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पाठ की व्याख्या: पद | Hindi Class 10 (Sparsh and Sanchayan) PDF Download

पदों की व्याख्या

1.
हरि आप हरो जन री भीर।
द्रोपदी री लाज राखी, आप बढ़ायो चीर
भगत कारण रूप नरहरि, धर्यो आप सरीर।

बूढ़तो गजराज राख्यो, काटी कुण्जर पीर।
दासी मीराँ लाल गिरधर, हरो म्हारी भीर।।पाठ की व्याख्या: पद | Hindi Class 10 (Sparsh and Sanchayan)

व्याख्या:

यह पद मीरा बाई द्वारा अपने आराध्य भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है। इस पद में मीरा ने अपने जीवन के दुख और संकटों से मुक्ति की प्रार्थना करते हुए उन घटनाओं का स्मरण किया है, जिनमें भगवान ने अपने भक्तों की सहायता की थी।

  • पहली पंक्ति: "हरि आप हरो जन री भीर" का अर्थ है कि भगवान श्रीकृष्ण, आप अपने भक्तों के संकट और परेशानियों को दूर करें।
  • दूसरी पंक्ति: "द्रोपदी री लाज राखी, आप बढ़ायो चीर" में महाभारत की उस घटना का उल्लेख है जब द्रौपदी की लाज बचाने के लिए भगवान कृष्ण ने उसका चीर बढ़ाया और उसे कौरवों के अपमान से बचाया।
  • तीसरी पंक्ति: "भगत कारण रूप नरहरि, धर्यो आप सरीर" का तात्पर्य है कि भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए भगवान ने नरसिंह अवतार धारण कर हिरण्यकश्यप का वध किया।
  • चौथी पंक्ति: "बूढ़तो गजराज राख्यो, काटी कुण्जर पीर" में गजेंद्र मोक्ष की कथा का उल्लेख है, जब एक मगरमच्छ के पकड़ने पर गज (हाथी) ने भगवान विष्णु से सहायता मांगी और भगवान ने उसकी पीड़ा दूर की।
  • अंतिम पंक्ति:"दासी मीराँ लाल गिरधर, हरो म्हारी भीर" में मीरा बाई भगवान से प्रार्थना कर रही हैं कि वह उनकी पीड़ा और दुखों को दूर करें, जैसे उन्होंने अपने अन्य भक्तों की सहायता की थी। मीरा खुद को भगवान की दासी मानती हैं और अपने आराध्य श्रीकृष्ण से कृपा की याचना कर रही हैं।

इस प्रकार, इस पद में मीरा ने विभिन्न प्रसंगों का उल्लेख करते हुए भगवान से अपने संकटों को हरने की प्रार्थना की है।

शब्दार्थ: हरि = ईश्वर, हरो = हरण करना, जन = लोग, भीर = कष्ट, दुख, लाज = लज्जा ;इश्शतद्ध, चीर = वस्त्रा, भगत = भक्त, नरहरि = नृसिंह रूप, गजराज = ऐरावत, कुंजर = हाथी, पीर = पीड़ा, म्हारी = हमारी।

काव्य-सौंदर्य:
 भाव पक्ष:

1. मीरा की कृष्ण के प्रति अनन्य भक्ति-भावना प्रकट हुई है।
2. ईश्वर की भक्तों पर दया करने की आदत पर प्रकाश डाला गया है।

कला पक्ष:

1. भाषा सरल एवं सरस है। भाषा प्रभावोत्पादक भी है।
2. ब्रजभाषा के शब्दों के साथ-साथ राजस्थानी भाषा के शब्दों का भी प्रयोग किया गया है।
3. ‘काटी-कुण्जर’ में अनुप्रास अलंकार है।
4. पूरे पद में दृष्टांत अलंकार का प्रयोग किया गया है।
5. प्रत्येक पंक्ति के अंतिम पद ‘शब्द’ तुकांत है।
6. गेयात्मक शैली का प्रयोग किया गया है।

2.
स्याम म्हाने चाकर राखो जी,
 गिरधारी लाला म्हाँने चाकर राखोजी।
 चाकर रहस्यूँ बाग लगास्यूँ नित उठ दरसण पास्यूँ।
 बिन्दरावन री कुंज गली में, गोविन्द लीला गास्यूँ।
 चाकरी में दरसण पास्यूँ, सुमरण पास्यूँ खरची।
 भाव भगती जागीरी पास्यूँ, तीनूं बाताँ सरसी।
 मोर मुगट पीताम्बर सौहे, गल वैजन्ती माला।
 बिन्दरावन में धेनु चरावे, मोहन मुरली वाला।
 उँचा उँचा महल बणावं बिच बिच राखूँ बारी।
 साँवरिया रा दरसण पास्यूँ, पहर कुसुम्बी साड़ी।
 आधी रात प्रभु दरसण, दीज्यो जमनाजी रे तीरां।
 मीराँ रा प्रभु गिरधर नागर, हिवड़ो घणो अधीराँ।।

व्याख्या:

इस भजन में मीरा बाई अपने आराध्य भगवान श्रीकृष्ण से प्रार्थना कर रही हैं कि वे उन्हें अपना सेवक बना लें। इस प्रार्थना के माध्यम से मीरा ने भगवान कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति और समर्पण को दर्शाया है।

  • पहली पंक्ति:"स्याम म्हाने चाकर राखो जी, गिरधारी लाला म्हाने चाकर राखोजी" – मीरा भगवान श्रीकृष्ण से विनती कर रही हैं कि वे उन्हें अपना सेवक बना लें। 'चाकर' का मतलब सेवक होता है, और मीरा स्वयं को भगवान की चाकरी (सेवा) में रखने की इच्छा प्रकट कर रही हैं
  • दूसरी पंक्ति:"चाकर रहस्यूँ बाग लगास्यूँ नित उठ दरसण पास्यूँ" – वे कहती हैं कि यदि उन्हें भगवान का चाकर बनने का अवसर मिले, तो वे हर दिन उनका दर्शन करेंगी और भगवान की सेवा में अपना जीवन बिताएंगी।
  • तीसरी पंक्ति:"बिन्दरावन री कुंज गली में, गोविन्द लीला गास्यूँ" – मीरा भगवान की लीलाओं का गायन करना चाहती हैं, विशेष रूप से वृंदावन की कुंज गलियों में, जहाँ कृष्ण ने अपनी लीलाएँ की थीं।
  • चौथी पंक्ति:"चाकरी में दरसण पास्यूँ, सुमरण पास्यूँ खरची" – भगवान की सेवा में रहकर, वे उनके दर्शन और स्मरण का आनंद लेना चाहती हैं, जो उनके जीवन का सबसे बड़ा खजाना होगा।
  • पाँचवीं पंक्ति: "भाव भगती जागीरी पास्यूँ, तीनूं बाताँ सरसी" – मीरा कहती हैं कि उन्हें भगवान की सेवा, भाव भक्ति, और जागीर (धन्य भक्ति का फल) प्राप्त हो, ये तीनों चीजें उनके लिए सबसे प्रिय होंगी।
  • छठी पंक्ति:"मोर मुगट पीताम्बर सौहे, गल वैजन्ती माला" – वे भगवान कृष्ण की सुंदर छवि का वर्णन करती हैं, जो मोर मुकुट और पीतांबर धारण किए हुए हैं, और जिनके गले में वैजयंती माला सुशोभित है।
  • सातवीं पंक्ति: "बिन्दरावन में धेनु चरावे, मोहन मुरली वाला" – मीरा कहती हैं कि भगवान कृष्ण वृंदावन में गाय चराते हैं और मुरली (बांसुरी) बजाते हैं। यह कृष्ण की बाल लीलाओं का प्रतीक है।
  • आठवीं पंक्ति: "ऊँचा ऊँचा महल बणावं बिच बिच राखूँ बारी" – वे भगवान के लिए ऊँचे-ऊँचे महल बनाना चाहती हैं, और बीच-बीच में बाग (उद्यान) लगाना चाहती हैं, ताकि वे भगवान के दर्शन कर सकें।
  • नौवीं पंक्ति:"साँवरिया रा दरसण पास्यूँ, पहर कुसुम्बी साड़ी" – मीरा भगवान के दर्शन करना चाहती हैं और उनकी सेवा में खुद कुसुम्बी रंग की साड़ी पहनना चाहती हैं, जो प्रेम और भक्ति का प्रतीक है।
  • दसवीं पंक्ति:"आधी रात प्रभु दरसण, दीज्यो जमनाजी रे तीरां" – वे भगवान से आधी रात को यमुना के किनारे उनके दर्शन करने की प्रार्थना करती हैं, जो उनके प्रेम और भक्ति का चरम रूप है।
  • अंतिम पंक्ति: "मीराँ रा प्रभु गिरधर नागर, हिवड़ो घणो अधीराँ" – मीरा अपने प्रभु गिरधर नागर (कृष्ण) के प्रति अपने दिल की बेचैनी को व्यक्त करती हैं, क्योंकि वे भगवान के दर्शन के लिए व्याकुल हैं।

इस प्रकार, इस भजन में मीरा बाई ने भगवान कृष्ण के प्रति अपनी पूर्ण भक्ति और समर्पण का मार्मिक चित्रण किया है। उनके लिए भगवान की सेवा और उनके दर्शन जीवन का सबसे बड़ा सुख है।

शब्दार्थ: म्हाने = हमें, चाकर = नौकर, सेवक, राखो = रखो, रहस्यूँ = रहकर, दरसण = दर्शन, पास्यूँ = पाऊँगी, बिन्दरावन = वृंदावन, जागीरी = जागीर, संपत्ति, धेनु = गायें, बणावं = बनाव, पहर = पहनना, जमनाजी = यमुनाजी, तीरां = किनारा, हिवड़ो = हृदय, घणो = ज्यादा, अधीराँ = अधीर ‘व्याकुल’। 

काव्य-सौंदर्य:
 भाव पक्ष:

1. यहाँ मीराबाई की दास्य-भक्ति परिलक्षित हुई है।
2. मीरा कृष्ण-मिलन के लिए व्यावुफल हो रही हैं।
3. श्रीकृष्ण के रूप-माधुर्य का सजीव वर्णन किया गया है।

कला पक्ष:
1. राजस्थानी भाषा का प्रयोग हुआ है जो भावाभिव्यक्ति में सक्षम है।
2. ‘भाव-भगती’, ‘मोर-मुकुट’, ‘मोहन-मुरली’ में अनुप्रास अलंकार है।
3. ‘ऊँचा-ऊँचा’, ‘बिच-बिच’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
4. संपूर्ण पद्य में माधुर्य गुण विद्यमान है और गेयात्मक शैली का प्रयोग किया गया है।

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FAQs on पाठ की व्याख्या: पद - Hindi Class 10 (Sparsh and Sanchayan)

1. What is a Pad in Hindi?
Ans. A Pad in Hindi refers to a poem or a verse composed of a certain number of lines with a particular rhythm and rhyme scheme.
2. What is the difference between a Ghazal and a Pad?
Ans. A Ghazal is a form of poetry that consists of rhyming couplets and a refrain, while a Pad is a poem that follows a particular rhyme scheme and rhythm.
3. Who are some famous Hindi poets known for their Pad compositions?
Ans. Some famous Hindi poets known for their Pad compositions include Mirza Ghalib, Harivansh Rai Bachchan, Sumitranandan Pant, and Ramdhari Singh Dinkar.
4. What is the significance of Pad in Hindi literature?
Ans. Pad is an important form of poetry in Hindi literature as it is used to express a range of emotions and ideas. It is also considered to be a versatile form of poetry as it can be composed on various themes and topics.
5. What are some common themes found in Hindi Pad literature?
Ans. Some common themes found in Hindi Pad literature include love, nature, patriotism, spirituality, and social issues. These themes are often explored through various literary devices such as metaphors, similes, and personification.
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