झोपड़ियों या कच्चे घरों में रहना वहीं पास में पेड़ों से बँधे जानवर कच्ची गलियाँ, गलियों में बहता घरों का गंदा पानी, वर्षा ऋतु में घुटनों तक भरा कीचड़, चारों ओर फैली गंदगी, कमज़ोर शरीर वाले अनपढ़ नर-नारी और बच्चे कुछ ऐसा था गाँवों का स्वरूप जहाँ विकास के कदम नहीं पहुँचे थे। अस्पताल, बैंक, डाकघर, स्कूल सब कुछ गाँववालों की पहुँच से दूर हुआ करते थे।
इससे कृषि की वर्षा पर निर्भरता खत्म हुई। इससे किसानों की आय में वृद्धि हुई। अब वहाँ भी पक्की नालियाँ और खड्जे दिखाई देते हैं। कंधे पर हल रखकर खेत को जाता हुआ, किसानों की जगह अब ट्रैक्टर दिखाई देते हैं। घर के बाहर जहाँ-जहाँ हल-बल दिखाई देते थे, अब वहाँ ट्रैक्टर और कृषि के अन्य उन्नतयंत्र दिखाई देते हैं।
शुद्ध दूध, दही और घी गाँवों में ही मिलता है। गाँवों की सब्ज़ियाँ ही शहरों में पहुँचाई जाती हैं। इसके अलावा कृषि से जुड़े सारे उत्पाद गाँवों से शहर में पहुँचाए जाते हैं। इनकी अधिकता होने पर इन्हें अन्य देशों को निर्यात किया जाता है। गाँवों की महत्ता देखकर ही हमारे पूर्व प्रधानमंत्री ने ‘जय किसान’ का नारा दिया था।
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