्ति, सूक्ति या कहावत के निहित भाव का विस्तार किया जाता है, लेकिन इसका उद्देश्य उस पर टीका-टिप्पणी, समीक्षा या आलोचना करना नहीं होता। उदाहरण के तौर पर, जब हम "स्वाधीनता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है" का भाव-पल्लवन करते हैं, तो हमारा उद्देश्य सिर्फ इस वाक्य में निहित भाव को विस्तार से समझाना होता है, न कि इस पर विवाद उठाना या यह कहकर कि यह उक्ति अब अप्रासंगिक है। भाव-पल्लवन का मुख्य उद्देश्य केवल उस भाव को स्पष्ट करना है।
वहीं, व्याख्या में किसी उक्ति या कहावत का विस्तार से विवेचन किया जाता है, जिसमें टीका-टिप्पणी और आलोचना की पूरी छूट होती है। व्याख्या में हम उक्ति के पक्ष और विपक्ष दोनों पर विचार कर सकते हैं, और इसे विभिन्न दृष्टिकोणों से देख सकते हैं। उदाहरण के लिए, "स्वाधीनता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है" की व्याख्या करते समय हम यह कह सकते हैं कि इतिहास में हर राष्ट्र ने संघर्ष करके अपनी स्वाधीनता प्राप्त की है, और यदि लोग स्वाधीनता को केवल जन्मसिद्ध अधिकार मानकर बैठे रहते, तो वे जल्दी ही पराधीन हो जाते। व्याख्या में हम संदर्भ, उदाहरण और विभिन्न दृष्टिकोणों का भी उल्लेख करते हैं, जबकि भाव-पल्लवन में ऐसा करना उचित नहीं होता।
इस प्रकार, भाव-पल्लवन में हम केवल उक्ति या सूक्ति के केंद्रीय भाव को स्पष्ट करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जबकि व्याख्या में विस्तार से विवेचन और आलोचना की जाती है।
भाव-पल्लवन और भावार्थ में एक महत्वपूर्ण अंतर है। जहां भावार्थ में किसी उक्ति या सूक्ति के केंद्रीय भाव को संक्षेप में प्रस्तुत किया जाता है, वहीं भाव-पल्लवन में उस भाव का विस्तार किया जाता है। भावार्थ में केवल मूल भाव को व्यक्त किया जाता है, जबकि भाव-पल्लवन में उस भाव को विस्तार से समझाया जाता है, और इसमें कोई सीमा नहीं होती।
भावार्थ में सूक्ति का संक्षिप्त रूप में अर्थ देने की अपेक्षा की जाती है, जबकि भाव-पल्लवन में उस उक्ति या सूक्ति का विवेचन तब तक किया जाता है, जब तक लेखक का मूल उद्देश्य पूरी तरह स्पष्ट नहीं हो जाता। भाव-पल्लवन में मुख्य भाव के साथ-साथ गौण भावों का भी विस्तार किया जा सकता है, और इसे कई अनुच्छेदों में लिखा जा सकता है।
इस प्रकार, भावार्थ केंद्रीय भाव को सीमित शब्दों में स्पष्ट करता है, जबकि भाव-पल्लवन में भाव का विस्तार और गहन विवेचन किया जाता है।
भाव-पल्लवन और संक्षेपण में एक महत्वपूर्ण अंतर है। संक्षेपण का अर्थ होता है किसी विस्तृत विषय को संक्षिप्त या छोटा रूप में प्रस्तुत करना, जबकि भाव-पल्लवन में किसी उक्ति या विचार-सूत्र का विस्तार से विवेचन किया जाता है। संक्षेपण में मूलभूत अर्थ या केंद्रीय भाव को संक्षिप्त रूप में पकड़ने की कोशिश की जाती है, जबकि भाव-पल्लवन में उस भाव का विस्तार से समझाया जाता है।
जब आपने भाव-पल्लवन के बारे में पढ़ा, तो आपने यह महसूस किया होगा कि यह एक छोटा निबंध जैसा होता है। यह सही है कि भाव-पल्लवन एक प्रकार का लघु निबंध होता है, लेकिन इस पर निबंध के नियम पूरी तरह से लागू नहीं होते। निबंध में विषयों की कोई सीमा नहीं होती, जबकि भाव-पल्लवन में सभी प्रकार के विषय नहीं आते। निबंध में उद्धरणों, दृष्टांतों, और प्रसंगों का बहुल प्रयोग किया जा सकता है, जबकि भाव-पल्लवन में बहुत कम ऐसे तत्व होते हैं। इस प्रकार, भाव-पल्लवन को निबंध नहीं कहा जा सकता।
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1. भाव-पल्लवन का क्या अर्थ है ? |
2. भाव-पल्लवन की प्रक्रिया में क्या शामिल होता है ? |
3. भाव-पल्लवन और भावार्थ के बीच क्या अंतर है ? |
4. भाव-पल्लवन का उपयोग किस प्रकार के लेखन में किया जाता है ? |
5. BPSC परीक्षा में भाव-पल्लवन से संबंधित प्रश्न कैसे पूछे जाते हैं ? |
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