Class 8 Exam  >  Class 8 Notes  >  कक्षा - 8 हिन्दी (Class 8 Hindi) by VP Classes  >  प्रश्न-अभ्यास - जब सिनेमा ने बोलना सीखा , हिंदी, कक्षा - 8

प्रश्न-अभ्यास - जब सिनेमा ने बोलना सीखा , हिंदी, कक्षा - 8 | कक्षा - 8 हिन्दी (Class 8 Hindi) by VP Classes PDF Download

पाठ से

प्रश्न 1.जब पहली बोलती फ़िल्म प्रदर्शित हुई तो उसके पोस्टरों पर कौन-से वाक्य छापे गए? उस फ़िल्म में कितने चेहरे थे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर जब पहली बोलती फ़िल्म प्रदर्शित हुई तो उसके पोस्टरों पर छापा गया था- वे सभी सजीव हैं, साँस ले रहे हैं, शत-प्रतिशत बोल रहे हैं, अठहत्तर मुर्दा इंसान जिंदा हो गए, उनको बोलते, बातें करते देखो।उस फ़िल्म में अठहत्तर चेहरे थे। अर्थात उस फ़िल्म (आलम आरा) में अठहत्तर कलाकार काम कर रहे थे।

प्रश्न 2. पहला बोलता सिनेमा बनाने के लिए फ़िल्मकार अर्देशिर एम. ईरानी को प्रेरणा कहाँ से मिली? उन्होंने आलम आरा* फ़िल्म के लिए आधार कहाँ से लिया? विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर - पहला बोलता सिनेमा बनाने के लिए फ़िल्मकार अर्देशिर एम. ईरानी को प्रेरणा हॉलीवुड की एक बोलती फ़िल्म देखकर मिली। इस फ़िल्म का नाम ‘शो-बोट’ था।सवाक् फ़िल्म आलम आरा* बनाने के लिए पारसी रंगमंच के नाटक को आधार बनाकर पटकथा तैयार की गई। उसके गीतों को भी इस फ़िल्म में ज्यों-का-त्यों रखा गया।

प्रश्न 3.विटठ्ल का चयन आलम आरा* फ़िल्म के नायक के रूप में हुआ लेकिन उन्हें हटाया क्यों गया? विटठ्ल ने पुन: नायक होने के लिए क्या किया? विचार प्रकट कीजिए। 
उत्तर  - जिस समय ‘आलम आरा’ फ़िल्म बननेवाली स्नद्मद्ध उस समय विटठ्ल प्रसिद्ध अभिनेता के रूप में जाने जाते थे। उनका चयन फ़िल्म के नायक के लिए कर लिया गया] पर उन्हें उर्दू बोलने में परेशानी होती थी, इसलिए उन्हें हटाया गया।विटठ्ल ने पुन: नायक बनने कह्य लिए मुकदमा कर दिया। तत्कालीन सुप्रसिद्ध वकील मोहम्मद अली जिन्ना ने उनका मुकदमा लड़ा। इस मुकदमे में विटठ्ल जीत गए और वे पुन: फ़िल्म के नायक बने। 

प्रश्न 4.पहली सवाक् फ़िल्म के निर्माता-निर्देशक अर्देशिर को जब सम्मानित किया गया तब सम्मानकर्ताओं ने उनके लिए क्या कहा था? अर्देशिर ने क्या कहा? और इस प्रसंग में लेखक ने क्या टिप्पणी की है? लिखिए। 
उत्तर  - पहली सवाक् फ़िल्म के निर्माता-निर्देशक अर्देशिर को जब सम्मानित किया गया तब सम्मानताओं ने उन्हें ‘भारतीय सवाक् फिल्मों का पिता’ कहकर उनका सम्मान किया।इस अवसर पर निर्देशक ने कहा- ‘‘मुझे इतना बड़ा सम्मान देने की आवश्यकता नहीं है। मैंने तो देश के लिए अपने हिस्से का ज्जरूरी योगदान दिया है।’इस प्रसंग में लेखक ने टिप्पणी करते हुए कहा है कि वे अत्यंत विनम्र व्यक्ति थे। वे उस सवाक् सिनेमा के जनक थे, जिनकी उपलब्धि को भारतीय सिनेमा के जनक फाल्के को भी अपनाना पड़ा, क्योंकि वहाँ से सिनेमा का एक नया युग शुरू हो गया था।

पाठ से आगे

प्रश्न 1. मूक सिनेमा में संवाद नहीं होते, उसमें दैहिक अभिनय की प्रधानता होती है। पर, जब सिनेमा बोलने लगातो उसमे अनेक परिर्वतन हुए। उन परिवर्तनों को अभिनेता, दर्शक और कुछ तकनीकी दृष्टि से पाठ का आधार लेकर खोजें, साथ ही अपनी कल्पना का भी सहयोग लें।

उत्तर - मूक सिनेमा अर्थात ऐसा सिनेमा जिसमें हम कलाकारों को अभिनय करते हुए देखते हैं, पर उनकी आवाज्ज नहीं सुन पाते। उसमें शारीरिक अभिनय की प्रधानता होती है। यही सिनेमा जब बोलने लगा तो उसमें अनेक परिवर्तन हुए। अभिनेता, दर्शक और तकनीकी दृष्टि से जो महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए वे निम्नलिखित हैं- 

अभिनेता की दृष्टि से - फ़िल्मो में काम करनेवाले नायकों में पहलवान जैसा शरीर होना, स्टंट तथा उछल-कूद करने की क्षमता पर ध्यान देकर चुना जाता था किंतु सवाक् सिनेमा में इन्हीं अभिनेताओं को संवादकला में निपुण होना आवश्यक हो गया। इसके अलावा गायन की योग्यता रखनेवाले अभिनेताओं की कद्र बढ़ गई।

दर्शक की दृष्टि से- यूँ तो उस समय मूक सिनेमा भी अपनी लोकप्रियता के शिखर पर था और दर्शक उन्हें पसंद भी कर रहे थे, किंतु सवाक् फ़िल्मो में लोगों की रुचि क्रमश: बढ़ती गई। इसमें उमड़ती भीड़ को नियंत्रित करना पुलिस के लिए कठिन होता था। सवाक सिनेमा दर्शकों के लिए नया अनुभव था।

तकनीकी दृष्टि से- सिनेमा के सवाक् होने से उसके तकनीकी स्वरूप में भी प्रयात परिवर्तन आ गया। पहले शूटिंग जहाँ दिन में ही पूरी कर ली जाती थी, वहीं अब रात में भी शूटिंग होने लगी। सिनेमा में आवाज्ज का होना अलग प्रभाव छोड़ता था। हिंदी-उर्दू के मेलवाली ‘हिंदुस्तानी भाषा’ की लोकप्रियता बढ़ी। वाद्य - यंत्रों और गीत-संगीत का प्रयोग भी बढ़ गया।

प्रश्न 2. डब फ़िल्म किसे कहते हैं? कभी-कभी डब फ़िल्मो में अभिनेता के मुँह खोलने और आवाज्ज में अंतर आ जाता है। इसका कारण क्या हो सकता है?
उत्तर - कभी-कभी सवाक् सिनेमा में अभिनय करनेवाले अभिनेता और अभिनेत्रियाँ संवाद बोलते तो हैं पर उनकी अपनी आवाज्ज नहीं होती। अर्थात वे किसी और के बोले संवाद पर अभिनय करते हैं। ऐसी फ़िल्मे डब -फ़िल्मे कहलाती हैं।कभी-कभी फ़िल्मो में अभिनेता के मुँह खोलने और आवाज में अंतर आ जाता है। अभिनय और संवाद-संयोजन में कमी, संयोजनकर्ता का पूरी तरह दक्ष न होना, डब आवाज तथा अभिनय करनेवाले के मुँह खोलने-बंद करने की असमान गति तथा अभिनेता की तालमेल  बैठाने की असफलता के कारण ऐसा हो जाता है।

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FAQs on प्रश्न-अभ्यास - जब सिनेमा ने बोलना सीखा , हिंदी, कक्षा - 8 - कक्षा - 8 हिन्दी (Class 8 Hindi) by VP Classes

1. सिनेमा ने बोलना सीखने के लिए किस तरह का साधन प्रयोग किया गया है?
उत्तर: सिनेमा ने बोलना सीखने के लिए लिपि-प्रदर्शन का साधन प्रयोग किया है। इसमें वाद्य और संगीत का भी प्रयोग किया जाता है, जिससे दर्शकों को स्वर और वाचिक दोनों रूपों में संगीत का आनंद मिलता है।
2. सिनेमा में बोली जाने वाली भाषा क्या होती है?
उत्तर: सिनेमा में बोली जाने वाली भाषा हिंदी होती है। यह हिंदी भाषा कक्षा 8 के छात्रों के लिए प्रश्न-अभ्यास के रूप में प्रस्तुत की गई है।
3. सिनेमा में बोलना सीखने के लिए कौन-कौन से साधन प्रयोग किए जाते हैं?
उत्तर: सिनेमा में बोलना सीखने के लिए वाद्य, संगीत, और लिपि-प्रदर्शन जैसे साधन प्रयोग किए जाते हैं। इन साधनों का प्रयोग करके दर्शकों को स्वर और वाचिक दोनों रूपों में संगीत का आनंद मिलता है और उन्हें बोली जाने वाली भाषा सीखने में मदद मिलती है।
4. सिनेमा में बोलना सीखने का महत्व क्या है?
उत्तर: सिनेमा में बोलना सीखने का महत्व इसलिए है क्योंकि इससे हमारी भाषा कौशल, व्यक्तित्व विकास, संचार क्षमता, और मनोवैज्ञानिक सोच में सुधार होता है। सिनेमा के माध्यम से हम नई कहानियों को सुनते हैं, नये विचारों को समझते हैं, और नई भाषा को सीखते हैं।
5. क्या सिनेमा केवल मनोरंजन का माध्यम है?
उत्तर: नहीं, सिनेमा केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं है। यह अपनी कहानियों के माध्यम से जीवन की सच्चाई, सामाजिक समस्याओं, आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों को दर्शाता है। सिनेमा हमारे सामाजिक और मानसिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
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