5- जनसंख्या वृद्धि - एक समस्या
वर्तमान में भारत को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, जिनमें गरीबी, अशिक्षा, ऋणग्रस्तता, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, प्रदूषण आदि प्रमुख हैं। इन समस्याओं में एक समस्या और जुड़ी हुई है। वह समस्या है - जनसंख्या वृद्धि की समस्या। यह समस्या अत्यंत विकराल है। यह ऐसी समस्या है जो स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से अब तक लगातार बढ़ती ही जा रही है। वर्तमान में यह गंभीर चिंता का विषय बन गई है।
जनसंख्या वृद्धि के कारणों पर विचार करने से पता चलता है कि इसकी वृद्धि के पीछे एक नही, अनेक कारण हैं। इसका सबसे पहला कारण बाल-विवाह है। भारत की अधिकांश जनता गाँवों में निवास करती है। वहाँ लड़कियों का विवाह अल्पायु में अर्थात चौदह-पंद्रह वर्षं की आयु में कर दिया जाता है। वे जल्दी ही मातृत्व को प्राप्त कर लेती हैं। इससे उनको संतानोत्पत्ति के लिए लंबा समय मिल जाता है। इसके विपरीत यही विवाह जब पच्चीस-छब्बीस साल में किया जाता है तब यह समय कम हो जाता है। इसके अलावा यहाँ के परिवेश में विवाह एवं संतानोत्पत्ति को धर्म, कर्म, लोक-परलोक से जोड़कर पावन कर्तव्य के रूप में देखा जाता है। ग्रामीण लोगों की सोच रहती है कि उनका उद्धार तभी होगा, जब उनका पुत्र उन्हें पिंडदान करे या वे स्वर्ग में तभी जाएँगे जब उनका पुत्र अंतिम क्रियाएँ संपन्न करे या पुत्र की चाहत में कई-कई पुत्रियाँ हो जाना सामान्य बात है। उनकी सोच ऐसी है कि जितने बच्चे होंगे, उतनी ही कमाई होगी तथा उनका बुढ़ापा आराम से कट जाएगा। इसके अलावा गरीबी, अशिक्षा, गर्म जलवायु जैसे कारक भी इसके लिए उत्तर दायी हैं।
जनसंख्या के दुष्परिणाम हमारे सामने हैं। यह देश की प्रगति में बाधक बन गई है। जितनी प्रगति होनी चाहिए, वह नहीं हो पा रही है। देश में जितनी वृद्धि खाद्यान्न उत्पादन में होती है, उससे कही अधिक वृद्धि जनसंख्या में होती है। परिणामस्वरूप खाद्यान्न की कमी बनी रहती है। आवास की समस्या बढ़ती जा रही है। परिवहन के साधन कम होते जा रहे हैं। अस्पताल, विद्यालय, बाजार, चौराहे, सरकारी कार्यालयों में लगी लाइनें तथा भीड़ देखकर जनसंख्या वृद्धि का सहज अनुमान लगाया जा सकता है।
रोजगार के क्षेत्र में जितनी वृद्धि होती है, वह जनसंख्या वृद्धि से हर साल कम पड़ती जाती है। ‘खाली दिमाग शैतान का घर’ अर्थात खाली बैठा आदमी रचनात्मक कार्यों की बजाए विध्वंसात्मक कार्यों में जुट जाता है। इससे भ्रष्टाचार, आतंकवाद, चोरी, डकैती, लूटमार, छीना-झपटी जैसी समस्याएँ उठ खड़ी हुई हैं जो पुलिस प्रशासन के लिए सिरदर्द बन गई हैं। इनके अलावा बेरोजगारी, कालाबाजारी, भ्रष्टाचार, बढ़ते अपराध, महँगाई, कुपोषण आदि की समस्याएँ भी पैदा हो गई हैं।
जनसंख्या की समस्या पर अंकुश लगाने के लिए सरकारी प्रयास के अलावा जन-साधारण का योगदान बहुत आवश्यक है। एक ओर लोगों को अपनी सोच में बदलाव लाने की आवश्यकता है तो दूसरी ओर सरकार को भी ठोस कदम उठाने होंगे। एक या दो संतानवाले लोगों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए तथा अधिक संतानवालों पर कर आदि लगाकर या उन्हें मिलनेवाली सुविधाओं में कमी कर के हतोत्साहित करना चाहिए।
6- विज्ञान के वरदान
आज का युग विज्ञान का युग है। आज जिधर भी दृष्टि डालें, विज्ञान के चमत्कार नजर आते हैं। विज्ञान ने मनुष्य को उन्नति की ओर अग्रसर किया। नित नई खोजों ने मनुष्य के जीवन में खुशहाली एवं क्रांति ला दी है। आज धरती, गगन, पाताल आदि में विज्ञान के प्रभाव को देखा जा सकता है।
विज्ञान की उपलब्धियों का गुणगान कहाँ से शुरू किया जाए, यह सोचना कठिन हो जाता है। सुबह से शाम तक काम आनेवाली मनुष्योपयोगी घरेलू वस्तुएँ हों या बाहर निकलने पर यातायात के उन्नत साधन या आरामदायी कार्यालय हों सब जगह विज्ञान का हस्तक्षेप हो गया है।
मनुष्य ने विज्ञान की मदद से दुर्गम स्थानों पर नहरों द्वारा पानी पहुँचाकर वहाँ की धरती को हरा-भरा बना दिया है। इससे वहाँ रहनेवालों के सूखे जीवन में बहार आ गई है। विज्ञान ने पहाड़ी इलाके में सुरंगें बनाकर सड़कें बना दीं है या रेल की पटरियाँ बिछाकर आवागमन को सुगम बना दिया है। उसने रेडियो, सिनेमा, टेलीविजन, मोटर, रेल, वायुयान, समुद्री जहाज, फोन आदि सुविधाएँ देकर जीवन को सुखमय बनाया है। विज्ञान की नई खोज कंप्यूटर के द्वारा ऐसे-ऐसे कार्य किए जा रहे हैं, जिनकी कल्पना भी नहीं की जाती थी। आज चंद्रमा तथा अन्य ग्रहों से दूरी घटती जा रही है। फोन के द्वारा हम विदेश में बैठे अपने मित्र, रिश्तेदार आदि से बातें कर लेते हैं। आज चिकित्सा के क्षेत्र में बड़े-से-बड़ा ऑपरेशन कर के मनुष्य को नया जीवन दिया जाता है तो प्लास्टिक सर्जरी से कुरूप मनुष्य भी सुरूप नजर आने लगता है। नित नई-नई औषधियों की खोज, लेजर तकनीक से होनेवाले आपरेशन ने चिकित्सा के क्षेत्र में क्रांति ला दी है।
वास्तव में विज्ञान ने मनुष्य को क्या नहीं दिया। बिजली के स्विच पर हाथ पड़ते ही सारा घर जगमगा उठता है। रिमोट के बटन पर हाथ रखते ही टी°वी° पर मनचाहे कार्यक्रम हमारा मनोरंजन करते हैं। विज्ञान ने कृषि उत्पादन को बढ़ाने मेें अद्भुत योगदान दिया है। कृषि उपज बढ़कर तिगुनी-चौगुनी हो गई है। शिक्षा के क्षेत्र में भी विज्ञान ने क्रांति ला दी है। आज घर बैठे-बस्ठाए पुस्तकों की जगह सीडी की मदद से रोचक ढंग से शिक्षा प्राप्त की जा सकती है। विज्ञान की मदद से मनुष्य ने हर क्षेत्र में सुख-सुविधा प्राप्त की है।
विज्ञान ने मानव को अनेक वरदान तो दिए हैं, पर उसने ऐसे विनाशकारी अस्त्र-शस्त्र भी प्रदान किए हैं, जिनसे लाखों लोग अल्प समय में ही काल के गाल में समा सकते हैं। पर यह सब मनुष्य के विवेक पर निर्भर करता है कि वह इसका किस तरह उपयोग करता है। वास्तव में विनाश के लिए मनुष्य ही अधिक जिम्मेदार होगा, विज्ञान कम। विज्ञान के विवेकपूर्ण उपयोग से हम अपना जीवन सुखमय बना सकते हैं। इसका उपयोग मानव के हित के लिए करना चाहिए।
7- ऋतुराज वसंत
भारत वह सुंदर देश है, जिस पर प्रकृति ने अपना सौंदर्य उन्मुक्त हाथों से लुटाया है। सौंदर्य बढ़ाने के क्रम में ही यहाँ छह ऋतुएँ बारी-बारी से आकर अपना सौंदर्य बिखेर जाती हैं। एक ऋतु में कड़ाके की सर्दी का मजा है तो दूसरी ऋतु में गर्मी का। कुछ ऋतुओं में न अधिक सर्दी होती है, न अधिक गर्मी। ये छह ऋतुएँ हैं - ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत, शिशिर और वसंत। इनमें वसंत को ऋतुराज कहा जाता है।
भारतीय महीनों के अनुसार वसंत ऋतु फागुन महीने से शुरू हो जाती है। अगले दो महीने चैत और बैसाख में यह ऋतु चरम पर होती है। यह ऋतु है, जिसमें न अधिक गर्मी होती है और न अधिक सर्दी। समशीतोष्ण होने के कारण मौसम अत्यंत सुहावना होता है। शिशिर ऋतु की कड़ाके की ठंड में पेड़-पौधों के पत्ते गिर जाते हैं। ऐसा लगता है जैसे किसी ने उनके वस्त्र छीनकर नंग-/धड़ंग खड़ा कर दिया है। वसंत का आगमन इन वृक्षों के लिए ऐसा होता है, मानो वह इन सभी के लिए, रंग-बिरंगे चटकीले वस्त्र लेकर आया है, जिन के चटक रंगों के फूलों का प्रिंट हो। पेड़ों पर नई-नई कोंपलें तथा नर्म-नर्म पत्तियां आनी शुरू हो जाती हैं। इन कोंपलों में छिपी होती हैं - नाना प्रकार के रंग और महक छिपाए कलियाँ जो खिलकर मनोहारी फूल बन जाती हैं। चारों ओर सौंदर्य ही सौंदर्य बिखरा नजर आता है। वनों, उपवनों तथा कुंजों में वसंत की उपस्थिति अनायास ही मन को मोह लेती है। सर्वत्र नवजीवन आ जाता है। खेतों की लहराती हरी फसलों के बीच सरसों के पीले फूलों की अपार राशि देखकर लगता है कि प्रकृति अपना शृंगार करके पीली ओढऩी ओढ़े ऋतुराज के स्वागतार्थ उपस्थित हुई है | इस समय तक आम तथा कटहल के वृक्षों पर छोटे-छोटे फल दिखने लगता हैं। खेतों में अनेक प्रकार की सब्जियां तैयार होकर वसंत की समृद्धि का अहसास कराती हैं। खिले फूलों पर मडराती तितलियाँ देखकर ऐसा लगता है, मानो फूल ही उड़कर एक-दूसरे का कुशल-क्षेम पूछते हुए शसंत के आगमन की सूचना देते फिर रहे हैं। खिले फूलों पर भौरों की गुंजार, कोयल की सुरीली कूक तथा सुगंधित हवा वातावरण को मादक बना देता हैं। यही सब देखकर कविवर हरिश्चंद्र ने कहा होगा -
सखि आयो वसंत रितून को कंत चद्दह्नँ दिसि फूलि रही सरसों।
शीतल मंद सुगंध समीर सतावन हार भयो गरसों।
स्वास्थ्य की दृष्टि से यह ऋतु अत्यंत उत्तम होती है। इस समय शरीर में रक्त-संचार बढ़ जाता है। मन उन्मत्त होकर झूमने लगता है। इस ऋतु में प्रात:काल का भ्रमण अत्यंत स्वास्थ्यवर्धक होता है।
वसंत पंचमी तथा होली इस ऋतु के प्रमुख त्योहार हैं। वसंत हर्ष, उमंग, उत्साह और उल्लास का त्योहार है। हमें ऋतुराज वसंत का स्वागत करने को तत्पर रहना चाहिए।
8. वर्षा ऋतु
प्रकृति ने हमारे देश को अनेक उपहार प्रदान किए हैं, उन्हीं में से एक सुंदर उपहार है - ऋतु। यहाँ छह ऋतुएँ क्रमशः आकर अपना सौंदर्य लुटा जाती हैं। ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत, शिशिर और वसंत - ये छह ऋतुएँ हैं। इनमें से वसंत को ‘ऋतुराज’ कहा जाता है तो वर्षा ऋतु को ‘ऋतुओं की रानी’। वर्षा वह ऋतु है, जिस पर पृथ्वी के पेड़-पौधें और प्राणियों का जीवन आधरित है।
ग्रीष्म की तपन से जब ध्रती तवे के समान जलती है तथा सारी ध्रती मरुस्थल-सी धूमिल दिखने लगती है, छोटे-छोटे पेड़-पौधे सूखकर अपना अस्तित्व खो बैठते हैं, मनुष्य तथा अन्य जीव गर्मी तथा प्यास से बेहाल हो उठते हैं, तब उनकी दृष्टि अनायास आसमान की ओर उठ जाती है और वे इंद्र देवता का आह्वान करते हैं कि वर्षा ऋतु को जल्दी से भेज दें। प्राणियों की दयनीय दशा देखकर प्यासी ध्रती की प्यास तथा तपन बुझाने, प्राणियों को नवजीवन प्रदान करने के लिए वर्षा का आगमन होता है। हमारे देश में वर्षा का आगमन आषाढ़ महीने में शुरू होता है। सामान्यतया चैमासे ;आषाढ़, सावन, भादों, क्वारद्ध में यहाँ वर्षा होती है।
आषाढ़ मास में आसमान में काले बादल घिर आते हैं। गर्मी से कुछ राहत मिलने तथा वर्षा आगमन की खुशी में पशु-पक्षी तथा हर उम्र के मनुष्य वर्षा का स्वागत करने के लिए बाहर आ जाते हैं। मेघों की झड़ी के बीच वर्षा तीव्रतर होती जाती है। मयूर नाचकर और अपनी मधुर केका द्वारा तथा दादुर और झींगुर अपनी झंकार द्वारा वर्षा का स्वागत करते हैं। छोटे-छोटे नाले तथा तालाब कल-कल करके बहते हैं, जिन्हें देखकर ऐसा लगता है मानो वे वर्षा का गुणगान कर रहे हों। पृथ्वी की खोई हरियाली धीरे-धीरे वापस आने लगती है। वृक्षों, पशु-पक्षियों तथा अन्य प्राणियों को नवजीवन मिल जाता है। इसी समय जुगनूँ अपनी रोशनी बिखेरते हुए उड़ते हैं, जिन्हें पकड़ने के लिए बच्चे पीछे-पीछे भागते हैं। वर्षा ऋतु में किसानों में उत्साह का संचार हो उठता है। वे नई आशा एवं उल्लास से भरकर खेतों में नई फसलें उगाने निकल पड़ते हैं। आखिर देश का अन्नदाता अपने कर्तव्य से पीछे वैसे रह सकता है।
इसी ऋतु के आरंभ में आम पक जाते हैं, जिनका स्मरण आते ही मुँह में पानी आ जाता है। यह स्वादिष्ट तथा बलवर्धक होता है। इसी ऋतु में मक्का, ज्वार, बाजरा तैयार हो जाते हैं जो प्राणियों का आहार बनते हैं। इसी ऋतु में नागपंचमी, रक्षाबंधन, तीज आदि त्योहार पड़ते हैं जो इस ऋतु को और भी उल्लासमय बना देते हैं। झूलों पर कजरी गाती तरुणियाँ और औरतें तथा मल्हार गाते किसान अपने मन की खुशी प्रकट करते हैं। ऐसे में प्रकृति भी अपनी खुशी प्रकट करने में वैसे पीछे रह सकती है। पुरवाई हवा में लहराती लताएँ तथा पेड़ों की डालियाँ इसका उदाहरण हैं। कविगण वर्षा पर अनेक कविताएँ लिखकर अपनी खुशी प्रकट करते हैं। निःसंदेह वर्षा ऋतुओं की रानी है।
9. मनोरंजन के आधुनिक साधन
मनुष्य श्रमशील प्राणी है। वह दिनभर की थकान उतारने का कोई न कोई साधन खोजता रहता है। उसकी कोशिश रहती है कि उसे शारीरिक तथा मानसिक दोनों ही प्रकार की थकान से मुक्ति मिले, जिससे वह प्रफुल्लित तथा स्वस्थ महसूस करे। इसी प्रयास में उसने मनोरंजन के साधनों की खोज करनी शुरू की होगी। विज्ञान के नए-नए आविष्कारों से इन साधनों की दुनिया का.फी बढ़ गई है।
थकानग्रस्त मनुष्य से हम छोटा-सा भी काम करने को कहें तो वह अरुचि दिखाने लगता है। वह उस तन्मयता तथा दक्षता से काम नहीं कर पाता, जिस तन्मयता तथा दक्षता से वह कुछ घंटे पहले कर रहा था। उसकी कार्यक्षमता तथा कार्य की गुणवत्ता में कमी आने लगती है। ऐसे में उसके लिए मनोरंजन अनिवार्य बन जाता है।
प्राचीन काल में मनुष्य के लिए मुख्य रूप से एक ही काम था - जैसे-तैसे अपने पेट की अग्नि शांत करना। इस प्रक्रिया से थकने पर वह विश्राम कर लेता था और पुनः शिकार की खोज में निकल पड़ता था। मानव ने ज्यों-ज्यों सभ्यता की ओर कदम बढ़ाए, उसकी आवश्यकताएँ बढ़ती गईं और वह अध्कि शारीरिक तथा मानसिक श्रम करने के लिए विवश हुआ। उसने मित्रों का सहारा लिया। विज्ञान की खोजों के बाद अनेक उपकरण उसके साथी बन गए।
मनुष्य ने अपने मनोरंजन के लिए कबड्डी, शतरंज, वालीबाॅल, फुटबाॅल, बैडमिंटन खेलना शुरू कर दिया। इससे मनोरंजन के साथ-साथ स्वास्थ्य लाभ भी होता है। कुछ शिक्षित व्यक्ति अनेक प्रकार के समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ, पुस्तकें आदि पढ़कर मनोरंजन करते हैं। टेलीविज़न आज का सर्वोत्तम साधन है, जिसे अधिकाधिक लोग प्रयोग कर रहे हैं। हर आयु-वर्ग के लोगों का इससे मनोरंजन होता है। रेडियो भी मनोरंजन का सशक्त साधन है, पर आज मोबाइल फोन में एफ°एम° रेडियो की सुविध आ जाने से रेडियो का प्रयोग बहुत कम होता जा रहा है।
लोग अपनी रुचि, समय और आयु के अनुरूप भी मनोरंजन के अलग-अलग साध्नों का प्रयोग करते हैं। पहले बच्चों के मनोरंजन का साधन घर के बाहर खेले जानेवाले खेल हुआ करते थे, किन्तु अब बच्चे वीडियो, कप्यूटर और मोबाइल पर अनेक खेल खेलना पसंद करते हैं। वृद्ध् व्यक्ति शारीरिक क्षमता में कमी आने के कारण उद्यानों तथा पार्कों में घूमना-पिफरना पसंद करते हैं। युवा वर्ग मल्टीप्लेक्स सिनेमाघरों में फिल्मे देखना पसंद करता है तो प्रौढ़ वर्ग फिल्मे देखने के अलावा नाटक, क्लब, पुस्तकालय आदि में जाकर अपना मनोरंजन करता है।
कुछ व्यक्ति ताश खेलकर, जुआ खेलकर या शराब पीकर अपना मनोरंजन करते हैं, जिसे किसी भी दशा में उचित नहीं कहा जा सकता। अतः मनुष्य को मनोरंजन के स्वस्थ साध्नों का ही प्रयोग करना चाहिए।
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1. लेखन क्या है? |
2. विभिन्न प्रकार के लेखन क्या हैं? |
3. लेखन क्यों महत्वपूर्ण है? |
4. लेखन कैसे सुधारा जा सकता है? |
5. लेखन कौशल कैसे विकसित किए जा सकते हैं? |
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