Class 8 Exam  >  Class 8 Notes  >  संस्कृत कक्षा 8 (Sanskrit Class 8)  >  पाठ-शब्दार्थ एवं सरलार्थ - भारतजनताऽहम्, रुचिरा, संस्कृत , कक्षा - 8

पाठ-शब्दार्थ एवं सरलार्थ - भारतजनताऽहम्, रुचिरा, संस्कृत , कक्षा - 8 | संस्कृत कक्षा 8 (Sanskrit Class 8) PDF Download

पाठ का परिचय (Introduction of the Lesson)
प्रस्तुत कविता आधुनिक कविकुलशिरोमणि डॉ० रमाकान्त शुक्ल द्वारा रचित काव्य ‘भारतजनताऽहम्’ से साभार उद्धृत है। इस कविता में कवि भारतीय जनता के सरोकारों, विविध कौशलों, विविध रुचियों आदि का उल्लेख करते हुए बताते हैं कि भारतीय जनता की क्या-क्या विशेषताएँ हैं।

पाठ-शब्दार्थ एवं सरलार्थ |
(क) अभिमानधना विनयोपेता, शालीना भारतजनताऽहम्।
कुलिशादपि कठिना कुसुमादपि, सुकुमारा भारतजनताऽहम्॥

 शब्दार्थ: भावार्थ 
 अभिमान स्वाभिमान
 विनय-उपेता नम्रता से भरी हुई
 शालीना अच्छे गुणों वाली
 भारतजनता भारतीय जनता
 कुलिशात् वज्र से
 कठिना कठोर
 सुकुमारा अतीव कोमल


सरलार्थ:- स्वाभिमान रूपी धन वाली, विनम्रता से परिपूर्ण (भरी हुई), अच्छे स्वभाव वाली मैं भारत की जनता हूँ। वज्र से भी कठोर, फूल से भी अधिक कोमल मैं भारत की जनता हूँ।

(ख) निवसामि समस्ते संसारे, मन्ये च कुटुम्बं वसुन्धराम्।
प्रेयः श्रेयः च चिगोम्युभ्यं, सुविवेका भारतजनताऽहम्॥

 शब्दार्थ: भावार्थ:
 निवसामि निवास करती हूँ
 समस्ते सारे
 संसारे संसार में
 मन्ये मानती हूँ
 कुटुम्बम् परिवार (को) प्रेयः-भौतिक सुख को
 श्रेयः आध्यात्मिक सुख को
 चिनोमि चुनती हूँ
 उभयम् दोनों को
 सुविवेका विवेकशील (विवेक बुद्धि वाली)


सरलार्थः- मैं सारे संसार में निवास करती हूँ और पूरी धरती को परिवार मानती हूँ। रुचिकर और। कल्याणकारी दोनों प्रकार की वस्तुओं को चुनती हूँ। मैं विवेकशील भारत की जनता हूँ।

(ग) विज्ञानधनाऽहं ज्ञानधना, साहित्यकला-सङ्गीतपरा।
अध्यात्मसुधातटिनी-स्नानैः, परिपूता भारतजनताऽहम्॥

 शब्दार्थ:  भावार्थ:
 विज्ञानधना विज्ञान रूपी धन वाली
 ज्ञानधना ज्ञान रूपी धन वाली
 परा निपुण
 अध्यात्म सुधातटिनी अध्यात्म के अमृत की नदी (में)
 स्नानैः स्नान करने से
 परिपूता पवित्र


सरलार्थ :- मैं विज्ञान रूपी धन वाली, ज्ञान रूपी धन वाली हूँ। मैं साहित्य, कला और संगीत में निपुण हूँ। मैं अध्यात्म रूपी अमृतमयी नदी में स्नान करने से पूर्ण पवित्र भारत की जनता हूँ।

(घ) मम गीतैर्मुग्धं समं जगत्, मम नृत्यैर्मुग्धं समं जगत्।।
मम काव्यैर्मुग्धं समं जगत्, रसभरिता भारतजनताऽहम्॥

 शब्दार्थ: भावार्थ:
 मम मेरे
 गीतैः गीतों से
 मुग्धम् मोहित है
 समम् सारा
 जगत् संसार
 नृत्यैः नृत्यों (नाच) से
 काव्यैः कविताओं से
 रसभरिता रस से भरी हुई
 भारतजनता भारत की जनता


सरलार्थः- मेरे गीतों से सारा संसार मोहित है, मेरे नृत्यों से सारा संसार मोहित है। मेरे काव्यों (कविताओं) से सारा संसार मोहित है। मैं रस (आनन्द के रस) से भरी (परिपूर्ण) हुई भारत की जानता हूँ।

(ङ) उत्सवप्रियाऽहं श्रमप्रिया, पदयात्रा-देशाटन-प्रिया।
लोकक्रीडासक्ता वर्धेऽतिथिदेवा, भारतजनताऽहम्॥

शब्दार्थ : उत्सवप्रिया-उत्सवों से प्रेम करने वाली। श्रमप्रिया-मेहनत से प्रेम करने वाली। पदयात्रा-पैदल यात्रा। देशाटन-प्रिया-देश के भ्रमण से प्रेम करने वाली। लोकक्रीडासक्ती-जनता के खेलों पर आकर्षित। वर्धे-बढ़ाती हूँ। अतिथिदेवा-अतिथि को देवता की तरह मानने वाली।

 शब्दार्थ: भावार्थ:
 उत्सवप्रिया उत्सवों से प्रेम करने वाली
 श्रमप्रिया मेहनत से प्रेम करने वाली
 पदयात्रा पैदल यात्रा
 देशाटन-प्रिया देश के भ्रमण से प्रेम करने वाली
 लोकक्रीडासक्ती जनता के खेलों पर आकर्षित। वर्धे-बढ़ाती हूँ
 अतिथिदेवा अतिथि को देवता की तरह मानने वाली


सरलार्थ:- मैं उत्सवों से प्रेम करने वाली, परिश्रम (मेहनत) से प्रेम करने वाली, पद (पैदल की) यात्राओं तथा देश में भ्रमण से प्रेम करने वाली हूँ। मैं प्रजाओं (लोक) के खेलों पर मोहित, अतिथियों को देवता की तरह समझने वाली भारत की जनता हूँ।

(च) मैत्री मे सहजा प्रकृतिरस्ति, नो दुर्बलतायाः पर्यायः।
मित्रस्य चक्षुषा संसार, पश्यन्ती भारतजनताऽहम्॥

 शब्दार्थ: भावार्थ:
 मैत्री मित्रता
 मे मेरी
 सहजा सामान्य
 नः (न) नहीं
 दुर्बलतायाः कमजोरी का
 पर्यायः पर्यायवाची (दूसरा नाम)
 मित्रस्य मित्र की
 चक्षुषा आँखों से
 संसाराम् संसार को
 पश्यन्ती देखती हुई (देखने वाली)
 अहम् मैं


सरलार्थ:- मित्रता मेरी सामान्य आदत (स्वभाव) है, यह मेरी दुर्बलता (कमज़ोरी) का पर्याय नहीं है। मैं मित्र की दृष्टि से संसार को देखती हुई भारत की जानता हूँ।

(छ) विश्वस्मिन् जगति गताहमस्मि, विश्वस्मिन् जगति सदा दृश्ते।
विश्वस्मिन् जगाति करोमि कर्म, कर्मण्या भारतजनताऽहम्॥

शब्दार्थ: विश्वस्मिन्-सारे जगति-संसार में गता-गई हुई। अहमस्मि-मैं हूँ। सदा-हमेशा। दृश्ये-देखती हूँ। कर्म-काम को। करोमि-करती हूँ। कर्मण्या-कर्म से युक्त (कर्मशील)।

 शब्दार्थ: भावार्थ:
 विश्वस्मिन् सारे जगति-संसार में गता-गई हुई
 अहमस्मि मैं हूँ
 सदा हमेशा
 दृश्ये देखती हूँ
 कर्म काम को
 करोमि करती हूँ
 कर्मण्या कर्म से युक्त (कर्मशील)


सरलार्थः- मैं इस सम्पूर्ण विश्व में गई हुई हूँ. मैं इसे सम्पूर्ण विश्व को सदा देखती हूँ। मैं इस सम्पूर्ण विश्व में कार्य (कर्म) करती हूँ, मैं कर्मशील (कार्य करने वाली) भारत की जनता हूँ।

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FAQs on पाठ-शब्दार्थ एवं सरलार्थ - भारतजनताऽहम्, रुचिरा, संस्कृत , कक्षा - 8 - संस्कृत कक्षा 8 (Sanskrit Class 8)

1. भारतजनता का अर्थ क्या होता है?
उत्तर: भारतजनता का अर्थ होता है "भारतीय लोग" या "भारतीय जनसंख्या"। इस शब्द का उपयोग भारत की जनसंख्या और उसके नागरिकों को संकेतित करने के लिए किया जाता है।
2. रुचिरा का अर्थ क्या होता है?
उत्तर: रुचिरा शब्द संस्कृत भाषा में आनंद, मजा या सुख को संकेतित करने के लिए प्रयोग होता है। यह शब्द आनंददायक, मनोहारी या मजेदार चीज़ के बारे में बताने के लिए भी उपयोग होता है।
3. संस्कृत क्या है और इसका महत्व क्या है?
उत्तर: संस्कृत एक प्राचीन भारतीय भाषा है जो भारतीय सभ्यता, धर्म, विज्ञान, और साहित्य के लिए महत्वपूर्ण है। इसका महत्व इसे एक संपूर्ण और व्यापक भाषा के रूप में मान्यता दिया जाता है जो अनेक विषयों में विशेषज्ञता प्राप्त करने में मदद करता है।
4. कक्षा 8 में परीक्षा के बारे में जानकारी क्या है?
उत्तर: कक्षा 8 में परीक्षा छात्रों के अध्ययन की प्रगति का मापन करने के लिए आयोजित की जाती है। इसमें छात्रों को विभिन्न विषयों में प्रश्नों का सामान्य ज्ञान, समझ, और विचारशीलता का परीक्षण किया जाता है। कक्षा 8 की परीक्षा छात्रों को अगले वर्ग में प्रवेश के लिए अनुमानित क्षमता और योग्यता का मापन करने में मदद करती है।
5. भारतजनता, रुचिरा और संस्कृत के बीच क्या संबंध है?
उत्तर: भारतजनता, रुचिरा और संस्कृत तीनों भारतीय संस्कृति और भाषा के महत्वपूर्ण अंग हैं। भारतजनता भारतीय लोगों या जनसंख्या को संकेतित करता है, रुचिरा आनंद और मजा को संकेतित करता है और संस्कृत एक प्राचीन भाषा है जो भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है। संस्कृत भाषा में अनेक महत्वपूर्ण ग्रंथ और साहित्य का विकास हुआ है और इसे पढ़ना और समझना भारतीय विद्यालयों में महत्वपूर्ण है।
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