लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न: 1. लेखक और उसके मित्र कितने बजे की बस पकडऩा चाहते थे और क्यों?
उत्तर: लेखक और उसके मित्र शाम चार बजे की बस पकडऩा चाहते थे। क्यूंकि वे इस बस से पन्ना से सतना और वहाँ से जबलपुर जाने वाली ट्रेन पकडक़र सुबह तक घर पहुँचना चाहते थे।
प्रश्न: 2. समझदार आदमियों ने लेखक और उसके साथियों को क्या सलाह दी?
उत्तर: समझदार आदमियों ने लेखक और उसके साथियों को यह सलाह दी कि वे शाम की बस से यात्रा न करें क्यूंकि शाम को चलने वाली यह बस खटारा हालत में है। पता नहीं समय पर पहुँचाएगी या नहीं।
प्रश्न: 3. लेखक शाम को जिस बस से यात्रा करना चाहता था, उसकी दशा कैसी थी?
उत्तर: लेखक शाम को जिस बस से यात्रा करना चाहता था, वह अत्यंत पुरानी थी। देखने से लगता था कि वह चलने की हालत में नहीं थी इस बस पर सवारी करना खतरे से खाली नहीं था।
प्रश्न: 4. लेखक के बस के चलने के बारे में पूछने पर बस कंपनी के हिस्सेदार ने उसके बारे में क्या बताया?
उत्तर: लेखक ने जब बस कंपनी के हिस्सेदार से बस के चलने के बारे में पूछा तो हिस्सेदार ने बताया, ‘‘चलती क्यों नहीं जी! अभी चलेगी।’’
प्रश्न: 5. लेखक और उसके साथी खिडक़ी से दूर क्यों सरक गए?
उत्तर: लेखक और उसके साथी जिस बस में यात्रा कर रहे थे, उसकी खिड़कियों के काँच टूट गए थे। थोड़़े-बहुत जो काँच बचे थे, बस स्टार्ट होने पर जोर से हिलकर और गिरकर लेखक एवं उसके साथियों को घायल कर सकते थे, इसलिए वे खिड़कियों से दूर सरक गए।
प्रश्न: 6. वे कौन-कौन से कारण थे, जिनके कारण लेखक का बस से भरोसा उठ चुका था?
उत्तर: लेखक ने जब से यात्रा शुरू की थी तब से बस कई बार खराब हो चुकी थी। उसे ठीक करके चलाया तो जाता था, पर हर बार उसकी रफ्तार कम होती जा रही थी। अब उसे अन्य पुर्जों, ब्रेक, स्टीयरिंग आदि के फेल होने का डर लग रहा था, इसलिए लेखक का बस से भरोसा उठ चुका था।
प्रश्न: 7. लेखक बस से यात्रा कर रहा था, फिर उसे ग्लानि क्यों हो रही थी?
उत्तर: क्षीण चाँदनी में पेड़ की छाया में खड़ी बस उसे वृद्धा के समान लग रही थी। वह सोच रहा था कि यदि वह और उसके साथी इस पर लदकर न आते तो बस की यह दशा न होती, इसीलिए उसे ग्लानि हो रही थी।
प्रश्न: 8. यात्रा शुरू होने से आठ-दस मील चलते ही सारे भेदभाव किस तरह मिट चुके थे?
उत्तर: लेखक जिस बस में यात्रा कर रहा था उस बस के सभी पुर्जें खराब होते जा रहे थे। चलती बस की बॉडी बुरी तरह हिल रही थी। वह और उसके मित्र जिस सीट पर बैठे थे, अब उन्हें लग रहा था कि सीट उन पर बैठी है। ऐसा सभी यात्रियों के साथ हो रहा था, इसलिए भेद-भाव मिट चुके थे |
प्रश्न: 9. लेखक ने सतना पहुँचने की उम्मीद क्यों छोड़ दी?
उत्तर: लेखक ने देखा कि बस बार-बार खराब हो रही है। अब तो हेडलाइट खराब होने से वह और भी रुक-रुककर चल रही थी। बस की ऐसी दशा और चाल देखकर लेखक ने सतना पहुँचने की उम्मीद छोड़ दी थी।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न: 1. लेखक द्वारा बस की चाल, उसकी दशा तथा गाँधी जी के आंदोलन में साम्यता दिखाना कितना उचित है?
उत्तर: बस ड्राइवर और कंपनी के हिस्सेदार बस को चलाने की कोशिश करते तो उसका कोई न कोई भाग (पुर्जा) खराब हो जाता। एक पुर्जा ठीक किया जाता तो दूसरा खराब हो जाता अर्थात उसके पुर्जे आपस में सहयोग नहीं कर रहे थे। इसी तरह गाँधी जी के असहयोग एवं सविनय अवज्ञा आंदोलन के समय नमक कानून तोडक़र भारतीय भी अंग्रेजी सरकार के प्रति अपना असहयोग प्रकट कर रहे थे, इसलिए यह साम्यता पूर्णतया उचित है।
प्रश्न: 2. लेखक को बस में माँ द्वारा बच्चे को शीशी से दूध पिलाने की बात क्यों याद आ रही थी?
उत्तर: अचानक चलती बस रुकने पर लेखक को मालूम हुआ कि पेट्रोल की टंकी में छेद हो गया है। ड्राइवर ने टंकी का पेट्रोल बाल्टी में निकालकर अपने बगल में रख लिया और नली से इंजन में पेट्रोल भेजने लगा। यह देखकर लेखक को लगा द्घस्र अब बस कंपनी के हिस्सेदार बस का इंजन निकालकर अपनी गोद में रख लेंगे और उसे नली से पेट्रोल पिलाएँगे। यह दृश्य उसी तरह दिखेगा जैसे माँ बच्चे को दूध पिलाती है।
प्रश्न: 3. कंपनी के हिस्सेदार को क्या सचमुच में क्रांतिकारी आंदोलन का नेता होना चाहिए या उन पर व्यंग्य किया गया है?
उत्तर: कंपनी का हिस्सेदार जिस प्रकार तरह-तरह के उपाय तथा जोड़-तोड़ करके बस चलाना चाह रहा था तथा घिसे-पिटे टायरों की मदद से बस चलवा रहा था, उससे लगता है कि उसे अपनी जान की तनिक भी परवाह न थी। क्रांतिकारी आंदोलन के नेता में भी अपने उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए जुनून सवार रहता है। वह भी अपनी जान की परवाह नहीं करता, पर उसका उद्देश्य नेक एवं पवित्र होता है। कंपनी के हिस्सेदार का उद्देश्य पैसा कमाना तथा किसी तरह बस चलवाना था, इसलिए यह उस पर व्यंग्य ही है।
प्रश्न: 4. ‘बस की यात्रा’ नामक पाठ आज की परिस्थितियों में पूर्णतया सार्थक तथा उपयुक्त है्। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: 'बस की यात्रा' नामक पाठ आज की परिस्थितियों में पूर्णतया सार्थक तथा उपयुक्त है क्योंकि पाठ में जिस तरह की बस का वर्णन है, आज सडक़ों पर परिवहन व्यवस्था को ठेंगा दिखाते हुए, इसी तरह कि टूटी-फूटी तथा जीर्ण-शीर्ण बसें धड़ल्ले से चल रही हैं। उनकी खिड़कियों, सीटो तथा बॉडी का टूटा होना आम बात है। कंपनी के हिस्सेदार की तरह ही इनके मालिकों को यात्रियों की जान एवं समय नष्ट होने से कोई मतलब नहीं होता है।। किसी भी तरह से पैसा कमाना इनका एकमात्र उद्देश्य होता है।
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1. बस की यात्रा क्या है? |
2. बस की यात्रा के लिए टिकट कैसे खरीदें? |
3. बस की यात्रा के लिए टिकट की कीमतें कितनी होती हैं? |
4. बस की यात्रा के दौरान खाने की सुविधा होती है? |
5. बस की यात्रा के लिए कौन-कौन सी सुरक्षा उपाय हैं? |
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