पाठ का परिचय (Introduction of the Lesson)
यह पाठ कन्याओं की हत्या पर रोक और उनकी शिक्षा सुनिश्चित करने की प्रेरणा हेतु निर्मित है। समाज में लड़के और लड़कियों के बीच भेद-भाव की भावना आज भी समाज में यत्र-तत्र देखी जाती है। जिसे दूर किए जाने की आवश्यकता है। संवादात्मक शैली में इस बात को सरल संस्कृत में प्रस्तुत किया गया है।
पाठ-शब्दार्थ एवं सरलार्थ
(क) “शालिनी ग्रीष्मावकाशे पितृगृहम् आगच्छति। सर्वे प्रसन्नमनसा तस्याः स्वागतं कुर्वन्ति परं तस्याः भ्रातृजाया उदासीना इव दृश्यते।”
शालिनी-भ्रातृजाये! चिन्तिता इव प्रतीयसे, सर्वं कुशलं खलु?
माला-आम् शालिनि। कुशलिनी अहम्। त्वदर्थम् किं आनयानि, शीतलपेयं चायं वा?
शालिनी-अधुना तु किमपि न वाञ्छामि। रात्रौ सर्वैः सह भोजनमेव करिष्यामि।
शब्दार्थ : ग्रीष्मावकाशे-ग्रीष्मावकाश में। पितृगृहम्-पिता के घर (मायके) में। प्रसन्नमनसा-खुशी मन से। तस्याः-उसका (शालिनी का)। भ्रातृजाया-भाभी। उदासीना-उदास। दृश्यते-दिखाई देती है। भ्रातृजाये!-हे भाभी। चिन्तिता इव-चिन्तायुक्त सी। प्रतीयसे-दिखाई देती हो। त्वदर्थम्-तुम्हारे लिए। आनयानि-लाऊँ। किमपि-कुछ भी। रात्रौ-रात में। सर्वैःसह-सबके साथ। भोजनम् एव-खाना ही। करिष्यामि-खाऊँगी।
शब्दार्थ: | भावार्थ: |
ग्रीष्मावकाशे | ग्रीष्मावकाश में |
पितृगृहम् | पिता के घर (मायके) में |
प्रसन्नमनसा | खुशी मन से |
तस्याः | उसका (शालिनी का) |
भ्रातृजाया | भाभी |
उदासीना | उदास |
दृश्यते | दिखाई देती है |
भ्रातृजाये! | हे भाभी |
चिन्तिता इव | चिन्तायुक्त सी |
प्रतीयसे | दिखाई देती हो |
त्वदर्थम् | तुम्हारे लिए |
आनयानि | लाऊँ |
किमपि | कुछ भी |
रात्रौ | रात में |
सर्वैःसह | सबके साथ |
भोजनम् एव | खाना ही |
करिष्यामि | खाऊँगी |
सरलार्थ : “शालिनी ग्रीष्मावकाश (गर्मी की छुट्टी) में पिता के घर (मायके) आती है। सभी प्रसन्न मन से उसका स्वागत करते हैं परन्तु उसकी भाभी उदासीन (उदास) सी दिखाई पड़ती है।”
शालिनी-भाभी! चिन्तित (चिन्ता मुक्त) सी दिखाई पड़ती हो, क्या सब कुशल है?
माला-हाँ शालिनी! मैं कुशल हूँ। तुम्हारे लिए क्या लाऊँ, ठंडा अथवा चाय?
शालिनी-अभी (इस समय) तो कुछ भी नहीं चाहती हूँ। रात में सभी के साथ खाना खाऊँगी।
(ख) ( भोजनकालेऽपि मालायाः मनोदशा स्वस्था न प्रतीयते स्म, परं सा मुखेन किमपि नोक्तवती)
राकेशः-भगिनी शालिनि! दिष्ट्या त्वम् समागता। अद्य मम कार्यालये एका महत्वपूर्णा गोष्ठी सहसैव निश्चिता। अद्यैव मालायाः चिकित्सिकया सह मेलनस्य समयः
निर्धारितः त्वम् मालया सह चिकित्सिकां प्रति गच्छ, तस्याः परमर्शानुसारं यविधेयम् तद् सम्पादय।
शालिनी-किमभवत्? भ्रातृजायायाः स्वास्थ्यं समीचीनं नास्ति? अहम् तु ह्यः प्रभृति पश्यामि सा स्वस्था न प्रतिभाति इति प्रतीयते स्म।
राकेशः-चिन्तायाः विषयः नास्ति। त्वम् मालया सह गच्छ। मार्गे सा सर्वं ज्ञापयिष्यति।
शब्दार्थ: | भावार्थ: |
भोजनकाले | खाने के समय में प्रतीयते स्म-लग रही थी |
स्वस्था | स्वस्थ |
उक्तवती | बोली |
दिष्ट्या-सौभाग्य से | समागता-आ गई |
गोष्ठी | मीटिंग
|
सहसा एव | अचानक ही |
निश्चिता | निश्चित हो गई है |
मेलनस्य | मिलने का |
निर्धारितः | निश्चित है |
परामर्शानुसारम् | सलाह के अनुसार |
यद् विधेयम् | जो करने योग्य है |
सम्पादय | करना |
भ्रातृजायायाः | भाभी का |
समीचीनम् | ठीक |
प्रभृति | से |
प्रतिभाति | दिखाई दे रही है |
चिन्तायाः | चिन्ता का |
सर्वम् | सब कुछ |
ज्ञापयिष्यति | बता देगी |
सरलार्थ : (भोजन के समय में भी माला की मन की दशा अच्छी (स्वस्थ) दिखाई नहीं देती थी, परन्तु उसने मुँह से कुछ भी नहीं कहा)
राकेश-बहन शालिनी! सौभाग्य से तुम आ गई। आज मेरे कार्यालय (ऑफिस) में एक महत्वपूर्ण बैठक • (मीटिंग) अचानक ही रख दी गई है। आज ही माला की डॉक्टर के साथ मिलने का समय भी निश्चित है। तुम माला के साथ डॉक्टर के पास जाना, उनकी सलाह के अनुसार जो करना है उसे कर लेना।
शालिनी-क्या हुआ? भाभी का स्वास्थ्य (तबियत) ठीक नहीं है? मैं तो कल से देख रही हूँ वह, स्वस्थ नहीं जान पड़ती (दिखाई पड़ती) है, ऐसा लगता था।
राकेश-चिन्ता की बात नहीं है। तुम माला के साथ जानी। रास्ते में वह सब कुछ बता देगी।
(ग) (माला शालिनी च चिकित्सिकां प्रति गच्छन्तयौ वार्ता कुरुतः )
शालिनी-किमभवत्? भ्रातृजाये? का समस्याऽस्ति?
माला-शालिनि! अहम् मासत्रयस्य गर्दै स्वकुक्षौ धारयामि। तव भ्रातुः आग्रहः अस्ति यत् अहं लिङ्गपरीक्षणं कारयेयम् कुक्षौ कन्याऽस्ति चेत् गर्भ पातयेयम्। अहम् अतीव उद्विग्नाऽस्मि परं तव भ्राता वार्तामेव न शृणोति।
शालिनी-भ्राता एवम् चिन्तायितुमपि कथं प्रभवति? शिशुः कन्याऽस्ति चेत् वधार्हा? जघन्यं कृत्यमिदम्। त्वम् विरोधं न कृतवती? सः तव शरीरे स्थितस्य शिशोः वधार्थं चिन्तयति त्वम् तूष्णीम् तिष्ठसि? अधुनैव गृहं चल, नास्ति आवश्यकता लिंगपरीक्षणस्य। भ्राता यदा गृहम् आगमिष्यति अहम् वार्ता करिष्ये।।
शब्दार्थ: | भावार्थ: |
गच्छन्त्यौ | जाती हुईं |
भ्रातृजाये! | हे भाभी!
|
मासत्रयस्य | तीन महीने का |
स्वकुक्षौ | अपने पेट में |
भ्रातुः | भाई का |
आग्रहः | ज़िद |
कारयेयम् | कराऊँ |
चेत् | यदि |
पातयेयम् | गिरा दें |
उद्विग्ना | परेशान |
प्रभवति | समर्थ हैं |
जघन्यम् | भयानक |
कृतवती | किया |
वधार्थम् | वध के लिए |
सरलार्थ : (माला और शालिनी चिकित्सिका (डॉक्टर) के पास जाती हुई बातचीत करती हैं।) शालिनी-क्या हुआ? भाभी? क्या समस्या है?
माला-शालिनी! तीन मास के गर्भ को अपने पेट में धारण किए हूँ। तुम्हारे भाई की जिद है कि मैं लिंग परीक्षण कराऊँ यदि गर्भ (पेट) में कन्या है तो गर्भ को गिरा हूँ। मैं बहुत परेशान (चिन्तित) हूँ, परन्तु तुम्हारे भाई मेरी बात ही नहीं सुनते हैं।
शालिनी-भाई ऐसा सोच भी कैसे सकते हैं? यदि शिशु कन्या है तो वध के (मारने) लायक है? यह तो जघन्य (महापाप) अपराध है। तुमने विरोध नहीं किया? वह तुम्हारे शरीर (पेट) में स्थित शिशु के वध के लिए सोचते हैं, तुम चुप रहती हो? अभी ही घर चलो, लिंग परीक्षण की आवश्यकता नहीं है। भाई जब घर आएँगे तो मैं बात करूंगी।
(घ) ( संध्याकाले भ्राता आगच्छति हस्तपादादिकं प्रक्षाल्य वस्त्राणि च परिवर्त्य पूजागृह गत्वा दीप प्रज्चालयति भवानीस्तुतिं चापि करोति। तदनन्तरं चायपानार्थम् सर्वेऽपि एकत्रिताः।)
राकेशः-माले! त्वम् चिकित्सिकां प्रति गतवती आसीः, किम् अकथयत् सा? ( माला मौनमेवाश्रयति। तदैव क्रीडन्ती त्रिवर्षीया पुत्री अम्बिका पितुः क्रोडे उपविशति तस्मात् चाकलेहं च याचते। राकेशः अम्बिकां लालयति, चाकलेहं प्रदाय ताम् क्रोडात् अवतारयति। पुनः मालां प्रति प्रश्नवाचिका दृष्टि क्षिपति। शालिनी एतत् सर्वं दृष्ट्वा उत्तरं ददाति।)
शब्दार्थ: | भावार्थ: |
संध्याकाले | शाम के समय में |
हस्तपादादिकम् | हाथ-पैर आदि का प्रक्षाल्य-धोकर |
परिवर्त्य
| बदलकर |
प्रज्वालयति | जलाता है |
भवानीस्तुतिम् | देवी की स्तुति को |
तदनन्तरम् | उसके बाद |
गतवती | गई |
आसीः | थी |
मौनम् | मौन (चुप) |
एवं | ही |
आश्रयति | धारण करती है |
क्रीडन्ती | खेलती हुई |
त्रिवर्षीया | तीन वर्ष की |
क्रोडे | गोद में |
उपविशति | बैठ जाती है |
लालयति | प्यार करता है |
प्रदाय | देकर |
अवतारयति | उतार देता है |
प्रश्नवाचिकाम् | प्रश्न भरी |
क्षिपति | डालता है |
सरलार्थ : (शाम को भाई आते हैं हाथ-पैर आदि को धोकर और कपड़ों को बदलकर पूजाघर में जाकर दीपक जलाते हैं और देवी की पूजा भी करते हैं। उसके बाद चाय पीने के लिए सभी एक स्थान पर मिलते हैं।)
राकेश-माला! तुम डॉक्टर के पास गई थी, उसने क्या कहा?
(माली मौन ही धारण कर लेती है। तभी खेलती हुई तीन साल की बेटी अम्बिका पिता की गोद में बैठ जाती है और उनसे चॉकलेट माँगती है। राकेश अम्बिका को प्यार करता है, चॉकलेट देकर उसे गोद से उतारता है। फिर माला की ओर प्रश्न सूचक नज़र डालता (संकेत) है। शालिनी यह सब देखकर उत्तर देती है।)
(ङ) शालिनी-भ्रातः! त्वम् किम् ज्ञातुमिच्छसि? तस्याः कुक्षि पुत्रः अस्ति पुत्री वा? किमर्थम्? षण्मासानन्तरं सर्वं स्पष्ट भविष्यति, समयात् पूर्वी किमर्थम् अयम् आयासः?
राकेशः-भगिनि, त्वं तु जानासि एव अस्माकं गृहे अम्बिका पुत्रीरूपेण अस्त्येव अधुना एकस्य पुत्रस्य आवश्यकताऽस्ति तर्हि……।
शालिनी-तर्हि कुक्षि पुत्री अस्ति चेत् हन्तव्या? (तीव्रस्वरेण) हत्यायाः पापं कर्तुं प्रवृत्तोऽसि त्वम्।।
राकेशः-न, हत्या तु न………….
शालिनी-तर्हि किमस्ति निघृणं कृत्यमिदम्? सर्वथा विस्मृतवान् अस्माकं जनकः कदापि पुत्रीपुत्रमयः विभेदं न कृतवान्? सः सर्वदेव मनुस्मृतेः पंक्तिमिमाम् उद्धरति स्म “आत्मा वै जायते पुत्रः पुत्रेण दुहिता समा”। त्वमपि सायं प्रातः देवीस्तुतिं करोषि? किमर्थं सृष्टेः उत्पादिन्याः शक्त्याः तिरस्कारं करोषि? तव मनसि इयती कुत्सिता वृत्तिः आगता, इदम् चिन्तयित्वैव अहम् कुण्ठिताऽस्मि। तव शिक्षा वृथा…..
शब्दार्थ: | भावार्थ: |
ज्ञातुम् | जानना (जानने के लिए) |
इच्छसि | चाहते हो |
तस्याः | उसके |
कुक्षि | गर्भ में |
किमर्थम् | क्यों (किसलिए) |
षण्मासानन्तरम् | छह मास के बाद |
आयासः | प्रयास |
भगिनि | हे बहन |
अस्त्येव (अस्ति+एव) | है ही |
तर्हि | तो |
चेत् | यदि |
उत्पादिन्याः | उत्पन्न करने वाली |
शक्त्याः | शक्ति का |
तिरस्कारम् | भूल गए |
पुत्रीपुत्रमयः | बेटी-बेटा रूप |
विभेदम् | भेद |
कृतवान् | किया था |
जायते | पैदा होता है |
दुहिता | बेटी |
समा | समान होती है |
सृष्टेः | संसार की |
कुत्सिता | बुरी |
प्रवृत्तिः | विचार |
कुष्ठिता | चिन्तित |
वृथा | बेकार में |
सरलार्थ : शालिनी-भाई! तुम क्या जानना चाहते हो? उसके पेट में पुत्र है अथवा पुत्री? किसलिए? छह महीने के बाद सब स्पष्ट तो जाएगा, समय से पहले किसलिए यह कोशिश (हो रही है)?
राकेश-बहन, तुम तो जानती हो ही हमारे घर में अम्बिका पुत्री के रूप में है ही। अब एक पुत्र की जरूरत है तो……..
शालिनी-तो गर्भ में बेटी है यदि तो मार देनी चाहिए? (तेज़ आवाज़ से) हत्या का पाप करने में तुम लग गए।
राकेश-नहीं, हत्या तो नहीं…….।
शालिनी-तो यह घृणा के योग्य कार्य क्या है? बिलकुल भूल गए हमारे पिता ने कभी पुत्र और पुत्री में यह भेद नहीं किया था? वे सदैव मनुस्मृति की इस पंक्ति का उदाहरण देते थे-“निश्चय से पिता की आत्मा ही पुत्र के रूप में जन्म लेती है और पुत्र के समान ही पुत्री होती है।” तुम भी सायं-प्रात: देवी की स्तुति करते हो? क्यों सृष्टि की उत्पादक शक्ति का अपमान करते हो? तुम्हारे मन में इतनी गलत प्रवृत्ति आ गई, यह सोचकर ही मैं चिन्तित हूँ। तुम्हारी पढ़ाई बेकार…..
(च) राकेशः-भगिनि! विरम विरम। अहम् स्वापराधं स्वीकरोमि लज्जितश्चास्मि। अद्यप्रभृति
कदापि गर्हितमिदं कार्यम् स्वप्नेऽपि न चिन्तयिष्यामि। यथैव अम्बिका मम हृदयस्य संपूर्ण स्नेहस्य अधिकारिणी अस्ति, तथैव आगन्ता शिशुः अपि स्नेहाधिकारी भविष्यति पुत्रः भवतु पुत्री वा। अहम् स्वगर्हितचिन्तनं प्रति पश्चात्तापमग्नः अस्मि, अहम् कथं विस्मृतवान् ।
“यत्र नार्यस्तु पूज्यते रमन्ते तत्र देवताः।
यत्रैताः न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः।”
अथवा “पितुर्दशगुणा मातेति।” त्वया सन्मार्गः प्रदर्शितः भगिनि। कनिष्ठाऽपि त्वम् मम गुरुरसि।
शब्दार्थ: | भावार्थ: |
विरम-विरम | रुको-रुको |
लज्जितः | शर्मिंदा |
अद्यप्रभृति | आज से |
गर्हितम् | पाप रूप |
इदम् | यह |
स्वप्नेऽपि | सपने में भी |
स्नेहस्य | प्यार का/की |
अधिकारिणी | अधिकार वाली |
आगन्ता | आनेवाली/वाला |
शिशुः | बच्चा |
स्नेहाधिकारी | प्यार का अधिकारी |
कनिष्ठा | छोटी |
स्वगर्हिताचिन्तम् | अपनी गलत सोच |
प्रति | के लिए |
पश्चात्तापमग्नः | पछताने में मग्न |
विस्मृतवान् | भूल गया |
नार्यः | नारियाँ |
पूज्यन्ते | पूजी जाती हैं |
रमन्ते | निवास करते हैं |
यत्र, एताः | जहाँ, ये |
अफलाः | निष्फल |
क्रियाः | क्रियाएँ |
पितुः | पिता का |
दशगुणा | दस गुणा अधिक |
प्रदर्शितः | दिखाया |
गुरुः | गुरु (बड़ी) |
सरलार्थ : राकेश-हे बहन! रुको-रुको। मैं अपना अपराध स्वीकार करता हूँ और शर्मिंदा हूँ। आज से यह निन्दा के योग्य काम (को) स्वप्न में भी करना नहीं सोचूंगा। जैसे अम्बिका मेरे दिल (कलेजे) के सारे प्यार की अधिकारी है वैसे ही आने वाला शिशु (बच्चा) भी प्यार का अधिकारी होगा, पुत्र हो अथवा पुत्री। मैं अपने गन्दे सोच के लिए पछतावे से भर गया हूँ। मैं कैसे भूल गया
जहाँ नारियाँ पूजी जाती हैं वहाँ देवता रमण (निवास) करते हैं। जहाँ ये नहीं पूजी जातीं वहाँ सारी क्रियाएँ असफल हो जाती हैं।”
अथवा-पिता से दस गुना अधिक माँ होती है।” तुमने अच्छा रास्ता दिखाया बहन। छोटी होती हुई भी तुम मेरी गुरु (बड़ी) हो।
(छ) शालिनी–अलम् पश्चात्तापेन। तव मनसः अन्धकारः अपगतः प्रसन्नतायाः विषयोऽयम्। भ्रातृजाये! आगच्छ। सर्वां चिन्तां ज्यजे आगन्तुः शिशोः स्वागताय च सन्नद्धा भव। भ्रातः त्वमपि प्रतिज्ञां कुरु-कन्यायाः रक्षणे, तस्याः पाठने दत्तचित्तः स्थास्यसि “पुत्रीं रक्ष, पुत्रीं पाठय” इतिसर्वकारस्य घोषणेयं तदैव सार्थिका भविष्यति यदा वयं सर्वे मिलित्वा चिन्तनमिदं यथार्थरूपं करिष्यामः
या गार्गी श्रुतचिन्तने नृपनये पाञ्चालिका विक्रमे।
लक्ष्मीः शत्रुविदारणे गगनं विज्ञानाङ्गणे कल्पना।
इन्द्रोद्योगपथे च खेलजगति ख्याताभितः साइना
सेयं स्त्री सकलासु दिक्षु सबला सर्वैः सदोत्साह्यताम्।
शब्दार्थ: | भावार्थ: |
अलम् | बस करो |
पश्चात्तापेन | पछताने से |
मनसः | मन का |
अन्धकारः | अँधेरा |
अपगतः | दूर हो गया |
भ्रातृजाये! | हे भाभी |
आगन्तुः | आने वाली (का) |
सन्नद्धा | तैयार |
पाठने | पढ़ाने में |
दत्तचित्तः | ध्यान देने वाले |
स्थास्यसि | रहोगे (बनोगे) |
दिक्षु | दिशाओं में |
सबला | बलशालिनी |
पुत्रीम् | पुत्री को |
पाठय | पढ़ाओ |
इति | इस प्रकार की |
सर्वकारस्य | सरकार की |
सार्थिका | सार्थक (सफल) |
यथार्थरूपम् | सही |
श्रुतचिन्तने | शास्त्रों के चिन्तन में |
नृपनये | राजा को प्रभावित करने में |
शत्रुविदारणे | शत्रुओं का नाश करने में |
विज्ञानाङ्गणे | विज्ञान के आँगन में उद्योगपथे-उद्योग के मार्ग पर |
इन्द्रा | इन्दिरा नूई |
ख्याताभितः | चारों ओर से प्रसिद्ध |
सकलासु | सभी |
सदा | हमेशा। उत्साह्यताम्-उत्साहित करें। |
सरलार्थ : शालिनी-पछताओ मत। तुम्हारे मन का अँधेरा दूर हो गया, यह खुशी का विषय है। भाभी! आओ। सारी चिन्ता को छोड़ो ओर आने वाले बच्चे के स्वागत के लिए तैयार हो जाओ। भाई! तुम भी प्रतिज्ञा करो-कन्या की रक्षा में और उसकी पढ़ाई में ध्यान दोगे “पुत्री की रक्षा करो पुत्री को पढ़ाओ।” सरकार की यह घोषणा तभी सार्थक होगी जब हम सब मिलकर यह चिन्तन यथार्थ (सही) रूप में करेंगे। जिस तरह से गार्गी शास्त्रों के ज्ञान के चिन्तन और राजा जनक को प्रभावित करने में, द्रौपदी पराक्रम में, लक्ष्मीबाई शत्रुओं का नाश करने में, कल्पना चावला विज्ञान के विशाल आकाश रूपी आँगन में, इन्द्रा नूई उद्योग मार्ग में, साइना खेल जगत् में प्रसिद्धि पाई। उसी तरह से सभी स्त्रियाँ सभी दिशाओं में सबल हों, सबके द्वारा सदा उत्साहित की जाएँ।