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नोट्स, पाठ - 1 फ़्रांसिसी क्रांति (कक्षा नवीं) | सामाजिक विज्ञान (कक्षा 9) - नोट्स, वीडियोस तथा सैंपल पेपर्स - Class 9 PDF Download

नेपोलियन का उदय

फ्रांसीसी क्रांति: 

क्रन्तिकारी सरकार (जैकोबिन सरकार) द्वारा महिलाओं की दशा में सुधार के लिए किया गया कार्य: 

(i) सरकारी विद्यालयों की स्थापना के साथ ही सभी लड़कियों के लिए स्कूली शिक्षा अनिवार्य बना दिया गया | 

(ii) पिता उनके मर्जी के खिलाफ शादी के लिए बाध्य नहीं कर सकते थे | 

(iii) शादी को स्वैच्छिक अनुबंध माना गया और नागरिक कानूनों के तहत उनका पंजीकरण किया जाने लगा | 

(iv) इस कानून में तलाक को क़ानूनी रूप दे दिया गया | 

(v) इस कानून के अनुसार महिलाएं अब व्यावसायिक प्रशिक्षण ले सकती थी, कलाकार बन सकती थी और छोटे-मोटे व्यवसाय चला सकती थी |  

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जैकोबिन सरकार का क्रन्तिकारी सामाजिक सुधार : 

(i) दास प्रथा का उन्मूलन जैसे सुधार प्रमुख थे | 

(ii) महिलाओं के जीवन में सुधार और उनके शिक्षा और व्यवसाय कार्य में सुधार किये गए |

डिरेक्ट्री या डायरेक्टरी : जैकोबिन सरकार के पतन के बाद फ्रांस के नए संविधान में दो चुनी हुई परिषदों का प्रावधान किया गया | ये परिषद् पाँच सदस्यों वाली एक कार्यपालिका की नियुक्ति किया जिसे डिरेक्टरी या डिरेक्ट्री कहते है |

फ्रांस सरकार के स्वरुप में तीन प्रेरक आदर्श :

(i) स्वतंत्रता

(ii) विधिसम्मत समानता और

(iii) बंधुत्व फ्रांस सरकार के स्वरुप में तीन मूल्य थे जो प्रेरक आदर्श थे और फ्रांस ही नहीं बाकि यूरोप के राजनितिक आन्दोलन को भी प्रेरित किया | 


फ्रांसिसी क्रांति के दौरान जैकोबिन क्लब के सदस्यों के द्वारा अपनाए गए परिधानों की शैली :

जैकोबिनों के एक बड़े वर्ग ने गोदी कामगारों की तरह धारीदार लंबी पतलून पहनने का निर्णय किया। ऐसा उन्होंने समाज के फैशनपरस्त वर्ग, खासतौर से घुटने तक पहने जाने वाले ब्रीचेस पहनने वाले कुलीनों से खुद को अलग करने के लिए किया। यह ब्रीचेस पहनने वाले कुलीनों की सत्ता समाप्ति के एलान का उनका तरीका था।

इसलिए जैकोबिनों को ‘सौं कुलॉत’ के नाम से जाना गया जिसका शाब्दिक अर्थ होता है - बिना घुटन्ने वाले। सौं कुलॉत पुरुष लाल रंग की टोपी भी पहनते थे जो स्वतंत्रता का प्रतीक थी लेकिन महिलाओं को ऐसा करने की अनुमति नहीं थी।


अंतिम रूप से दास प्रथा का उन्मुलन :

नैशनल असेंबली में लंबी बहस हुई कि व्यक्ति के मूलभूत अधिकार उपनिवेशों में रहने वाली प्रजा सहित समस्त फ्रांसिसी प्रजा को प्रदान किए जाएँ या नहीं। परन्तु दास-व्यापार पर निर्भर व्यापारियों के विरोध के भय से नैशनल असेंबली में कोई कानून पारित नहीं किया गया। अंतिम रूप से दास प्रथा का उन्मुलन 1848 में किया गया | 

सेंसरशिप की समाप्ति का परिणाम: 

बास्तील के विध्वंस के बाद सन् 1789 की गर्मियों में जो सबसे महत्त्वपूर्ण कानून अस्तित्व में आया, वह था - सेंसरशिप की समाप्ति। प्राचीन राजतंत्र के अंतर्गत तमाम लिखित सामग्री और सांस्कृतिक गतिविधियों--किताब, अखबार, नाटक--को राजा के सेंसर अधिकारियों द्वारा पास किए जाने के बाद ही प्रकाशित या मंचित किया जा सकता था। परंतु अब अधिकारों के घोषणापत्रा ने भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्राता को नैसर्गिक अधिकार घोषित कर दिया। परिणामस्वरूप फ्रांस के शहरों में अखबारों, पर्चों, पुस्तकों एवं छपी हुई तस्वीरों की बाढ़ आ गई जहाँ से वह तेशी से गाँव-देहात तक जा पहुँची।

नेपोलियन का व्यक्तित्व: नेपोलियन बोनापार्ट की गिनती विश्व के महान् सेनापतियों में की जाती है।वह बहुत परिश्रमी, इरादे का पक्का, तलवार का धनी और बहुत वीर सैनिक था । जब पहली बार उसे इटली में फ्रांस की सेना का कमाण्डर बनाकर भेजा गया तो उसने अपनी मधुर वाणी से सैनिको में एक अदभुद जोश भर दिया । बुरी दशाओं और संधर्षो में भी सैनिक उसका साथ देते थें । असंभव शब्द उसके शब्दकोष में नहीं था । वह एक महान सेनापति ही नहीं बल्की एक कुशल राजनितिज्ञ और शासक भी था।  

नेपोलियन का उदय : नेपोलियन बोनापार्ट का जन्म 1769 ई0 में रोम सागर के द्वीप कोर्सिका की राजधानी अजासियों में हुआ था। वह असधारण प्रतिभा का स्वामी था । उसने पेरिस के फौजी स्कुल में शिक्षा प्राप्त कर सेना में भर्ती हुआ और असीम वीरता, साहस और सैनिक योग्यता द्वारा उन्नति कर सेनापति बन गया । उसने ब्रिटेन, आस्ट्रिया और सार्डीनिया के विरूद्ध विजय प्राप्त की । तत्पश्चात् वह डायरेक्टरी का प्रथम बना और थोडे समय में ही वह फ्रांस का सम्राट बन गया । उसने अपनी योग्यता और कुशलता से फ्रांस में शांति व्यवस्था स्थापित की । 

नेपोलियन की मृत्यु : नेपोलियन बोनापार्ट बहुत ही महत्वाकांक्षी व्यक्ति था उसने दूसरे युरोपियन देशो पर विजय प्राप्त करने के लिए आक्रमण कर दिया परन्तु 1815 में वाटर लु के युद्ध में उसे हार का मुँह देखना पडा । उसे बंदी बनाकर सेन्ट हेलना द्वीप में भेज दिया गया जहाँ 1821 ई0 में उसकी मृत्यु हो गई । यह फ्रांस के एक परम् वीर योद्धा का दुःखद अंत था ।

फ्रांस में राजशाही का अंत और गणतंत्र की स्थापना

फ्रांस में राजशाही का अंत : 

सन् 1792 की गर्मियों में जैकोबिनों ने खाद्य पदार्थों की महँगाई एवं अभाव से निराश पेरिसवासियों को लेकर एक विशाल हिंसक विद्रोह की योजना बनायी। 10 अगस्त की सुबह उन्होंने ट्यूलेरिए के महल पर धावा बोल दिया, राजा के रक्षकों को मार डाला और खुद राजा को कई घंटों तक बंधक बनाये रखा। बाद में असेंबली ने शाही परिवार को जेल में डाल देने का प्रस्ताव पारित किया। नये चुनाव कराये गए। 21 वर्ष से अधिक उम्र वाले सभी पुरुषों - चाहे के पास संपत्ति हो या नहीं - को मतदान का अधिकार दिया गया।  21 सितम्बर 1792 को इसने राजतंत्र का अंत कर दिया और फ्रांस को एक गणतंत्र घोषित कर दिया | 

फ्रांस में गणतंत्र की घोषणा : 21 सितम्बर 1792 को फ्रांस को एक गणतंत्र घोषित कर दिया | इसकी घोषणा नवनिर्वाचित असेंबली ने की जिसकों कन्वेशन का नाम दिया गया | 

लूई XVI की मौत : लुई XVI को न्यायालय द्वारा देशद्रोह के आरोप में मौत की सजा सुना दी गई। 21 जनवरी 1793 को प्लेस डी लॉ कॉन्कॉर्ड में उसे सार्वजनिक रूप से फाँसी दे दी गई। जल्द ही रानी मेरी एन्तोएनेत का भी वही हश्र हुआ। 

देशद्रोह शब्द का अर्थ : अपने देश या सरकार से विश्वासघात करना देशद्रोह कहलाता है |

मैक्समिलियन रोबेस्प्येर : मैक्समिलियन रोबेस्प्येर जैकोबिन क्लब का प्रमुख नेता था | फ्रांस में गणतंत्र की स्थापना के बाद रोबेस्प्येर की सरकार बनी | उसने नियंत्रण एवं दंड की सख्त नीति अपनाई | वह अपनी नीतियों को इतनी सख्ती से लागु किया कि उसके समर्थक भी त्राहि-त्राहि करने लगे | अंततः जुलाई 1794 में न्यायालय द्वारा उसे दोषी ठहराया गया और गिरफ्तार करके अगले ही दिन उसे गिलोटिन पर चढ़ा दिया गया। जैकोबिनों (रोबेस्प्येर ) के सन 1793 से 1794 के शासन को फ्रांस के इतिहास में आतंक का राज कहा जाता था | 

गिलोटिन : गिलोटिन दो खंभों के बीच लटकते आरे वाली मशीन था जिस पर रख कर अपराधी का सर धड से अलग कर दिया जाता था | 

फ्रांस में जैकोबिन का शासन / आतंक राज :

जैकोबिन का शासन सन 1793 से 1794 के शासन को फ्रांस के इतिहास में आतंक का युग कहा गया है | जिसका शासक मैक्समिलियन रोबेस्प्येर था | इस शासन को आतंक राज इसलिए कहा जाता है कि क्योंकि :

(i) उसने नियंत्रण एवं दंड की सख्त नीति अपनाई | 

(ii) गणतंत्र के शत्रु अथवा उसके राजनितिक विरोधी, उसकी कार्यशैली से असहमति रखने वाले पार्टी सदस्य सभी को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया | 

(iii) एक क्रन्तिकारी न्यायलय द्वारा उन पर मुक़दमा चलाया गया दोषी पाने पर उन्हें गिलोटिन पर चढ़ा दिया जाता था | 

(iv) रोबेस्प्येर सरकार ने कानून बना कर मजदूरी एवं कीमतों की अधिकतम सीमा तय कर दी।

(v) गोश्त एवं पावरोटी की राशनिंग कर दी गई तथा किसानों को अपना अनाज शहरों में ले जाकर सरकार द्वारा तय कीमत पर बेचने के लिए बाध्य किया गया।

(vi) अपेक्षाकृत महँगे सफ़ेद आटे के इस्तेमाल पर रोक लगा दी गई। सभी नागरिकों के लिए साबुत गेहूँ से बनी और बराबरी का प्रतीक मानी जाने वाली, ‘समता रोटी’ खाना अनिवार्य कर दिया गया।

(vii) बोलचाल और संबोधन में भी बराबरी का आचार-व्यवहार लागू करने की कोशिश की गई। 

मैक्समिलियन रोबेस्प्येर का अंत : 

रोबेस्प्येर ने अपनी नीतियों को इतनी सख्ती से लागू किया कि उसके समर्थक भी त्राहि-त्राहि करने लगे। अंततः जुलाई 1794 में न्यायालय द्वारा उसे दोषी ठहराया गया और गिरफ्तार करके अगले ही दिन उसे गिलोटिन पर चढ़ा दिया गया। इसी के साथ फ्रांस में जैकोबिन शासन का भी अंत हो गया | 

आतंक राज के दौरान महिलाओं पर अत्याचार : 

आतंक राज के दौरान सरकार ने महिला क्लबों को बंद करने और उनकी राजनितिक गतिविधियों पर प्रतिबन्ध लगाने वाला कानून लागु किया गया | कई जानी मानी महिलाओं को गिरफ्तार कर लिया गया और उनमे से कुछ महिलाओं को फाँसी पर चढ़ा दिया गया | 


फ्रांसिसी क्रांति की शुरुआत

एस्टेट जेनराल : एस्टेट्स जेनराल एक राजनितिक संस्था थी जिसमें तीनों एस्टेट अपने -अपने प्रतिनिधि भेजते थे | ये प्रतिनिधि नए करों के प्रस्तावों पर मंजूरी देते थे | इस संस्था की बैठक कब बुलाई जाये इसका निर्णय सम्राट ही करता था | इसकी अंतिम बैठक सन 1614 में बुलाई गयी थी |

5 मई 1789 को एस्टेट्स जेनराल की बैठक : फ्रांसिसी सम्राट लूई XVI ने 5 मई 1789 को नए करों के प्रस्ताव के अनुमोदन के लिए एस्टेटस जेनराल की बैठक बुलाई | प्रतिनिधियों की मेजबानी के लिए वर्साय के एक आलिशान भवन को सजाया गया | पहले और दुसरे एस्टेट्स ने इस बैठक में अपने 300-300 प्रतिनिधि भेजे जो आमने-सामने की कतारों में बिठाए गए | तीसरे एस्टेट्स के 600 प्रतिनिधि उनके पीछे खड़े किए गए | तीसरे एस्टेट का प्रतिनिधित्व इसके अपेक्षाकृत समृद्ध एवं शिक्षित वर्ग कर रहे थे |  किसानों, औरतों एवं कारीगरों का सभा में प्रवेश वर्जित था | 

तीसरे वर्ग के प्रतिनिधियों की माँग : इस सभा में तीसरे वर्ग के प्रतिनिधियों ने माँग रखी की अबकी बार पूरी सभा द्वारा मतदान कराया जाना चाहिए, जिसमें प्रत्येक सदस्य को एक मत देने का अधिकार होगा | जब सम्राट ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया तो तीसरे एस्टेट के प्रतिनिधि विरोध जताते हुए सभा से बाहर चले गए | 

तीसरे एस्टेट द्वरा नैशनल असेम्बली की घोषणा : तीसरे एस्टेट के प्रतिनिधि खुद को सम्पूर्ण फ्रांसिसी राष्ट्र का प्रवक्ता मानते थे | 20 जून को ये प्रतिनिधि वर्साय के इंडोर टेनिस कोर्ट में जमा हुए और उन्होंने अपने आप को नैशनल असेंबली घोषित कर दिया और शपथ ली कि जब तक सम्राट की शक्तियों को कम करने वाला संविधान तैयार नहीं किया जायेगा तब तक असेंबली भंग नहीं होगी | उनका नेतृत्व मिराब्यो और आबे सिये ने किया | 

आंदोलित फ्रांस : जिस वक्त नैशनल असेम्बली संविधान का प्रारूप तैयार करने में व्यस्त थी, पूरा फ्रांस आंदोलित हो रहा था | कड़ाके की ठंढ के कारण फसल मरी गयी थी और पावरोटी कीमतें आसमान छू रही थी | बेकरी मालिक स्थित का फायदा उठाते हुए जमाखोरी में जुटे थे | 

क्रुद्ध भीड़ द्वारा बास्तील पर धावा : फ्रांस में ऐसी स्थिति बन गयी जिसे संभालना अब सम्राट के लिए मुमकिन ही नहीं नामुमकिन था | गुस्साई औरतों ने बेकरी कि दुकानों पर धावा बोल दिया | दूसरी तरफ सम्राट ने सेना को पेरिस में में प्रवेश करने का आदेश दे दिया | इससे क्रुद्ध भीड़ में बास्तील पर धावा बोलकर उसे नेस्ताबुद कर दिया | किसानों ने अन्न के भंडारों को लुट लिया और लगान संबंधित दस्तावेजों को जलाकर राख कर दिया | कुलीन बड़ी संख्या में अपनी जागीर छोड़कर भाग गए, बहुतों ने तो पडोसी देशो में शरण ली |

सम्राट लूई द्वारा नैशनल असेंबली को मान्यता : विद्रोही प्रजा की शक्ति से घबराकर लूई XVI ने अंतत: नैशनल असेंबली को मान्यता दे दी और यह भी मान लिया कि उसकी सत्ता पर अब से संविधान का अंकुश होगा | इसप्रकार 4 अगस्त, 1789 की रात को असेंबली ने करों, कर्तव्यों और बंधनों वाली सामंती व्यवस्था के उन्मुलन का आदेश पारित किया | सभी धार्मिक करों को समाप्त कर दिया गया | पादरियों को उनके विशेषाधिकार को छोड़ना पड़ा और चर्च की स्वामित्व वाली भूमि जब्त कर ली गयी | 

फ्रांस में संवैधानिक राजतन्त्र की नींव : 1791 में नैशनल असेम्बली द्वारा संविधान का प्रारूप पूरा कर लिए जाने के बाद सत्ता एक व्यक्ति के हाथ में केंद्रीकृत होने के बजाय अब इन शक्तियों को विभिन्न विभिन्न संस्थाओं जैसे - 

(i) विधायिका (ii) कार्यपालिका और (iii) न्यायपालिका - में विभाजित एवं हस्तांतरित कर दिया गया | इस प्रकार फ़्रांस में संवैधानिक राजतन्त्र की नींव पड़ी | इस नए संविधान का मुख्य उदेश्य था सम्राट की शक्तियों कि सिमित करना | सन 1791 के संविधान ने कानून बनाने का अधिकार नैशनल असेंबली को सौप दिया | यह नैशनल असेंबली अप्रत्यक्ष रूप से चुनी जाती थी | 

सक्रीय नागरिक : नए संविधान के अनुसार फ्रांस की 2.8 करोड़ की जनसंख्या में लगभग 40 लाख लोगों को मताधिकार प्राप्त  था जिन्हें सक्रीय नागरिक कहा जाता था | 

सक्रीय नागरिक का दर्जा उन्ही लोगों को प्राप्त था जो कम-से-कम तीन दिन की मजदूरी के बराबर कर चुकाते थे | निर्वाचक कि योग्यता और असेंबली का सदस्य होने के लिए करदाताओं की उच्चतम श्रेणी में होना जरुरी था | 

निष्क्रिय नागरिक : लगभग 30 लाख पुरुषों, महिलाओं, बच्चों और 25 वर्ष से कम उम्र के व्यक्तियों को मताधिकार प्राप्त नहीं था, इन्हें ही निष्क्रिय नागरिक कहा जाता था | 

विधायिका द्वारा कार्यपालिका पर नियंत्रण : अब नया संविधान बन जाने के बाद विधायिका जिसे नैशनल असेंबली कहा जाता था और इसके 745 सदस्य थे | फ्रांस में कार्यपालिका जिसमें स्वयं सम्राट और उनके मंत्रीगण शामिल थे को नैशनल असेंबली नियंत्रित करती थी | सक्रीय नागरिक जिन्हें मताधिकार प्राप्त था वे निर्वाचक समूह का चुनाव करते थे और यही निर्वाचक समूह नैशनल असेंबली के सदस्यों का चुनाव करती थी | 

न्यायपालिका का चुनाव  : न्यायपालिका का चुनाव भी यही सक्रीय नागरिक वोट के द्वारा करते थे | 

पुरुष एवं नागरिक अधिकार घोषणा पत्र : नए संविधान की शुरुआत इसी घोषणा पत्र से हुआ था | राज्य का यह कर्तव्य माना गया कि वह प्रत्येक नागरिक के नैसर्गिक (जन्मजात) अधिकारों की रक्षा करे | इन अधिकारों में शामिल था जीवन के अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार और क़ानूनी बराबरी के अधिकार को 'नैसर्गिक एवं अहरणीय' अधिकार के रूप में स्थापित किया गया | ये अधिकार प्रत्येक नागरिक को जन्मना प्राप्त  थे और इसे छीना नहीं जा सकता था | 

मर्सिलेस : यह एक देशभक्ति गाना था जिसे मर्सिलेस के स्वयंसेवियों ने पेरिस की ओर कूच करते हुए गया था | इसलिए इसका नाम मार्सिले हो गया और अब यह फ्रांस का राष्ट्रगान है | 

क्रांति की आवश्यकता : नैशनल असेम्बली द्वारा बनाया गया नया संविधान को हम देखे तो पाते हैं कि 1791 के संविधान में सिर्फ अमीरों को ही राजनितिक अधिकार प्राप्त हुए थे | जिससे देश के आबादी का बड़ा हिस्सा ठगा हुआ महसूस कर रहा था और वे इस क्रांति के सिलसिले को आगे बढ़ाना चाहते थे | 

जैकोबिन क्लब : जैकोबिन क्लब के सदस्य मुख्यतः समाज के कम समृद्ध हिस्से से आते थे। इनमें छोटे दुकानदार और कारीगर--जैसे जूता बनाने वाले, पेस्ट्री बनाने वाले, घड़ीसाश, छपाई करने वाले और नौकर व दिहाड़ी मजदुर शामिल थे। उनका नेता मैक्समिलियन रोबेस्प्येर था।

जैकोबिन क्लब के सदस्यों का पहनावा : जैकोबिनों के एक बड़े वर्ग ने गोदी कामगारों की तरह धारीदार लंबी पतलून पहनने का निर्णय किया। ऐसा उन्होंने समाज के फैशनपरस्त वर्ग, खासतौर से घुटने तक पहने जाने वाले ब्रीचेस पहनने वाले वुफलीनों से खुद को अलग करने के लिए किया। यह ब्रीचेस पहनने वाले कुलीनों की सत्ता समाप्ति के एलान का उनका तरीका था। यही कारण है कि जैकोबिनों को सौ कुलात के नाम से जाना गया | सौं कुलॉत पुरुष लाल रंग की टोपी भी पहनते थे जो स्वतंत्रता का प्रतीक थी। लेकिन महिलाओं को ऐसा करने की अनुमति नहीं थी।

सौ कुलात शब्द का अर्थ: सौ कुलात का शाब्दिक अर्थ है - बिना घुटने वाले


फ्रांसीसी क्रांति: 

विश्व के सामाजिक संरचना के क्षेत्र में आमूल परिवर्तन : सन 1789 ई० में फ्रांस में एक क्रांति हुई जिसने विश्व के लगभग सभी देशों के सामाजिक क्षेत्र की दिशा ही बदल दी | इस क्रांति को फ्रांसिसी क्रांति के नाम से जाना जाता है | इस क्रांति को विश्व के सामाजिक संरचना के क्षेत्र में आमूल परिवर्तन का सूत्रपात कहा जाता है | धीरे-धीरे विभिन्न देशों में भी लोग अपने अधिकारों की मांग करने लगे और वहाँ भी छोटी-मोटी आन्दोलन और क्रांतियाँ होने लगी | 

निरंकुश राजशाही : ऐसा शासन जहाँ राजा ही सर्वोंसर्वा होता है और वहाँ के नागरिकों को कोई अधिकार प्राप्त नहीं होता, अधिकार मांगने वालों पर दमन चक्र चलाया जाता है | इसे निरंकुश राजशाही या शासन कहते हैं | 

सन 1774 में बुर्बों राजवंश का लूई सोलहवाँ (XVI) फ्रांस कि राजगद्दी पर आसीन हुआ और राजकोष खाली था और के युद्ध लड़ने के कारण कर्ज के बोझ से दबा था | कर्ज का बोझ दिनों दिन बढ़ता जा रहा  था | लूई के शासन काल में फिजूल खर्ची बहुत अधिक थी | केवल तीसरे एस्टेट के लोग ही कर अदा करते थे | खाने पीने कि वस्तुएँ जैसे पाव-रोटी की कीमत आसमान छू रही थी |

फ्रांसिसी समाज :  अठारहवी शताब्दी में फ्रांसिसी समाज तीन एस्टेट में बँटा हुआ था वो था | 

(i) प्रथम एस्टेट  (ii) द्वितीय एस्टेट (iii) तीसरा एस्टेट 

पूरी आबादी में लगभग 90 % किसान थे | लेकिन, जमीन मालिक किसानों की  संख्या बहुत कम थी | लगभग 60 प्रतिशत जमीन पर कुलीनों, चर्च और तीसरे एस्टेट के अमीरों का अधिकार था | 

प्रथम दो एस्टेट्स, कुलीन वर्ग एवं पादरी वर्ग के लोगों को कुछ विशेषाधिकार प्राप्त थे | जिनमें उनके द्वरा राज्य  को दिए जाने वाला करों में छुट प्रमुख था | यहाँ के कुलीन वर्ग को अन्य सामंती विशेषाधिकार प्राप्त थे जो किसानों से सामंती कर वसूला करते  थे | जबकि किसान अपने स्वामी की सेवा, स्वामी के घर एवं खेतों में काम करना, सैन्य सेवाएँ देना अथवा सडकों के निर्माण के लिए बाध्य थे | 

कर (taxes): 

टाइड (एक प्रकार का धार्मिक कर) : फ्रांस में चर्चों द्वारा वसूला जाने वाला कर को टाइड कहा जाता था | जो कृषि के उपज के दसवें हिस्से के बराबर था | 

टाइल : प्रत्यक्ष कर जो सीधे जनता द्वारा राज्य को अदा किया जाता था | 

कामगार मजदूरों की स्थित : अधिकतर कामगार कारखानों में काम करते थे और उनकी मजदूरी मालिक तय करते करते थे | लेकिन मजदूरी उस हिसाब से नहीं बढ़ रही थी जिस हिसाब से महंगाई बढ़ रही थी | वहाँ के लोगो के समक्ष जिविका संकट उत्पन्न हो जाते थे जब कभी सूखे या ओले के प्रकोप से पैदवार गिर जाती थी | 

लूई सोलहवें द्वारा कर में वृद्धि : 

लुई  सोलहवें  के कर बढाने के निम्न कारण थे।

1. खाने-पीने की वस्तुओं की महंगाई |

2. फ्रांस की जनसंख्या में वृद्धि ।

3. सरकार पर कर्ज का बोझ।

4. वितीय संसाधन में कमी ।

5. बार बार युद्ध की मार ।

फ्रांस की क्रांति के प्रमुख कारण : 

1. खाने-पीने की वस्तुओं की महंगाई |

2. कर में वृद्धि |

3. लूई सरकार का निरंकुश शासन |

4. मजदुर, व्यापारियों और किसानों का शोषण |

5. दार्शनिकों के विचार | 


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FAQs on नोट्स, पाठ - 1 फ़्रांसिसी क्रांति (कक्षा नवीं) - सामाजिक विज्ञान (कक्षा 9) - नोट्स, वीडियोस तथा सैंपल पेपर्स - Class 9

1. What were the causes of the French Revolution?
Ans. The French Revolution was caused by various factors such as social inequality, financial crisis, political instability, and the ideas of Enlightenment thinkers. The French society was divided into three estates, with the first two estates enjoying privileges and exemptions from taxes, while the third estate, which consisted of the common people, had to bear the burden of taxes. The financial crisis was caused by the extravagant spending of the monarchy and the cost of wars. The political instability was caused by the weak leadership of King Louis XVI and the resistance of the nobility to reforms. The ideas of Enlightenment thinkers such as liberty, equality, and fraternity also played a significant role in inspiring the people to demand their rights and overthrow the old regime.
2. Who were the key players of the French Revolution?
Ans. The French Revolution had many key players who played different roles in the revolution. Some of the prominent figures were Maximilien Robespierre, Jean-Paul Marat, Georges Danton, Louis XVI, Marie Antoinette, Napoleon Bonaparte, and many others. Maximilien Robespierre was a radical leader who advocated for the reign of terror, while Jean-Paul Marat was a journalist who used his newspaper to incite violence. Georges Danton was a politician who played a vital role in the early stages of the revolution. King Louis XVI and Marie Antoinette were the monarchs who were overthrown, and Napoleon Bonaparte was a military leader who rose to power after the revolution.
3. What were the major events of the French Revolution?
Ans. The French Revolution was a significant event in the history of France and Europe. The major events of the French Revolution include the storming of the Bastille, the Declaration of the Rights of Man and Citizen, the execution of King Louis XVI and Marie Antoinette, the Reign of Terror, and the rise of Napoleon Bonaparte. The storming of the Bastille was a symbol of the people's revolt against the monarchy. The Declaration of the Rights of Man and Citizen established the principles of liberty, equality, and fraternity. The execution of King Louis XVI and Marie Antoinette marked the end of the monarchy and the beginning of the Republic. The Reign of Terror was a period of violence and terror, and the rise of Napoleon Bonaparte marked the end of the revolution.
4. What was the impact of the French Revolution?
Ans. The French Revolution had a significant impact on France and Europe. It led to the establishment of a democratic republic in France and the end of the monarchy. It also spread the principles of liberty, equality, and fraternity throughout Europe. The French Revolution inspired other revolutions, such as the Haitian Revolution, that led to the end of slavery. The French Revolution also had a significant impact on the arts, literature, and culture of France. It led to the rise of Napoleon Bonaparte, who conquered much of Europe and spread the principles of the Revolution through his conquests.
5. What was the significance of the Reign of Terror?
Ans. The Reign of Terror was a period of violence and terror during the French Revolution. It was led by Maximilien Robespierre, who believed that terror was necessary to achieve the goals of the Revolution. The Reign of Terror led to the execution of thousands of people, including many innocent people. The Reign of Terror was significant because it marked a turning point in the Revolution. It showed the radicalization of the Revolution and the willingness of the leaders to use extreme measures to achieve their goals. The Reign of Terror also led to the downfall of Robespierre and the end of the radical phase of the Revolution.
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