अनुमान और कल्पना
प्रश्न 1. टोपी पहनकर गवरइया राजा को दिखाने क्यों पहुँची जबकि उसकी बहस गवरा से हुई और वह गवरा के मुँह से अपनी बड़ाई सुन चुकी थी। लेकिन राजा से उसकी कोई बहस हुई ही नहीं थी। फिर भी वह राजा को चुनौती देने पहुँची। कारण का अनुमान लगाइए।
उत्तर -अपनी सुंदर-सी टोपी पहन गवरइया ने गवरे को दिखाया। गवरे ने उसकी प्रशंसा की, किंतु गवरइया टोपी दिखाने राजा के पास गई। वह राजा को यह अहसास करवाना चाहती थी कि लराजा! तू प्रजा से बिना पारिश्रमिक दिए काम करवाता है। प्रजा को राजा के अलावा किसी का सहारा नहीं होता। यदि उन्हें उचित पारिश्रमिक न मिला तो ये लोग भूखों मर जाएँगे। गवरइया राजा की कार्यप्रणाली को भली प्रकार समझ चुकी थी। उसने धुनिये, कोरी, एवं दर्जी को काम करते हुए यह सब प्रत्यक्ष देख लिया था कि वे राजा के काम को स्वेच्छा से नहीं बल्कि डर से कर रहे हैं] जबकि पारिश्रमिक पाने पर यही काम अच्छी तरह से करते हैं। इसके अलावा पारिश्रमिक देने पर काम जल्दी भी होता है। गवरइया राजा को यही सब एहसास करवाने एवं चुनौती देने गई थी।
प्रश्न 2. यदि राजा के राज्य के सभी कारीगर अपने-अपने श्रम का उचित मूल्य प्राप्त कर रहे होते तब गवरइया के साथ उन कारीगरों का व्यवहार कैसा होता?
उत्तर - यदि राजा के राज्य के सभी कारीगर अपने-अपने श्रम का उचित मूल्य पाते तो वेे राजा का काम पहले करते तथा उनका काम पूरा होने तक गवरइया के काम को हाथ न लगाते। हाँ, राजा का काम पूरा होने के बाद ही वे भले उसका काम करते अन्यथा मना कर देते।
प्रश्न 3. चारों कारीगर राजा के लिए काम कर रहे थे। एक रजाई बना रहा था। दूसरा अचकन के लिए सूत कात रहा था। तीसरा धागा बुन रहा था। चौथा राजा की सातवीं रानी की दसवीं संतान के लिए झब्बे सिल रहा था। उन चारों ने राजा का काम रोककर गवरइया का काम क्यों किया?
उत्तर - धुनिया, कोरी (बुनकर) और दर्जी राजा का काम डरकर कर रहे थे, अपनी रुचि से नहीं। उन्हें राजा ठ्ठ9शारा कोई पारिश्रमिक भी नहीं दिया जा रहा था। गवरइया ने उन कारीगरों को उनकी कल्पना से भी अधिक मज्जदूरी दी, इसलिए उन्होंने राजा का काम रोककर गवरइया का काम पहले किया।
भाषा की बात
प्रश्न 1. गाँव की बोली में कई शब्दों का उच्चारण अलग होता है। उनकी वर्तनी भी बदल जाती है। जैसे गवरइया गौरैया* का ग्रामीण उच्चारण है। उच्चारण के अनुसार इस शब्द की वर्तनी लिखी गई है। फुँदना, फुलगेंदा का बदला हुआ रूप है। कहानी में अनेक शब्द हैं जो ग्र्रामीण उच्चारण में लिखे गए हैं, जैसे मुलुक - मुल्क, खमा-क्षमा, मजूरी- मज्जदूरी, मल्लार- मल्हार इत्यादि। आप क्षेत्रीय या गाँव की बोली में उपयोग होनेवाले कुछ ऐसे शब्दों को खोजिए और उनका मूल रूप लिखिए, जैसे- टेम- टाइम, टेसन / टिसन स्टेशन।
उत्तर - क्षेत्रीय या गाँव की बोली में उपयोग होनेवाला कुछ शब्द तथा उनके मूल रूप:
पाठ से-
क्षेत्रीय बोली |
मूल रूप |
क्षेत्रीय बोली |
मूल रूप |
गवरइया |
गौैरैया |
मानुष |
मनुष्य |
खमा |
क्षमा |
अपन |
अपने |
चाम |
चर्म |
बावरा |
बावला |
सकत |
शक्ति |
भिनसार |
भोर,प्रभात |
मुलुक |
मुल्क |
दुपहर |
दोपहर |
जुरती |
जुड़ती |
बरधा |
बैल |
हुलस |
उल्लास |
मल्लार |
मल्हार |
पाठ्येत्तर- |
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सकूटर |
स्कूटर |
सकूल |
स्कूल |
टेशन |
स्टेशन |
उमर |
उम्र |
बखत |
वक्त |
घनी / घने |
बहुत |
फिल्म |
फिल्म |
इस्कूल |
स्कूल |
प्रश्न 2. मुहावरों के प्रयोग से भाषा आकर्षक बनती है। मुहावरे वाक्य के अंग होकर प्रयुक्त होते हैं। इनका अक्षरश: अर्थ नहीं, बल्कि लाक्षणिक अर्थ लिया जाता है। पाठ में अनेक मुहावरे आए हैं। टोपी को लेकर तीन मुहावरे हैं; जैसे- कितनों को टोपी पहनानी पड़ती है। शेष मुहावरों को खोजिए और उनका अर्थ ज्ञात करने का प्रयास कीजिये
उत्तर- टोपी से संबंधित मुहावरे एवं अर्थ:
मुहावरे अर्थ
(क) टोपी उछलना - बेइज़ती या बदनामी हो जाना।
(ख) टोपी के लिए टाट उलटना - इज़्ज़त बचाने हेतु दल बदल लेना।
(ग) टोपी सलामत रखना - इज़्ज़त बचाए रखना।
(घ) टोपी पहनाना - खुशामद करना या चापलूसी करना।
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