♦ राष्ट्रीयता बनाम साम्राज्यवाद - मध्य वर्ग की बेबसी—गाँधी जी का आगमन
दूसरे विश्व-युद्ध के आरंभ होने के समय कांग्रेस की राजनीति में उतार आया था। इसका कारण था कांग्रेस का नरम तथा गरम दल में विभाजन। इसके अलावा युद्ध काल में कुछ नियम और प्रतिबंध लागू कर दिए गए थे।
विश्व-युद्ध की समाप्ति के बाद लोग शांति और राहत की आशा लगाए बैठे थे, पर देश में दमनकारी कानून तथा पंजाब में मार्शल लॉ लागू कर दिया गया। इससे जनता में क्रोध फैल गया। इस समय लगातार गरीबी बढऩे से जीवन-शक्ति क्षीण हो रही थी। किसान तथा मज़दूर भयभीत थे। मध्य वर्ग तथा बौद्धजीवी वर्ग भी विवशता में जी रहे थे।
ऐसे वातावरण में गाँधी जी का आगमन ताज़ी हवा के झोंके के समान था। वे करोड़ोंं की आबादी से निकलकर आए थे। वे जनता की भाषा बोलनेवाले तथा जनता के सच्चे हमदर्द थे। उन्होंने लोगों को निर्भयता और सत्यता से जीने के लिए प्रेरित किया। इस समय अंग्रेजी राज में चारों ओर भय का वातावरण व्याप्त था, किन्तु गाँधी जी की एक ही आवाज़ थी
‘‘डरो मत।’’
गाँधी जी की प्रेरणा से लोगों ने भयमुक्त होकर काम करना शुरू कर दिया। इससे लोगों में मनोवैज्ञानिक परिवर्तन आता जा रहा था। यह परिवर्तन करोड़ों लोगों में हो रहा था, भले ही वह कम हो या ज़्यादा।
♦ गाँधी जी के नेतृत्व में कांग्रेस सक्रिय
गाँधी जी ने पहली बार कांग्रेस में प्रवेश करते ही उसके संविधान में बदलाव ला दिया। उन्होंने कांग्रेस को लोकतांत्रिक बनाया। किसानों ने कांग्रेस में प्रवेश किया और वह विशाल किसान संगठन दिखाई देने लगा। इसमें मज़दूरों ने भी व्यक्तिगत हैसियत से प्रवेश किया। गाँधी जी के अनुसार स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए आम जनता की भागेदारी आवश्यक है।
गाँधी जी ने अपने संगठन का लक्ष्य बनाया—सक्रियता, जिसका आधार शांतिपूर्ण पद्धति थी। इसमें हिंसा की विशेष रूप से निंदा की गई थी। गाँधी जी अत्यधिक ऊर्जावान किंतु विचित्र शांतिवादी थे। वे हर काम को शांति और शिष्ट ढंग से करते थे। उनकी सक्रियता का दोहरा अहवान था—(1) विदेशी शासन को चुनौती देना, (2) अल्पसंख्यकों तथा दलितों की समस्यायों का हल करना।
गाँधी जी ने ब्रिटिश सरकार की बुनियाद पर चोट करते हुए लोगों से खिताब छोड़ देने का अनुरोध किया। हालाँकि कम लोगों ने खिताब छोड़े, पर इनकी जनता में इज़्ज़त नहीं रह गई। रजवाड़ों की शान-शौकत बेहद अभद्र, शर्मनाक, उपहासास्पद लगने लगी। धनी लोगों ने भी सादगी-भरा जीवन अपनाना शुरू कर दिया।
गाँधी जी भारतीय जनता में व्याप्त निष्क्रियता को दूर करने के लिए गाँवों की ओर निकल पड़े। उन्होंने किसानों को उत्साहित किया। नेहरू जी का मानना था कि गाँवों को उन्होंने पहली बार इतने निकट से देखा। इन यात्राओं से उन्हें भी बल मिला। आर्थिक, सामाजिक और दूसरे मामलो में गाँधी जी बहुत सख्त थे, पर उन्होंने कभी भी यह सब कांग्रेस पर लादने की कोशिश नहीं की। वे जनता को साथ लेकर चलना चाहते थे।
गाँधी जी धर्म-परायण व्यक्ति तथा अपने अंतरतम की गहराइयों तक हिंदू थे। उनकी धर्म संबंधी अवधारणा का किसी सिंद्धांत,परंपरा या कर्मकांड से कोई संबंध नहीं था। वे नैतिक नियमों में विश्वास रखते थे। इसे वे सत्य या प्रेम का नियम कहते थे। वे अपनी करनी और कथनी में संबंध रखते थे जैसे हाथ और दस्ताने का मेल। वे ऐसे भारत के लिए काम करना चाहते थे, जिसमें गरीब-से-गरीब व्यक्ति भी अपनी भागीदारी महसूस करे तथा सभी जातियाँ समभाव से रहें। स्त्रियों को भी पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त हो—ऐसा था उनके सपनों का भारत। उन्हें अपनी हिंदू विरासत पर गर्व था। उन्होंने अपनी सांस्कृतिक विरासत को संकीर्ण बनाने से इनकार कर दिया। उनका मानना था कि भारतीय संस्कृति न हिंदू है, न इस्लाम, न कुछ और, यह पूरी तरह से मिली-जुली है। वे आधुनिक विचारधाराओं से प्रभावित तो हुए परन्तु उनहोंने अपनी जड़ों को नहीं छोड़ा। वे हर गरीब भारतीय के आँसू को पोंछ लेना चाहते थे और उसका दुख दूर करने के लिए प्राथमिकता के आधार पर काम करना चाहते थे। वे अपने अनुयायियों तथा विरोधियों दोनों को साथ लेकर चलना चाहते थे। इससे लोगों में एक मनोवैज्ञानिक क्रांति पैदा हुई।
कांग्रेस एक सक्रिय, विद्रोही, अनेकपक्षीय संगठन था, जिस पर गाँधी जी का प्रभुत्व था। सबकी राय अलग-अलग होने पर गाँधी जी दूसरों की इच्छा के सामने झुक जाते थे तथा कभी अपने विरुद्ध भी फैसले स्वीकार कर लेते थे। सन 1920 तक कांग्रेस और देश की जनता दोनों ने गाँधीजी के रास्ते को अपनाकर ब्रिटिश सरकार के खिला.फ संघर्ष किया। एक के बाद एक आंदोलन हुए सविनय अवज्ञा आंदोलन हुआ, असहयोग की नीति अपनाई गई, पर यह सब कुछ शांत तरीके से किया गया।
♦ अल्पसंख्यकों की समस्या - मुस्लिम लीग—मोहम्मद अली जिन्ना
भारत के अल्पसंख्यक यूरोप की तरह जातीय या राष्ट्रीय अल्पसंख्यक नहीं, बल्कि धार्मिक अल्पसंख्यक है। भारत में सभी धर्मों को एक समान मान्यता दी गई। यहाँ किसी धर्म का विरोध नहीं किया गया। जातीय दृष्टि से एक विचित्र मिश्रण होने पर भी यहाँ कभी जातीय सवाल नहीं उठे। धर्म को सदा जातीय विभिन्नताओं के साथ स्वीकार किया गया। जातियाँ या तो एक-दूसरे में मिल जाती हैं या उनमें अंतर करना कठिन हो जाता है। धार्मिक दीवारें स्थायी नहीं होती। धर्म बदलनेवाले व्यक्ति की जातीय पृष्ठभूमि और भाषिक विरासत नष्ट नहीं होती। राजनीतिक मामलों में धर्म का स्थान सांप्रदायिकता ने ले लिया। यह मुस्लिम समुदाय था, जिसका उद्देश्य राजनीतिक शक्ति और अपने समुदाय को बढ़ावा देना था।
यदपि कांग्रेस सदस्यों में अधिकतर हिंदू थे तथापि मुसलमानों के अलावा दूसरे धर्मों के लोग-सिख, ईंसाई आदि भी कांग्रेस मैं शामिल थे। कांग्रेस राष्ट्रीय स्वाधीनता और स्वतंत्र लोकतांत्रिक राह्ल की स्थापना करना चाहती थी। वह सभी में एकता चाह रही थी। राष्ट्रीय एकता और लोकतंत्र उसका उद्देश्य था।
बीते समय में ब्रिटिश सरकार ने भारतीय एकता और लोकतंत्र का समर्थन किया, लेकिन उसकी नीतियाँ एकता और लोकतंत्र के विरुद्ध थीं। 1940 में कांग्रेस को घोषणा करनी पड़ी कि भारत में ब्रिटिश सरकार की नीति ‘जनजीवन में संघर्ष और फूट को प्रत्यक्ष रूप से भडक़ाती और उकसाती है।’ ऐसे में भारत की एकता की बलि देना या लोकतंत्र का त्याग करना भारत के हित में न था। कांग्रेस सांप्रदायिक समस्या का ऐसा हल न ढूँढ़ सकी, जिससे उसे सुलझाया जा सके। अंग्रेजो की नीतियों ने हिंदू और मुसलमानों के बीच दीवार खड़ी करने की कोशिश की तथा सांप्रदायिक संगठनों को कांग्रेस के विरुद्ध अधिक महत्व दिया।
मुस्लिम लीग के अगुवामोहमद अली जिन्ना ने हिन्दुओं और मुसलमानो के लिए दो अलग राष्ट्रों की घोषणा की। इससे देश में भारत और पाकिस्तान के रूप में विभाजन की अवधारणा विकसित हुई। इससे दो राष्ट्रों की समस्या का हल नही हुआ, क्योंकि मुसलमान और हिंदू पूरे भारत में ही थे।
शब्दार्थ—
पृष्ठ : विभाजन—बँटवारा। प्रतिबंध—रोक। दमनकारी—दबानेवाला] नष्ट करनेवाले। आवेश—क्रोधयुक्त उत्तेजना। निर्मम—निर्दय। दब्बू—डरनेवाले।
पृष्ठ: सर्वग्रासी—सबको निगल लेनेवाला। आकाशदीप—आकाश में चमक बिखरनेवाला। सोचनीय—खराब, चिंताजनक। दुर्गति—बुरी स्थिति। प्रबल—मज़बूत। ख़ुफ़िया—जासूस। कारिंदा—ज़मींदार के लिए काम करनेवाला। लबादा—ढीली ढीली ऊपरी पोशाक। आंशिक—अधूरा।
पृष्ठ : परिवर्तन—बदलाव। लोकतांत्रिक—लोगों की भागीदारीवाला। छितरे—इधर-उधर फैले। शिष्ट—सभ्य।अहवान—पुकारना,। अभिशाप—श्राप।
पृष्ठ : खिताब—उपाधि। उपहासास्पद—मज़ाक उड़ानेवाली। निष्क्रिय—काम-काज से दूर। मानस—मनुष्य। निवृतमार्गों —मुक्ति के मार्ग को अपनानेवाला। पैठाने—स्थान देने।
पृष्ठ : अनदेखी करना—महत्व न देना। धर्मप्राण—धार्मिक विचारोंवाला अंतरतम—मन, हृदय। समभाव—समानता या बराबरी का भाव। मदिरा—शराब, एक नशीला पेय।
पृष्ठ : लगन—गहरी रुचि। गौण—तुच्छ, कम महत्वपूर्ण। अलंकार—सजावट का सामान। आकांक्षा—इच्छा। सम्मोहित—अपनी ओर आकर्षित कर लेना। तटस्थ—किसी विशेष का साथ न देनेवाला। प्रभुत्—प्रभाव।
पृष्ठ : सांप्रदायिक समस्या—जाति के आधार पर बनाई हुई समस्या। संरक्षण—सहारा, । भाषिक—भाषा संबंधी।
पृष्ठ: स्वाधीनता—अपने अधीन रहने की भावना। एका—एकता। बुनियादी—आधारभूत। अडिग—दृढ़ता से अपने मत पर स्थिर रहना। भडक़ाना—उग्रता को बढ़ावा देना। खुल्लम-खुल्ला—खुले रूप में।
पृष्ठ: सामंती—ज़मींदारी।
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1. अंतिम दौर क्या होता है? |
2. अंतिम दौर क्यों महत्वपूर्ण होता है? |
3. अंतिम दौर कैसे तैयारी करें? |
4. अंतिम दौर किस तरह आयोजित किया जाता है? |
5. अंतिम दौर में सफलता के लिए क्या आवश्यक है? |
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