पाठ से
प्रश्न 1. लेखक को ओस की बूँद कहाँ मिली?
उत्तर- लेखक प्रात:काल बेर की झाड़ी के नीचे से गुजर रहा था कि बूँद अचानक उसकी कलाई पर गिरी और सरक कर हथेली पर चली आई।
प्रश्न 2. ओस की बूँद क्रोध और घृणा से क्यों काँप उठी?
उत्तर - बूँद ने पेड़ों की स्वार्थपूर्ण प्रवित्ति के बारे में बताया कि इस पेड़ के बराबर ही उसकी जड़ें तथा रोएँ ज़मीन में फैले हुए हैं। इन्हीं में से एक रोएँ ने उसे भी बलपूर्वक अपनी ओर खींच लिया और अपने में समाहित कर लिया। बूँद वहाँ तीन दिन तक साँसत भोगती रही। यह बताते हुए ओस की बूँद क्रोध और घृणा से काँप उठी।
प्रश्न 3. हाइड्रोजन और ऑक्सीजन को पानी ने अपना पूर्वज/पुरखा क्यों कहा द्दस्?
उत्तर-पानी की बूँद ने हद्रजन (हाइड्रोजन) और ओषजन (आक्सीजन) को अपना पुरखा इसलिए कहा है] क्योंकि दोनों की अभिक्रिया के फलस्वरूप बूँद का जन्म हुआ। इस अभिक्रिया में दोनों का प्रत्यक्ष अस्तित्व खो गया था।
प्रश्न 4. ‘पानी की कहानी’ के आधार पर पानी के जन्म और जीवन-यात्रा का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर - पानी के जन्म और जीवन-यात्रा की कहानी-
पानी के जन्म की कहानी—इस पाठ में लेखक ने बताया है कि बहुत समय पहले हाइड्रोजन और आङ्खक्सीजन नामक गैसेंं सूर्यमंडल में तेज़ लपटों के रूप में विदमान थीं। एक अन्य विशाल ग्रह की आकर्षण शक्ति के कारण उसका कुछ अंश टूटकर अलग हुआ और ठंडा हो गया। इसी ऑक्सीजन और हाइड्रोजन की क्रिया के फलस्व:प पानी का जन्म हुआ।
पानी की जीवन-यात्रा की कहानी—पानी वायुमंडल में जलवाष्प के रूप में विदमान था। अन्य वाष्पदल के मिलने से वाष्प भारी तथा ठंडी हुई और भारी होकर वर्षा के रूप में नीचे आई। ये बूँदें पहाड़ की चोटियों पर बर्फ़ के रूप में जम गईं। सूर्य की किरणों की ऊष्मा ने उन्हें पिघलाया तथा कुछ हिमखंड भी टूटकर इस पानी के साथ सरिता में 3,। सरिता से यह पानी सागर में पहुँचा। सागर की तली तथा चट्ïटानों के बीच से होकर गहराई में चला गया। वहाँ पर ज्वालामुखी के विस्फोट के साथ ही वाष्प रूप में ;द्द बाहर आ गया। यही पानी वर्षा के रूप में नदियों में आया तथा नल में जाकर एक टूटे भाग से ज्जमीन पर टपक गया तथा पृथ्वी दवारा सोख लिया गया। इसे पेड़ की जड़ ने अवशोषित किया और पक्रिह्म्यों के माध्यम से वाष्प रूप में वायुमंडल में छोड़ दिया।
प्रश्न 5. कहानी के अंत और आरंभ के हिस्से को स्वयं पढक़र देखिए और बताइए कि ओस की बूँद लेखक को आपबीती सुनाते हुए किसकी प्रतीक्षा कर रही थी?
उत्तर - कहानी का आरंभ और अंत पढक़र हमें ज्ञात होता है कि ओस की बूँद लेखक को आपबीती सुनाते हुए सूर्य के निकलने की प्रतीक्षा कर रही थी ताकि सूर्य की उष्मा पाकर उसमें उड़ने की शक्ति आ जाए और वह उड़ सके|
पाठ से आगे
प्रश्न 1. जलचक्र शह्यक्त विषय में जानकारी प्राप्त कीजिए और पानी की कहानी से तुलना करके देखिए कि लेखक ने पानी की कहानी में कौन-कौन-सी बातें विस्तार से बताई हैं।
उत्तर - पानी हमारे आस-पास नदियों, समुद्र, झील, कुओं, तालाब आदि में विदमान है। यह पानी सूर्य की ऊष्मा से वाष्पीकृत होकर भाप बन जाता है। यही भाप ठंडी होकर वर्षा के रूप में पुन: पृथ्वी पर आ जातद्ध है। यह चक्र निरंतर चलता रहता है।
लेखक ने पानी की कहानी में निम्नलिखित बातें विस्तार से बताई हैः
(क) हाइड्रोजन और ऑक्सीजन से पानी बनने की प्रक्रिया।
(ख) पानी का पहाड़ों पर ब.र्फ रूप में जमा होना, हिमखंड का टूटना तथा ऊष्मा पाकर पिघलकर पानी बनना।
(ग) पानी की बूँद का सागर की गहराई में जाना तथा विभिन्न समुद्री जीवों को देखना।
(घ) ज्वालामुखी के विस्फोट के रूप में बाहर आना आदि।
प्रश्न 2. ‘पानी की कहानी’ पाठ में ओस की बूँद अपनी कहानी स्वयं सुना रही है और लेखक केवल श्रोता है। इस आत्मकथात्मक शैली में आप भी किसी वस्तु का चुनाव करके कहानी लिखें।
उत्तर - आत्मकथात्मक शैली में लोहे की कुर्सी की कहानी:
सर्दी के दिन थे। एक दिन हलकी आवाज़ सुनकर मैं बाहर निकला शायद कोई हो। पर पर वहां कोई ना था कुर्सी पर ओस की बूँद गिरने से ध्वनि उत्पन्न हुई थी।मैंने अपनी लोहे की कुर्सी को बाहर छोड़ दिया था | पुस्तकें तथा अन्य सामान अंदर ले आया पर भूल से कुर्सी कमरे के बाहर ही रह गई थी मैं अपनी गीली कुर्सी स्रद्मह्य कमरे में लाया। कुर्सी ने बताया कि कभी मैं मोटे से लोहे की छड़ का हिस्सा थी। फैक्ट्री के मालिक ने वह लोहा बेच दिया। जिसने मुझे खरीदा था, उसने एक भट्ïठी में पिघलाकर पतली-पतली छड़ें तथा सीटें बनाने के लिए हमे खूब पीटा। मुझे असह्य दर्द हुआ। कटे टुकड़ों को गर्म सलाखों की मदद से जोडक़र कुर्सी का आकार दिया। मेरे अनेक भागों को जोडऩे के लिए नट-बोल्ट लगाए। इस क्रिया में मुझे बहुत दुख झेलना पड़ा। इसके बाद मुझे आकर्षक बनाने के लिए चमकीला पेंट करके बाज्जार में बेच दिया। वहीं से तुम मुझे खरीद लाए। तब से में तुम्हारी सेवा में लगी हूँ और तुम्हारे आराम का साधन बनी हूँ। तुम भी मेरा कुछ ख्याल किया करो। यूँ बाहर रातभर रहने से तो मैं ठिठुरकर मर ही जाती।
प्रश्न 3. समुद्र के तट पर बसे नगरों में अधिक ठंड और अधिक गरमी क्यों नहीं पड़ती?
उत्तर - समुद्र का पानी आस-पास के इलाकों का तापमान न तो अधिक बढऩे देता है और न अधिक घटने देता है। यहाँ का तापमान समशीतोष्ण अर्थात सुहावना बना रहता है। यही कारण है कि समुद्र तट पर बसे नगरों में न अधिक सर्दी पड़ती है और न अधिक गरमी |
प्रश्न 4. पेड़ के भीतर फव्वारा नहीं होता, तब पेड़ की जड़ों से पत्तें तक पानी कैसे पहुँचता है? इस क्रिया को वनस्पति- शास्त्र में क्या कहते हैं? क्या इस क्रिया को जानने के लिए कोई आसान प्रयोग है? जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर - पेड़ के तने में जाइलम और फ्लोयम नामक विशेष कोशिकाएँ होती हैं। इन विशेष कोशिकाओं का समूह (जाइलम) जड़ों द्वारा अवशोषित पानी पत्तिओं तक पहुँचाता है। इस तरह पेड़ में फव्वारा न होने पर भी पानी पत्तिओं तक पहुँच जाता है।
इस क्रिया को वनस्पतिशास्त्र में 'कोशिका क्रिया' कहते हैं। यह क्रिया उसी तरह होती है जैसे दीपक की बाती में तेल ऊपर चढ़ता है।
प्रयोग - इस क्रिया को समझने के लिए एक आसान-सा प्रयोग करते हैं। एक ऐसा पौधा लेंगे, जिसमें सफेद रंग के पुष्प खिले हों। इस पौधे की जड़ों को उस बीकर में रख देते हैं, जिसमें पानी भरा हो। इस पानी में नीली स्याही की कुछ बूँदें मिलाकर रंगीन बना देते हैं। कुछ समय के उपरांत हम देखते हैं कि सफेद पुष्प की पंखुडिय़ों पर नीली धारियाँ दिखाई देने लगी हैं। यह धारियाँ बीकर के रंगीन पानी के कारण हैं जिन्हें जड़ों ने अवशोषित करशह्यक्त तने के माध्यम से पत्तिओं तथा पुष्षों तक पहुँचाया।
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1. पानी की कहानी क्या है? |
2. पानी का महत्व क्या है? |
3. पानी की कहानी में पानी का उपयोग कैसे बताया गया है? |
4. पानी की कहानी में पानी के बचाव के बारे में क्या कहा गया है? |
5. पानी की कहानी के अनुसार पानी की संरक्षण क्यों महत्वपूर्ण है? |
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