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रक्षा प्रौद्योगिकी का स्वदेशीकरण | विज्ञान और प्रौद्योगिकी (Science & Technology) for UPSC CSE PDF Download

यह एक स्थापित तथ्य है कि वैश्विक महाशक्ति बनने की महत्त्वाकांक्षा रखने वाला कोई भी देश  तब तक अपना लक्ष्य हासिल नहीं कर सकता जब तक वह रक्षा उत्पादन में काफी हद तक आत्मनिर्भर न हो जाये। रक्षा उत्पादों में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए सरकार द्वारा मेक इन इंडिया कार्यक्रम के अंतर्गत पिछले वर्ष निजी क्षेत्र की इकाइयों को रक्षा निर्माण संबंधी 56 स्वीकृतियाँ प्रदान की गयीं।

रक्षा प्रौद्योगिकी के स्वदेशीकरण की आवश्यकता

  • विभिन्न अध्ययनों में यह तथ्य स्पष्ट हुआ है कि आयात में 20 से 25 प्रतिशत तक की कमी करने से भारत में 1,00,000 से 1,20,000 ऐसी नौकरियों का सृजन हो सकता है जिनमें गहन कौशल (highly skilled) की आवश्यकता है।
  • घरेलू सरकारी खरीद में अगले पाँच वर्षों में 40% से 70% तक बढ़ोत्तरी करने से हम रक्षा उद्योग में अपने उत्पादन को दोगुना कर पाएंगे।
  • आवश्यक अतिरिक्त कलपुर्जो तथा घटकों की उपलब्धता न होने के कारण रक्षा बलों द्वारा आयातित उपकरणों के रखरखाव, संयोजन, मरम्मत, जाँच आदि में समस्याओं का सामना किया जा रहा है।
  • विक्रेता लगभग सभी उपकरणों तथा हथियारों के लिए आवश्यक अतिरिक्त कलपुर्जे तथा घटक सामग्री MRLS (मैन्युफैक्चरर्स रिकमेंडेड लिस्ट ऑफ़ स्पेयर्स) के रूप में उपलब्ध कराते हैं। इसके कारण रक्षा उपकरणों की मांग और आपूर्ति में तालमेल नहीं बैठ पाता।
  • रक्षा खरीद अब तक खरीददार-विक्रेता (buyer-seller), संरक्षक-ग्राहक (patron-client ) जैसे असुविधाजनक संबंधों की जटिलताओं में उलझी रही है। उदाहरण के लिए भूतपूर्व सोवियत संघ तथा वर्तमान रूस के साथ हमारे संबंध।
  • डिफेन्स पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग्स (DPSU) तथा आयुध कारखानों (ऑर्डनेन्स फैक्ट्रीज: OF) की रक्षा प्रौद्योगिकी तथा उत्पादन क्षमता ‘इन्क्रीमेंटल एंड बैकअप सपोर्ट' पर आधारित है न कि 'ट्रांसफॉर्मेटिव' संकल्पना पर। इस कारणवश वह हथियारों तथा युद्ध सामग्री की आपूर्ति को अनुबंध की समयसीमा के अंतर्गत पूरा करने करने में सक्षम नहीं हो पाती। 

डिफेन्स उत्पादन नीति (डिफेन्स प्रोडक्शन पॉलिसी : DPP)
इसके निम्नलिखित लक्ष्य हैं:

  • उपकरणों तथा शस्त्र प्रणालियों के डिजाईन, विनिर्माण तथा उत्पादन में काफी हद तक आत्मनिर्भरता को प्राप्त करना।
  • इस प्रयास में निजी उद्योग सक्रिय भूमिका निभा सकें इसके लिए व्यापार को आसान बनाने वाली परिस्थितियाँ तैयार करना।
  • लघु तथा मध्यम उद्यमों (स्माल एंड माइक्रो इंटरप्राइजेजः SMEs) के सामर्थ्य को बढ़ाना तथा भारत के अनुसन्धान तथा विकास आधार को व्यापक करना।
  • DPP के पूरक के तौर पर अन्य कई पहलें की गयीं हैं जैसे: 
    • रक्षा खरीद की प्रक्रिया में  ‘बाय एंड मेक (ग्लोबल) ’ तथा ‘बाय (ग्लोबल) ’ श्रेणीयों की बजाय ‘बाय (इंडियन) ’, ‘बाय एंड मेक (इंडियन) ’ तथा ‘मेक ’ श्रेणीयों को तरजीह देना।
    • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश संबंधी (फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट: FDI) ऐसी निति  बनाई गई जिसके अंतर्गत ऑटोमेटिक रुट से 49% तक विदेशी निवेश की अनुमति है  तथा 49% से  अधिक के विदेशी निवेश के मामले में गवर्नमेंट रुट से अनुमति है।
    • औद्योवगक लाआसस की आरंभिक वैधता को 3 वर्ष से बढ़ाकर 15 वर्ष कर दिया गया है  तथा प्रत्येक मामले के अधार पर आसे 3 और वर्ष तक बढ़ाने का प्रावधान भी दिया गया है।
    • अधिकांश घटकों, पुर्जो, उप-तंत्रों अकद को रक्षा ईत्पादों के वलए औद्योवगक लाआसस की ऄवनिायता श्रेणी से बाहर कर कदया गया है।

क्या किया जाना चाहिए

  • कंसोर्टियम एप्रोच: ब्रह्मोस एयरोस्पेस की ही तर्ज पर ही कंसोर्टियम एप्रोच को अपनाने की आवश्यकता है। हमें विभिन्न कंपनियों की क्षमता का अधिकतम लाभ उठाना होगा। उन्हें एक ही व्यवस्था के अंतर्गत लाना उचित होगा जिससे हमारी डिजाईन एंड डेवलपमेंट परियोजनाएँ सफलतापूर्वक पूर्ण हो सकें।
  • उत्पादन क्षमता का स्तर बढ़ाना: मौजूदा उत्पादन क्षमताओं में शीघ्र वृद्धि किये जाने की आवश्यकता है। DPSU तथा OFs जब हमारी सेनाओं की आवश्यकता पूर्ति करने में सक्षम हो जाएंगे तो हथियारों, उपकरणों तथा अस्त्रों को मित्र देशों को निर्यात करने की उनकी क्षमता में बढ़ोतरी की भी प्रबल संभावना है।
  • मानव पूँजी: सरकारी तथा निजी दोनों तरह के भारतीय विश्वविद्यालयों को प्रतिभा का ऐसा पूल तैयार करने पर ध्यान देना होगा जो रक्षा के अनुसन्धान एवं विकास को बढ़ावा देने में योगदान दे सके। हमारे पाठ्यक्रम का झुकाव सैद्धांतिक अध्ययन की अपेक्षा प्रायोगिक तथा शोध - उन्मुख अध्ययन की तरफ होना चाहिए।
  • पूँजीगत अधिग्रहण हेतु निधि: निधि के बड़े हिस्से का आवंटन पूँजीगत परिसम्पात्तियों के अधिग्रहण के लिए किया जाना चाहिए। निर्धारित दायित्वों को पूरा करने के बाद आधुनिकीकरण के लिए बहुत कम ही धन बचता है। वर्तमान में बजट का मात्र 42% ही पूँजी के रूप में उपलब्ध है। राजस्व व्यय लगभग 58% है। इस अनुपात में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता है।
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