EduRev के इस आर्टिकल की मदद से आप बाल विकास एवं अध्ययन विद्या (Child Development and Pedagogy) ke टॉपिक "पाठ्यक्रम: परिभाषा, आवश्यकता, उद्देश्य एवं महत्व" को अच्छे से समझ सकते हैं।
पाठ्यक्रम (Curriculum) एक शिक्षा का आधार हैं जिसकी राह पर चलकर शिक्षा के उद्देश्यों की पूर्ति की जाती हैं। पाठ्यक्रम के अनुसार ही छात्र अपना अधिगम कार्य करते हैं। पाठ्यक्रम द्वारा ही विषयों को क्रमबद्ध तरीके से किया जाता हैं। समाज की आवश्यकता को देखते हुए ही किसी भी पाठ्यक्रम का निर्माण किया जाना आवश्यक हैं।
पाठ्यक्रम के निर्माण में निम्नलिखित उद्देश्य होते हैं-
पाठ्यक्रम निर्माण के अनेक सिद्धांत हैं। सिद्धांत अनेक हैं और इसी कारण पाठ्यक्रम के भी अनेक प्रकार हैं। पाठ्यक्रम के प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं-
इसके अतिरिक्त एकीकृत पाठ्यक्रमए बुनियादी शिक्षा का पाठ्यक्रमए अन्तरविहीन पाठ्यक्रम आदि अनेक प्रकार के पाठ्यक्रम हो सकते हैं।
डाॅ. चालमैन एवं डाॅ. वल्कर के अनुसार बच्चों के स्कूल छोड़ने के प्रमुख कारण:
1. परिवार की सामाजिक, आर्थिक स्थिति।
2. परिवार एवं विद्यालय के वातावरण का बदलाव।
3. कुसमायोजित माता-पिता, सहपाठी का प्रभाव।
4. माता-पिता की स्वीकृति या अस्वीकृति का प्रभाव।
5. सीखने की परिस्थिति का प्रभाव।
6. परीक्षा की असफलता।
7. अत्यधिक डांट-फटकार का प्रभाव।
8. विद्यालय के दूषित वातावरण का कुप्रभाव।
प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक जे.डी. अरस्तेह के अनुसार ‘पोशाक धारण करने के बाद सृजनात्मकता का विकास होता है और उनमें आत्मविश्वास, बौद्धिक स्थिरता, जिज्ञासा, साहसिकता, विनोदप्रियता, वैचारिक स्पष्टता, आत्मानुशासन, उच्च अभिलाषाएं, लचीलापन, सौन्दर्यात्मक आदर्श आदि में वृद्धि होती है।’
बेल्ट बांधने, जूता-मोजा आदि नियमित रूप से धारण करने के पीछे भी एक विशेष मकसद होता है। दिल्ली के एक प्रसिद्ध एक्यूप्रेशर (दबाव चिकित्सा) विशेषज्ञ डाॅ. राधा गुप्त के अनुसार कमर पर नियमित रूप से बेल्ट बांधने से एक विशेष नस पर दबाव पड़ता रहता है। जिससे कमर दर्द, रीढ़ की हड्डी का दर्द, आदि अनेक बीमारियों से बच्चा बचा रहता है।
जूता एवं मोजा पहनने से पैर एवं उसके जोड़ की कुछ नसों पर दबाव पड़ता रहता है। ये दबाव ऐसे होते हैं जिनके करण मिरगी, हाईब्लडप्रेशर आदि का दौरा नहीं पड़ता है। साथ ही मस्तिष्क की ज्ञान तंतुओं को भी चेतना प्राप्त होती रहती है।
सारांश: पोशाक की आवश्यकता, उद्देश्य महत्व व कारण
परिभाषा तथा विशेषतायें खेल मानव की जन्म-जात प्रवृत्ति है। बालक जन्म से ही हाथ-पैर फेंकना आरंभ कर देता है। प्रौढ़ावस्था तक वह किसी-न-किसी प्रकार के खेल खेलता रहता है। खेल वह क्रिया है जिस पर बालक का समस्त जीवन आधारित है। बालक की शक्ति का उपयोग खेल में ही होता है। इससे बालक की कल्पना-शक्ति विकसित होती है।
1. What is the meaning of the term "पाठ्यक्रम"? |
2. What is the purpose of having a curriculum? |
3. How many types of curriculums are there and what are their characteristics? |
4. What are some reasons why children drop out of school? |
5. Why is physical education important in a curriculum? |
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