Class 8 Exam  >  Class 8 Notes  >  कक्षा - 8 हिन्दी (Class 8 Hindi) by VP Classes  >  सप्रसंग व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न (भाग - 1) - पाठ का सारांश,हिंदी, कक्षा - 8

सप्रसंग व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न (भाग - 1) - पाठ का सारांश,हिंदी, कक्षा - 8 | कक्षा - 8 हिन्दी (Class 8 Hindi) by VP Classes PDF Download

1.

सीस पगा न झंगा तन में, प्रभु! जाने को आहि बसे केहि ग्रामा।
धोती फटी-सी लटी दुपटी, अरु पाँय उपानह स्रद्ध नहिं सामा।
दवार खड़ो दरविज दुर्बल एक, रहियो चकिसों बसुधा अभिरामा।
पूछत दीनदयाल को धाम, बतावत आपनो नाम सुदामा॥    

शब्दार्थ—सीस—सिर। पगा—पगड़ी।आंगा—वस्त्र, । तन—शरीर। प्रभु—ईश्वर (श्री कृष्ण )। बसे—बसता है, रहता है। केहि—कौन-से, किस। ग्रामा—गाँव में। लटी—छोटी या छोटा। दुपटी—दुपट्टा अंगोछा। अरु—और। पाँय—पाँव, पैर। उपानह—जूते। सामा—चिन्ह । द्वार—दरवाज्जा। द्विज—ब्राह्मणगण। दुर्बल—कमज्जोर। चकिसों—चकित होकर। बसुधा—धरती। अभिरामा—सुंदरता। पूछत—पूछ रहा है। दीनदयाल—गरीबों पर दया करनेवाला अर्थात श्री कृष्ण। धाम—भवन। बतावत—बताता है, कहता है। आपनो—अपना, खुद का।

प्रसंग—प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक 'वसंत, भाग-3' में संंकलित कविता सुदामा चरित* से ली गई हैं। इसके रचयिता नरोत्तम दास हैं। इन पंक्तियों के  माध्यम से कवि ने सुदामा की विपन्नता और कृष्ण के वैभव का मर्मस्पर्शी वर्णन किया है।

व्याख्या—श्री कृष्ण से मिलने गए गरीब सुदामा को देखकर दवारपाल ने भवन में जाकर श्री कृष्ण से कहा कि हे प्रभु! दरवाज़े पर एक गरीब ब्राह्मण खड़ा है, जो आपसे मिलना चाहता है। उसके सिर पर न पगड़ी है और न शरीर पर कुर्ती है। हे प्रभु! पता नहीं वह किस गाँव का रहनेवाला है। उसकी धोती फटी हुई है जो छोटी हो गई है उसे वह बाँधे हुए है। उसके पैरों में जूते के निशान तक नहीं हैं। ऐसा लगता है कि उसमें जूते खरीदने का सामथ्र्य नहीं है। दरवाज़े पर खड़ा वह दुर्बल ब्राह्मण दवारका के वैभव को अर्थात सौंदर्य को आश्चर्यचकित होकर देखे जा रहा है। वह दीनदयाल अर्थात आपका  धाम पूछ रहा है और अपना नाम सुदामा बता रहा है।

विशेष      

  •  ‘दवार खड़ो द्विज दुर्बल एक’ में अनुप्रास अलंकार है।
  •  काव्यांश की रचना सवैया छंद में है।
  •  काव्यांश में ब्रजभाषा का सौंदर्य एवं माधुर्य व्याप्त है।

प्रश्न  (क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए। 
उत्तर - 
कवि का नाम—नरोत्तम दास।
           कविता का नाम—सुदामा चरित।

प्रश्न  (ख) सुदामा किस हाल में श्री कृष्ण के पास गए थे?
उत्तर - सुदामा के शरीर पर न कुर्ती थी और न सिर पर पगड़ी थी। उनके पैरों में जूते भी नहीं थे। इसी दीन हाल में वे श्री कृष्ण के पास पहुँचे।

प्रश्न  (ग)  सुदामा कौन थे? वे श्री कृष्ण के पास क्यों गए थे?
उत्तर -  सुदामा एक गरीब ब्राह्मण थे। वे श्री कृष्ण के बचपन के मित्र थे जो अपनी पत्नी के आग्रह से श्री कृष्ण से मिलने के लिए गए थे।

प्रश्न  (घ)  सुदामा कृष्ण के वैभव को देखकर चकित रहे थे?
उत्तर - सुदामा श्री कृष्ण के वैभव को देखकर आश्चर्यचकित इसलिए थे क्योंकि विद्यार्थी जीवन में सुदामा ने उन्हें ऐसा देखा भी नहीं था और कृष्ण को तो वह चोर समझते थे।

प्रश्न  (ङ)  दवारपाल ने श्री कृष्ण को क्या बताया?
उत्तर - दवारपाल ने श्री कृष्ण से सुदामा की दीन दशा के बारे में बताया और कहा कि दरवाज़े पर खड़ा दुर्बल ब्राह्मण अपना नाम सुदामा बता रहा है आपका भवन पूछ रहा है।

2.
ऐसे बेहाल बिवाइन सों, पग कंटक जाल लगे पुनि जोए।

हाय! महादुख पायो सखा, तुम आए इतै न कितै दिन खोए॥
देखि सुदामा की दीन दसा, करुना करिकै करुनानिधि रोए।
पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल सों पग धोए। 

शब्दार्थ—बेहाल—बुरा हाल। बिवाइन—पैरों की फटी एडिय़ाँ। पग—पैर। कंटक जाल—बहुत से काँटे। पुनि—बार-बार। जोए—देखने। सखा—मित्र। पायो—पाए। इतै—इधर, यहाँ। कितै—किधर, कहाँ। करुना—दया। करिकै—करके। करुनानिधि—दया के सागर (श्री कृष्ण )। छुयो—छुआ। नैनन के जल—आँसुओं। सों—से।

प्रसंग—प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक 'वसंत, भाग-3' में संंकलित कविता सुदामा चरित से ली गई हैं। इसके रचयिता नरोत्तम दास हैं। दवारपाल के मुख से सुदामा का नाम सुनते ही श्री कृष्ण व्याकुल होकर उनसे मिलने चल गए,। वे उन्हें महल के अंदर ले आये

व्याख्या—इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने दया के सागर श्री कृष्ण मर्मसपर्शि वर्णन किया है | कवि  कहता है कि कृष्ण ने जब सुदामा के पैरों को धोने के लिए हाथ लगाया तो देखा कि उनका हाथ तो बेहाल है
उनके पैरों में बहुत-से काँटे चुभे हुए, हैं। व्याकुल कृष्ण सुदामा से कहते हैं कि हे मित्र! तुम यह अपार दुख भोगते रहे, पर यहाँ यहाँ क्यों नहीं आये ऐसे हाल में कहाँ दिन बिताते रहे। सुदामा की ऐसी दयनीय दशा देखकर करुणा के सागर करुणा से भरकर रोने लगे। रोते हुए कृष्ण की आँखों से इतने आँसू गिरे कि उन्होंने उस परात के पानी को छुआ तक नहीं और अपने आँसुओं से ही सुदामा के पैर धो दिए,।

विशेष  

  • ‘देखि सुदामा की दीन दसा’ तथा ‘करुना करिके करुनानिधि रोए’ में अनुप्रास अलंकार है।
  • ‘पानी परत को .......... धोए’ तथा ‘कंटक जाल लगे पुनि जोए’ में अतिशयोक्ति अलंकार है।
  •  काव्यांश की रचना सवैया छंद में है, जिसमें ब्रजभाषा का सौंदर्य एवं मधुरता निहित है।

प्रश्न (क)  कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
उत्तर - 
कवि का नाम—नरोत्तम दास।
           कविता का नाम—सुदामा चरित।

प्रश्न  (ख) सुदामा के पैरों की दशा कैसी थी?
उत्तर - 
सुदामा के पैरों में जगह-जगह बिवाइयाँ फटी थीं और उनमें बहुत-से काँटे चुभे हुए, थे। 

प्रश्न  (ग) श्री कृष्ण ने सुदामा से क्या कहा?
उत्तर - 
श्री कृष्ण ने सुदामा से कहा, मित्र तुम गरीबी में सारा दिन बिताते रहे इधर पहले ही क्यों नहीं आए।

प्रश्न  (घ)  सुदामा के पैर देखकर श्री कृष्ण की क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर - 
सुदामा के पैरों को देखकर श्री कृष्ण दया से भर उठे और रो पड़े।

प्रश्न  (ङ)  श्री कृष्ण ने सुदामा के पैर कैसे धोए?
उत्तर - श्री कृष्ण ने सुदामा के पैरों को धोने के लिए परात के पानी को छुआ ही नहीं। उन्होंने आँखों से गिरते आँसुओं से ही उनके पैर धो दिए |

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FAQs on सप्रसंग व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न (भाग - 1) - पाठ का सारांश,हिंदी, कक्षा - 8 - कक्षा - 8 हिन्दी (Class 8 Hindi) by VP Classes

1. सप्रसंग व्याख्या एवं अर्थग्रहण क्या होता है?
उत्तर: सप्रसंग व्याख्या एवं अर्थग्रहण की प्रक्रिया है जिसमें हम किसी पाठ, लेख, अथवा विषय के बारे में समझने या व्याख्यान करने का प्रयास करते हैं। इसके माध्यम से हम उस विषय में छिपे हुए भाव, संकेत और भाषा का सही मतलब निकालते हैं।
2. सप्रसंग व्याख्या और अर्थग्रहण में क्या अंतर है?
उत्तर: सप्रसंग व्याख्या और अर्थग्रहण दोनों एक पाठ के समझने और व्याख्यान करने की प्रक्रियाएं हैं, लेकिन उनमें थोड़ा अंतर होता है। सप्रसंग व्याख्या में हम पाठ को व्याख्यान करते हैं, जबकि अर्थग्रहण में हम पाठ में छिपे हुए भाव, मतलब और संकेतों का सही अर्थ निकालते हैं। अर्थग्रहण एक अधिक सूक्ष्म प्रक्रिया है जो सप्रसंग व्याख्या के पश्चात् आती है।
3. सप्रसंग व्याख्या और अर्थग्रहण क्यों महत्वपूर्ण हैं?
उत्तर: सप्रसंग व्याख्या और अर्थग्रहण दोनों ही हमारी समझ, विचारशक्ति और भाषा कौशल को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनके माध्यम से हम किसी भी विषय को समझ सकते हैं और उसे सही ढंग से व्याख्यान कर सकते हैं। ये हमें विचारों को स्पष्ट करने और उन्हें सही ढंग से व्यक्त करने की क्षमता प्रदान करते हैं।
4. सप्रसंग व्याख्या और अर्थग्रहण के द्वारा किस प्रकार की समस्याओं का हल निकाला जा सकता है?
उत्तर: सप्रसंग व्याख्या और अर्थग्रहण के द्वारा हम किसी भी मुश्किल पदार्थ, विषय या समस्या के लिए सही अर्थ निकाल सकते हैं। इनके माध्यम से हम टेक्स्ट या पाठ में दिए गए जटिल शब्दों, वाक्यों और अंग्रेजी शब्दों के अर्थ को समझ सकते हैं। इसके अलावा हमारे दिमाग में उठने वाले सवालों के उत्तर भी हम सप्रसंग व्याख्या और अर्थग्रहण के माध्यम से ढूंढ सकते हैं।
5. सप्रसंग व्याख्या और अर्थग्रहण के लिए कौन-कौन सी कौशल की आवश्यकता होती है?
उत्तर: सप्रसंग व्याख्या और अर्थग्रहण के लिए हमें विचारशक्ति, पठन पठान का कौशल, और भाषा कौशल की आवश्यकता होती है। विचारशक्ति से हम पाठ को समझते हैं, पठन पठान के कौशल से हम टेक्स्ट को ध्यानपूर्वक पढ़ते हैं और भाषा कौशल से हम शब्दों और वाक्यों का सही अर्थ निकालते हैं।
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