ऐसे शब्द जो संज्ञा या सर्वनाम शब्दों के बाद लगकर उनका संबंध वाक्य के अन्य शब्दों को बताते हैं, उन्हें संबंधबोधक कहते हैं।
निम्नलिखित वाक्यों को ध्यान से पढ़ें:
ऊपर लिखे वाक्यों में “लाल किले” संज्ञा शब्द “घर”, “पेड़” संज्ञा या सर्वनाम पद हैं। इनके बाद क्रमशः मोटे छपे शब्द के आगे “के बिना”, “उसके साथ”, “के नीचे”, “चारों ओर”, “की अपेक्षा”, “के विरुद्ध” आदि उससे संबंध बताते हैं। इन्हें संबंधबोधक कहते हैं। स्मरण रहे कि उनके पहले “के”, “से”, “को” परसर्ग आते हैं जो बाद के रूपों के साथ संबंध जोड़ते हैं। के द्वारा, की जगह, की भाँति के संग, के लिए, के बिना आदि संज्ञा-शब्दों के साथ आए हैं। इन्होंने संज्ञा का संबंध वाक्य के अन्य शब्दों के साथ जोड़ा है। ये संबंधबोधक शब्द हैं।
कुछ शब्द क्रिया विशेषण और संबंधबोधक दोनों रूपों में प्रयुक्त किए जा सकते हैं। जैसे- नीचे दिए गए उदाहरण देखिए:-
दोनों में यह अंतर है कि संबंधबोधक किसी संज्ञा या सर्वनाम के साथ आते हैं और क्रिया-विशेषण सीधे क्रिया की विशेषता प्रकट करते हैं। याद रखिए जब ऐसे शब्द संबंधबोधक की तरह प्रयोग किए जाते हैं तो उनसे पूर्व के “से”, “की’ आदि अवश्य जुड़े होते हैं। यदि इनके आगे “के”, “से”, “की” आदि न हों तो ये क्रिया-विशेषण बन जाते हैं। संबंधबोधक तीन प्रकार से प्रयोग किए जाते हैं:
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