आपके विचार से
प्रश्न: 1. लेखक ने स्वीकार किया है कि लोगों ने उन्हें भी धोखा दिया है, फिर भी वे निराश नहीं है। आपके विचार से इस बात का क्या कारण हो सकता है?
उत्तर: लेखक ने इस तथ्य को स्वीकार किया है कि उसने लोगों से धोखा खाया है, फिर भी वह निराश नहीं है।मेरे विचार से इसका कारण यह है कि
(क) लेखक जीवन के प्रति आशावादी दृष्टिकोण रखनेवाला व्यक्ति है।
(ख) वह ठगे जाने या धोखा खाने जैसी घटनाओं का बहुत कम हिसाब रखता है।
(ग) उसके साथ छल-कपट जैसी घटनाएँ हुई हैं, पर विश्वासघात नहीं या बहुत कम हुआ है।
(घ) लेखक के साथ ऐसी बहुत-सी घटनाएँ हुई हैं जब लोगों ने अकारण ही उसकी मदद की है।
प्रश्न: 2. समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं और टेलीविजन पर आपने ऐसी अनेक घटनाएँ देखी-सुनी होंगी जिनमें लोगों ने बिना किसी लालच के दूसरों की सहायता की हो या ईमानदारी से काम किया हो। ऐसे समाचार तथा लेख एकत्रित करें और कम-से-कम दो घटनाओं पर अपनी टिप्पणी लिखें।
उत्तर: ऐसे दो समाचार जिनमे ईमानदारी तथा बिना लालच के दूसरों के लिए काम किया गया है:
1. अड़चनें भी डिगा नहीं पाईं शिक्षिका का हौसला—सहयोगियों का मिला भरपूर सहयोग (नोएडा)-जहाँ एक ओर शिक्षा का व्यापार करके लोग रात-दिन अपनी जेब भरने में व्यस्त हैं, वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो तमाम अड़चनों के बावजूद भी मानसिक व शारीरिक रूप से असहाय बच्चों की सेवा करते हुए उनके जीवन में ज्ञान की रोशनी फैला रहे हैं। ऐसी ही शिक्षिका हैं सलारपुर स्थित 'बचपन डे केयर' की सीमा पांडे।
दिसंबर, 2006 में लखनऊ निदेशालय, विकलांग विभाग की ओर से स्थापित 'बचपन डे केयर' में सीमा ने बतौर शिक्षिका काम शुरू किया था। उस समय वहाँ एक कोआर्डिनेटर और दो अन्य शिक्षिकाएँ भी कार्यरत थीं, लेकिन वर्ष 2007 से फंड की कमी और लखनऊ निदेशालय की ओर से सेंटर को बंद किए जाने के आदेश के बाद धीरे-धीरे अन्य स्टाफ नौकरी छोड़ चला गया। सीमा ने हिम्मत नहीं हारी, मानसिक व शारीरिक रूप से अक्षम बच्चों के हक को लेकर वे विभागीय अधिकारियों के सामने भी डटकर खड़ी हो गईं। तब से वे अकेले ही शिक्षिका व प्रभारी का कार्य सँभालते हुए 25 से अधिक बच्चों के जीवन में ज्ञान की ज्योति जला रही हैं। यह सीमा और उनके सहयोगियों का साहस ही था कि उनके निरंतर प्रयास से विभाग के डायरेक्टर एoकेo बरनवाल ने 2008-09 तक सेंटर चलाने की लिखित अनुमति दे दी। सीमा बताती हैं कि डायरेक्टर के आदेश के आधार पर उन्होंने बैंक में जमा फंड में से सेंटर और वाहन के किराये का भुगतान कर दिया, लेकिन कुछ विभागीय अधिकारी फंड होते हुए भी बच्चों पर खर्च की जानेवाली राशि के आबंटन में रोड़े अटका रहे हैं। अब अधिकारियों ने सेंटर बंद कराने का नया दाँव खेला है। पिछले सात महीने से पूरे स्टाफ की तनख्वाह यह कहकर रोकी हुई है कि जो पैसा सेंटर और वाहन के किराये में खर्च हुआ है, उसके बदले में तनख्वाह काटी जा रही है।
इसके बावजूद सीमा सहित अन्य स्टाफ पूरी निष्ठा के साथ बच्चों की देखभाल में व्यस्त हैं। सीमा का कहना है कि इन बच्चों को पढ़ाने और इनकी देखभाल करने से एक अलग सुकून मिलता है और जितना हो सकेगा, मैं इन बच्चों के लिए प्रयास करूँगी्।
2. गरीब बच्चों के लिए समर्पित जीवन—नोएडा के सेक्टर-12 में पिछले 19 वर्षों से एक महिला शिक्षक अनाथ व गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा दे रही हैं। शिक्षा देनेेवाली इस महिला ने बच्चों की खातिर अपना घर तक नहीं बसाया। हर साल यहाँ पर आनेवाले अनाथ बच्चों को साक्षर बनाना उनके जीवन का उद्देश्य बन गया है।
उनके प्रेम, लगाव और व्यवहार की वजह से ही बच्चे उन्हें ‘माँ’ कहते हैं। 37 अनाथ बच्चों के इस बसेरे को बसानेवाली और बच्चों को शिक्षा दे रही अंजना राजगोपाल ने अभी तक शादी नहीं की। यह प्रेरणा औरों के लिए भी काम कर गई।
आज गरीब और बेसहारा बच्चो के लिए साईं कृपा की ओर से सेक्टर-41 और सेक्टर-135 में स्कूल चलाया जा रहा है, जिसमें आनेवाले सभी 18 शिक्षक बिना किसी पारिश्रमिक के बच्चों को पढ़ा रहे हैं।
हिंदुस्तान दैनिक, 05 सितंबर 2009, दिल्ली संस्करण
टिप्पणी (समाचार नंo 1 हेतु) :
इस समाचार को पढक़र हमारे मन में उन बच्चों की शिक्षा के प्रति जागरूकता उत्पन्न होती है, जो किसी कारण से स्कूल नहीं जा पा रहे हैं। हमें उनकी शिक्षा हेतु सार्थक कदम उठाकर 'विद्यादान महादान’ वाली कहावत चरितार्थ करना चाहिए।
टिप्पणी (समाचार नंo 2 हेतु) :
इस समाचार को पढक़र अंजना राजगोपाल के त्याग एवं समर्पण के प्रति मन श्रदधानत हो जाता है। हमें भी इस तरह के कार्य करने के लिए आगे आना चाहिए।
प्रश्न: 3. लेखक ने अपने जीवन की दो घटनाओं में रेलवे टिकट बाबू और बस कंडक्टर की अच्छाई और ईमानदारी की बात बताई है। आप भी अपने या अपने किसी परिचित के साथ हुई किसी घटना के बारे में बताइए जिसमें किसी ने बिना किसी स्वार्थ के भलाई और ईमानदारी के कार्य किए हों।
उत्तर: आज समाचार-पत्रों में नकारात्मक घटनाओं—हिंसा, लूट, मार-पीट आदि की घटनाओं काह्य प्रमुखता से तथा बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया जाता है। इन समाचार-पत्रों में किसी की नि:स्वार्थ भलाई करने की घटनाएँ कभी-कभी ही छप पाती हैं। ऐसा नहीं कि समाज में ऐसी घटनाएँ घटती ही नहीं हैं। ऐसी घटनाएँ होती तो हैं, पर वे यदा-कदा ही प्रकाश में आ पाती हैं। ऐसी ही एक घटना का वर्णन मैं कर रहा हूँ जो सत्य है तथा मेरे आस-पास से ही जुड़ी है।
प्रतिभा कब, कहाँ, किस रूप में पैदा हो जाती है, इसका अनुमान लगाना कठिन है। मेरे पिता जी के एक मित्र हैं जो खेती करके अपना गुजारा मुश्किल से कर पाते हैं। उनका बड़ा बेटा शुरू से ही पढ़ाई में बड़ा होनहार है। दसवीं में उसने 90' से अधिक अंक प्राप्त किए। ग्यारहवीं में विज्ञान विषय से अपनी पढ़ाई शुरू कर दी। विज्ञान की पढ़ाई खेती के सहारे पूरी करा पाना संभव न था, फिर भी जैसे-तैसे तथा छात्रवृतियों के सहारे उसने बारहवीं की परीक्षा 92' अंकों से उत्तीर्ण की। आईoआईoटीoकी परीक्षा के लिए उसने .फॉर्म भर दिया था। उसका चयन भी हो गया, पर उसके पिता जी आईoआईoटीo की फीस देने में सर्वथा असमर्थ थे। बच्चे के भविष्य का सवाल था। मेरे पिता जी ने अपने एक एनoआरoआईo मित्र से फोन पर इस बारे में बात की। सारी बातें जानकर उन्होंने आईoआईoटीoका सारा खर्च उठाने की जिम्मेदारी लेते हुए एक लाख रुपये पिता जी के पास भेज दि,, जिसे लेकर पिता जी उसह्य प्रवेश दिलाने चले गए। संयोग की बात द्दस् कि उसका साढ़े चार साल का पाठ्यक्रम पूरा होने से पहले ही अमेरिका की एक कंपनी ने अच्छा वेतन देते हुए उसका चयन कर लिया। आज वह सॉफ्ट-फ्टवेयर इंजीनियर है, किंतु अपने घरवालों के साथ पिता जी और उनके एनoआरoआईo मित्र को कृतज्ञतापूर्वक याद करता है।
पर्दाफाश
प्रश्न: 1. दोषों का पर्दाफाश करना कब बुरा रूप ले सकता है?
उत्तर: दोषों का पर्दाफाश करना तब बुरा रूप ले सकता है जब उसका उद्देश्य आलोचना करते हुए केवल मजाक उड़ाना ही रह गया हो। इस पर्दाफाश के पीछे किसी के दोष को सुधारने का उद्देश्य न होकर उसकी बदनामी करना हो। इसके अलावा इस पर्दाफाश के पीछे किसी की भलाई का लक्ष्य न हो, किसी संस्था या प्रतिष्ठान को बदनाम करना हो, सत्यता को बिना जाने-समझे लोगों के सामने लाना, अपनी निजी वैमनस्यता का बदला लेने की भावना हो या स्वयं की अधिकाधिक महत्वाकांक्षा के तहत अपने चैनल आदि की प्रसिद्धि बढ़ानी हो।
प्रश्न: 2. आजकल के बहुत-से समाचार-पत्र या समाचार चैनल ‘दोषों का पर्दाफाश’ कर रहे हैं। इस प्रकार के समाचारों और कार्यक्रमों की सार्थकता पर तर्क सहित विचार लिखिए।
उत्तर: आजकल बहुत से समाचार-पत्र या समाचार चैनल दोषों का पर्दाफाश कर रहे हैं। इस तरह के कार्यक्रमों की सार्थकता तभी है, जब इनको पढक़र या देखकर नागरिक जागरूक हो जाएँ। वे अपराधियों या दोषियों से बच सकें तथा अपने आस-पास घटनाओं की पुनरावृक्रिह्म् न होने दें। इन कार्यक्रमों की सार्थकता तभी है जब इन पर्दाफाश करनेवाले कार्यक्रमों के पीछे सच्चाई, ईमानदारी तथा जनकल्याण की भावना छिपी हो। यदि इनके पीछे स्वार्थ, धनोपार्जन या चैनलों की प्रसिद्धि बढ़ाने की लालसा छिपी हो तो इन कार्यक्रमों की कोई सार्थकता नहीं है।
कारण बताइए
निम्नलिखित के संभावित परिणाम क्या-क्या हो सकते हैं? आपस में चर्चा कीजिए, जैसे ‘‘ईमानदारी को मूर्खता का पर्याय समझा जाने लगा है।’’ परिणाम—भ्रष्टाचार बढ़ेगा।
1. ‘‘सचाई केवल भीरु और बेबस लोगों के हिस्से पड़ी है।’’ ....................................
2. ‘‘झूठ और .फरेब का रोजगार करनेवाले फल-फूल रहे हैं।’’ ....................................
3. ‘‘हर आदमी दोषी अधिक दिख रहा है, गुणी कम।’’ ....................................
उत्तर:
1. परिणाम—लोगों की सच्चाई में आस्था नहीं रह जाएगी। चाह्यरद्ध आस्र झूठ का बोलबाला होगा।
2. परिणाम—ईमानदारी लुप्त होती जाएगी तथा भ्रष्टाचार बढ़ेगा।
3. परिणाम—लोग एक-दूसरे पर विश्वास नहीं करेंगे। सच्चे व्यक्ति पर भी विश्वास करना कठिन हो जाएगा।
दो लेखक और बस-यात्रा
आपने इस लेख में एक बस की यात्रा के बारे में पढ़ा। इससे पहले भी आप एक बस-यात्रा के बारे में पढ़ चुके हैं। यदि दोनों बस-यात्राओं के लेखक आपस में मिलते तो एक-दूसरे को कौन-कौन-सी बातें बताते? अपनी कल्पना से उनकी बातचीत लिखिए।
उत्तर: इससे पहले पाठ में लेखक हरिशंकर परसाई द्वारा अपनी बस-यात्रा का वर्णन किया गया है, जिसमें बस खराब होने के कारण वे समय पर गंतव्य तक पहुँचने की आशा छोड़ देते हैं। इस पाठ में लेखक यात्रा करते हुए कुछ नया एवं अलग अनुभव करता है। ये दोनों लेखक जब मिलते तो कुछ इस तरह बातचीत करते—
हरि — नमस्कार भाई हजारी! कहो, कैसे हो?
हजारी — नमस्कार! मैं तो ठीक हूँ, पर तुम अपनी सुनाओ। कुछ सुस्त से दिखाई दे रहे हो। क्या बात है?
हरि — भाई क्या बताऊँ, परसों मैंने ऐसी बस से यात्रा की, जिसे मैं जिंदगीभर नहीं भूलूँगा। उसकी थकान अब तक नहीं उतरी है।
हजारी — क्या उस बस में सामान रखने की जगह नहीं थी या सामान ज्यादा था, जिसे लेकर तुम बैठे रहे?
हरि — यार! मेरे पास सामान तो था ही नहीं, वह बस बिल्कुल टूटी-फूटी, खटारा थी। वह किसी बुढिय़ा जैसी कमजोर तथा जर्जर हो रही थी।
हजारी — टूटी-फूटी बस से थकान कैसी? तुम तो सीट पर बैठे थे न!
हरि — मैं तो सीट पर बैठा था द्बद्भ जब बस स्टार्ट हुई और चलने लगी तो पूरी बस बुरी तरह हिल रही थी। लगता था कि हम इंजन पर बैठे हैं। बस की खिड़कियों के काँच टूटे थे। जो बचे थे, वे भी गिरकर यात्रियों को चोटिल कर सकते थे। मैं तो खिडक़ी से दूर बैठ गया। आठ-दस मील चलते ही हम टूृटी सीटों के अंदर थे। पता नहीं लग रहा था कि हम सीट पर हैं या सीटें हमारे ऊपर।
हजारी — क्या तुम अपने गंतव्य पर समय से पहुँच गए थे?
हरि — ऐसी बस से भला समय पर गंतव्य तक कैसे पहुँचा जा सकता है। बस रास्ते में दसों बार खराब हुई। उसकी लाइट भी खराब हो गई थी। मैंने तो यह सोच लिया था कि जिंदगी ही इसी बस में बीत जाएगी। मैं तो गंतव्य पर पहुँचने की आशा छोडक़र आराम से बैठकर मित्रों के साथ गपशप करने लगा। तुम अपनी सुनाओ, बड़े खुश दिखाई दे रहे हो। क्या बात है?
हजारी — मित्र, मैंने भी तो कल बस की यात्रा की थी, और मेरी भी यात्रा अविस्मरणीय है, पर तुम्हारी यात्रा से अलग है।
हरि — कैसे?
हजारी — मैं बस में अपनी पत्नी तथा बच्चों के साथ यात्रा कर रहा था कि एक सुनसान जगह पर हमारी बस खराब हो गई।
हरि — सुनसान जगह पर! क्या बस को लुटेरों ने लूट लिया?
हजारी — नहीं! हमारे बस का कंडक्टर एक साइकिल लेकर चलता बना।
हरि — चलता बना! कहाँ चला गया वह? कहीं वह लुटेरों से तो नहीं मिला था?
हजारी — मित्र! सभी यात्री ,ह्यद्यद्म ही सोच रहे थे। कुछ नौजवानों ने ड्राइवर को अलग ले जाकर बंधक बना लिया कि यदि लुटेरे आते हैं तो पहले इसे ही मार देंगे।
हरि — फिर क्या हुआ? क्या लुटरे आ गए?
हजारी — नहीं, लुटरे तो नहीं आए, पर कंडक्टर बस अड्डे से दूसरी ष्द्य लेकर आया। साथ में मेरे बच्चों के लिए दूध और पानी भी लाया। उस बस से हम सभी बारह बजे से पहले ही बस अड्डे पहुँच गए।
हरि — बहुत अच्छा! ऐसे कंडक्टर कम ही मिलते हैं, पर उस ड्राइवर का क्या हुआ?
हजारी — हम सभी ने कंडक्टर को धन्यवाद दिया और ड्राइवर से माफी माँगी। हमने उसे समझने में भूलकर दी थी।
हरि — मित्र, हम सभी इंसान हैं। जाने-अनजाने हमसे गलतियां हो ही जाती है। हमें सभी को अविश्वास की दृष्टि से नहीं देखना चाहिए।
हजारी — मित्र, यह हमारा दोष नहीं है। समाज में गिरते मानवीय मूल्यों का परिणाम है यह। हर किसी को अविश्वास की दृष्टि से देखा जाने लगा है।
हरि — अच्छा, अब मैं चलता हूँ। फिर मिलेंगे, नमस्कार।
हजारी — नमस्कार!
सार्थक शीर्षक
प्रश्न: 1. लेखक ने लेख का शीर्षक ‘क्या निराश हुआ जाए’ क्यों रखा होगा? क्या आप इससे भी बेहतर शीर्षक सुझा सकते हैं?
उत्तर: लेखक ने इस लेख का शीर्षक ‘क्या निराश हुआ जाए’ इसलिए रखा होगा, क्योंकि वर्तमान में हिंसा, भ्रष्टाचार, तस्करी, चोरी, डकैती, घटते मानवीय मूल्य से जो माहौल बन गया है, उसमें आदमी का निराश होना स्वाभाविक है। ऐसे माहौल में भी लेखक निराश नहीं है तथा वह चाहता है कि दूसरे भी निराश न हों, इसलिए उनसे ही पूछना चाहता है कि 'क्या निराश हुआ जाए?' अर्थात निराश होने की आवश्यकता नहीं है।
इसका अन्य शीर्षक होगा ‘नया सबेरा’, या, 'बनो आशावादी’ भी हो सकता है।
प्रश्न: 2. यदि ‘क्या निराश हुआ जाए’ के बाद कोई विराम-चिह्न लगाने के लिए कहा जाए तो आप दिए चिह्नों में से कौन-सा चिह्न लगाएँगे? अपने चुनाव का कारण भी बताइए। - ,। .! ? . ; - , ...।
उत्तर: ‘क्या निराश हुआ जाए’ के बाद मैं प्रश्नवाचक चिह्न (?) लगाऊँगा क्योंकि लेखक समाज से ही पूछना चाहता है कि क्या निराशा का वातावरण पूरी तरह बन गया है। यदि लोगों का जवाब 'हाँ' होगा तो वह उन्हें निराशा त्यागने की सलाह देगा।
प्रश्न: 3. ‘‘आदर्शों की बातें करना तो बहुत आसान है पर उन पर चलना बहुत कठिन है।’’ क्या आप इस बात से सहमत हैं? तर्क सहित उत्तर: दीजिए।
उत्तर: आदर्शों की बातें करना तो बहुत आसान है पर उन पर चलना बहुत ही कठिन है। इस बात से मैं पूर्णतया सहमत हूँ। जैसे हम कहते हैं कि ईमानदारी सबसे अच्छी नीति है। आखिर कितने लोग इसका पालन करते हैं? जरा-सा अधिकार मिलते ही व्यक्ति 'भाई-भतीजावाद' या ‘अंधा बाँटे रेवड़ी फिरि-फिरि अपने को दे;’ की नीति अपनाने लगते हैं। हाँ, जिनके हाथ में कुछ नहीं होता, वे ईमानदारी का राग जरूर अलापते हैं। वास्तव में, ईमानदारी का पालन करते समय हमारी स्वार्थपूर्ण मनोवृति सामने या आड़े आ जाती है।
सपनों का भारत
‘‘हमारे महान मनीषियों के सपनों का भारत है और रहेगा।’’
प्रश्न: 1. आपके विचार से हमारे महान विद्वानों ने किस तरह के भारत के सपने देखे थे? लिखिए।
उत्तर: मेरे विचार द्यह्य हमारे मनीषियों ने उस भारत का सपना देखा था, जिसमें हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन आदि विभिन्न धर्मों एवं मतों को माननेवाले मिल-जुलकर रहें। उनके बीच आपसी सौहाद्र्र हो। वे एक-दूसरे से भाईचारा, प्रेम तथा बंधुत्व बनाए रखें। भारत प्राचीन काल में विश्व के सामने आदर्श था, वे भविष्य में भी अपना आदर्श रूप बनाए रखे। लोग भारतीय संस्कृति की विशेषताओं को अपनाएँ तथा इसे बनाए रखें।
प्रश्न: 2. आपके सपनों का भारत कैसा होना चाहिए? लिखिए।
उत्तर: ‘मैं चाहता हूँ कि मेरे सपनों के भारत में सभी स्वस्थ, निरोग, शिक्षित, संपन्न तथा ईमानदार हों। वे जाति, धर्म, प्रांत, संप्रदाय आदि से ऊपर उठकर एक-दूसरे के साथ प्रेम तथा सद्भाव से रहें। यहाँ भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, गरीबी तथा अशिक्षा का नामोनिशान न हो। इस देश को आतंकवादतथा सांप्रदायिकता से मुक्ति मिले। देश में विज्ञान, कृषि, उद्योग-धंधों का विकास हो। देश आत्मनिर्भर तथा समृद्ध हो। यहाँ ज्ञान-विज्ञान की इतनी उन्नति हो कि भारत पुनत्न विश्वगुरु बन जाए।
भाषा की बात
प्रश्न: 1. दो शब्दों के मिलने से 'समास' बनता है। समास का एक प्रकार है-दवंदव समास। इसमें दोनों पद प्रधान होते हैं। जब दोनों पद प्रधान होंगे तो एक-दूसरे में दवंदव (स्पर्धा, होड़) की संभावना होती है। कोई किसी से पीछे रहना नहीं चाहता, जैसे-चरम और परम = चरम-परम, भीरु और बेबस = भीप्त-बेबस, दिन और रात = दिन-रात।
‘और’ के साथ आए शब्दों के जोड़े को ‘और’ हटाकर योजक चिह्न (-) भी लगाया जाता है। कभी-कभी एक साथ भी लिखा जाता है। पाठ से दवंदव समास के बारह उदाहरण ढूँढक़र लिखिए।
उत्तर: पाठ से दवंदव समास के बारह उदाहरणत्न
1. आरोप-प्रत्यारोप
2. कायदे-कानून
3. काम-क्रोध
4. दया-माया
5. लोभ-मोह
6. सुख-सुविधा
7. झूठ-.फरेब
8. मारने-पीटने
9. गुण-दोष
10. लेन-देन
11. भोजन-पानी
12. सच्चाई-ईमानदारी
प्रश्न: 2. पाठ से तीनों प्रकार की संज्ञाओं के उदाहरण खोजकर लिखिए।
उत्तर: पाठ से तीनों प्रकार की संज्ञाओं के उदाहरण:
व्यक्तिवाचक संज्ञा |
जातिवाचक संज्ञा |
भाववाचक संज्ञा |
गाड्डधी, तिलक, भारतवर्ष, मदन मोहन मालवीय, कृषि, वाणिज्य |
नौजवान, डाकुओं, महिला, रेलवे स्टेशन, हिंदूृ, द्रविड़, मुसलमान, समाचार-पत्र, मनीषी, श्रमजीवी, समाज, टिकट बाबू, बच्चे, यात्री, ड्राइवर, कंडक्टर, बस, टिकट |
चिंता , ठगी, डकैती, चोरी, तस्करी,मूर्खता, ईमानदारी, आस्था, काम, लोभ, क्रोध, मोह, आध्यात्मिकता, बुराई, चोरी, संतोष, मनुष्यता, मनुष्यता, दया, माया, धोखा, संयम, खराबी, सच्चाई |
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1. भगवान के डाकिए कौन होते हैं? |
2. भगवान के डाकिए किस प्रकार के संदेश लेते हैं? |
3. क्या भगवान के डाकिए आज भी मौजूद हैं? |
4. भगवान के डाकिए कौन-कौन से धार्मिक समुदायों में प्रमुख हैं? |
5. भगवान के डाकिए के कार्य क्या होते हैं? |
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