कहानी से
प्रश्न 1. गवरइया और गवरा के बीच किस बात पर बहस हुई और गवरइया को अपनी इच्छा पूरी करने का अवसर कैसे मिला?
उत्तर- गवरइया और गवरा के बीच आदमियों के दवारा रंग-बिरंगे और सुंदर कपड़े पहनने की बात पर बहस हुई| गवरइया कह रही थी की कपड़े डालने से आदमी की खूबसूरती बढ़ जाती है तथा वह सर्दी, गर्मी एवं वर्षा की मार से बचता है। इसके विपरीत गवरा कहह्म था कि आदमी कपड़े पहनने से बदसूरत लगने लगता है। उसकी शारीरिक क्षमता प्रभावित होती है। इसके अलावा कपड़ों से आदमी की हैसियत का पता चल जाता है।गवरइया को अपनी इच्छा पूरी करने का अवसर तब मिला जब वे दोनों घूरे पर दाना चुनने गए थे, जहाँ उन्हें रुई का फाहा मिला था। उसने उससे सूत कतवाया, कपड़े बनवाए तथा टोपी सिलाकर अपनी इच्छा पूरी की।
प्रश्न 2. गवरइया और गवरे की बहस के तर्कों को एकत्र करें और उन्हें संवाद के रूप में लिखें।
उत्तर - गवरइया और गवरे की बहस निम्नलिखित चार तर्कों पर हुई-
(क) आदमियों दवारा कपड़े पहनने पर।
(ख) गवरइया दवारा टोपी पहेनने पर
(ग) रुई का फाहा मिलने पर।
(घ) गवरइया दवारा टोपी पहेनने के बाद
इनके बीच हुई बहस को संवाद के रूप में इस प्रकार लिखा जा सकता है:
(क) आदमियों दवारा कपड़े पहनने पर:
गवरइया - देखते हो, आदमी रंग-बिंरगे कपड़े पहनकर कितना सुंदर दिखाई देता है।
गवरा - पागल हो रही है क्या? आदमी कपड़े पहनकर बदसूरत दिखता है।
गवरइया - लगता है आज लटजीरा चुग आए हो क्या? आदमी पर कपड़ा कितना .फबता है?
गवरा - खाक .फबता है। कपड़े से मनुष्य की खूबसूरती ढँक जाती है। अब तुम्हारे शरीर का एक-एक कटाव मैं जो देख रहा हूँ, कपड़े पहनने पर कैसे देख पाता।
गवरइया - पर आदमी मौसम की मार से भी बचने के लिए कपड़े पहनता है।
गवरा - कपड़े पहनने से आदमी की सहनशक्ति भी तो प्रभावित होती है।साथ ही कपड़े पहनने से आदमी की हैसियत में भी तो .फर्क दिखने लगता है।
(ख) गवरइया दवारा टोपी पहेनने पर:
गवरइया - आदमी की टोपी तो सबसे अच्छी होती है। मेरा भी मन टोपी पहनने को करता है।
गवरा - तू टोपी की बात कर रही है! टोपी की तो बहुत मुसीबतें हैं। कितने राज-पाट बदल जाते हैं। लोग अपनी टोपी बचाने के लिए कितनों को टोपी पहनाते है। ज्जरा-सी चूक हुई और टोपी उछलते देर नहीं लगती। मेरी मान तो तू इस चक्कर में पड़ ही मत।
(ग) रुई का फाहा मिलने पर:
गवरइया - मिल गया, मिल गया, मुझे रुई का फाहा मिल गया।
गवरा - लगता है तू पगला गई है।तुझे पता है रुई से टोपी बनवाने का सफर कितना कठिन है?
गवरइया - टोपी तो बनवानी है चाहे जैसे भी बने
(घ) गवरइया दवारा टोपी पहेनने के बाद:
गवरइया - (गवरे से) देख मेरी टोपी सबसे निरालद्ध .......... पाँच फुँदनेवाली।
गवरा - वाकई तू तो रानी लग रही है!
गवरइया - रानी नहीं, राजा कहो, मेरे राजा। अब कौन राजा मेरा मुकाबला करेगा?
प्रश्न 3. टोपी बनवाने के लिए गवरइया किस-किसके पास गई? टोपी बनने तक के एक-एक कार्य को लिखें।
उत्तर - टोपी बनवाने के लिए गवरइया निम्नलिखित चार लोगों के पास गई:
(क) धुनिया के पास—घूरे पर मिला रुई का फाहा लेकर गवरइया सबसे पहले धुनियाँ के पास गई। वह पहले तो गवरइया का काम करने को तैयार न था, पर आधी रुई मेहनताने के रूप में पाने पर काम करने के लिए तैयार हो गया और उसने रुई धुन दी
(ख) कोरी के पास—धुनिया से रुई धुनवाकर गवरइया सूत कतवाने कोरी के पास गई। कोरी ने पहले तो मु.फ्त में काम करने से मना कर दिया, पर आधा सूत मेहनताना के रूप में पाने पर महीन सूत कात दिया।
(ग) बुनकर के पास—कोरी दवारा काता गया महीन सूत लेकर गवरइया बुनकर के पास गई। बुनकर ने आधे कपड़े को पारिश्रमिक के रूप में लेकर महीन कपड़ा बुन दिया।
(घ) दर्जी के पास—कपड़ा बुन जाने के बाद गवइया टोपी सिलवाने दर्ज़ी के पास गयी| पहले तो दर्जी गवरइया का काम करने को तैयार न था, परंतु जब गवरइया ने उससे कहा कि दो टोपियाँ सिलकर एक उसे दे दे तथा एक स्वयं ले ले तब वह सहर्ष काम करने को तैयार हो गया।
प्रश्न 4. गवरइया की टोपी पर दर्जी ने पाँच फुँदने क्यों जड़ दिए?
उत्तर - गवरइया जब बुनकरदवारा बुना महीन कपड़ा लेकर दर्जी के पास गई तो उसने दर्जी से कहा कि इस कपड़े से दो टोपियाँ सिल दे। उनमें से एक को अपने पारिश्रमिक के रूप में रख ले। इतनी अच्छी मजूरी मिलने की बात दर्जी सोच भी नहीं सकता था। वह बहुत खुश हुआ। उसने अपनी खुशी से गवरइया की टोपी पर पाँच फुँदने जड़ दिए।
कहानी से आगे
प्रश्न 1. किसी कारीगर से बातचीत कीजिए और परिश्रम का उचित मूल्य नहीं मिलने पर उसकी प्रतिक्रिया क्या होगी ज्ञात कीजिए और लिखिए।
उत्तर मेरे घर के निकट एक बढ़ई रहता है। वह अपने काम के लिए प्रसिद्ध है। उसका बनाया सामान भी सुंदर, मज्जबूत तथा टिकाऊ होता है। एक बार एक धनी व्यक्ति ने काम के लिए उसे बुलाया। आधा काम हो जाने के बाद उसे पारिश्रमिक मिला ह्लो बाज्जार रेट से का.फी कम था। उस बढ़ई का वहाँ सामान लग चुका था, इसलिए काम करना उसकी मज़बूरी थी। उससे जब मैंने बात की तो बढ़ई ने बताया कि उचित पारिश्रमिक न मिलने पर काम में मन नहीं लगता। मन चिड़चिड़ा-सा हुआ रहता है तथा काम में सुंदरता नहीं आ पाती।
प्रश्न 2. गवरइया की इच्छा-पूर्ति का क्रम घूरे पर प्तई के मिल जाने से प्रारंभ होता है। उसके बाद वह क्रमश: एक-एक करके कई कारीगरों के पास जाती है और उसकी टोपी तैयार होती है। आप भी अपनी कोई इच्छा चुन लीजिए। उसकी पूर्ति के लिए योजना और कार्य-विवरण तैयार कीजिए।
उत्तर मैंने परीक्षा में अपने क्षेत्र में प्रथम स्थान प्राप्त किया। मुझे उपहारस्वरूप 501 रुपये तथा सभी विषयों की किताबें एवं सी.डी मिली। अब समस्या यह थी कि इस सी.डी को मैं कहाँ देखूँ। घर में सी.डी प्लेयर नहीं था। मैंने माँ से कुछ रुपये माँगे तथा कुछ पिता जी से। मैंने अपनी और भाई की गुल्लक से पैसे निकाले। एक मित्र से भी दो सौ रुपये लिए। अब मेरे पास कुल दो हज्जार दो सौ रुपये थे। मैं अपने पिता जी को पुस्तकें दिलाने के बहाने साथ ले गया और किताब की दुकान पर न जाकर इलेक्ट्रॉनिक्स की दुकान से सी.डी.प्लेयर दो हज्जार तीन सौ रुपये में खरीदा। एक सौ रुपये पिता जी ने दे दिए। इस प्रकार अपनी आवश्यक वस्तु पाकर मैं बहुत खुश हुआ।
प्रश्न 3. गवरइया के स्वभाव से यह प्रमाणित होता है कि कार्य की सफलता के लिए उत्साह आवश्यक है। सफलता के लिए उत्साह की आवश्यकता क्यों पड़ती है, तर्क सहित लिखिए।
उत्तर यह सत्य है कि कार्य की सफलता हेतु उत्साह की आवश्यकता होती है। उत्साह ही काम करने के लिए व्यक्ति को प्रेरित करता है तथा मार्ग में आनेवाली बाधाओं से लडऩे की प्रेरणा देता है। उत्साह के अभाव में काम नीरस प्रतीत होता है तथा काम की सफलता संदिग्ध होती है। गवरइया भी .फाहा मिलने के बाद उत्साह से भर उठी। वह धुनि, कोरी (बुनकर) के काम से उत्साहित हो उठी और दर्जी से अपनी टोपी बनवाने में कामयाब रही।
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1. टोपी क्या होती है? |
2. टोपी का इतिहास क्या है? |
3. टोपी के कई उपयोग हो सकते हैं? |
4. टोपी की विभिन्न प्रकार क्या हैं? |
5. टोपी का इस्तेमाल आजकल किस-किस वर्ग में होता है? |
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