पाठ का सारांश
प्रस्तुत पाठ एक यात्रा-वृत्तांत है जो व्यंग्यात्मक शैली में लिखा गया है। इस पाठ के माध्यम से यह बताया गया है कि प्राइवेट बस कंपनियों के मालिक कैसी-कैसी खटारा बसें चलाते हैं। वे अधिकाधिक मुनाफा कमाने के चक्कर में यात्रियों की जान के साथ खिलवाड़ करने में भी संकोच नहीं करते |
लेखक और उसके चार साथियों को जबलपुर जानेवाली टे्रन पकडऩी थी। उन्होंने बस से पन्ना से सतना जाने का कार्यक्रम बनाया। वे सुबह पहुँचना चाहते थे। उनमें से दो को सुबह काम पर भी पहुँचना था। कुछ समझदार लोगों ने इस बस से यात्रा न करने की सलाह भी दी।
लेखक ने देखा कि बस बिल्कुल टूटी-फूटी तथा जर्जर दशा में है। किसी वृद्धा की तरह वह सैकड़ों साल पुरानी हो चुकी थी। उसे देखकर यही संशय मन में उत्पन्न होता था कि वह चलेगी भी या नहीं। वास्तव में यह बस तो पूजा के योग्य थी। फिर इस पर सवारी कैसे की जाए! उसी बस में कंपनी के ,एक हिस्सेदार भी यात्रा कर रहे थे। उनका कहना था कि बस एकदम ठीक है और अच्छी तरह चलेगी। बस की दशा देखकर लेखक और उसके साथी उससे जाने का निश्चय नहीं कर पा रहे थे। लेखक के डॉक्टर मित्र ने अपने अनुभव याद दिलाते हुए कहा कि यह बस नई-नवेली बसों से भी ज्ज्यादा विश्वसनीय है। लेखक अपने साथियों के साथ बस में बैठ गया। जो छोडऩे आए थे, वे लेखक को इस तरह देख रहे थे, मानो लेखक इस दुनिया से जा रहा हो। उनकी आँखों में ऐसा भाव था, जैसे वे कह रहह्य हों कि जो इस दुनिया में आया है, उसे तो जाने का कोई न कोई बहाना चाहिए।
बस के चालू होते ही सारी बस हिलने लगी। खिड़कियों के बचे-खुचे काँच भी गिरने की स्थिति में आ गए। लेखक डर रहा था कि वे काँच गिरकर उसको ही घायल न कर दें। लग रहा था कि सारी बस ही इंजन है। बस को चलता हुआ देखकर उसे गाँधी जी के असहयोग आंदोलन की बात याद आ गई। जिस तरह अंग्रेजो की गलत नीतियों का कोई देशवासी सहयोग नहीं कर रहा था, उसी प्रकार बस के अन्य भाग भी उसका सहयोग नहीं कर रहे थे। उसकी हिलती बॉडी देखकर लेखक को लग रहा था कि बॉडी बस को छोडक़र भागी जा रही है। आठ-दस मील चलने पर ऐसा लगने लगा कि लेखक टूटी सीटों के बीच कहीं अटका है।
चलती बस अचानक रुक गई। लेखक को पता चला कि पेट्रोल की टंकी में छेद हो गया है। ड्राइवर ने पेट्रोल बाल्टी में निकाल लिया और अपनी बगल में रखकर नली से इंजन में भेजने लगा। लेखक सोच रहा था कि अब बस कं पनी के मालिक बस का इंजन अपनी गोद में रख लेंगे और नली से पेट्रोल उसी तरह पिलाएँगे जैसे माँ बच्चे को दूध पिलाती है। बस की चाल कम हो रही थी। लेखक का बस पर रहा-सहा भरोसा भी उठ गया। उसे डर लग रहा था कि कहीं बस का स्टेयरिंग न टूट जाए या उसका ब्रेक न फेल हो जाए। उसे हरे-भरे पेड़ अपने दुश्मन से लग रहे थे, क्योंकि उनसे बस टकरा सकती थी। सड़क के किनारे झील देखने पर वह सोचता कि बस इसमें गोता न लगा जाए। इसी बीच बस पुन: रुक गई। ड्राइवर के प्रयासों के बाद भी बस न चली। कंपनी के हिस्सेदार बस को फर्स्ट क्लास की बताते हुए इसे संयोग मात्र बता रहे थे। कमजोर चाँदनी में बस ऐसी लग रही थी जैसे कोई बुढिय़ा थककर बैठ गई हो। उसे डर लग रहा था कि इतने लोगों के बैठने से इसका प्राणांत ही न हो जाए और उन सबको उसकी अंत्येष्टि न करनी पड़ जाए। कंपनी के हिस्सेदार ने बस इंजन को खोलकर कुछ ठीक किया। बस तो चल पड़ी पर उसकी रफ़्तार अब और भी कम हो गई। बस की हेडलाइट की रोशनी भी कम होती जा रही थी। वह बहुत धीरे-धीरे चल रही थी। अन्य गाडिय़ों के आते-जाते वह किनारे खड़ी हो जाती थी।
बस कुछ दूर चलकर पुलिया पर पहुँची थी कि उसका एक टायर फट गया और बस झटके से रुक गई। यदि बस स्पीड में होती तो उछलकर नाले में गिर जाती। लेखक बस कंपनी के हिस्सेदार को श्रद्धाभाव से देख रहा था। उसके जैसे उत्सर्ग की भावना अन्यत्र मुश्किल थी। अपनी जान की परवाह किए बिना वह बस में स.फर किए जा रहा था। उसके साहस और बलिदान की भावना का सही उपयोग नहीं हो रहा था। उसे तो क्रांतिकारी आंदोलन का नेता होना चाहिए था। बस के नाले में गिरने से यदि यात्रियों की मृत्यु हो जाती तो देवता बाँहें पसारे उसका इंतज्जार करते और कहते कि वह महान आदमी आ रहा है, जिसने अपनी जान दे दी, पर टायर नहीं बदलवाया। दूसरा टायर लगाने पर बस पुन: चल पड़ी। लेखक एवं उसके मित्र पन्ना या कहीं भी जाने की उम्मीद छोड़ चुके थे। उन्हें लग रहा था कि पूरी जिंदगी इसी बस में बिताकर उस लोक को चले जाना है। इस पृथ्वी पर उसकी कोई मंजिल नहीं है। अब वे घर की तरह आराम से बैठ गए और चिंता छोडक़र हँसी-मज़ाक में शामिल हो गए।
शब्दार्थ—
पृष्ठ : डाकिन—डाका डालनेवाली। श्रद्धा —आदर एवं सम्मान की भावना। वयोवृद्ध—बहुत बूढ़ी। सदियाँ—सैकड़ों साल। अनुभव—तजुर्बां। वृद्धावस्था—बुढ़ापा। कष्ट—तकलीफ, दुख।
पृष्ठ : हिस्सेदार—जिसका हिस्सा हो, भागीदार। अनुभवी—तजुर्बेकार। नई नवेली—बिल्कुल नई। विश्वसनीय—विश्वास करने योग्य। अंतिम विदा—आखिरी विदाई, जिसके बाद मिलना न हो। रंक—भिखारी, अत्यंत गरीब। .फकीर—साधु। निमित्त—कारण, बहाना। स्टार्ट—चालू। फौरन—तुरंत। सरकना—खिसकना।
पृष्ठ : असहयोग—सहयोग न करना। सविनय—विनयपूर्वक। अवज्ञा—आज्ञा न मानना, उल्लंघन करना। ट्रेनिंग—प्रशिक्षण। दौर —युग, समय। बॉडी—ढाँचा। बगल—पास में। रफ़्तार—चाल, वेग। लुभावना—मन को अच्छे लगने वाला। गोता लगाना—डूब जाना, डुबकी लगाना। तरकीब—उपाय, तरीका। फर्स्ट क्लास—बिल्कुल ठीक। इत्तफाक—संयोग। क्षीण—कमजोर, मदधिम। दयनीय—दया करने योग्य। ग्लानि—स्वयं पर शर्म महसूस करना। बियाबान—सुनसान। अंत्येष्टि—अंतिम क्रियाकर्म, मरने के बाद किए जानेवाले कार्य।
पृष्ठ : ज्योति—प्रकाश, रोशनी। टटोलना—ढूँढऩा, खोजना। पुलिया—छोटा-सा पुल। स्पीड—रफ्तार। हालत—दशा। उत्सर्ग—त्याग, किसी वस्तु को छोडऩा। दुर्लभ—अत्यंत कठिनाई से प्राप्त होनेवाला। क्रांतिकारी—क्रांति फैलानेवाला। बाँहें पसारे—स्वागत करने के लिए तैयार। बेताबी—बेचैनी, व्याकुलता। इत्मीनान से—निश्चित भाव से।
पाठ में प्रयुक्त मुहावरे
1. गज्जब होना—आश्चर्यजनक बात होना।
2. आगा-पीछा करना—दुविधा की स्थिति में होना।
3. कूच करना—अन्य स्थान पर जाना।
4. प्राणांत होना—मृत्यु को प्राप्त करना।
5. जान हथेली पर रखना—मौत से न डरना।
6. प्रयाण करना—मर जाना।
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1. बस की यात्रा क्या है? |
2. बस की यात्रा क्यों महत्वपूर्ण है? |
3. बस की यात्रा से संबंधित कुछ उपयोगी सुझाव क्या हैं? |
4. बस की यात्रा के फायदे क्या हैं? |
5. बस की यात्रा से संबंधित कुछ समस्याएं क्या हो सकती हैं? |
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