समुच्चयबोधक के दो प्रमुख भेद हैं:
(i) समानाधिकरण समुच्चयबोधक
(ii) व्यधिकरण समुच्चयबोधक
(क) संयोजक: जो अव्यय पद दो शब्दों, वाक्यांशों या समान वर्ग के दो उपवाक्यों में संयोग प्रकट करते हैं, वे ‘संयोजक’ कहलाते हैं;
जैसे: और, एवं, तथा आदि।
(ख) विभाजक या विकल्प: जो अव्यय पद शब्दों, वाक्यों या वाक्यांशों में विकल्प प्रकट करते हैं, वे ‘विकल्प’ या ‘विभाजक’ कहलाते हैं;
जैसे: कि, चाहे, अथवा, अन्यथा, या, नहीं, तो आदि।
(ग) विरोधसूचक: जो अव्यय पद पहले वाक्य के अर्थ से विरोध प्रकट करें, वे ‘विरोधसूचक’ कहलाते हैं;
जैसे: परंतु, लेकिन, किंतु आदि।
(घ) परिणामसूचक: जब अव्यय पद किसी परिणाम की ओर संकेत करता है, तो ‘परिणामसूचक’ कहलाता है;
जैसे: इसलिए, अतएव, अतः, जिससे, जिस कारण आदि।
व्यधिकरण समुच्चयबोधक के मुख्य चार भेद हैं :
(क) हेतुबोधक या कारणबोधक,
(ख) संकेतबोधक,
(ग) स्वरूपबोधक,
(घ) उद्देश्यबोधक।।
(क) हेतुबोधक या कारणबोधक-: इस अव्यय के द्वारा वाक्य में कार्य-कारण का बोध स्पष्ट होता है;
जैसे: क्योंकि, चूँकि, इसलिए, कि आदि।
(ख) संकेतबोधक-: प्रथम उपवाक्य के योजक का संकेत अगले उपवाक्य में पाया जाता है। ये प्रायः जोड़े में प्रयुक्त होते हैं;
जैसे: जो……. तो, यद्यपि ……..”तथापि, चाहे…….. पर, जैसे……..”तैसे।
(ग) स्वरूपबोधक: जिन अव्यय पदों को पहले उपवाक्य में प्रयुक्त शब्द, वाक्यांश या वाक्य को स्पष्ट करने हेतु प्रयोग में लाया जाए, उसे ‘स्वरूपबोधक’ कहते हैं;
जैसे: यानी, अर्थात् , यहाँ तक कि, मानो आदि।
(घ) उद्देश्यबोधक: जिन अव्यय पदों से कार्य करने का उद्देश्य प्रकट हो, वे ‘उद्देश्यबोधक’ कहलाते हैं;
जैसे: जिससे कि, की, ताकि आदि।
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