क्रिया के जिस रूपांतर से यह पता चले कि क्रिया द्वारा कही गई बात का विषय कर्ता है, कर्म है, या भाव उसे वाच्य कहते हैं।
निम्नलिखित वाक्यों को ध्यानपूर्वक पढ़िए:
ऊपर के वाक्यों में “खेलता है”, “खरीद रही है” आदि क्रिया के विभिन्न रूपों का विधान किया गया है। यह विधान व्याकरण में वाच्य कहलाता है।
वाच्य के भेद वाच्य के निम्नलिखित तीन भेद हैं:
1. कर्तृवाच्य
जब वाक्य में कही गई क्रिया का प्रधान विषय कर्ता हो अर्थात् क्रिया का लिंग, वचन और पुरुष कर्ता के लिंग, वचन और पुरुष के अनुसार हो तो उसे कर्तृवाच्य कहते हैं।
जैसे:
(क) मंजू पुस्तक पढ़ती है।
(ख) मनोज विद्यालय को जाएगा।
(ग) लड़के गेंद से खेलेंगे।
(घ) मीरा और सुधा कढ़ाई कर रही हैं।
इन वाक्यों की क्रियाओं का प्रधान विषय कर्ता है, अतः ये कर्तृवाच्य के रूप हैं।
2. कर्मवाच्य
जब वाक्य में क्रिया द्वारा कही गई बात का प्रधान विषय कर्म हो और कर्म के लिंग, वचन व पुरुष के अनुसार ही क्रिया के लिंग, वचन व पुरुष हों तो उसे कर्मवाच्य कहते हैं।
जैसे:
(क) यह पुस्तक डा. त्रिपाठी द्वारा लिखी गई है।
(ख) पानी मोहन द्वारा पिया गया है।
(ग) रमा से पत्र लिखा जाता है।
(घ) अनिल से पुस्तक पढ़ी जाती है।
इन वाक्यों की क्रियाओं का प्रधान विषय कर्म- पुस्तक, पत्र तथा दूध हैं, अतः ये कर्मवाच्य की क्रियाएँ हैं।
3. भाववाच्य
जब वाक्य में क्रिया द्वारा कही गई बात का प्रधान विषय न कर्ता हो, न कर्म हो अपितु भाव अर्थात् क्रिया का अर्थ ही हो, उसे भाववाच्य कहते हैं। इसमें क्रिया अन्य पुरुष, एकवचन और पुल्लिग में प्रयुक्त होती है।
जैसे:
(क) आकाश से उठा नहीं जाता।
(ख) राहुल से सोया नहीं जाता।
(ग) मीना से दौड़ा नहीं जाता।
(घ) सुधा से चला नहीं जाता।।
इन वाक्यों की क्रियाओं का प्रधान विषय कर्ता नहीं है, अपितु भाव ही है। अतः ये भाववाच्य के रूप हैं। विशेष- भाववाच्य केवल अकर्मक धातुओं से ही बनता है।
एक वाच्य से दूसरे वाच्य में बदलने को वाच्य-परिवर्तन कहते हैं।
वाच्य-परिवर्तन निम्न प्रकार से होता है।
कर्तृवाच्य से कर्मवाच्य
कर्मवाच्य से कर्तृवाच्य में बनाना
स्मरणीय तथ्य
किसी भी वाक्य में उसकी क्रिया का संबंध कर्ता या कर्म के साथ होता है। कर्ता अथवा कर्म के अनुसार उसमें परिवर्तन भी होता है। इस संबंध को वाच्य कहते हैं। वाच्य तीन प्रकार के होते हैं:
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