प्रस्तुत पाठ में दो प्राणियों के जीवन एवं उनके जीने और सोचने के ढंग का वर्णन है। पहला प्राणी बाज, जो साहस का प्रतीक है, अपनी जान की परवाह किए बिना आसमान की ऊँचाइयाँ नापता है। वह स्वतंत्रता को अपनी जान से भी बढक़र चाहता है। दूसरा प्राणी साँप अपनी नम एवं अँधेरी खोखल तक ही सीमित रहता है। बाज का साहस उस कायर प्राणी में भी साहस भर देता है।
समुद्र के किनारे ऊँचे पर्वत की अँधेरी गुफा में एक साँप ने अपना वास बना रखा था। समुद्र की लहरें चमकतीं, झिलमिलातीं और चट्टानों से टकराया करती थीं। पर्वत की अँधेरी घाटियों में एक नदी बहती थी, जो पूरे वेग के साथ समुद्र की ओर जाती थी। नदी और समुद्र के मिलन-स्थल पर लहरें दूध-सी स.फेद दिखाई पड़ती थीं।
अपनी गुफा में बैठा साँप लहरों का गर्जन, आकाश में छिपती पहाडिय़ाँ, नदी की गुस्से-भरी आवाज़ सब कुछ देखा-सुना करता था। वह इनके गर्जन-तर्जन से स्वयं को सुखी समझता था।और वह अपने आपको सबसे दूर, सुखी तथा अपनी गुफा का मालिक समझता था यही उसका सबसे बड़ा सुख था।
एक दिन एक बाज खून से लथपथ दशा में गुफा में आ गिरा। उसके सीने पर जख्म थे तथा पंख खून से सने थे। डरे साँप ने सोचा कि अब जब बाज अपनी अंतिम साँसें गिन रहा है तो उससे डरना बेकार है। साँप घायल बाज के पास पहुँचा और मन-ही-मन खुश होकर बोला, ‘‘क्यों भाई, इतनी जल्दी मरने की तैयारी कर ली?’’ बाज ने कराह भरते हुए कहा, ‘‘लगता है कि मेरी आखिरी घड़ी आ गई है, परंतु मैंने अपनी जिंदगी को जी भरकर भोगा है। शरीर में ताकत रहते मैंने हर सुख को भोग लिया है। दूर-दूर तक उड़ानें भरी हैं, पर तुम्हारा दुर्भाग्य है कि तुम जिंदगी भर आकाश में उडऩे का आनंद कभी नहीं उठा पाओगे।’’ साँप ने उससे कहा, ‘‘आकाश को लेकर उसे चाटना है क्या? आकाश में आखिर है क्या? मेरे लिए यह गुफा ही भली है। यही मेरे लिए सर्वाधिक सुरक्षित तथा आरामदेह है।’’ साँप को बाज की मर्खता पर हँसी आ रही थी। वह सोच रहा था कि आखिर उडऩे और रेंगने में क्या .फर्क है। अंत में सभी को मरना ही है। अचानक बाज ने अपना सिर उठाया और चट्टान की दरारों से गुफा में टपकता पानी, वहाँ फैली सीलन, अंधकार और कुछ सडऩे जैसी गंध महसूस की। उसने चीख भरकर कहा, ‘‘काश! मैं एक बार आकाश में उड़ पाता।’
बाज की यह करुण चीख सुनकर साँप के मन में आकाश के प्रति इच्छा जाग उठी, क्योंकि बाज उसके लिए व्याकुल था। उसने बाज से कहा, ‘‘यदि तुम्हें स्वतंत्रता इतनी ही प्यारी है तो इस चट्टान के किनारे से उड़ क्यों नहीं जाते। शायद तुम्हारे पैरों में इतनी ताकत बाकी हो कि तुम उड़ सको।’’ साँप की बातें सुनस्रद्भ बाज में नई आशा जाग उठी। वह दूने उत्साह से घायल शरीर को चट्टान के किनारे तक ले आया। खुले आकाश को देखकर उसने अपने पंख फैलाए और हवा में कूद पड़ा। उसके टूटे पंख शक्तिहीन हो चुके थे। उसका शरीर पत्थर-सा लुढक़ता हुआ नदी में जा गिरा। एक लहर उसे अपनी गोद में समेटे सागर की ओर ले चली।
बाज की मृत्यु ने साँप को चिंता में डाल दिया। वह सोचने लगा कि आकाश की शून्यता में ऐसा कौन-सा आकर्षण छिपा है, जिसके लिए बाज ने अपने प्राण त्याग दिए। मुझे भी जाकर पता लगाना चाहिए। यह सोचकर उसने अपने शरीर को आकाश की शून्यता में छोड़ दिया। जीवनभर रह्यड्डगने वाला साँप छोटी-छोटी चट्टानों पर धप्प से जा गिरा। ईश्वर की कृपा से उसकी जान बच गई। साँप सोचकर लगा, ‘‘यदि उडऩे का यही आनंद है तो मैं भर पाया। मैंने तो जान लिया कि आकाश में खूब सारी रोशनी के सिवा कुछ भी नहीं है। वहाँ शरीर को सँभालने या सहारा देने के लिए कोई स्थान नहीं है। अब मैं कभी धोखा न खाऊँगा। मैं तो बाज की बातों में आकर ही आकाश में कूदा था। मरते-मरते बचकर मैंने यही जाना कि अपनी खोखल से बड़ा सुख और कही नहीं। आकाश की स्वच्छंता से मुझे क्या लेना-देना। अपने प्राणों को खतरे में डालना कहाँ की चतुराई है।’’ साँप सोचने लगा कि आकाश की आजादी प्राप्त करने के लिए बाज ने अपनी जान गँवा दी।
थोड़ी देर बाद साँप ने चट्टान से धीमा संगीत सुना। चट्टानों को भिगोती लहरें मधुर स्वर में गा रही थीं। ओ निडर बाज! शत्रुओं से लड़ते हुए तुमने अपनाकीमती रक्त बहाया है। तुम्हारे रक्तकी एक-एक बूँद जिंदगी को प्रकाशित करेगी और साहसी, बहादुर दिलों में स्वतंत्रता तथा प्रकाश के लिए प्रेम पैदा करेगी। साहस और वीरता के गीत जब भी गाए जाएँगे, तुम्हारा नाम श्रद्धा और गर्व से लिया जाएगा। उनका गीत मौत से न डरनेवालों के लिए है।
शब्दार्थ—
पृष्ठ: तूफानी—तेज र.फ्तार से बहनेवाली। घाटी—पर्वतीय प्रदेशों के बीच की जगह। बिखरा—फैला। मिलाप—मिलन। गर्जन—गरजना। बल खाना—टेढ़ा होना। गर्जन-तर्जन—जोर से गरजकर गुस्सा प्रकट करना। स्वामी—मालिक। जख्म—घाव।
पृष्ठ : असीम—जिसकी कोई सीमा न हो। आरामदेह—आराम देनेवाली। दरार—फटने से पैदा हुई जगह। टपकना—बूँद-बूँद गिरना। सीलन—नमी। दुर्गंध—बदबू।
पृष्ठ : करुण—दुख से भरा हुआ। वियोग—अलगाव। छटपटाना—व्याकुल होना। हर्ज—हानि, नुकसान। घसीटना—बल लगाकर खींचना। विस्तार—फैलाव। खोखल—खोखला भाग। शून्यता—खालीपन। चैन—आराम। रहस्य—भेद।
पृष्ठ: लकीर—रेखा। रेंगना—घिसटकर चलना। कसर—कमी। अनजान—जिसे ज्ञान न हो। ढेर-सी—खूब सारी। स्वच्छंदता—स्वतंत्रता, आजादी। सुनहरी—सोने के रंगवाली।
पृष्ठ : साहसी—हिम्मती। निडर—न डरनेवाला। गर्व—बड़प्पन का भाव। श्रद्धा—बड़ों के प्रति उत्पन्न आदर भाव।
पाठ में प्रयुक्त मुहावरे
अंतिम साँसें गिनना—मृत्यु अत्यंत निकट होना, पंखों से नाप आना—उड़ते हुए देख आना। सिटपिटा जाना—सहम जाना। आशा जाग उठना—उम्मीद से भर जाना। आँखें चमक उठना—प्रसन्न हो जाना। सिर धुनना—पछताना। आँखों से ओझल हो जाना—दिखाई न देना। प्राण गँवाना—साहस-भरा काम करते हुए मर जाना। डींगें हाँकना—बढ़-श्चढक़र बातें करना। गुण गाते न थकना—भरपूर प्रशंसा करना। प्राणों को खतरे में डालना—साहसपूर्ण कार्य करना। प्राणों की बाजी लगा देना—मौत की परवाह न करना। आश्चर्य का ठिकाना न रहना—बहुत हैरानी होना। प्राण हथेली पर लिए घूमना—मृत्यु से जरा भी न डरना।
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1. कहानी "बाज और साँप" का मुख्य विषय क्या है? | ![]() |
2. कहानी से हमें क्या शिक्षा मिलती है? | ![]() |
3. बाज और साँप के बीच की लड़ाई का परिणाम क्या होता है? | ![]() |
4. कहानी में पात्रों का वर्णन कैसे किया गया है? | ![]() |
5. क्या इस कहानी में कोई नैतिकता है? | ![]() |